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कार्बन के उपयोग , कार्बन के ऑक्साइड , कार्बन मोनो ऑक्साइड , कार्बन डाई ऑक्साइड , सिलिकन

कार्बन के उपयोग : कार्बन स्याही का उपयोग कृष्ण रंजन बनाने में स्वचालित वाहनों के टायर में पूरक के रूप में होता है।

कॉक का उपयोग धातुकर्म में अपचायक के रूप में तथा ईंधन के रूप में होता है।

हीरा एक मूल्यवान पत्थर है जिसका उपयोग आभूषण में होता है , इसे कैरेट में मापा जाता है।

कार्बन तथा सिलिकन के प्रमुख उपयोग :

[I] कार्बन के ऑक्साइड (oxides of carbon in hindi)  : कार्बन के प्रमुख दो ऑक्साइड है –

  1. कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)
  2. कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)

1. कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)

(a) बनाने की विधियाँ :

(i) O2 तथा वायु की सिमित मात्रा में वायु के सीधे ऑक्सीकरण से कार्बन मोनो ऑक्साइड प्राप्त होती है।

2C + O2 → 2CO

(ii) जब ऑक्सेलिक अम्ल की क्रिया सान्द्र H2SO4 के साथ की जाती है तो CO प्राप्त होता है।

(iii) जब फार्मिक अम्ल का निर्जलीकरण 373k ताप पर सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में किया जाता है तो शुद्ध CO प्राप्त होता है।

(iv) औद्योगिक रूप से इसे कॉक (कार्बन) पर भाप प्रवाहित करके बनाया जाता है , इस प्रकार CO तथा H2 से प्राप्त मिश्रण को water gas संश्लेषण गैस कहते है।

C + H2O → CO + H2

(v)  जब भाप के स्थान पर वायु का उपयोग किया जाता है तो CO तथा N2 का मिश्रण प्राप्त होता है इसे producer गैस कहते है।

2C + O2 + 4N2 → 2CO + 4N2

(vi) भारी धातुओं के ऑक्साइड\डो को कार्बन के साथ गर्म करने पर CO प्राप्त होती है।

Fe2O3 + 3C → 2Fe + 3CO

ZnO + C → Zn + CO

(b) गुण :

  • CO जल में लगभग अविलेय , रंगहीन तथा गंधहीन गैस है।
  • यह एक प्रबल अपचायक है , यह क्षारीय धातु , क्षारीय मृदा धातु , एल्युमिनियम तथा कुछ संक्रमण तत्वों के ऑक्साइडो के अतिरिक्त अन्य तत्वों के ऑक्साइड को अपचायित कर देता है।  CO के इस गुण का उपयोग विभिन्न धातुओं के ऑक्साइड अयस्क से धातु निष्कर्षण में होता है।

Fe2O3 + 3CO → 2Fe + 3CO2

ZnO + CO → Zn + CO2

  • CO अणु में कार्बन तथा ऑक्सीजन के मध्य एक सिग्मा बंध व दो पाई बंध होते है , कार्बन परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म की उपस्थिति के कारण CO दाता के समान व्यवहार करता है इसी कारण यह अनेक पदार्थो के साथ योगोत्पाद बनाता है या कई धातुओं के साथ गर्म किये जाने पर धातु कर्बोनिल बनाता है।

Ni + 4CO → Ni(CO)4

  • जब CO की क्रिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में Cl2 से की जाती है तो अत्यंत विषैली गैस फास्फिन बनती है।

CO + Cl2 → COCl2

  • CO का ऑक्सीजन के साथ दहन करने पर कार्बन डाई ऑक्साइड बनती है।

2CO + O2 → 2CO2

  • उच्च ताप व दाब पर CO , NaOH के साथ क्रिया करके सोडियम फार्मेट बनाता है।
  • यह हीमोग्लोबिन के साथ एक संकुल का निर्माण करती है , यह संकुल ऑक्सी हीमोग्लोबिन से 300 गुना अधिक स्थायी होता है।  यह RBC में उपस्थित हीमोग्लोबिन को शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह से रोकती है जिससे मृत्यु तक हो सकती है।  अत: CO अत्यन्त विषैली प्रकृति की होती है।

(2) कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2)

(a) बनाने की विधियाँ :

(i) वायु की अधिकता में यह कार्बन तथा कार्बन युक्त ईंधन के पूर्ण दहन पर प्राप्त होती है।

C + O2 → CO2

CH4 + 2O2 → CO2 + 2H2O

(ii) प्रयोगशाला विधि : जब CaCO3 की क्रिया तनु HCl के साथ की जाती है तो COप्राप्त होती है।

CaCO3 + 2HCl → CaCl2 + H2O + CO2

(iii) औद्योगिक विधि : जब चूने के पत्थर  गर्म किया जाता है तो COप्राप्त होती है।

CaCO3 → CaO + CO2

(iv) भारी धातुओं के कार्बोनेट तथा क्षारीय धातुओं के बाई कार्बोनेट को गर्म करने पर COप्राप्त होती है।

CaCO3 → CaO + CO2

2NaHCO3 → Na2CO3 + H2O + CO2

(v) कार्बोनेट या बाई कार्बोनेट की क्रिया अम्ल से करने पर COप्राप्त होती है।

Na2CO3 + H2SO4 → Na2SO4 + H2O + CO2

(b) गुण :

  • CO2 रंगहीन तथा गंधहीन गैस है।
  • जल के साथ यह कार्बोनेट अम्ल बनाती है जो दुर्बल द्विक्षारकीय अम्ल है।

यह निम्न दो पदों में वियोजित होता है –

H2O + CO2 → H2CO3

H2CO3  ⇌ H+ + HCO3

HCO3 ⇌ H+ + CO32-

  •  अम्लीय प्रवृति की होने के कारण यह क्षारों के साथ क्रिया कर यह धातु कार्बोनेट बनाती है।

2NaOH + CO2 → Na2CO3 + H2O

Na2CO3 + H2O + CO2 → 2NaHCO3

  • वायुमण्डल में CO2 0.03% उपस्थित रहती है , इसका उपयोग प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में होता है , इस प्रक्रिया में हरे पेड़ पौधे वायुमंडलीय CO2 को कार्बोहाइड्राइड में बदल देते है।

6CO2 + 12H2O → C6H12O6 + 6O2 + 6H2O

  • CO के विपरीत यह विषैली प्रकृति की नहीं होती है परन्तु जीवाश्म ईंधन के बढ़ते दहन तथा सीमेंट निर्माण के लिए चूना पत्थर के विघटन के कारण वायुमण्डल में CO2 की मात्रा बढती है इसे हरित गृह प्रभाव कहते है।
  • द्रवित CO2 का प्रसार शीघ्रता से होने के कारण CO2 गैस को शुष्क बर्फ के रूप में प्राप्त किया जा सकता है , जिसका उपयोग ice क्रीम तथा हिम-शीतित में प्रशीतक के रूप में होता है।

(c) CO2 की  संरचना :

CO2 में कार्बन परमाणु sp संकरित होता है।  कार्बन परमाणु के दो sp संकरित कक्षक O2 परमाणु के 2p कक्षकों के साथ अतिव्यापन करके 2 सिग्मा बंध बनाते है जबकि कार्बन परमाणु शेष दो इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन परमाणु के साथ Pπ-Pπ बंध बनाते है।

इसकी आकृति रेखीय होती है तथा द्विध्रुव आघूर्ण का मान शून्य होता है।

(d) CO2 की अनुनादी संरचना :

 

[II] सिलिकन के ऑक्साइड

(1) सिलिकन डाई ऑक्साइड (SiO2)  : SiO2  को सिलिका भी कहते है।  सिलिका एवं सिलिकेट भू-पर्पटी का अधिकांश भाग निर्मित करता है।

सिलिका में एक सिलिकन परमाणु चतुष्फलकीय रूप से चार ऑक्सीजन परमाणुओं से सह-संयोजक बंध द्वारा संयुक्त होकर त्रि-विमीय विशाल संरचना का निर्माण करते है।

सिलिका हैलोजन , डाई हैलोजन तथा अधिकांश धातुओं के साथ उच्च ताप पर भी क्रिया नहीं करती तथा HF तथा NaOH से क्रिया करती है।

SiO2 + 2NaOH → Na2SiO3 + H2O

SiO2 + 4HF → SiF4 + 2H2O

उच्च ताप पर यह धात्विक ऑक्साइड व कार्बोनेट से क्रिया कर सिलिकेट बनाते है जो इसके अम्लीय गुण को दर्शाते है।

SiO2 + CaO → CaSiO3

SiO2 + Na2CO3 → Na2SiO3 + CO2

नोट : क्वार्टज़ उपयोग दाब विद्युत पदार्थ बनाने में किया जाता है।

(2) सिलिकन टेट्रा क्लोराइड (SiCl4) : इसे टेट्रा क्लोरो सिलिको मैथेन भी कहते है।

(a) बनाने की विधियाँ :

(i) गर्म सिलिकन की क्रिया शुष्क Cl2 से करने पर SiClप्राप्त होता है।

Si + 2Cl2 → SiCl4

(ii) सिलिका व चारकोल के मिश्रण की क्रिया शुष्क Cl से करने पर SiCl4 बनता है।

SiO2 + 2C + 2Cl2 → SiCl4 + 2CO

(iii) मैग्नीशियम सिलिसाइट की क्रिया शुष्क Cl से करने पर SiCl4 बनता है।

Mg2Si + 4Cl2 → SiCl4 + 2MgCl2

(b) गुण :

  • SiCl4 रंगहीन व द्रव के रूप में आसवित होता है।
  • NH3 के साथ SiCl4 को मिलाकर युद्ध में काम में लेते है।
  • नमी की उपस्थिति में SiCl4 जल अपघटित होकर HCl मुक्त करता है जो NH3 के साथ NH4Cl के गहरे धूम बनाता है।

प्रश्न : CCl4 लुईस अम्ल की तरह कार्य नहीं करता जबकि SiClलुईस अम्ल की तरह कार्य करता है क्यों ?

उत्तर : CCl4 में केन्द्रीय परमाणु कार्बन के पास लुईस एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करने हेतु रिक्त 2d कक्षक नही होते है जबकि SiCl4 में सिलिकन के पास रिक्त 3d कक्षक उपलब्ध होने के कारण यह लुईस अम्ल की तरह कार्य करता है।

(3) जिओलाइट : सोडियम एलुमिनो सिलिकेट को जियोलाइट कहते है।

इसकी संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है जिससे असंख्य छिद्र पाए जाते है।

जिस क्रियाकारक व उत्पाद अणुओं का आकार इन छिद्रों के अनुरूप होता है , वे इससे क्रिया कर लेते है अत: इसे आकार वर्णात्मक उत्प्रेरक भी कहते है।

(a) उपयोग :

  • ZSM-5 नामक जिओलाइट एल्कोहल को गैसोलीन में परिवर्तित करता है।
  • जल योजित जिओलाइट का उपयोग कठोर जल को मृदु जल बनाने में किया जाता है।

(4) सिलिकॉन : Si-O-Si बंध युक्त ओर्गेनो सिलिकन बहुलक सिलिकॉन कहलाते है।

इनको एल्किल या एरिल क्लोरोलिनेन के जल अपघटन से प्राप्त किया जाता है।

SiCl4 के जल अपघटन में त्रि-विमीय संरचना वाले सिलिका प्राप्त होते है।

यदि एरिल डाई क्लोरो सिलेन का जल अपघटन किया जाता है तो इसी प्रकार का यौगिक प्राप्त होता है लेकिन यह लम्बी श्रंखला युक्त बहुलक सिलिकन होता है।

जब 573k ताप पर मैथिल क्लोराइड की क्रिया Cu उत्प्रेरक की उपस्थिति में सिलिकन से की जाती है तो विभिन्न मेथिल प्रति स्थायी क्लोरो सिलेन प्राप्त होते है।

डाई मैथिल डाई क्लोरो सिलेन के जल अपघटन के बाद श्रृंखलन बहुलकी प्रक्रम द्वारा श्रृंखला प्राप्त होती है।

सिलिकन की जल प्रतिकर्षि प्रकृति होती है।

(5) सिलिकेट (SiO44-) : सिलिकन डाई ऑक्साइड को क्षार , क्षारीय ऑक्साइड एवं कार्बोनेटों के साथ उच्च ताप पर गर्म करने पर बने पदार्थ सिलिकेट कहलाते है।

ये सिलिकन – ऑक्सीजन (Si-O) बंध युक्त जटिल ठोस होते है।

सोडियम तथा पोटेशियम के सिलिकेट जल में विलेय होते है अत: ये जल कहलाते है।

सिलिकेट की मूल संरचनात्मक इकाई SiO44- होती है जिसमें 1 Si परमाणु , 4 ऑक्सीजन परमाणुओं से चतुष्फलकीय रूप में बंधित रहता है।