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हाइगेंस का द्वितीयक तरंगिका सिद्धांत , प्रकाश के तरंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया (wave theory of light in hindi)

(wave theory of light in hindi) हाइगेंस का द्वितीयक तरंगिका सिद्धांत , प्रकाश के तरंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया : प्रकाश का द्वितीय तरंग का नियम या सिद्धान्त सबसे पहले हाइगेन्स ने दिया था , यह सिद्धांत हाइगेंस ने 1678 में प्रतिपादित किया था।

जब हम कमरे में लगी खिड़की को खोलते है तो हम देखते है कि सूर्य का प्रकाश खिड़की से आता है और फिर पूरे कमरे में फ़ैल जाता है जिससे पूरे कमरे में उजाला हो सकता है , हाइगेंस ने सोचा की जरुर प्रकाश तरंग के रूप में होता है इसलिए ही तो खिड़की से आई हुई प्रकाश किरणें पूरे कमरे में फ़ैल गयी , यह तभी संभव है जब प्रकाश तरंग के रूप में हो और इसलिए ही यह प्रकाश पूरे कमरे में फ़ैल जाता है।

प्रकाश का द्वितीय तरंग का नियम

हाइगेन्स के तरंग सिद्धांत के अनुसार किसी भी स्रोत से प्रकाश तरंगों के रूप में निकलता है और यह प्रकाश तरंग के रूप में सभी दिशाओं में प्रकाश के वेग (3 x 10 8 m/s) से गति करता है।
हाइगेंस ने माना की प्रकाश के संचरण के लिए ईथर माध्यम आवश्यक होता है , उन्होंने यह माना की पूरे संसार में इथर होता है और इस इथर के कारण ही प्रकाश का संचरण हो पाता है।
ईथर माध्यम का घनत्व बहुत कम होता है तथा इसकी प्रत्यास्थता बहुत ज्यादा होती है।
हाइगेंस के सिद्धांत के अनुसार “प्रकाश के तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु एक नए प्रकाश स्रोत की तरह व्यवहार करता है अर्थात तरंगाग्र का हर बिंदु नए तरंग स्रोत की तरह कार्य करता है जिससे प्रकाश संभव सभी दिशाओं में गति करता है और इस नए तरंग स्रोत को द्वितीय स्रोत और इससे नयी तरंग निकलती है उन्हें द्वितीयक तरंगिका कहा जाता है ऐसे ही आगे से आगे चलता रहता है।  “
Huygens_principle
यह उसी प्रकार होता है जैसे हम किसी झील में पत्थर फेंकते है तो देखते है कि इसके कारण तरंगे उत्पन्न होती है जो आगे से आगे बढती है यहाँ भी तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु एक नयी तरंग स्रोत के रूप में कार्य करता है जिससे यह आगे से आगे बढती रहती है।
प्रकाश स्रोत से प्रकाश सभी संभव दिशाओं में तरंगो के रूप में सरल आवर्त गति करता है , तरंगाग्र के प्रत्येक बिंदु पर खिंचा गया अभिलम्ब उस बिंदु पर संचरण की दिशा को दर्शाता है।
निष्कर्ष : इस नियम (सिद्धान्त) की सहायता से प्रकाश की घटनाओं जैसे परावर्तन , अपवर्तन , विवर्तन आदि की व्याख्या सरलता से कर दी गयी लेकिन प्रकाश की तरंगों को अनुदैर्ध्य मानकर ध्रुवण की व्याख्या नही कर पाए , इसके लिए फ्रेनल ने प्रकाश तरंगो को अनुदैर्ध्य न मानकर अनुप्रस्थ प्रकृति का माना और सफलतापूर्वक ध्रुवण घटना की व्याख्या कर दिए।