रूपान्तरण/पुनयौगज का स्थानान्तरण , सूक्ष्म इंजेक्शन, स्थूल इंजेक्शन , अप्रत्यक्ष स्मानान्तरण
सूक्ष्म इंजेक्शन, स्थूल इंजेक्शन , अप्रत्यक्ष स्मानान्तरण , रूपान्तरण/पुनयौगज का स्थानान्तरण
परपोषी कोशिका मे ंपुनर्योगज DNA के स्थानान्तरण की क्रिया को रूपानान्तरण (transformational) कहते है।
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।. प्रत्यक्ष विधि:-
वाहक रहित स्थानान्तरण को प्रत्यक्ष स्थानान्तरण कहते है जिसकी मुख्य विधियाँ निम्न है।
1. सूक्ष्म इंजेक्शन(micro injection):-
इस विधि में पुनः योगज DNA को सूक्ष्म इंजेक्शन के द्वारा जन्तु कोशिका में उसके केन्द्रक के समीप अन्तः स्थापित किया जाता है।
2. जीन-गन/शाॅटगन/कणिकाबन्द्रक प्रोद्योगिकी (micro projectyle) विधि:-
इसमें पुनर्योगज DNA को स्वर्ण या टंगस्टन के सूक्ष्म कणों से विलोपित करके उच्च वेग से परपोषी कोशिम पर बमबारी करते है।
3. रासायनिक विधि:-
DNA जलरानी एवं तहणावेशित होता है। अतः आसानी से परपोषी कोशिका में प्रवेश नहीं करता है। अतः परपोषी कोशिका को सिसंयोजी धनात्मक आयन (Ca++ , Mg++) की उचित सान्द्रता से संसाधित करते है। इस प्रकार पुनयोगज क्छ। परपोषी
कोशिका में स्थानान्तरित हो जाता है।
यदि रूपान्तरण न हो तो कोशिका को पहले बर्फ पर रखते है तथा फिर 420ब् ताप पर गर्म करते है तथा इसे पुनः बर्फ पर रखते है तो रूपानान्तरण की क्रिया हो जाती है।
4 स्थूल इंजेक्शन (macro injection):- पादप कोशिका में, शीर्ष विभज्योतक के समीप।
5 इलेक्ट्रोपोरेशन:- विद्युत तरंगों द्वारा
6 लिपोसोम द्वारा:- ववा के छोटे थैलो द्वारा।
B. अप्रत्यक्ष स्मानान्तरण:-
वाहक द्वारा पुनर्योगज को परपोसी कोशिका में स्थानान्तरित करने की क्रिया DNA अप्रत्यक्ष जीन स्थानान्तरण कहलाती है।
इसमें रोगाजनक समवाहक को अरोगजनक बनाकर उसमें वाँछित जीन को जोडकर परपोसी कोशिका को सवंमित करने दिया जाता है। परपोशी कोशिका में वाँछित जीन का गुणन होता है।
उदाहरण:-
1- पादपों में:-
एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमिफेशियंस का F-DNA द्विबीजपत्री पादपों में टयूमर गाँठ उत्पन्न करता है। इसके ज्प्.च्संेउपक को अरोगजनक बनाकर पादपों को संक्रमित करने दिया जाता है इस प्रकारवाँछित जीनक ा गुणन प्रारम्भ हो जाता है।
6- बाहरी जीन उत्पाद को प्राप्त करना/ पुनयोगज उत्पाद प्राप्त करना:-
वाँछित जीन परपोषी कोशिका में रूपान्तरित होकर अभिवयक्त होता है तथा वाँछित उत्पाद बनाता है इस प्रकार प्राप्त उत्पादकों पुनयोजन उत्पाद कहते है जैसे पुनर्योगज प्रोटीन, पुनर्योगज हार्मोन पुनर्योगज एन्जाइम आदि।
कम मात्रा में उत्पाद प्राप्त करने हेतु प्रयोगशाला में भी संवर्धन किया जा सकता है। समर्धन को सतत् रूप से हिलाते रहना आवश्यक है। तथा इसमें संवर्धन माध्यम को एक ओर से निकाल लेते है तथा दूसरी तरफ से नया माध्यम डाल देते है।
बडे पैमाने पर पुनर्योगन उत्पाद करने हेतु बडे पात्रों की आवश्यकता होती है जिन्हें बायोरियेक्टर कहते है इनमें पुनर्योजन वाँछित उत्पाद प्राप्त करने के लिए अनुकूलन परिस्थितियाँ पाई जाती है जैसे ताप च्भ् क्रिया दर लवणीयता, विटामिन आदि बायोरियेक्टर दो प्रकार के होते है।
1 साधारण विलोडक हौज:- ये बेलनाकार होते है।
2 दण्ड:- (विलोडक हौज रियेक्टर):-ये आयताकार होते है तथा इनमें आॅक्सीजन स्थानान्तरण के लिए अधिक सतह पाई जाती है।
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4 अनुप्रवाह संसाधन:-
वाँछित उत्पाद को बनने के पश्चात् परिष्कृत शुद्ध रूप रूप से तैयार करने एवं विपणन से पूर्व जिन क्रियाओं जैसे:-
पृथक्करण एवं शोधन
परिरक्षक मिलान
संरूपण की जाँच (औषधि हेतू)
गुणवत्ता परिरक्षण
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