उत्प्रेरण और उत्प्रेरक : स्वत: , प्रेरित उत्प्रेरक , उत्प्रेरक वर्धक , विष , माध्यमिक यौगिक सिद्धांत
उत्प्रेरण : ऐसे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया में स्वयं अपरिवर्तित रहते हुए उस अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देते है , उत्प्रेरक कहलाते है तथा उत्प्रेरक की उपस्थिति में होने वाली क्रिया उत्प्रेरण कहलाती है।
उत्प्रेरण क्रिया में उत्प्रेरक के द्रव्यमान एवं रासायनिक संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता –
उत्प्रेरक के प्रकार :-
- धनात्मक उत्प्रेरक
- ऋणात्मक उत्प्रेरक
- स्वत: उत्प्रेरक
- प्रेरित उत्प्रेरक
- धनात्मक उत्प्रेरक: ऐसा उत्प्रेरक जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देता है , धनात्मक उत्प्रेरक कहलाता है।
उदाहरण : H2O2 का अपघटन
H2O2 → 2H2O + O2
प्लेटिनम (Pt) उत्प्रेरक की उपस्थिति में इस अभिक्रिया की संक्रियण ऊर्जा का मान 70 Kg J/mol से घटकर 57 Kg J/mol हो जाता है अत: संक्रियण ऊर्जा का मान घटने से अभिक्रिया वेग बढ़ जाता है।
- ऋणात्मक उत्प्रेरक: ऐसा उत्प्रेरक जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग को कम कर देते है , ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाता है।
उदाहरण : 1. H2O2 के अपघटन की दर ग्लिसरोल उत्प्रेरक की उपस्थिति में कम हो जाती है।
2H2O2 → 2H2O + O2
- Na2SO3का ऑक्सीकरण C2H5OH की उपस्थिति में मंद गति से होता है।
2Na2SO3 + O2 → 2Na2SO4
- पेट्रोल का अवस्फोटन टेट्रा एथिल लैंड (TEL) की उपस्थिति में कम हो जाते है।
- स्वत: उत्प्रेरक: यदि किसी रासायनिक अभिक्रिया में बना हुआ उत्पाद ही उस अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है तो वह स्वत: उत्प्रेरक कहलाता है।
उदाहरण 1 : एस्टर का जल अपघटन –
CH3COOC2H5 + OHO → CH3COOH + C2H5OH
एस्टर के जल अपघटन से अम्ल और एल्कोहल बनते है , प्रारंभ में इसका जल अपघटन मंद गति से होता है लेकिन कुछ समय बाद इसकी गति तीव्र हो जाती है क्योंकि इस अभिक्रिया में जैसे जैसे अम्ल उत्पाद बनता है तो इस अम्ल के H+ आयन इस अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करने लगते है।
इस कारण अभिक्रिया तीव्र हो जाती है अत: उपरोक्त अभिक्रिया में CH3COOH एक स्वत: उत्प्रेरक है।
उदाहरण 2 : ऑक्सेलिक अम्ल का ऑक्सीकरण :-
5(COOH)2 + 2H2O + 2KMnO4 + 3H2SO4 → 18H2O + 10CO2 + 2MnSO4 + K2SO4
ऑक्सेलिक अम्ल का अम्लीय KMnO4 के द्वारा ऑक्सीकरण प्रारंभ में मंद गति से होता है लेकिन जैसे जैसे इस अभिक्रिया में MnSO4 उत्पाद बनता है तो इस उत्पाद के Mn2+ आयन अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का काम करते है , इस कारण अभिक्रिया की गति तीव्र हो जाता है अत: यह MnSO4 स्वत: उत्प्रेरक है।
- प्रेरित उत्प्रेरक:यदि एक अभिक्रिया का वेग कोई दूसरी अभिक्रिया के प्रेरण से तीव्र हो जाता है तो वह दूसरी अभिक्रिया प्रेरित उत्प्रेरक कहलाती है।
2Na2SO3 + O2 → 2Na2SO4
Na3AsO3 + O2 → no reaction
Na2SO3 + Na3AsO3 + O2 → Na2SO4 + Na3AsO4
Na2SO3 का ऑक्सीकरण आसानी से हो जाता है लेकिन Na3AsO3 का नहीं , परन्तु यदि दोनों पदार्थो को एक साथ रखा जाए तो दोनों पदार्थो का ऑक्सीकरण हो जाता है अत: यहाँ Na2SO3 की ऑक्सीकरण अभिक्रिया प्रेरित उत्प्रेरण का कार्य करती है।
उत्प्रेरण के प्रकार : प्रावस्था के आधार पर उत्प्रेरण के दो प्रकार है –
- समांगी उत्प्रेरण
- विषमांगी उत्प्रेरण
- समांगी उत्प्रेरण: ऐसा उत्प्रेरण जिसमे अभिकारक व उत्प्रेरक की भौतिक अवस्था एक समान हो समांगी उत्प्रेरण कहलाता है।
उदाहरण : SO2 का ऑक्सीकरण –
2SO2 + O2 → 2SO3
अभिकारक : गैस , उत्प्रेरक : गैस (भौतिक अवस्था)
उदाहरण 2 : एस्टर का जल अपघटन :
CH3COOC2H5 + H2O → CH3COOH + C2H5OH
अभिकारक : द्रव तथा उत्प्रेरक : द्रव (भौतिक अवस्था)
उदाहरण 3 : सुक्रोज का अपघटन :
C12H22O11 + H2O → C6H12O6 + C6H12O6
अभिकारक : द्रव तथा उत्प्रेरक : द्रव (भौतिक अवस्था)
- विषमांगी उत्प्रेरण: ऐसा उत्प्रेरण जिसमे अभिकारक व उत्प्रेरक की भौतिक अवस्था भिन्न भिन्न हो विषमांगी उत्प्रेरण कहलाता है।
उदाहरण : हाबर विधि द्वारा अमोनिया का निर्माण –
N2 + 3H2 → 2NH3
अभिकारक : गैस , उत्प्रेरक : ठोस
उदाहरण 2 : वनस्पति तेलों से वनस्पति घी का निर्माण –
वनस्पति तेल + H2 → वनस्पति घी
अभिकारक : द्रव या गैस , उत्प्रेरक : ठोस
उत्प्रेरक वर्धक : ऐसे पदार्थ जो उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को बढ़ा देते है उत्प्रेरक वर्धक कहलाते है।
N2 + 3H2 → 2NH3
Fe = उत्प्रेरक तथा Mo = उत्प्रेरक वर्धक
उत्प्रेरक विष : ऐसे पदार्थ जो उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को कम कर देते है , उत्प्रेरक विष कहलाते है।
2H2O2 → 2H2O + O2
उत्प्रेरक : Pt तथा उत्प्रेरक विष : HCN
समांगी उत्प्रेरण की क्रियाविधि (माध्यमिक यौगिक सिद्धांत)
इस सिद्धान्त के अनुसार समांगी उत्प्रेरण में पहले एक अभिकारक अणु उत्प्रेरक से क्रिया करके माध्यमिक यौगिक का निर्माण करता है फिर यह माध्यमिक यौगिक दूसरे अभिकारक अणु से क्रिया करके उत्पाद का निर्माण करता है तथा उत्प्रेरक वापस उसी मात्रा में प्राप्त हो जाता है।
इस सिद्धांत के अनुसार माध्यमिक यौगिक बनने से अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा का मान कम हो जाता है इस कारण अभिक्रिया वेग बढ़ जाता है।
इसे निम्न उदाहरण से समझ सकते है –
A व B से AB का बनना –
A + B → AB
X = उत्प्रेरक
उत्प्रेरण की क्रियाविधि –
चरण I : A + X → AX (माध्यमिक यौगिक)
चरण II : AX + B → AB (उत्पाद) + X (उत्प्रेरक)
माध्यमिक यौगिक सिद्धांत की सीमाएँ :
- यह सिद्धान्त विषमांगी उत्प्रेरण की क्रियाविधि को नहीं समझाता है।
- यह सिद्धांत उत्प्रेरण में उत्प्रेरक वर्धक एवं उत्प्रेरक विष की भूमिका को नहीं बताता है।
- यह सिद्धांत सक्रीय केन्द्रों के महत्व की व्याख्या नहीं करता।
विषमांगी उत्प्रेरण की क्रियाविधि (विषमांगी उत्प्रेरण का अधिशोषण सिद्धांत)
कुछ गैसीय अभिक्रियाएँ ठोस उत्प्रेरक की सतह पर संपन्न होती है।
इस सिद्धांत के अनुसार ठोस उत्प्रेरक की सतह पर मुक्त संयोजकतायें या सक्रीय केंद्र उपस्थित होते है। अभिकारक अणु इस ठोस उत्प्रेरक की सतह पर सक्रीय केन्द्रों द्वारा जुड़कर अधिशोषित हो जाते है , अब यह उत्प्रेरक की सतह पर रासायनिक संयोजन करते है तथा सक्रियत: संकर द्वारा उत्पाद का निर्माण करते है।
तथा इस उत्पाद का उत्प्रेरक की सतह से विशोषण हो जाता है (एवं उत्प्रेरक वापस उसी मात्रा में पुन: प्राप्त हो जाता है। )
इसे निम्न उदाहरण द्वारा समझ सकते है –
उदाहरण : A व B से AB का बनना :
A + B → AB
विषमांगी उत्प्रेरण की क्रियाविधि –
A + B + उत्प्रेरक → AB + उत्प्रेरक
इस सिद्धान्त के अनुसार निम्न बिन्दुओ की व्याख्या की जा सकती है –
- इस सिद्धांत के अनुसार ठोस उत्प्रेरक की सतह पर बार बार अधिशोषण व विशोषण होता है अत: अभिक्रिया में उत्प्रेरक की बहुत सूक्ष्म मात्रा में आवश्यकता होती है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार उत्पाद के विशोषण के पश्चात् उत्प्रेरक उसी मात्रा में वापस प्राप्त हो जाता है अर्थात उत्प्रेरक के द्रव्यमान एवं रासायनिक संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- इस सिद्धांत के अनुसार ठोस उत्प्रेरक की सतह पर अभिकारको के अधिशोषण से अधिशोषण ऊष्मा मुक्त होती है , यह ऊष्मा अभिक्रिया की संक्रियण ऊर्जा को कम कर देती है। इसलिए अभिक्रिया का वेग तीव्र हो जाता है।
- इसके अनुसार उत्प्रेरक विष ठोस उत्प्रेरक के सक्रीय केन्द्रों पर दृढ़ता से अधिशोषित हो जाते है। इस कारण उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को कम कर देते है।
- इसके अनुसार उत्प्रेरक वर्धक की सतह पर इस प्रकार से जुड़ते है कि उत्प्रेरक के सक्रीय केन्द्रों की संख्या बढ़ जाती है। इस कारण उत्प्रेरक की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
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