कॉर्डेटा या रज्जुकी संघ क्या है ? (phylum chordata meaning in hindi) , कॉर्डेट (रज्जुकी) जन्तु , कॉर्डेट्स की विविधता
कार्डेटा (phylum chordata meaning in hindi) कॉर्डेटा या रज्जुकी संघ क्या है ? , कॉर्डेट (रज्जुकी) जन्तु , कॉर्डेट्स की विविधता किसे कहते है ?
कॉर्डेटा या रज्जुकी संघ क्या है ? :-
वर्गीकरण की योजना में जन्तु जगत को पहले अनेक प्रमुख जन्तु समूहों में बाँटा गया है जिन्हें संघ कहते है | अभी तक लगभग 30 जन्तु संघों को मान्यता प्राप्त है | जन्तु जगत के अंतिम मुख्य समूह को रज्जुकी अथवा कॉर्डेटा संघ कहते है | इस संघ की स्थापना बालफोर ने 1880 में की थी | इस संघ का नाम ग्रीक भाषा के दो शब्दों chorde और ata से मिलकर बना है | कॉर्ड (chorde) का अर्थ है ‘रज्जू या कॉर्ड ‘ और ऐटा का अर्थ है ‘सहित अथवा वहन करना’ |
इसका सम्बन्ध एक सामान्य विशिष्ट लक्षण से है जो एक सुदृढ , आधारशील छड़ी के आकार की संरचना है तथा जो शरीर के पृष्ठ भाग अथवा पीठ को अवलम्ब प्रदान करती है |
इसे पृष्ठ या नोटोकॉर्ड कहते है | नोटोकॉर्ड कॉर्डेटा संघ के सभी सदस्यों में उनके जीवन की किसी न किसी अवस्था में पाया जाता है , अत: कॉर्डेटस अथवा रज्जुकी वह जन्तु होते है जिनमे पृष्ठ रज्जू या नोटोकॉर्ड पाया जाता है | जन्तु जगत के शेष दूसरे संघों के जन्तुओं को सामान्यतया अरज्जुकी या नॉन कॉर्डेटस अथवा अकशेरुकी कहते है , क्योंकि उनकी शारीरिक रचना में रीढ़ या नोटोकॉर्ड नहीं पाया जाता है |
कॉर्डेट (रज्जुकी) जन्तु
ड्यूटेरोस्टोम संघो में सबसे विशाल कॉर्डेटा संघ है। यह सर्वाधिक विकसित और सबसे महत्वपूर्ण संघ है जिसके अंतर्गत मनुष्य सहित विभिन्न प्रकार के जीवित और विलुप्त जन्तु आते है। अधिकतर जीवित कॉर्डेटस सुपरिचित कशेरुकी प्राणी होते है , जैसे मछलियाँ , उभयचर , सरीसृप , पक्षी एवं स्तनधारी।
इनके अतिरिक्त इनमे बहुत से समुद्री जन्तु भी आते है जैसे कंचुकी या ट्युनिकेट्स और लानसीलेट्स , हालाँकि यह कम जाने जाते है।
कॉर्डेट्स की विविधता
रज्जुकियो अथवा कॉर्डेट्स की आकृति , प्रकृति और कार्यिकी में आश्चर्यजनक विविधता पायी जाती है।
1. संख्यात्मक सामर्थ्य : नॉन कॉर्डेट्स की तुलना में कॉर्डेट जातियों की संख्या असामान्य रूप से अधिक नहीं है। लगभग 49000 जातियां अभिलेखित है जो जीवित मोलस्का की जातियों की केवल आधी और जीवित आर्थ्रोपोडा की 1/10 जातियों से भी कम होती है। दो उपसंघो , यूरोकॉर्डेटा और सेफैलोकॉर्डेटा की लगभग 2500 ज्ञात जातियां है। उपसंघ कशेरुकी अथवा वर्टिब्रेटा की लगभग 46500 जातियां है जिसमे सर्वाधिक मछलियाँ है जिनकी लगभग 25000 जातियां ज्ञात है।
ऐसा अनुमानित है कि उभयचरों की लगभग 2500 , सरीसृपों की 6000 , पक्षियों की 9000 और स्तनधारियों की 4500 जातियाँ ज्ञात है।
2. परिमाण : जातियों की साधारण संख्या होते हुए भी , पृथ्वी की जैवमात्रा (बायोमास) बनाने में कॉर्डेट्स का असमानुपाती योगदान है। लगभग सभी कॉर्डेट परिमाण में मध्यम से वृहत होते है। विशेष तौर पर कशेरुकी तो बहुत बड़े होते है और उनमे से अनेक तो पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवित जन्तुओं में से सबसे विशालकाय होते है। भीमकाय ब्लू व्हेल , जिसकी लम्बाई 35 मीटर एवं भार 120 टन तक होता है , सबसे विशाल ज्ञात जन्तु है।
व्हेल शार्क की लम्बाई 15 मीटर तक होती है। जो व्हेल के बाद दुसरे क्रम पर सर्वाधिक विशाल कशेरुकी है।
सबसे छोटी मछली जिसकी लम्बाई 10 मिली मीटर होती है , फिलीपाइन गोबी है।
3. पारिस्थितिकी : कॉर्डेट्स आज मात्र सर्वाधिक विशालकाय वर्तमान जन्तु ही नहीं वरन पारिस्थितिकीय दृष्टि से भी जन्तु जगत में सबसे सफलतम जन्तु है। वे सर्वाधिक प्रकार के आवासों में रह लेते है। उन्होंने अपने आपको , आर्थ्रोपोडा सहित किसी भी अन्य समूह से अधिक , विभिन्न अवस्थाओं में रहने के अनुकूलित बना लिया है। वह समुद्र में , अलवण जल में , वायु में और पृथ्वी के प्रत्येक भाग पर , ध्रुवो से लेकर भूमध्य रेखा तक , पाए जाते है। पक्षियों और स्तनधारियों ने तो शीत जलवायु के प्रदेशो में भी प्रवेश कर लिया है क्योंकि उनके शरीर का तापक्रम स्थिर होता है जैसा अन्य किन्ही जंतुओं में नहीं होता।
सभी निम्न कॉर्डेट्स समुद्री होते है , मछलियाँ जलीय होती है और उच्च कॉर्डेट्स प्रधानतया स्थलीय होते है। लवण जलीय उभयचर अज्ञात है। कोई पक्षी स्थाई रूप से पानी में नहीं रहता जबकि कुछ उभयचर , सरीसृप और स्तनधारी स्थायी रूप से जलवासी है। जबकि अधिकतर कंचुकी स्थानबद्ध होते है , सभी कॉर्डेट्स स्वतन्त्रजीवी होते है और कोई भी पूर्णरूपेण परजीवी नहीं होता।
सम्पूर्ण जन्तु जगत में कॉर्डेट्स संभवत: सर्वाधिक ध्यानाकर्षी और सर्वज्ञात समूह है। इसके दो आंशिक कारण है –
एक तो उनका वृहत आकार और दूसरा उनकी महत्वपूर्ण भूमिका जो वह अपने पारिस्थितिक तंत्रों में निभाते है।
कॉर्डेट्स प्राथमिक अभिरूचि के जन्तु है क्योंकि मनुष्य स्वयं इस समूह का एक सदस्य है। केवल विशुद्ध जैव वैज्ञानिक विचार दृष्टि से भी कॉर्डेट्स दिलचस्प होते है क्योंकि ये विकास , परिवर्धन तथा पारस्परिक सम्बन्धो के सामान्य जैव वैज्ञानिक सिद्धांतो के बहुत अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करते है।
तीन आधारभूत कॉर्डेट लक्षण
कार्डेटा
* कार्डेटा को 13 वर्गों में विभाजित किया गया है।
* इस संघ में वे जन्तु हैं जिनके जीवन चक्र की किसी न किसी अवस्था में एक पृष्ठ रज्जु एवं एक खोखली पृष्ठ तंत्रिका रज्जु पायी जाती है।
* इस संघ के जन्तुओं में क्लोम दरारें अवश्य पायी जाती हैं।
कार्डेटा के कुछ प्रमुख वर्ग
कोंड्रिकथाइस वर्ग
* ये सभी अनियततापी जन्तु होते हैं।
* इनमें श्वसन क्लोम द्वारा होता है।
* ये जल में अण्डे देने वाले वर्टिब्रेट हैं।
* इनका हृदय द्विवेश्मी होता है।
उदाहरणः शार्क, टॉरपीडो, रोहू, भेटकी, हिप्पोकैम्पस, एनाबस, गरई, सिंगी, प्रोटोप्टेरस आदि।
* हिप्पोकैम्पस एक समुद्री मछली होती है जिसे समुद्री घोड़ा कहते हैं।
* शार्क को डॉग फिश और टॉरपीडो को ‘इलेक्ट्रिक रे’ के नाम से जाना जाता है।
उभयचर वर्ग
* जल और स्थल दोनों स्थानों पर पाये जाने वाले अनियततापी जन्तु होते हैं।
* इनके शरीर पर शल्क, बाल, पंख नहीं होते हैं। ये त्वचीय श्वसन करते हैं।
* हृदय में दो अलिंद और एक निलय होते हैं। उदाहरणः मेढ़क, टोड, सैलामैण्डर, साइरेन, नेक्ट्यूरस, प्रोटिअस आदि।
* टोड का वैज्ञानिक नाम ब्यूफो है।
* हायला को वृक्ष मेढ़क कहते हैं।
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