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वृद्धि नियामक पदार्थ , growth Regulating substances in hindi , वृद्धि प्रवर्धक हार्मोन , Auxin (औक्सिन) की खोज

वृद्धि नियामक पदार्थ : इन्हे growth Regulating substances के नाम से जाना जाता है।

पादपो में पाए जाने वाले कार्बनिक पदार्थ जिनकी अल्प मात्रा प्रभावी रूप से पादपों की वृद्धि को नियंत्रित करती है , वृद्धि नियामक पदार्थ कहलाते है।
पादपो में पाए जाने वाले वृद्धि हार्मोनो का सुजाव सन 1882 में Sachs नामक वैज्ञानिक ने किया वही हॉर्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम sterling नामक वैज्ञानिक के द्वारा दिया गया।
थीमैन वैज्ञानिक ने पादपों में पाए जाने वाले ऐसे कार्बनिक पदार्थो को Phyto हॉर्मोन नाम दिया तथा इस वैज्ञानिक के अनुसार ऐसे कार्बनिक पदार्थ जो एक पादप में अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते है तथा पादप में प्राकृतिक रूप से एक स्थान से दुसरे स्थान तक स्थानांतरित होते है व प्रभावी रूप से पादप वृद्धि को नियन्त्रित करते है , Phyto हार्मोन कहलाते है।
सामान्यत: पादपों में पाये जाने वाले वृद्धि नियामक पदार्थ पादपो में कार्य की क्रिया विधि को प्रभावित करते है तथा पादपों में ऐसे पदार्थ मुख्य रूप से दो प्रकार के पाए जाते है –
(i) growth promoting hormone (वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन) : इस प्रकार के वृद्धि नियामक पदार्थ पादपो में पादप वृद्धि को प्रेरित करते है।
इस प्रकार के वर्ग में मुख्य रूप से Auxin , cytokinin , Giberellin तथा ethylene जैसे पादप हॉर्मोन सम्मिलित है।
(ii) वृद्धि अवरोधक हॉर्मोन (growth Inhibiting hormone) : वृद्धि नियामक पदार्थ के इस वर्ग के अन्तर्गत मुख्यतः Abssisic acid को सम्मिलित किया गया है।

वृद्धि प्रवर्धक हार्मोन

उपरोक्त पादप हॉर्मोन का प्रमुख कार्य पादपो में वृद्धि को प्रेरित करना होता है तथा प्रमुख रूप से पाये जाने वाले ऐसे हार्मोन निम्न प्रकार से है –
1. Auxin : Auxin शुद्ध की उत्पत्ति एक ग्रीक शब्द Auxein से हुई है जिसका अर्थ वृद्धि करना है।
पादपों में सर्वप्रथम खोजा गया पादप हार्मोन Auxin (औक्सिन) है जो प्रमुख रूप से पादप के प्ररोह भाग में पाया जाता है तथा इस पादप के द्वारा कोशिकाओ के दीर्घीकरण का कार्य किया जाता है जिसके फलस्वरूप पादप के भागो में वृद्धि होती है।
वर्तमान समय में समान गुण वाले कृत्रिम औक्सिन हॉर्मोन की खोज तथा निर्माण किया जा चूका है जिन्हें आवश्यकतानुसार पादपो में वृद्धि हेतु उपयोग किया जाता है।
Auxin (औक्सिन) की खोज : पादपो मे वृद्धि की खोज सर्वप्रथम चार्ल्स डार्विन नामक वैज्ञानिक के द्वारा की गयी तथा इन्होने पादप वृद्धि की खोज कनेरी घास पर की।
इस वैज्ञानिक के द्वारा प्रांकुल चोल पर कार्य किया तथा यह सिद्ध किया की पादप का प्रांकुल चोल प्रकाश की ओर मुड़ता है।
चार्ल्स डार्विन के इस प्रयोग को बॉयसेन जेनसन के द्वारा आगे बढाया गया तथा इनके द्वारा यह प्रयोग जई नामक पादप पर किया गया।
इनके अनुसार पादप का प्ररोह शीर्ष प्रकाशानुवर्तन होता है अर्थात प्रकाश के प्रति क्रिया दर्शाता है तथा पादप के शीर्ष भाग को काटे जाने पर प्ररोह के द्वारा प्रकाशानुवर्तन क्रिया नहीं दर्शायी जाती है अर्थात उपरोक्त वैज्ञानिको ने सिद्ध किया की पादप के शीर्ष भाग में वृद्धि को प्रेरित करने हेतु एक विशिष्ट पदार्थ पाया जाता है।  परन्तु उन्होंने इस पदार्थ का पता नहीं लगाया जा सका।  यह प्रयोग 1910-13 के मध्य किया।

बॉयसेन तथा जेनसन के प्रयोग के पश्चात् सन 1916 में एक अन्य वैज्ञानिक Pall इस विशिष्ट रासायनिक पदार्थ को पहचाना तथा ज्ञात किया कि ऐसा पदार्थ जल में विलेयित अर्थात घुलनशील होता है।
सन 1926 से लेकर 1928 के मध्य Fow . went द्वारा औक्सिन नामक हॉर्मोन की खोज की गयी तथा यह वैज्ञानिक इस हॉर्मोन को पादप के शीर्ष भाग से पृथक करने में सफल रहे।  इस हेतु इस वैज्ञानिक के द्वारा जई के शीर्ष भाग को काटकर अगार के टुकड़े पर कुछ समय के लिए रख तत्पश्चात उपचारित अगार के टुकड़े से छोटे छोटे अगार के टुकड़े निर्मित किये।
निर्मित अगार के टुकड़े को पुनः काटे गए प्ररोह पर स्थानांतरित किया जिससे प्ररोह के द्वारा पुनः वृद्धि दर्शायी गयी अत: उपरोक्त क्रियाकलाप से went द्वारा सिद्ध किया कि शीर्ष भाग को अगार पर स्थानान्तरित करने पर शीर्ष भाग में उपस्थित विशिष्ट पदार्थ अगार में स्थानांतरित हुआ तथा प्ररोह में पुनः वृद्धि को प्रेरित किया।
इसके अतिरिक्त F.W. went द्वारा यह सिद्ध किया कि पादप के अप्रकाशिक भाग में उपरोक्त हॉर्मोन की अधिक सांद्रता होने से हॉर्मोन भाग प्रकाश की ओर मुड़ता है।  इस हेतु शीर्ष भाग को कुछ समय के लिए दो अभार के टुकडो के मध्य रखा गया तत्पश्चात हुए टुकडो पर दोनों प्रकार के खण्ड स्थापित किये परन्तु अप्रकाशित भाग में लगभग 65% सांद्रता के स्थानांतरित होने के कारण पादप का शीर्ष भाग प्रकाश की ओर मुड गया।
F.W went की खोज के पश्चात् कुछ अन्य वैज्ञानिको के द्वारा पादप के शीर्ष भाग के बारे में कई तथ्य बताये जिसके कारण शीर्ष भाग विकृत हो जाता है वही मूल की कोशिकाओ में यह हॉर्मोन वृद्धि को संदमित करता है इसलिए मूल का शीर्ष भाग निचे की ओर विकृत होता है।
प्रश्न 1 : Auxin को परिभाषित कीजिये।
उत्तर : ऐसे कार्बनिक पदार्थ जिनकी 0.01 मोलर से कम सान्द्रता पादप के प्ररोह भाग में विवर्धन को अभिद्द्धित करती है।

Auxin की रासायनिक प्रकृति

Kogl नामक वैज्ञानिक के द्वारा जई के प्रांकुर चोल में वक्रता उत्पन्न करने वाले रासायनिक पदार्थ को Auxin दिया तथा इसके अतिरिक्त 1931 में Kogl के द्वारा Haagen तथा Smit की सहायता से मानव के मूत्र से संश्लेषित किया तथा इसे औक्सिन-A नाम रखा तथा सूत्र C12H32O5 रखा।
सामान्य रूप से औक्सिन दो प्रकार का पाया जाता है।
1. प्राकृतिक औक्सिन : प्राकृतिक औक्सिन मुख्य रूप से IAA (इण्डोल-3-एसिटिक अम्ल) के रूप में पाया जाता है जिसे उपरोक्त तीनो वैज्ञानिको ने मानव के मूत्र से संश्लेषित किया तथा इसका सूत्र C10H9O2 है। तथा प्राकृतिक रूप से पादपों में इसे Tryptephan नामक एमिनो अम्ल से संश्लेषित किया जाता है तथा इसके संश्लेषण हेतु पादपों मे Zn अनिवार्य रूप से उपस्थित होना चाहिए।
पादपों में यह IAA के अतिरिक्त अन्य रूपों में भी पाया जाता है तथा पादपो में पाए जाने वाले कुछ प्राकृतिक औक्सिन निम्न है –
IAA (Indole-3-acetic acid)

2. कृत्रिम Auxin : पादपो में पाए जाने वाले प्राकृतिक औक्सिन के अतिरिक्त कुछ औक्सिन कृत्रिम रूप से तैयार करते है जो निम्न है –
IBA (Indole-3-Acetic acid)
नोट : एक पादप में Auxin हॉर्मोन का संश्लेषण विभज्योत्कीय उत्तक में होता है तथा इसका गमन ऊपर से नीचे की ओर होता है तथा एक कोशिका से दूसरी कोशिका में इसका गमन विसरण की क्रिया के द्वारा होता है।

पादप की कार्यिकी पर औक्सिन हॉर्मोन का प्रभाव

पादप की कार्यिकी पर औक्सिन का निम्न प्रभाव पाया जाता है –
1. शीर्ष प्रभावित : मुख्य रूप से औक्सिन हॉर्मोन पादप के शीर्ष भाग में पाया जाता है जिसके कारण इस हार्मोन के द्वारा कक्षस्थ कलिकाओ की वृद्धि को अवरुद्ध कर दिया जाता है।
अत: औक्सिन हॉर्मोन की यह विशेषता शीर्ष प्रभावित के नाम से जानी जाती है।
अत: एक पादप को घना तथा अधिक शाखित निर्मित करने हेतु बार बार पादप के शीर्ष प्ररोहो को पृथक किया जाता है जिसे चने तथा मेहँदी के पादप में अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु शीर्ष कलिकाओ को बार बार पृथक किया जाता है।
2. कोशिका दीर्घीकरण : पादपो के शीर्ष प्ररोहो में पाए जाने वाले औक्सिन हॉर्मोन द्वारा निर्मित होने वाली कोशिकाओं में दिर्घिकरण का कार्य किया जाता है जिसके फलस्वरूप एक पादप का शीर्ष प्ररोह प्रकाशानुवर्तन होता है तथा ऐसे प्ररोह द्वारा ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन दर्शाया जाता है।
3. जडो का प्रारंभन : औक्सिन हार्मोन के द्वारा मूल निर्माण क्रिया को प्रेरित किया जाता है।  जिससे ऐसे पादप जिनमे कायिक प्रवर्धन की क्रिया पायी जाती है , मूल के निर्माण हेतु ऐसे पादप के भागो को औक्सिन हार्मोन के घोल में कुछ समय के लिए रखा जाता है तथा सामान्यतया इस कार्य हेतु IBA का उपयोग किया जाता है।
इस क्रिया से निम्बू , संतरा , गुलाब के नए पादप तैयार किये जाते है।
4. अनिषेकफलन : यदि अनिशेचित बीजाण्ड से फल तैयार किया जाए तो ऐसा फल अनिषेक फल कहलाता है तथा ऐसी क्रिया अनिषेक फलन कहलाती है तथा ऐसी क्रिया से निर्मित होने वाला फल बिज रहित होता है।
ऐसे फल औक्सिन हॉर्मोन की सहायता से आर्थिक महत्व वाले पादपो में तैयार किये जाते है जिसके हेतु पादपों के पुष्पों के पुंकेसर को पृथक किया जाता है तथा भृतिकाग्र पर औक्सिन हार्मोन का छिडकाव किया जाता है जिससे बिना निषेचन ऐसे पादपो में बिज रहित फल उत्पन्न होते है।
यह प्रक्रिया निम्बू , संतरा , बैंगन , तरबूज तथा अंगूर में बीज रहित फल तैयार किये जाते है जिससे उपयोग कर्ता को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
5. फसलीय पादपो के गिरने से बचाव : सामान्यत: बीजो के अंकुरित होने पर निर्मित होने वाले तने प्राय: कमजोर निर्मित होते है जो वायु के तेज प्रभाव होने पर मुड जाते है परन्तु ऐसे पादपो में प्रारंभिक अवस्था में औक्सिन हॉर्मोन के छिडकाव से मजबूत तने निर्मित होते है तथा वायु के प्रभाव से अप्रभावित रहते है जिसके कारण पादपों की उत्पादकता पर ऋणात्मक प्रभाव कम पड़ता है।
औक्सिन हॉर्मोन का ऐसा उपयोग मुख्यतः गेहू की फसल हेतु किया जाता है।