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निर्देश तंत्र क्या है , परिभाषा , उदाहरण , फ्रेम ऑफ रेफेरेंस Frame of reference in hindi

Frame of reference in hindi  निर्देश तंत्र : हमारे चारो स्थित सभी चीजे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से या तो स्थिर है या गतिशील है

कुछ वस्तुएं दूसरी वस्तु के सापेक्ष गतिशील है लेकिन वही कुछ वस्तुएँ अन्य वतुओं के सापेक्ष स्थिर अवस्था में हो सकती है |

जैसे : यदि किसी बस में 5 यात्री बैठे हुए है तो वे सभी यात्री एक दूसरे के सापेक्ष स्थिर अवस्था में क्योंकि समय के साथ उनकी स्थिति एक दूसरे के सापेक्ष परिवर्तित नहीं हो रही है , लेकिन यदि वे यात्री बस से बाहर खड़े किसी व्यक्ति को देखते है तो वे उस व्यक्ति को गतिशील पाते है , क्योंकि बाहर खड़े आदमी की स्थिति बस में बैठे यात्रियों की तुलना में परिवर्तित होती है अर्थात उन यात्रियों के सापेक्ष वह खड़ा आदमी गतिशील प्रतीत होता है |

किसी भी वस्तु की गति या स्थिरता का अध्ययन करने के लिए हम एक बिन्दु या निकाय की कल्पना करते है जिससे उस वस्तु की गति या स्थिरता का वर्णन किया जा सके उस बिंदु या निकाय को ही निर्देश तंत्र कहते है |

निर्देश तन्त्र की आवश्यकता या जरुरत ?

हर एक वस्तु अन्य वस्तु की तुलना में गतिशील हो सकती है और वही वस्तु किसी तीसरी वस्तु की तुलना में गतिशील हो सकती है इसलिए यह निर्देश तन्त्र यह बताता है की हमें उस वस्तु के गतिशील या स्थिर होने का अध्ययन किस बिन्दु या वस्तु के सापेक्ष करना है , जिससे यह स्पष्ट रूप से कहा जा सके की यह वस्तु उस वस्तु या बिंदु (तंत्र) के सापेक्ष गतिशील या स्थिर अवस्था में है |

अत: निर्देश तन्त्र को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –

निर्देश तंत्र की परिभाषा : “ वह तंत्र या निकाय जिसके सापेक्ष किसी वस्तु की स्थिति का अध्ययन किया जाता है , निर्देश तंत्र कहलाता है |”

निर्देश तंत्र मानते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए की निर्देश तन्त्र ऐसा मानना चाहिये जिसके निर्देशांक सभी जगह मान्य हो और सुलभता से समझ में आ जाए |

इसलिए हम कार्तीय निर्देशांक पद्धति का प्रयोग करते है , इस निर्देशांक पद्धति में तीन रेखीय अक्ष होते है जो परस्पर एक दूसरे के लम्बवत होते है , इन्हें x , y , z से दर्शाया जाता है तथा मूल बिन्दु को O से प्रदर्शित किया जाता है , मूल बिंदु के सापेक्ष ही निर्देशांको की स्थिति के आधार पर किसी वस्तु की स्थिति का अध्ययन किया जाता है |