प्रकाश की परिभाषा क्या है , गुण , उपयोग , प्रकाश चाल किसे कहते है , प्रकृति (what is light in hindi)
(what is light in hindi) प्रकाश की परिभाषा क्या है , गुण , उपयोग , प्रकाश किसे कहते है , प्रकाश की चाल कितनी होती है , निर्वात में माध्यम में ?
परिभाषा : यह एक प्रकार की ऊर्जा है जब प्रकाश हमारी आँख की रेटिना पर पड़ता है तो इसके रेटिना पर गिरने से दृष्टि संवेदना उत्पन्न होती है और हमें वस्तुएं दिखाई देती है। प्रकाश एक प्रकार की विकिरण ऊर्जा है जिसका उपयोग वस्तुओं को देखने के लिए मनुष्य की आँखों द्वारा किया जाता है इस प्रकाश उर्जा के कारण ही मनुष्य वस्तुओं को देख सकता है और उनकी उपस्थिति का अनुभव देखकर कर सकता है। प्रकाश की तरंग दैर्ध्य जो मनुष्य द्वारा वस्तुओं को देखने के लिए उपयोगी होती है उसका मान 380 नैनोमीटर से 740 नैनोमीटर होती है अर्थात मनुष्य वस्तुओं को देखने के लिए यह प्रकाश की रेंज कार्य में आती है अर्थात इस रेंज की तरंग दैर्ध्य के प्रकाश में मनुष्य को वस्तुएं दिखाई देती है।
प्रकाश का वेग 3 x 10 8 m/s होता है तथा सूर्य से आने वाला प्रकाश धरती पर पहुँचने में लगभग सात मिनट का समय लगाता है।
प्रकाश एक प्रकार की चुम्बकीय विकिरण होती है , मनुष्य की आँखों में एक रेंज की प्रकाश की चुम्बकीय विकिरण को समझ की क्षमता होती है , मनुष्य की आँखों द्वारा 380 नैनोमीटर से 740 नैनोमीटर की तरंग दैर्ध्य की रेंज के प्रकाश को समझने की क्षमता रखती है।
प्रकाश के कई स्रोत होते है जिसमे से सबसे बड़ा और प्राकृतिक स्रोत सूर्य होता है जिसमें प्रकाश का अन्नत भण्डारण होता है , इसके अलावा कृत्रिम स्रोत्त जैसे बैट्री आदि होते है जिससे प्रकाश उत्पन्न किया जाता है।
प्रकाश की प्रकृति (nature of light)
प्रकाश
हमारी दृष्टि की अनुभूति जिस बाह्य भौतिक कारण के द्वारा होती है, उसे हम प्रकाश कहते है। अतः प्रकाश एक प्रकार का साधन है, जिसके सहारे आँख वाले लोग किसी वस्तु को देखते है। जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता हैं। तब उस वस्तु से प्रकाश टकराकर देखने वाले की आँख पर पड़ता है, जिससे व्यक्ति उस वस्तु को देख पाता है। वास्तव में प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होती है।
प्रकाश की दोहरी प्रकृति-तरंग व कण- आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ मे कण माना जाता है। कुछ घटनाओं में उसकी तरंग प्रकृति प्रबल होती है (कण प्रकृति दबी रहती हैं) और कुछ में प्रकाश की कण प्रकृति स्पष्टतः उभरकर जाती है और तरंग प्रकृति दबी रहती है। इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते है। प्रकाश का विद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त प्रकाश के केवल कुछ प्रमुख गुणों की ही व्याख्या कर पाता है, जैसे- प्रकाश का परावर्तन, अपवर्तन सीधी रेखा में चलना, विवर्तन, व्यतिकरण व ध्रुवण। प्रकाश के कुछ गुण ऐसे भी है। जिनकी व्याख्या तरंग सिद्धांत नहीं कर पाता है। इनमें प्रमुख है- प्रकाश का विद्युत प्रभाव तथा क्रॉम्पटन प्रभाव। इन प्रभावों की व्याख्या आइन्सटीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत द्वारा की जाती है। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों के रूप में चलता है, जिन्हें फोटॉन कहते है। वास्तव में ये दोनों प्रभाव प्रकाश की कण-प्रकृति को प्रकट करते है।
प्रकाश की चाल– सर्वप्रथम रोमर नामक वैज्ञानिक ने बृहस्पति ग्रह के उपग्रहो की गति को देखकर प्रकाश का बंग ज्ञात किया था। उसने बृहस्पति ग्रह के एक उपग्रह में लगने वाले दो ग्रहणां के बीच की अवधि को मापकर प्रकाश की चाल को ज्ञात किया था। प्रकाश का वेग सबसे अधिक निर्वात मे होता है। निर्वात में प्रकाश की चाल का सर्वाधिक स्वीकृत मान 1,86,310 मील प्रति सेकण्ड या 2,99,776 किलोमीटर प्रति सेकण्ड या 3ग108 मीटर प्रति सेकण्ड है। किसी पदार्थ में प्रकाश की चाल निर्वात से कम होती हैं। निर्वात की तुलना में हवा में प्रकाश की चाल 0.03 प्रतिशत कम, पानी में 25 नाइलोन प्रतिशत कम तथा काँच में 35ः कम होती है।
प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 499 से. (अर्थात 8 मिनट 19 से.) का समय लगता है। इसी प्रकार चन्द्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 से. का समय लगता है।
प्रकाश का सरल रेखीय गमन- समांग माध्यमों (घनत्व हर भाग में बराबर) में प्रकाश की किरणे सरल रेखाओ में चलती है। इसे प्रकाश का सरल रेखीय गमन कहते हैं। सूची-छिद्र कैमरा में उल्टे चित्र का बनना, विभिन्न प्रकाश की छायाओं का बनना, सूर्य ग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण प्रकाश की किरणें के सरल रेखीय गमन के कारण ही संभव होते हैं।
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