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बायोडीजल (biodiesel in hindi) , पेट्रो पादप , भारत तथा राजस्थान में बायोडीजल का उत्पादन , उपयोग

(biodiesel in hindi) बायोडीजल : जैविक पदार्थो से प्राप्त डीजल जैसा तरल पदार्थ बायो डीजल कहलाता है।

इसका निर्माण वनस्पति तेल , लेटेक्स या क्षीर तथा वसा से किया जाता है तथा यह प्रदुषण रहित पुर्नपोषक इंधन है।

बायो डिजल को रासायनिक रूप में FAME के नाम से जाना जाता है।  [Fathy acid Methyl]

सामान्यत: पादपो के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से उत्पन्न पदार्थो को वसा , शर्करा या स्टार्च के रूप में संरक्षित किया जाता है।

पादपों में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा एक विशेष तेल को भण्डार के रूप में बीज में संचित किया जाता है जिसे भविष्य में बीजों के अंकुरण हेतु पादपो के द्वारा उपयोग किया जाता है।

बीजो में पाए जाने वाले इस विशेष तेल के आधार पर बायोडीजल की परिकल्पना की गयी है तथा विश्व के प्रथम डीजल इंजन का निर्माण करने वाले वैज्ञानिक Rudolf diesel (रुडोल्फ डीजल) के द्वारा सन 1895 में इन्ही तेलों का उपयोग करते हुए बायो डिजल का निर्माण किया।

बायोडीजल के जैविक स्रोतों को दो भागो में वर्गीकृत किया गया है –

(A) वानस्पतिक वसीय तेल :

  • इस श्रेणी में प्रमुखत: उन पादपो को सम्मलित किया गया है जिनके बीज में अत्यधिक मात्रा में लिपिड्स या वसीय तेल पाए जाते है।
  • पाए जाने वाले लिपिड्स में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा संचित रहती है तथा इस संचित ऊर्जा को इन लिपिड्स के एस्टरिकरण के द्वारा एक विशेष पदार्थ के रूप में प्राप्त किया जाता है जिसे बायोडीजल के नाम से जाना जाता है।
  • उत्पादित होने वाले इस बायोडीजल को बिना किसी परिवर्तन के बायो डीजल ईंधन में उपयोग किया जाता है।
  • अत्यंत उपयोगी होने के बावजूद विकासशील देशो में खाद्य तेलों की कीमत डीजल की अपेक्षा अधिक होती है क्योंकि इनकी उत्पादन मांग की अपेक्षा कम होती है परन्तु वैज्ञानिको के द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है इसके फलस्वरूप कुछ अखाद्य तेलों से बायोडीजल प्राप्त किया जा सके।
  • बायोडीजल का मुख्य स्रोत कुछ ऐसे पादप है जिन्हें मुख्यतः खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे सोयाबीन , सूरजमुखी , अलसी , सरसों , मूंगफली आदि।
  • कुछ ऐसे पादप जिनसे अखाद्य तेल प्राप्त होते है उन्हें बायोडीजल के स्रोत के रूप में उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है –

(I) रतनजोत /सफ़ेद अरण्डी (Jatropha carcus)

(II) करंज (Pongamia pinnata)

(III) महुआ (Madhuca indica)

(IV) अरण्डी (Ricinus communis)

(B) पेट्रो पादप

  • ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के कम होने के कारण तथा निकट भविष्य में इनके पूर्ण रूप से समाप्त होने पर इनको वैकल्पिक तौर पर प्रतिस्थापन हेतु वैज्ञानिको के द्वारा कुछ ऐसे पादपो के वर्गों के खोज है जिनको पूर्णत: पेट्रोल तथा डीजल के उत्पाद के रूप में पूर्णत: उपयोग किया जा सकता है , कुछ प्रमुख कुल निम्न है –

Apocyanacae – Composite

Asclepidiacea – Arteceal

Euphorbiaceae – supotaceae

  • उपरोक्त लिखित कुलो के पादपो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा निर्मित भोजन को क्षीर या लेटेक्स में परिवर्तित कर दिया जाता है तथा निर्मित होने वाला यह क्षीर हाइड्रोकार्बन की प्रचुर मात्रा युक्त होता है जिसे भविष्य में पेट्रोल या डीजल के स्थान पर या पेट्रोल के साथ मिश्रित करके वाहनों में उपयोग किया जा सकता है।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम देहरादून के द्वारा लगातार ऐसे पादपो पर शोध जारी है जिनके लेटेक्स में में प्रचुर मात्रा में हाइड्रोकार्बन पाए जाते है , इसी श्रेणी में उपरोक्त संस्था के द्वारा Euphorbia Lathyrus नामक पादप से गैसोलीन नामक गैस प्राप्त की गयी जो सामान्य गैसोलीन के समान है।
  • उपरोक्त शोधो से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कार्बन तथा हाइड्रोजन के उचित अनुपात से रासायनिक गैसोलीन का निर्माण किया जा सकता है तथा यह स्रोत वैकल्पिक रूप से पादपो में उपस्थित है अत: इन्हें प्राप्त करने हेतु उपयोग किये जाने वाले पादप पेट्रो पादप तथा इनकी फसल पेट्रो फसल के नाम से जानी जाती है।

भारत तथा राजस्थान में बायोडीजल का उत्पादन

  • भारत वर्तमान समय में अपने कुल उपयोग होने वाले पेट्रोलियम उत्पादों का केवल 30% उत्पादित कर पाता है वही 70% विदेशो से आयात किया जाता है , यदि आयात की जाने वाली मात्रा में 5% तक भी बायोडीजल का उपयोग किया जाए तो प्रतिवर्ष करोड़ो रुपये विदेशी मुद्रा को बचाया जा सकता है।
  • इसी सन्दर्भ में निरंतर शोध कार्य जारी है तथा एक रतनजोत तथा करेज के पादपों को बायोडीजल के उत्पादन हेतु उपयोग किया जा सकता है , इस हेतु भारत सरकार ने योजना आयोग का गठन किया है तथा सम्पूर्ण भारत में इन पादपों को उगाने का निर्णय लिया गया है।
  • उपरोक्त पादप आसानी से बंजर भूमि पर उगाये जा सकते है अत: योजना आयोग के द्वारा भारत के 18 राज्यों को 200 जिलो की पहचान की गयी है , रतनजोत के पादप उगाये जायेंगे , जिसमे राजस्थान को भी सम्मिलित किया गया है।  राजस्थान के सम्मिलित होने के कारण राजस्थान के मुख्यमंत्री ने bio fuel mission का उद्घाटन किया गया है जिसके अंतर्गत बायोडीजल के उत्पादन हेतु transesterification plant से तेल निकालने का कार्य संपन्न किया जाने लगा।
  • रतनजोत के पादप को कृषि पादप के रूप में उपयोग करने से केवल बायोडीजल का ही उत्पादन नहीं होगा बल्कि इसके कारण बंजर भूमि पर आसानी से पादप उगाये जायेंगे इसके अतिरिक्त बंजर भूमि के कटाव को आसानी से रोका जायेगा तथा पारिस्थितिक तंत्र संतुलित रहेगा व जैव विविधता हास में भी कमी आयेगी।
  • इसके अतिरिक्त सीमांत तथा कमजोर वर्ग के किसानो को रोजगार तथा कमाई के नए अवसर मिलेंगे।

बायोडीजल का उपयोग

बायोडीजल के मुख्य उपयोग निम्न प्रकार से है –
  • बायोडीजल एक स्नेह की तरह कार्य करता है जिसके कारण इंजन की दक्षता में सुधार होता है तथा इंजन के रखरखाव का खर्च कम होता है।
  • बायो डीजल के उपयोग से स्वचालित वाहनों से उत्सर्जित पदार्थो में उत्सर्जित होने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा कम उत्सर्जित होती है तथा नगण्य मात्रा में कणिकिय पदार्थ उत्सर्जित होते है जो प्रदुषण की मात्रा में कमी लाते है।
  • बायोडीजल एक ससक्त जैविक ऊर्जा का विकल्पी स्त्रोत है जो निकट भविष्य में किसानो को स्वावलंबन , रोजगार तथा आय के नए अवसर प्रदान करेगा।
  • बायोडीजल उत्पादित करने वाले पादप बड़ी आसानी से अन उपजाऊ असिंचित तथा बंजर भूमि पर उगाये जा सकते है जिसके कारण बायोडीजल आर्थिक स्वावलंबन तथा स्वदेशी विकास में मुख्य भूमिका निभायेगा।