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ज्वालामुखी क्या है ? परिभाषा , ज्वालामुखी किसे कहते है ? कैसे फटता है (volcano in hindi)

ज्वालामुखी (volcano in hindi) : ज्वालामुखी एक प्राकृतिक घटना है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग से लावा , विभिन्न गैसे , राख , जलवाष्प , ज्वालामुखी बम , ज्वल खण्डाश्मी पदार्थ (pyroclastic) , लैपिली आदि पदार्थ बाहर निकलते है।
ज्वालामुखी क्रियाओ के दौरान निकलने वाली मुख्य गैसे निम्नलिखित है –
नाइट्रोजन (N) , सल्फर (sulphur) , आर्गन (argon) , कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) , हाइड्रोजन (H) , क्लोरिन (Cl) आदि।

ज्वालामुखी उद्भव के प्रमुख कारण (reasons of volcanic eruption)

ज्वालामुखी उदभव के पांच मुख्य कारण है जो निम्न प्रकार है –
1. विवर्तनिक गतिविधियाँ : इसके अंतर्गत ज्वालामुखी का प्रमुख कारण प्लेटो की गति को माना जाता है। मुख्य रूप से अभिसारी और अपसारी प्लेट किनारों पर ज्वालामुखी उद्भव होते है।
2. भूकम्प (earthquake) :भूकंप के कारण कई बार पृथ्वी की सतह पर दरारों का निर्माण होता है।  इन दरारों के माध्यम से ज्वालामुखी उद्भव की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. आंतरिक ताप का बढ़ना (increase internal temperature) : जब पृथ्वी के आंतरिक भाग में रेडियोधर्मी पदार्थो या रासायनिक क्रियाओ के कारण तापमान बढ़ता है जिसके कारण चट्टानें पिघलकर मैग्मा का निर्माण करती है और इस मैग्मा निर्माण के कारण ज्वालामुखी क्रियाओ या उद्भव की संभवना बढ़ जाती है।
4. गैसों का निर्माण (formation of gases) : जब पृथ्वी के आंतरिक भाग में जलवाष्प जैसी गैसों का निर्माण होता है या अन्य कई प्रकार की गैसों का निर्माण होता है तो ये गैसे प्रणोदक का कार्य करती है अर्थात ज्वालामुखी उद्भव को बढ़ावा देती है।
5. दाब का कम होना (decrement in pressure) : जब उपरी चट्टानों द्वारा निचली चट्टानों पर लगने वाला दाब कम होता है तो इससे चट्टानों का गलनांक भी कम हो जाता है अर्थात इस स्थिति में ये चट्टानें कम ताप पर ही पिघलने लगती है जिसके कारण कम ताप पर भी मैग्मा का निर्माण हो जाता है और इस मैग्मा निर्माण के कारण ज्वालामुखी क्रियाओ को बढ़ावा मिलता है।

ज्वालामुखी स्थलाकृतियां (volcanic landforms)

ज्वालामुखी क्रियाओ के कारण या फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की स्थल आकृतियाँ बनती है जिनका आगे हम अध्ययन करने जा रहे है कि ज्वालामुखी के कारण किस प्रकार की स्थालाकृतियाँ बनती है।
ज्वालामुखी के कारण बनने वाली स्थल आकृतियों को दो भागो में बांटा जा सकता है –
1. अंतर्वेधी (intrusive landforms)
2. बहिर्वेधी (extrusive landforms)
1. अंतर्वेधी (intrusive landforms) : जब मैग्मा पृथ्वी की सतह के अन्दर ही क्रिया करता है या उद्भव होकर पृथ्वी कि सतह के अन्दर ही ठंडा होकर स्थल आकृति बना लेता है तो इन स्थल आकृतियों को अंतर्वेधी (intrusive landforms) स्थलाकृतियाँ कहते है अर्थात ये पृथ्वी की सतह के अन्दर बनने वाली स्थल आकृतियां है। अंतर्वेधी स्थलाकृतियाँ निम्न 6 प्रकार की होती है –
(i) बैथोलिथ (Batholiths)
(ii) लैकोलिथ (Laccoliths)
(iii) लोपोलिथ (Lapolith)
(iv) फैकोलिथ (Phacolith)
(v) सिल तथा शीट (Sills and sheets)
(vi) डाइक (Dykes)
(i) बैथोलिथ (Batholiths) : मैग्मा भण्डार के ऊपर जमा हुआ विशाल मैग्मा का पिण्ड बैथोलिथ कहलाता है।
बैथोलिथ एक गुम्बदाकार आकृति है , यह मैग्मा भंडार का ही भाग माना जाता है।
(ii) लैकोलिथ (Laccoliths) : ऊपर उठते हुए मैग्मा से बनने वाली समतल गुम्दाकार स्थल आकृति को लैकोलिथ कहते है।
यह स्थल आकृति वाहक नलिका द्वारा मैग्मा भण्डार से जुडी होती है।

(iii) लोपोलिथ (Lapolith) : जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा तश्तरी के रूप में जमता है तो उसे लोपोलिथ कहा जाता है।  यह स्थल आकृति वाहक नलिका द्वारा मैग्मा भण्डार से जुडी रहती है।

(iv) फैकोलिथ (Phacolith) : ऊपर उठते हुए मैग्मा से बनने वाली लहरदार स्थल आकृति को फैकोलिथ कहते है। इसके अंतर्गत मैग्मा अपनति के ऊपर तथा अभिनति के आधार पर नीचे जमता है।
यह स्थल आकृति वाहक नलिका द्वारा मैग्मा भण्डार से जुडी होती है।
(v) सिल तथा शीट (Sills and sheets) : जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा क्षैतिज रूप से फैलकर पतली परत मे जमता है तो उसे शिट कहते है।
मैग्मा के मोटी परत के जमाव को सिल कहते है।
यह स्थल आकृति मैग्मा भण्डार से वाहक से जुडी है।
(vi) डाइक (Dykes) : ऊपर उठते हुए मैग्मा द्वारा बनने वाली लम्बवत स्थल आकृति जो दिवार के रूप में होती है उसे डाइक कहते है।

2. बहिर्वेधी (extrusive landforms)

बहिर्वेधी स्थल आकृतियों को विभिन्न विशेष आकृति वर्ग में बांटा गया है जो निम्न प्रकार है –
(i) शंकु आकार की बहिर्वेधी स्थल आकृतियाँ (cone volcano landform)
(ii) काल्डेरा या ज्वालामुखी कुण्ड
(iii) क्रेटर
(iv) प्लग
(v) ज्वालामुखी पर्वत
(vi) ज्वालामुखी पठार
(vii) गीजर
(viii) धुआंरे
(i) शंकु आकार की बहिर्वेधी स्थल आकृतियाँ (cone volcano landform) :
ये शंकु आकृतियाँ 5 प्रकार की होती है –
(a) सिन्डर शंकु (cinder cone volcano) : जब ज्वालामुखी उद्भव के दौरान लावा की मात्रा कम तथा राख की मात्रा अधिक होती है तो कम ऊँचाई तथा अवतल ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है।  इसे राख शंकु भी कहते है।
उदाहरण : मक्सिको का “जोरल्लो शंकु”
(b) अम्लीय शंकु (acidic cone ) : इस प्रकार के शंकु का निर्माण तब होता है जब ज्वालामुखी क्रियाओ के दौरान अम्लीय लावा निकलता है।  अम्लीय लावा से सिलिका की मात्रा अधिक होती है अत: यह लावा गाढ़ा और चिपचिपा होता है।
यह लावा निकलते ही जम जाता है जिससे ऊँचे और तीव्र ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है।
उदाहरण : स्टोम्बोली (इटली) (stromboli italy)
(c) क्षारीय शंकु (base cone volcano) : इस प्रकार के शंकु का निर्माण तब होता है जब क्षारीय लावा ज्वालामुखी क्रियाओ के दौरान निकलता है।
क्षारीय लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है अत: यह लावा पतला एवं तरल होता है इस लावा से कम ऊंचाई और मंद ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है इस प्रकार के शंकु को शील्ड शंकु भी कहते है ,
उदाहरण : हवाई द्वीप पर स्थित “मोनालोया शंकु”
(d) मिश्रित शंकु : जब ज्वालामुखी उद्भव के दौरान लावा के साथ कई अन्य पदार्थ निकलते है तो यह पदार्थ परतो के रूप में जमकर एक विशाल शंकु का निर्माण करते है जिसे मिश्रित शंकु कहते है।
उदाहरण : हुड तथा रेनियर (USA)
(e) परपोषित शंकु (parasitic cone) : जब मुख्य शंकु की वाहक नलिका पर लावा का अतिरिक्त दाब लगता है तो वाहक नलिका टूट जाती है जिससे शंकु के ढाल पर लावा निकलने लगता है जिससे मुख्य शंकु के ढाल पर एक अन्य शंकु का निर्माण होता है जिसे परपोषित शंकु कहते है।
उदाहरण : USA के “शास्ता शंकु” का परपोषित शंकु “शास्तिना” है।
(ii) काल्डेरा (caldera) या ज्वालामुखी कुण्ड :
विस्फोटक ज्वालामुखी उद्भव होने पर सतह का बहुत बड़ा भाग धँस जाता है जिससे एक विशाल ज्वालामुखी कुण्ड का निर्माण होता है , जिसे काल्डेरा कहते है।
उदाहरण : आसो काल्डेरा (जापान)
ज्वालामुखी उद्भव शांत होने के बाद इस कुण्ड में वर्षा का जल भर सकता है , जिससे काल्डेरा झील का निर्माण होता है।
उदाहरण : टोबा झील (इंडोनेशिया)
(iii) क्रेटर (crater) : यह सामान्यत: शंकु पर पायी जाने वाली कीपाकार गर्त होती है।  क्रेटर का निर्माण उल्का पिंड के पृथ्वी की सतह पर गिरने से भी होता है।  क्रेटर में वर्षा का जल भरने पर क्रेटर झील का निर्माण होता है। उदाहरण : लोनार झील (महाराष्ट्र)
(iv) प्लग (plug) : वाहक नलिका में लावा के जमने से प्लग का निर्माण होता है , शंकु के अपरदित होने के बाद प्लग सतह पर नजर आता है।
(v) ज्वालामुखी पर्वत : विशाल शंकु को ही ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है।
उदाहरण : फ्यूजीशान (जापान)
(vi) ज्वालामुखी पठार (volcanic plateau) : जब दरार के माध्यम से क्षारीय लावा निकलता है तो वह विस्तृत क्षेत्र में फैलकर परतो के रूप में जम जाता है जिससे ज्वालामुखी पठार का निर्माण होता है।
उदाहरण : दक्कन का पठार (भारत)
(vii) गीजर (geyser) : जब ज्वालामुखी क्षेत्रो से गर्म जल तथा जलवाष्प निकलती तो उसे गीजर कहा जाता है।
उदाहरण : ओल्ड फैथफुल गीजर येल्लोस टोन राष्ट्रिय उद्यान (अमेरिका) (old faithful geyser yellowstone national park wyoming USA)
(viii) धुआरें (fumaroles) : वह ज्वालामुखी क्षेत्र जहाँ से ज्वालामुखीय गैसे तथा धुआं निकलती है।  उस धुआरें कहते है।  यह ज्वालामुखी की अंतिम अवस्था में बनते है।
उदाहरण : दस हजार धुआरों की घाटी कितमाई राष्ट्रीय उद्यान (अलास्का USA)
गंधक (सल्फर) युक्त धुआरो को सोल्फ तारा कहा जाता है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) युक्त धुआरें को मोफेटा कहते है।

ज्वालामुखी के प्रकार (types of volcano)

ज्वालामुखी को तीन आधार पर बाँटा जा सकता है –
1. स्थलाकृति के आधार पर (volcano on the basis of landforms)
2. सक्रियता के आधार पर (volcano on the basis of active)
3. उद्भव के आधार पर (volcano on the basis of eruption)

1. स्थलाकृति के आधार पर

इस आधार पर ज्वालामुखी को पाँच भागो में बांटा गया है –
(i) शील्ड ज्वालामुखी
(ii) मिश्रित ज्वालामुखी
(iii) काल्डेरा ज्वालामुखी
(iv) बसाल्ट प्रवाह क्षेत्र ज्वालामुखी
(v) मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी
(i) शील्ड ज्वालामुखी (shield volcano) : `यह ज्वालामुखी सामान्यतया कम विस्फोटक होते है परन्तु वाहक नलिका में जल प्रवेश करने पर ये ज्वालामुखी विस्फोटक हो जाते है।  इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्भव के दौरान क्षारीय लावा निकलता है।
क्षारीय लावा के जमने से कम ऊँचाई तथा मंद ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है।
इस प्रकार के ज्वालामुखी हवाई द्वीप समूह में पाए जाते है।
(ii) मिश्रित ज्वालामुखी (Composite volcanoes) : इस प्रकार के ज्वालामुखी विस्फोटक होते है।  इनमे लावा के साथ कई अन्य पदार्थ निकलते है।  यह पदार्थ परतो के रूप में जमकर एक विशाल शंकु का निर्माण करते है।
उदाहरण : हुड तथा रेनियर (अमेरिका) (hood and rainier volcano [usa])
(iii) काल्डेरा ज्वालामुखी (caldera volcano) : यह ज्वालामुखी अत्यधिक विस्फोटक होते है।  इनमे अम्लीय लावा निकलता है , काल्डेरा की विस्फोटकता यह दर्शाती है कि मैग्मा भंडार अत्यधिक विशाल है तथा सतह के समीप स्थित है।  काल्डेरा ज्वालामुखी के कारण सतह का बहुत बड़ा भाग धंस जाता है।
उदाहरण : आसो काल्डेरा (जापान)
नोट : लावा तीन प्रकार का हो सकता है , पहले बसाल्ट क्षारीय प्रकृति का होता है , दूसरा रायोलाइट अम्लीय प्रकृति का होता है तीसरा एंडेसाट मध्यम प्रकृति का होता है।
(iv) बसाल्ट प्रवाह क्षेत्र ज्वालामुखी (basalt flood field volcano) : यह ज्वालामुखी बिल्कुल भी विस्फोटक नहीं होते है।  इनमे दरारों के मध्यम से क्षारीय लावा निकलता है जो विस्तृत क्षेत्र में फ़ैल जाता है।  इस प्रकार के ज्वालामुखी के अन्तर्गत मुख्यतः बसाल्ट लावा निकलता है।  इससे एक विशाल क्षेत्र में बसाल्ट का प्रवाह होता है।
उदाहरण : साइबेरियन बसाल्ट प्रवाह क्षेत्र और दक्कन ट्रेप आदि।
इस प्रकार के ज्वालामुखी से कई बार ज्वालामुखी पठार का निर्माण होता है।
(v) मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी (mid ocean ridge volcano) : इस प्रकार के ज्वालामुखी महासागरीय क्षेत्रो में अपसारी प्लेट किनारों पर आते है।  ये ज्वालामुखी मध्यम से निम्न विस्फोटकता वाले होते है।  इस प्रकार के ज्वालामुखी से महासागरीय क्षेत्रो कटक का निर्माण होता है।
जैसे : मध्य अटलांटिक कटक

2. सक्रियता के आधार पर (volcano on the basis of active) ज्वालामुखी के प्रकार

सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार की हो सकती है –
(i) सक्रीय ज्वालामुखी (active volcano)
(ii) सुषुप्त ज्वालामुखी (dormant volcano)
(iii) मृत ज्वालामुखी (dead volcano)
(i) सक्रीय ज्वालामुखी (active volcano) : वह ज्वालामुखी जिनमे बार बार उद्भव होते है उन्हें सक्रीय ज्वालामुखी कहते है।
उदाहरण : बैरन द्वीप (भारत)
कोटोपैक्सी (दक्षिणी अमेरिका)
स्ट्रोम्बोली (इटली)
(ii) सुषुप्त ज्वालामुखी (dormant volcano) : वह ज्वालामुखी जिनमे कई वर्षो से ज्वालामुखी उद्भव नहीं हुआ होता है लेकिन भविष्य में इनमे उद्भव होने की सम्भावना होती है।
उदाहरण : विसुवियस (इटली)
नारकोंडम (भारत)
(iii) मृत ज्वालामुखी (dead volcano) : वह ज्वालामुखी जिनमे कई वर्षो से उद्भव नहीं हुआ होता तथा भविष्य में भी जिनमे उद्भव की कोई सम्भावना न हो , उसे मृत ज्वालामुखी कहते है।
उदाहरण : अकोंकागुआ (दक्षिणी अमेरिका)
किलिमंजारो (अफ्रीका)

3. उद्भव के आधार पर (volcano on the basis of eruption)

उदभाव (उदगार) के आधार पर ज्वालामुखी को दो भागो में विभक्त कर सकते है –
(I) दरारी उद्भव या उदगार के आधार पर।
(II) केन्द्रीय उद्भव या उदगार के आधार पर।
(I) दरारी उद्भव या उदगार के आधार पर : इस आधार पर ज्वालामुखी एक ही प्रकार की होती है –
(i) आइसलैण्ड तुल्य ज्वालामुखी : इस प्रकार के ज्वालामुखी बिल्कुल विस्फोट नहीं होते है।  इनमे दरारों के माध्यम से क्षारीय लावा निकलता है।  सामान्यतया क्षारीय लावा फैलकर पठारों का निर्माण भी करता है।  यह ज्वालामुखी बसाल्ट प्रवाह क्षेत्र ज्वालामुखी जैसा होता है।
उदाहरण : साइबेरियन बसाल्ट प्रवाह क्षेत्र
दरारी ज्वालामुखी उद्भव अपसारी प्लेट किनारों तथा भ्रंश निर्माण वाले क्षेत्रो में होता है।
(II) केन्द्रीय उद्भव या उदगार के आधार पर : इस आधार पर ज्वालामुखी पाँच प्रकार की होती है जो निम्न प्रकार है –
(i) हवाई तुल्य ज्वालामुखी
(ii) स्ट्रोम्बोली तुल्य ज्वालामुखी
(iii) वल्कैनो तुल्य ज्वालामुखी
(iv) पिलीयन ज्वालामुखी
(v) प्लिनियम ज्वालामुखी

(i) हवाई तुल्य ज्वालामुखी : यह ज्वालामुखी कम विस्फोटक होते है और इनमे क्षारीय लावा उद्गार होता है।  यह ज्वालामुखी , शील्ड ज्वालामुखी जैसी ही होती है जिनमे कम ऊँचाई तथा मंद ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है।

(ii) स्ट्रोम्बोली तुल्य ज्वालामुखी : यह ज्वालामुखी मध्यम विस्फोटकता वाले होते है , इनसे अम्लीय लावा निकलता है।  यह ज्वालामुखी सक्रीय होते है।
स्ट्रोम्बोली को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ भी कहा जाता है।
(iii) वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी : इस ज्वालामुखी का नाम इटली के लिपारी द्वीप समूह पर स्थित वलकैनो ज्वालामुखी के आधार पर रखा गया है।  यह ज्वालामुखी विस्फोटक होते है तथा इनसे गैसों की तीव्रता बहुत अधिक होती है।  इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्भव के दौरान राख युक्त गैसे काले बादल के रूप में ऊपर उठती है और फूलगोभी का आकार ले लेती है।
(iv) पिलियन ज्वालामुखी : इस ज्वालामुखी का नाम पिली ज्वालामुखी के आधार पर रखा गया है जो कैरिबियन सागर मार्टिनिक द्वीप पर स्थित है। यह ज्वालामुखी अत्यधिक विस्फोटक होते है।  इनमे ज्वालामुखी उद्भव होने पर ज्वल खण्डाशमी प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है।  इनमे गैसे तथा लावा के साथ अन्य पदार्थ पदार्थ भी निकलते है।
 (v) प्लिनियम ज्वालामुखी : इस ज्वालामुखी का नाम “प्लिनी” नामक विद्वान के आधार पर रखा गया है।
‘प्लिनी’ इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्भव के कारण मारे गए थे।  इस प्रकार का ज्वालामुखी उद्भव सन 79 में ‘विसुवियस’ हुआ था।
इस प्रकार के ज्वालामुखी अत्यधिक विस्फोट होते है तथा इनमे गैसों की तीव्रता भी बहुत अधिक होती है।  इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्भव के दौरान गैसे निकलती है जो समताप मण्डल तक पहुच जाती है।  यह ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी होते है तथा यह विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करते है।