भारतीय वैज्ञानिक (indian scientist in hindi) , बीरबल साहनी , मेघनाथ साहा , सत्येन्द्र नाथ बोस
(indian scientist in hindi) भारतीय वैज्ञानिक : हम यहाँ कुछ भारतीय वैज्ञानिको का अध्ययन करेंगे या उनके आविष्कार और खोज के बारे में विस्तार से पढेंगे और जानेंगे कि कैसे उनके आविष्कार और खोजों ने विश्व को पूर्ण रूप से परिवर्त्तित कर दिया।
जैसा कि हम जानते है कि विज्ञान हमारे दैनिक जीवन में बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है और विज्ञान और तकनिकी में विस्तार के कारण ही हमारा दैनिक जीवन बहुत ही सुखद हो गया है।
घर में रौशनी के लिए उपयोग किया जाने वाले बल्ब से लेकर दुसरे ग्रह पर पहुचने तक का सफ़र विज्ञान और तकनिकी के कारण संभव हो पाया है , यह उन महान और दुनिया से हटकर सोचने वाले भारतीय वैज्ञानिकों के आविष्कारो और खोजों के कारण हो पाया है , हम कुछ ऐसे ही असाधारण महान सोच वाले कुछ भारतीय वैज्ञानिको का अध्ययन करेंगे और उनके विज्ञान और तकनिकी में योगदान को अध्ययन करेंगे।
1. बीरबल साहनी (Birbal Sahni) : इनका जन्म 14 नवम्बर 1891 को पश्चिमी पंजाब में हुआ जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। वे एक भारतीय महान पूरा वनस्पति शास्त्री थे , अर्थात विभिन्न प्रकार के नए नए पादपों की खोज और पहचान करना उनका काम था।
चूँकि उस समय में इस क्षेत्र के बारे में भारत में बहुत कम लोग ही समझते थे और जानते है इसलिए उस समय साहनी की विज्ञान लोगो के लिए नयी थी , उस समय के लोग उतनी गहनता से इस विज्ञान के बारे में नहीं जानते थे।
साहनी ने नए समूह के जीवाश्म पौधों की खोज की थी , उन्होंने चीड़ और उनकी जाति के दुसरे पेड़ पौधों के जीवाश्म और पौधों की जातियों की खोज की जिससे सम्पूर्ण विश्व का ध्यान भारत की तरफ बढ़ने लगा।
इन्होने कई प्रकार की वनस्पतिओं पर अनुसंधान या प्रयोग और अपने अध्ययन से प्राप्त ज्ञान से विभिन्न प्रकार के वनस्पति गुणों आदि के बारे में दुनिया को बताया।
इन्होने एक संस्था को स्थापित किया था जिसका नाम बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ़ पेलियोबॉटनी था , यह दुनिया की पहली इस क्षेत्र में संस्था थी।
1936 में लन्दन की रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना फैलो चुना था , यह ब्रिटेन का विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ा सम्मन था जो किसी भारतीय वनस्पति-विज्ञानिक को प्राप्त हुआ था।
बीरबल साहनी का निधन हार्ट अटैक से 10 अप्रेल 1949 को हुआ था।
2. मेघनाथ साहा (Meghnad Saha) : इनका जन्म 6 अक्टूबर 1893 को पूर्वी बंगाल में हुआ जो अब बांग्लादेश का ढाका क्षेत्र है , साहा को सबसे अधिक उनके धातुओं के ऊष्मा आयनीकरण के कार्य के लिए जाना जाता है , इन्होने इसके लिए एक सूत्र का निर्माण किया जिसे आयनीकरण सूत्र या साहा समीकरण कहा जाता है।
खगोल भौतिकी में तारो के स्पेक्ट्रा (वर्ण क्रम) की व्याख्या के लिए इस समीकरण या सूत्र को मूल साधन के रूप में माना जा सकता है क्यूंकि इस समीकरण या नियम के आधार पर ही सूर्य और दुसरे तारों का तापमान , दाब और खगोल भौतिकी में तारो आदि की आंतरिक संरचना आदि का पता लगाया जा सकता है।
साहा की समीकरण के द्वारा कोई भी तारा जिस धातु या पदार्थ से बना हुआ है उसकी आयनीकरण अवस्था को ज्ञात किया जाता है जिससे उस तारे के बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है।
इसके अलावा उन्होंने कई प्रकार के ऐसे उपकरण बनाये जिनकी सहायता से सौर किरणों का दाब और भार ज्ञात किया जा सके , भारत में नदियों के प्रोजेक्ट के लिए बन रहे प्रोजेक्ट के वे उस समय मुख्य वास्तुकार रहे थे , दामोदर घाटी परियोजना का मुख्य रूप से उन्ही का पूरा प्लान था।
3. सत्येन्द्र नाथ बोस (Satyendra Nath Bose) : इनका जन्म 1 जनवरी 1894 को कलकत्ता में हुआ था , ये एक भारतीय भौतिक वैज्ञानिक थे। ये क्वांटम यांत्रिकी में विशेषज्ञ थे , अर्थात इनका क्वांटम यांत्रिकी क्षेत्र में अद्भुद ज्ञान और इनका ज्ञान काफी महत्वपूर्ण रहा जिसके कारण उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपना काफी योगदान दिया। इनका बोसॉन कण के अध्ययन और खोज में अद्भुद और सराहनीय रहा था , बोसॉन एक विशेष प्रकार का कण होता है।
1937 में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने विज्ञान पर एक किताब लिखी और अपनी इस विज्ञान पर आधारित किताब को उन्होंने सत्येन्द्र नाथ बोस को समर्पित कर दिया। 1954 ने भारत सरकार ने भारत के दुसरे सबसे बड़े सम्मान से उन्हें सम्मानित किया जिसे पद्म विभूषण पुरस्कार कहा जाता है।
4. सी वी रमन (CV Raman) : प्रकाश के प्रकीर्णन के क्षेत्र में इसकी व्याख्या आदि में उन्होंने काफी योगदान दिया जिसके कारण उन्हें 1930 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया था।
इनका पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकट रमन था और इनका जन्म 7 नवम्बर 1888 को हुआ था , वे पहले ऐसे एशिया के व्यक्ति थे जिनको विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया था।
ये ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जाना था कि ध्वनी हार्मोनिक प्रकृति की होती है।
उन्होंने ही बताया था कि जब किसी प्रकाश को किसी पारदर्शी माध्यम से गुजारा जाता है तो प्रकाश की किरणों का मार्ग कुछ मुड जाता है या अपने मार्ग से विचलित हो जाती है और इनकी तरंग दैर्ध्य परिवर्तित हो जाती है जिसे अब रमन प्रकीर्णन और इस घटना को रमन प्रभाव कहा जाता है।
1970 में उनकी प्रयोगशाला ढह गयी थी जिसके कारण उनको चोट लग गयी थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था , बाद में वे कुछ ठीक हो गए और उन्होंने अस्पताल में रहने से मना कर दिया उन्होंने कहा कि वे अपनी प्रयोगशाला के बगीचे में रहना पसंद करेंगे , 21 नवम्बर 1970 को उनकी मौत प्राकृतिक कारण से हुई।
5. डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम (dr. APJ Abdul Kalam) :इनका पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था , इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था , ये एक महान भारतीय वैज्ञानिक के रूप में जाने जाते है , इन्होने एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में कार्य किया था , वे एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में DRDO और इसरो के साथ काम कर रहे थे।
कलाम ने प्रारंभ में भारतीय वायुसेना के लिए एक छोटा वायुयान बनाने से अपनी शुरुआत की थी , वे 2002 से लेकर 2007 तक भारत देश के 11 वें राष्ट्रपति के रूप में भी रहे थे। जब उनको इसरो में भेजा गया तो वहां उन्हें भारतीय सैटेलाईट SLV-III प्रोजेक्ट के डायरेक्टर थे , इसके बाद उन्होंने जुलाई 1980 में रोहिणी नामक सैटेलाईट को पृथ्वी की पास वाली कक्षा में छोड़ दिया गया , वे बच्चो से बहुत अधिक प्रेम करते थे।
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