फ्रलेमिंग का वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम , fleming left hand rule in hindi , विधुत मोटर की कार्यविधि
चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल
किसी भी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र इस चालक के निकट रखी किसी चुंबक पर कोई बल आरोपित करता है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आंद्रे मैरी ऐम्पियर (1775-1836) ने यह बताया की चुंबक को भी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करना चाहिए।
किसी विद्युत धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र के कारण लगने वाले बल को निम्नलिखित क्रियाकलाप द्वारा निदेर्शित किया जा सकता है।
ऐलुमिनियम की एक छोटी छड़ लेते है तथा इस छड़ को दो संयोजक तारों द्वारा किसी स्टैंड से क्षैतिजतः लटकाते है। एक प्रबल नाल चुंबक इस प्रकार से व्यवस्थित करते है कि छड़ नाल चुंबक के दो ध्रुवों के बीच में हो तथा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ऊपर की तरफ हो। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ऊपर की तरफ तभी होगी जब नाल चुंबक का उत्तर ध्रुव ऐलुमिनियम की छड़ के नीचे एवं दक्षिण ध्रुव ऊर्ध्वाधरतः ऊपर हो। ऐलुमिनियम की छड़ को एक बैटरी, एक कुंजी तथा एक धारा नियंत्रक के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित करते है। ऐलुमिनियम छड़ में विधुत धारा की दिशा ऊपर से नीचे की तरफ होगी। ऐलुमिनियम छड़ में विधुत धारा प्रवाहित होते ही छड़ बाईं दिशा में विस्थापित होती है। और ऐलुमिनियम छड़ में विधुत धारा की दिशा को विपरीत करने पर छड़ के विस्थापन की दिशा विपरीत हो जाती है और छड़ दाईं ओर विस्थापित होती है।
इस प्रयोग से हमें यह पता चलता है की ऐलुमिनियम की विद्युत धारावाही छड़ को चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर उस पर एक बल आरोपित होता है तथा विधुत धारा की दिशा को पलटने पर बल की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है। इसी प्रकार से प्रबल नाल चुंबक के धुर्वो को बदल देने पर छड़ पर लगने वाले बल की दिशा भी बदल जाती है।
किसी चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दोनों पर निर्भर करती है। छड़ में विस्थापन उस समय अधिकतम (अथवा छड़ पर आरोपित बल का परिणाम उच्चतम) होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत होती है।
इस प्रकार से किसी चालक पर आरोपित बल की दिशा को एक सरल नियम से पता लगा सकते है। इस प्रयोग में हमने विद्युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को परस्पर लंबवत माना और यह पाया की चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों के लंबवत है।
फ्रलेमिंग का वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम (fleming left hand rule in hindi)
विद्युत धारा की दिशा, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा चालक पर आरोपित बल की दिशा को एक नियम के दवारा दी जा सकती है जिसे फ्रलेमिंग का वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम भी कहते है।
इस नियम के अनुसार “ बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार रखे कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों तथा तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।“
विद्युत धारावाही चालक तथा चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रो फ़ोन तथा विद्युत मापक यंत्र जैसी कुछ युक्तियो में होता है।
विद्युत मोटर
विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है जिसमें विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, आदि में किया जाता है। विद्युत मोटर में
विधुत मोटर की कार्यविधि
विधुत मोटर विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुंडली होती है। इस कुंडली को किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखा जाता है कि इसकी भुजाएँ AB और CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत रहें। इस आयताकार कुंडली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों P और Q से संयोजित होते हैं। इन अर्धभाग की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है। यह अर्धभाग धुरी से जुड़ी होती है। P और Q के बाहरी चालक सिरे दो स्थिर चालक ब्रुशों X और Y से जुड़े रहते है।
ब्रुश जो की बैटरी से जुड़े रहते है इससे होकर ही विद्युत धारा कुंडली में प्रवेश तथा बाहर निकलती है। ब्रुश X से होते हुए विधुत धारा कुंडली में प्रवेश करती है तथा ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दुसरे टर्मिनल पर वापस आ जाती है। कुंडली में विधुत धारा भुजा AB में A से B की ओर और भुजा CD में C से D की ओर होती है। कुंडली AB और CD में विधुत धारा की दिशा विपरीत होती है।अत: विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्रलेमिंग के वामहस्त नियम का उपयोग करते है। फ्रलेमिंग के वामहस्त नियम से भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी (नीचे की ओर) धकेलता है तथा भुजा CD पर आरोपित बल इसे उपरिमुखी धकेलता है। किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुंडली तथा धुरी वामावर्त घूर्णन करते हैं। आधे घूर्णन में ब्रुश X का संपर्क Q से तथा ब्रुश Y का संपर्क P से होता है। अत: कुंडली में विधुत धारा की दिशा विपरीत होकर DCBA हो जाती है।
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