अधिशोषण की ऊष्मागतिक सम्भावयता :
मोलर अधिशोषण ऊष्मा (molar absorption coefficient heat capacity) : जब एक मोल अधिशोष्य
पदार्थ अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित होता है तो उस दौरान उत्सर्जित ऊष्मा , मोलर अधिशोषण ऊष्मा कहलाती है।
अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी प्रक्रम होता है।
अत: इसके लिए एन्थैल्पी परिवर्तन ऋणात्मक होगा अर्थात △H = -ve
जब कोई गैस ठोस अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित होती है तो गैस के कणों की अव्यवस्था कम हो जाती है इसलिए एंट्रोपी परिवर्तन △H = -ve होता है।
अत: गिब्ज ऊर्जा परिवर्तन की समीकरण △G = △H – T △S के अनुसार सामान्य ताप पर –△H > T △S स्थिति बनती है। इस स्थिति में △G = -ve होगा , अत: अधिशोषण एक स्वत: प्रक्रम होता है।
ठोस अधिशोषक पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक
1. गैस अधिशोष्य की प्रकृति : यदि गैस के क्रांतिक
ताप का मान अधिक है तो उस गैस का द्रवीकरण आसानी से होगा तथा आसानी से द्रवित होने वाली गैसों का अधिशोषण अधिक होगा।
उदाहरण : 1 ग्राम सक्रीय चारकोल पर गैसों के अधिशोषण का घटता क्रम इस प्रकार है –
SO2 > NH3 > HCl > CO2 > CH4 > CO > O2 > N2
क्रांतिक ताप का घटता क्रम।
अधिशोषण का घटता क्रम।
2. अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल : यदि अधिशोषक पदार्थ को चूर्णित रूप में लिया जाए तो अधिशोषक के पृष्ठीय क्षेत्रफल का मान बढ़ जाता है , इस कारण गैसों का अधिशोषण
ठोस अधिशोषक पर तीव्रता से होगा।
कठोर व रन्ध्रहीन अधिशोषक की तुलना में चूर्णित व सरंध्र अधिशोषक पर अधिशोषण तीव्रता से होता है।
विभिन्न धातुओ की अधिशोषण क्षमता का घटता क्रम –
3. दाब का प्रभाव : स्थिर ताप पर दाब बढ़ाने से भौतिक अधिशोषण की दर बढती है , स्थिर ताप पर अधिशोषण की मात्रा व दाब के मध्य सम्बन्ध अधिशोषण समतापी शोषण कहलाता है तथा इनके मध्य खीचा गया वक्र , अधिशोषण समतापी वक्र कहलाता है।
अधिशोषण समतापी वक्र : माना m मात्रा के अधिशोषक पर , अधिशोष्य की मात्रा x है।
इकाई मात्रा के अधिशोषक पर अधिशोष्य की मात्रा = x/m
x/m को ही अधिशोषण की मात्रा कहते है।
अत: स्थिर ताप पर अधिशोषण की मात्रा x/m व दाब के मध्य वक्र निम्न प्रकार है –
PS = संतृप्ति दाब
T0 = स्थिर
वक्र से स्पष्ट है कि स्थिर ताप पर दाब बढ़ाने से अधिशोषण की मात्रा बढती है लेकिन संतृप्ति दाब पर अधिशोषण की मात्रा अधिकतम हो जाती है , इसके बाद की मात्रा नहीं बढती है , इस अवस्था में गैस आण्विक परत का निर्माण कर लेती है , इस समय पर दाब पर अधिशोषण व विशोषण की मात्रा बराबर होती है।
4. ताप का प्रभाव : स्थिर दाब पर अधिशोषण की मात्रा (x/m) व ताप के मध्य सम्बन्ध अधिशोषण समदाबी सम्बन्ध कहलाता है तथा इनके मध्य खीचा गया वक्र अधिशोषण समदाबी वक्र कहलाता है।
स्थिर दाब पर ताप बढाने से पहले रासायनिक अधिशोषण की दर बढती है क्योंकि ताप बढ़ाने से अभिकारको की संक्रियण
ऊर्जा में वृद्धि होती है जो रासायनिक बंध बनाने में सहायक होती है तथा कुछ समय पश्चात् ताप बढ़ाने से रासायनिक अधिशोषण की दर घटती है क्योंकि उस समय बने हुए उत्पाद का विशोषण होने लगता है।
5. अधिशोषक का संक्रियण :
ठोस अधिशोषक पदार्थ की अधिशोषण क्षमता को बढ़ाना ही अधिशोषक का सक्रियण कहलाता है।
अधिशोषक का सक्रियण निम्न प्रकार कर सकते है –
i. अधिशोषक की सतह को यांत्रिक विधि द्वारा खुरदरा करके।
ii. अधिशोषक को बारीक पीसकर।
iii. अधिशोषक को गर्म करके पहले से उपस्थित अशुद्धियो का विशोषण कराना।
प्रश्न : सक्रियत: चारकोल क्या है ?
उत्तर : चारकोल को निर्वात में अतितप्त भाप द्वारा गर्म करने से इस पर उपस्थित अशुद्धियो (नमी , हाइड्रोकार्बन) का विशोषण हो जाता है , इस प्रकार प्राप्त चारकोल सक्रियत: चारकोल कहलाता है।
इस क्रिया द्वारा चारकोल की अधिशोषण क्षमता बढ़ जाती है।