चुंबकीय याम्योत्तर की परिभाषा दीजिए , चुम्बकीय याम्योतर क्या है ? Magnetic meridian meaning in hindi
Magnetic meridian meaning in hindi , चुंबकीय याम्योत्तर की परिभाषा दीजिए , चुम्बकीय याम्योतर क्या है ? :-
भू चुम्बकत्व : पृथ्वी एक चुम्बक की तरह व्यवहार करती है। पृथ्वी के चुम्बकत्व को भू-चुंबकत्व कहते है।
पृथ्वी के चुम्बक का उत्तरी ध्रुव दक्षिण की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव उत्तर की है।
पृथ्वी के चुम्बकत्व के बारे में कोई सतही जानकारी नहीं है। प्रारंभ में यह माना गया कि एक विशाल चुम्बक पृथ्वी के अन्दर गहराई में रखी हुई है परन्तु पृथ्वी के अन्दर अत्यधिक ताप होने के कारण किसी चुम्बक में चुम्बकत्व नहीं रह सकता है। अत: यह धारणा छोड़ दी गयी।
अब यह माना जाता है कि पृथ्वी के अन्दर अत्यधिक मात्रा में लोहा और Ni है। जो अधिकांशतय पिघली हुई अवस्था में है अत: पृथ्वी के घूर्णन के कारण इनमे संवहन धारा उत्पन्न हो जाती है जिस कारण प्रबल विद्युत धाराएँ उत्पन्न होती है , इस प्रभाव को डायनमो प्रभाव कहते है। इन्ही प्रबल विद्युत धाराओ के कारण पृथ्वी में चुम्बकत्व उत्पन्न होता है।
चुम्बकीय याम्योत्तर : चुम्बक के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को चुम्बकीय अक्ष कहते है स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी हुई चुम्बकीय सुई की स्थिर अवस्था में चुम्बकीय अक्ष से गुजरने वाले काल्पनिक उर्द्धवाधर तल को चुम्बकीय याम्योतर कहते है।
पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को भौगोलिक अक्ष कहते है। भौगोलिक अक्ष से गुजरने वाले काल्पनिक उर्द्धवाधर तल को भौगोलिक याम्योत्तर कहते है।
चुम्बकीय दिकपात : किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर तथा भौगोलिक याम्योतर के बीच बनने वाले कोण को चुम्बकीय दिकपात कहते है। इसे D से व्यक्त करते है।
दिकपात का मान अक्षांशो पर अधिक व विषुवत रेखा पर कम होता है। दिल्ली में इसका मान 0.41 E है। मुंबई में इसका मान 0.55 W है। अत: इन दोनों स्थानों पर चुम्बकीय सुई काफी हद तक सही उत्तर दिशा बताती है।
नमन कोण या आनति कोण (I) : स्वतंत्रता पूर्वक लटकी हुई चुम्बकीय सुई स्थिर अवस्था में क्षैतिज के साथ जितना कोण बनाती है .इसे नमन या नति कोण कहते है।
पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर नमन या नति कोण का मान 90 डिग्री होता है। पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर चुम्बकीय सुई का उत्तरी धुव नीचे की ओर होता है जबकि पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर चुम्बकीय सुई का दक्षिणी ध्रुव नीचे की ओर होता है।
माना किसी स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र BE है। तथा नमन कोण I हो अत: BE के दो घटक होंगे।
क्षैतिज घटक
HE = BEcosI समीकरण-1
उर्ध्वाधर घटक
ZE = BEsinI समीकरण-2
समीकरण-2 में समीकरण 1 का भाग देने पर
ZE/HE = BEsinI/ BEcosI
ZE/HE = tanI
HE = BEcosI समीकरण-1
ZE = BEsinI समीकरण-2
समीकरण-1 व समीकरण 2 का वर्ग करके जोड़ने पर –
HE2 + ZE2 = BE2 (cos2I + sin2I)
HE2 + ZE2 = BE2
BE = √(HE2 + ZE2)
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की पूर्ण जानकारी करने के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है –
- दिक्पात कोण (D)
- नमन कोण (I)
- भू चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक HE
इन्हें पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के घटक कहते है।
चुम्बकीयकरण तथा चुम्बकीय तीव्रता :
चुम्बकन (M) : परमाणु में नाभिक के चारों ओर बंध कक्षाओ में घूमते हुए इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण होता है।
अत: किसी पदार्थ का चुम्बकीय आघूर्ण उसके सभी परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों के चुम्बकीय आघूर्णो के सदिश योग के बराबर होता है।
किसी पदार्थ के एकांक आयतन में उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण को चुम्बंकन (M) कहते है।
चुम्बकन M = M नेट/V
चुम्बकन का मात्रक = एम्पियर/मीटर
चुम्बकीय तीव्रता (H) : परिनालिका के भीतर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र = B0 = u0ni समीकरण-1
यहाँ n = एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या
i = एक फेरे में प्रवाहित धारा
ni = H
यहाँ H चुम्बकीय तीव्रता है।
अत: B0 = u0H
माध्यम B = uH
चुम्बकीय क्षेत्र B , चुम्बकन M एवं चुम्बकीय तीव्रता H में सम्बन्ध :
परिनालिका के भीतर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र = B0 = u0ni समीकरण-1
यहाँ n = एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या
i = एक फेरे में प्रवाहित धारा
यदि परिनालिका के भीतर कोई पदार्थ भर दिया जाए तो उस पदार्थ में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जायेगा। पदार्थ में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र Bm चुम्बकन M के समानुपाती होता है।
Bm ∝ M
Bm = u0M समीकरण-2
परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र –
B = B0 + Bm
B = u0ni + u0M
B = u0(ni + M)
चूँकि ni = H
B = u0(H + M)
B/u0 = (H + M)
H = B/u0 – M
चुम्बकीय प्रवृत्ति (X) : चुम्बकन M चुम्बकीय तीव्रता H के समानुपाती होता है।
M ∝ H
M = XH
X एक स्थिरांक है जिस चुम्बकीय प्रवृति कहते है।
X = M/H
प्रति चुम्बकीय पदार्थो के लिए x का मान अल्प परत ऋणात्मक होता है।
अनुचुम्बकीय पदार्थो के लिए x का मान अल्प परत धनात्मक होता है।
चुम्बकीय प्रवृति एवं चुम्बकीय पारगम्यता में सम्बन्ध :
परिनालिका में उत्पन्न क्षेत्र B0
परिनालिका में रखा माध्यम में क्षेत्र Bm
B = B0 + Bm
B = u0ni + u0m
ni = H
B = u0H + u0m
B = u0(H + m)
B = u0H(1 + m/H)
चूँकि m/H = X
चूँकि B = u0H(1 + X) समीकरण-1
चूँकि B = uH समीकरण-2
समीकरण-1 व समीकरण-2 से
uH = u0H(1 + X)
u = u0(1 + X)
u/u0 = (1 + X)
us = (1 + X)
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