भूतापीय ऊर्जा , तप्त स्थल , गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत , भूतापीय उर्जा के लाभ , नाभिकीय ऊर्जा
geothermal energy in hindi भूतापीय ऊर्जा :-
जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप का निर्माण होता है कभी-कभी यह भाप चट्टानों के बीच में फँस जाती है जहाँ इसका दाब अत्यधिक हो जाता है। तप्त स्थलों तक पाइप डालकर इस भाप को बाहर निकाल लिया जाता है और इस भाप का उपयोग टरबाइन को धुमाने में किया जाता है तथा इस प्रकार से टरबाइन को धुमाकर विधुत उर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
तप्त स्थल
भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्र में पिघली चट्टानें ऊपर की ओर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्र में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्र को तप्त स्थल कहते हैं।
गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत
कभी-कभी तप्त जल से प्राप्त भाप को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए निकास मार्ग मिल जाता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।
भूतापीय उर्जा के लाभ
1.भूतापीय उर्जा से उत्पन्न विद्युत उर्जा की लागत अधिक नहीं आती है
2. व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक होता है।
सीमाऐ
ऐसे बहुत कम क्षेत्र हैं जहाँ व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है। न्यूजीलैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भूतापीय ऊर्जा पर आधारित कई विद्युत शक्ति सयंत्र लगे हुए है।
नाभिकीय ऊर्जा
नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भारी परमाणु (जैसे यूरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम) के नाभिक को निम्न ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन से बमबारी कराकर हलके नाभिकों में तोड़ा जाता है। इस अभिक्रिया से विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। इस उर्जा को नाभिकीय उर्जा कहते है। यह अभिक्रिया तब होती है जब मूल नाभिक का द्रव्यमान इस पर गिरने वाले न्यूट्रॉन के कारण प्राप्त उत्पादों के द्रव्यमानों के योग से कुछ ही अधिक होता है।
उदाहरण के लिए यूरेनियम के एक परमाणु के विखंडन में जो ऊर्जा मुक्त होती है वह कोयले के किसी कार्बन परमाणु के दहन से उत्पन्न ऊर्जा की तुलना में 1 करोड़ गुणा अधिक होती है। डिजाइन किए जाने वाले नाभिकीय संयंत्र में विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय ईंधन स्वपोषी विखंडन शृखंला अभिक्रिया का एक भाग होते हैं जिनमें नियंत्रित दर पर ऊर्जा मुक्त होती है। इस मुक्त ऊर्जा का उपयोग जल से भाप बनाकर उसे टरबाइन पर गिराते है जिससे की विद्युत उत्पन्न किया जा सकता है।
नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया में मूल नाभिक तथा उत्पाद नाभिकों के द्रव्यमानों का अंतर ऊर्जा डेल्टाE में परिवर्तित हो जाता है जो की नाभिकीय उर्जा के रूप में होती है। इस ऊर्जा की दर को अलबर्ट आइंस्टीन द्वारा सर्वप्रथम व्युत्पन्न विख्यात समीकरण E = mc2 द्वारा दी गयी यहाँ c प्रकाश की निर्वात में चाल है। नाभिकीय विज्ञान में ऊर्जा को प्रायः इलेक्ट्रॉन वोल्ट के मात्रकों में व्यक्त किया जाता है।
1 परमाणु द्रव्यमान मात्रक = 931 मेगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा के तुल्य
तारापुर (महाराष्ट्र), राणा प्रताप सागर (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु) नरौरा (उत्तर प्रदेश), काकरापार (गुजरात) तथा कैगा (कर्नाटक) पर स्थित नाभिकीय विद्युत संयंत्र इसके उदहारण है।
नाभिकीय उर्जा की सीमाए
1.नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्र का प्रमुख संकट पूर्णतः उपयोग होने के पश्चात शेष
बचे नाभिकीय ईंधन का भंडारण तथा निपटारा करना होता है क्योंकि शेष बचे ईंधन का
यूरेनियम अब भी हानिकारक कणों (विकिरणों) में क्षयित होता है।
2. नाभिकीय अपशिष्टों का भंडारण तथा निपटारा उचित प्रकार से नहीं होने पर इससे
पर्यावरण प्रदुषित हो सकता है।
3. नाभिकीय विकिरणों के आकस्मिक रिसाव का खतरा भी बना रहता है।
4.नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्र की अत्यधिक लागत होती है।
पर्यावरणीय प्रदूषण का प्रबल खतरा तथा यूरेनियम की सीमित उपलब्धता बहुत स्तर पर नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग को कम होने देती है।
नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्र के निर्माण से पूर्व नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग परमाणु बम जैसे नाभिकीय हथियार बनाने के लिए किया जाता था। किसी नाभिकीय हथियार में होने वाली विखंडन अभिक्रिया का मूल सिद्धांत नियंत्रित नाभिकीय रिएक्टर के सिद्धांत के समान है परंतु दोनों प्रकार की युक्तियों का निर्माण एक-दूसरे से पूरी तरह से भिन्न होता है।
नाभिकीय संलयन
सभी व्यापारिक नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय विखंडन की अभिक्रिया पर आधारित हैं। परंतु एक अन्य अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रक्रिया जिसे नाभिकीय संलयन कहते हैं द्वारा भी नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
संलयन का अर्थ है दो हल्के नाभिकों को जोड़कर एक भारी नाभिक का निर्माण करना। जिसमें सामान्यतः हाइड्रोजन अथवा हाइड्रोजन के समस्थानिकों से हीलियम उत्पन्न की जाती है। इसमें भी आइंस्टीन समीकरण के अनुसार विशाल मात्रा में ऊर्जा निकलती है। ऊर्जा निकलने का कारण यह है कि अभिक्रिया में उत्पन्न उत्पाद का द्रव्यमान अभिक्रिया में भाग लेने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कुछ कम होता है।
सूर्य तथा अन्य तारों की विशाल ऊर्जा का स्रोत इस प्रकार की नाभिकीय संलयन अभिक्रियाएँ से ही प्राप्त होते हैं। नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं में नाभिकों को परस्पर जोड़ने के लिए बहुत अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया के होने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें होती हैं- मिलियन कोटि केल्विन ताप तथा मिलियन कोटि पास्कल दाब।
हाइड्रोजन बम ताप नाभिकीय अभिक्रिया पर आधारित होता है। हाइड्रोजन बम के क्रोड में किसी नाभिकीय बम को रख देते हैं जो की यूरेनियम अथवा प्लूटोनियम के विखंडन पर आधारित होते है। यह नाभिकीय बम ऐसे पदार्थ में अंतःस्थापित किया जाता है जिनमें ड्यूटीरियम तथा लीथियम होते हैं।जब इस नाभिकीय बम को अधिविस्फोटित करते हैं तो इस पदार्थ का ताप कुछ ही माइक्रोसेकंड में 107k तक बढ़ जाता है। यह अति उच्च ताप हलके नाभिकों को संलयित होने के लिए पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न कर देता है जिसके फलस्वरूप अति विशाल परिमाण की ऊर्जा मुक्त होती है।
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