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एंजाइम की परिभाषा क्या है enzyme in hindi , उदाहरण , प्रकार , संरचना चित्र , प्रभावित करने वाले कारक ,

एंजाइम क्या है ? enzyme in hindi के उदाहरण , संरचना चित्र सहित परिभाषा किसे कहते है ? एन्जाइम का वर्गीकरण (प्रकार) व क्रियाविधि अर्थ हिंदी में ? टाइप्स ऑफ़ एंजाइम :-

(enzyme) एंजाइम  : एंजाइम एक प्रकार जैविक उत्प्रेरक होते है जो जैव रासायनिक अभिक्रियाओं की दर को बढ़ा देते है।  प्रोटीन प्रकृति के ऐसे कार्बनिक पदार्थ जो जीवित कोशिकाओं में उत्प्रेरक का कार्य करते है एन्जाइम कहलाते है।

1897 में बर्जीलियस बुकनर ने सर्वप्रथम यीस्ट कोशिका से जाइमेज एंजाइम को खोजा , एंजाइम शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कूहने ने किया।

जे.बी. सुमनर ने सर्वप्रथम यूरिएज एंजाइम को क्रिस्टलीकरण किया इसके लिए सुमनर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया।

संरचना

सभी एंजाइम प्रोटीन के बने होते है , कुछ एंजाइम RNA के बने होते है जिन्हें राइबोजाइम कहते है | एंजाइम में अनेक दरार या थैली समान संरचनाए होती है जिन्हें स्थल कहते है , इन स्थलों से क्रियाकारक जुड़ते है | एंजाइम अकार्बनिक उत्प्रेरको से भिन्न होते है जैसे अकार्बनिक उत्प्रेरक उच्चतापक्रम जबकि एंजाइम उच्च तापक्रम पर क्षतिग्रस्त हो जाते है | कुछ एंजाइम जो गर्म जल श्रोतो में रहने वाले जीवों में पाये जाते है , वे उच्च तापक्रम पर भी क्रियाशील बने रहते है |

रासायनिक अभिक्रियाएँ तथा एंजाइम की भूमिका

रासायनिक यौगिको में दो प्रकार के परिवर्तन होते है –

  1. भौतिक परिवर्तन : इस प्रकार की अभिक्रियाओ में यौगिको के रासायनिक गुण , अपरिवर्तित होते है जबकि भौतिक गुण बदल जाते है |

जैसे : बर्फ से जल , जल से वाष्प

  1. रासायनिक परिवर्तन : इस प्रकार की अभिक्रियाओं में यौगिक में बंध टूटते है तथा नए बंध बनते है जिससे यौगिक के रासायनिक गुण बदल जाते है |

उदाहरण – (i)बेरियम हाइड्रोक्साइड , सल्फ्यूरिक अम्ल से क्रिया कर बेरियम सल्फेट व जल बनाता है यह एक अकार्बनिक रासायनिक अभिक्रिया है |

(ii) स्टार्च अपघटित होकर ग्लूकोज में बदलना कार्बनिक रासायनिक अभिक्रिया का उदाहरण है |

भौतिक परिवर्तन व रासायनिक परिवर्तन की दर ताप व दाब पर निर्भर करती है |

भौतिक परिवर्तन व रासायनिक अभिक्रियाओं की दर अन्य कारकों के साथ साथ ताप से अधिक प्रभावित होती है |

10 डिग्री ताप बढ़ाने या घटाने से अभिक्रिया की दर दोगुनी या आधी हो जाती है |

उत्प्रेरक की उपस्थिति व अनुपस्थिति के आधार पर अभिक्रिया दो प्रकार की होती है –

  1. अनुत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ : ऐसी अभिक्रियाएँ जो बिना किसी उत्प्रेरक की उपस्थिति के सामान्य परिस्थितियों में पूर्ण होती है , अनुत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ कहलाती है |

उदाहरण – CO2  + H2O = H2CO3

  1. उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ : ऐसी अभिक्रियाएँ जो उत्प्रेरक की उपस्थिति में होती है , उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ कहलाती है |

Example : CO2  + H2O = H2CO3  (कार्बोनिक एनहाइड्रेट उत्प्रेरक की उपस्थिति) (600000 अणु प्रति सेकंड)

एंजाइम द्वारा उच्च दर से रासायनिक रूपांतरण

रासायनिक रूपांतरण एक अभिक्रिया के रूप में होती है , अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थ क्रियाधार कहलाते है , एंजाइम क्रियाधार को उत्पाद में बदलते है , क्रियाधार एंजाइम से एक जुड़कर एंजाइम क्रियाधार समिक्ष बनाता है जो एक अस्थायी अवस्था होती है , शीघ्र ही क्रियाधार समिक्ष में बंध टूटकर नए बंध बन जाते है इसके साथ ही एंजाइम के सक्रीय स्थल से उत्पाद मुक्त हो जाते है | क्रियाधार व उत्पाद के बीच उर्जा स्तर के अंतर को आरेख के रूप में प्रदर्शित कर सकते है |

अभिक्रिया प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक उर्जा संक्रियण उर्जा कहलाती है | एंजाइम अणुओं के संक्रियण के लिए आवश्यक ऊर्जा को कम कर देते है अर्थात क्रियाधार के अणु को कम ऊर्जा पर सक्रीय कर देते है | जबकि एंजाइम रहित अभिक्रिया की संक्रियण उर्जा अधिक होती है अत: एंजाइम की उपस्थिति में क्रियाधार कम संक्रियण ऊर्जा पर ही क्रियाफलों में बदल जाते है |

एंजाइम क्रिया की प्रकृति

एंजाइम के सक्रीय स्थल से क्रियाधार जुड़कर एंजाइम क्रियाधार समिक्ष का निर्माण करते है जो उत्पाद व अपरिवर्तित एंजाइम में विघटित हो जाता है |

एंजाइम क्रिया के उत्प्रेरक चक्र को निम्न चरणों में व्यक्त कर सकते है –

  1. सर्वप्रथम क्रियाधार एंजाइम के सक्रीय स्थल में जुड़ जाते है |
  2. क्रियाधार एंजाइम में बदलाव लाकर मजबूती से संलग्न या जुड़ जाते है |
  3. एंजाइम क्रियाधार के बीच रासायनिक बंध टूट जाते है और नए एंजाइम उत्पाद जटिल का निर्माण होता है |
  4. एंजाइम नवनिर्मित उत्पाद को अवमुक्त करता है तथा स्वयं स्वतंत्र होकर दूसरे क्रियाधार अणु से जुड़ने के लिए तैयार हो जाता है इस प्रकार पुन: उत्प्रेरक चक्र प्रारम्भ हो जाता है |

एंजाइम क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले कारक

  1. एंजाइम की सांद्रता : एंजाइम की सांद्रता बढ़ाने पर अभिक्रिया की दर बढती जाती है परन्तु क्रियाधार की सांद्रता स्थिर होने पर अभिक्रिया की दर भी स्थिर हो जाती है |
  2. क्रियाधार की सान्द्रता : क्रियाधार की सांद्रता बढ़ाने पर अभिक्रिया की दर भी बढती है , परन्तु एंजाइम की सांद्रता सीमाकारी होने पर अभिक्रिया की दर स्थिर हो जाती है |
  3. तापक्रम : एंजाइम क्रिया के लिए अनुकूलतम ताप 20 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक होता है , 35 से अधिक तापक्रम पर एंजाइम विकृत हो जाते है जिससे अभिक्रिया की दर कम हो जाती है |
  4. pH : अधिकांश एंजाइम 5 से 7.5 PH सीमा तक दक्षता पूर्वक कार्य करते है , pH मान के कम या अधिक होने पर अभिक्रिया की दर मंद हो जाती है |
  5. एंजाइम संदमक : वे पदार्थ जो एंजाइम के सक्रीय स्थलों से संयोग करके उन्हें निष्क्रिय कर देते है , एंजाइम संदमक या निरोधक कहलाते है |

ये दो प्रकार के होते है

  • स्पर्धी निरोधक : ऐसे निरोधक पदार्थो की संरचना क्रियाधार से मिलती है अत: ये पदार्थ एंजाइम के सक्रीय स्थलों से जुड़ने में क्रियाधार अणुओं से प्रतिस्प्रदा रखते है जिससे एंजाइम की क्रिया मंद हो जाती है जैसे : मैलिक अम्ल , सक्सिनिक अम्ल आदि |
  • अस्पर्धी निरोधक : इस प्रकार के संदमक पदार्थ एंजाइम के सक्रीय स्थलों से जुड़कर उन्हें स्थायी रूप से विकृत कर देते है | जैसे Pb++ , Hg++ , Ag++

एंजाइम का नामकरण व वर्गीकरण

एंजाइमो के नामकरण उनके द्वारा उत्प्रेरित होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं के आधार पर किया गया है –

  1. ऑक्सीडोरिडकटेजज / डी हाइड्रोजिनेज : इस वर्ग में ऐसे एंजाइम रखे गए है जो ऑक्सीकरण व अपचयन अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते है | ऊदाहरण – साइटोक्रोम ऑक्सीडेज
  2. ट्रांसफरेजेज : इस वर्ग में ऐसे एंजाइम रख्रे गये है जो H के अतिरिक्त अन्य समूहों को एक क्रियाधार से दूसरे क्रियाधार में स्थानांतरित करते है |
  3. हाइड्रोलेजेज : इस वर्ग के एंजाइम जल के अणुओं को जोड़ने या निकालने वाली अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते है अर्थात एस्टर , इथर , पेप्टाइड , ग्लाइकोसाईटिक , कार्बन – कार्बन , कार्बन हैलाइड आदि बन्धो का जल अपघटन करते है | उदाहरण – कार्बोनिक एनहाइडेज , एमाइलेज
  4. लायेजेज : जल अपघटन के अतिरिक्त अन्य विधि से क्रियाधारो के बन्धो को तोड़कर अलग करने वाले एंजाइम इस वर्ग में रखे गए है जिसके फलस्वरूप द्विबन्धो का निर्माण होता है , उदाहरण – हिस्टीडीन डीकार्बोक्सीलेज
  5. आइसोमरेज : इस प्रकार के एंजाइम क्रियाधारो में अंतर अधिक पुन: व्यवस्था के द्वारा उनके स्थितिज या प्रकाशीय समवीय में परिवर्तन होने वाली अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते है |

उदाहरण – फास्फो हैक्सो आइसोमरेज

  1. लाइगेजेज : इस प्रकार के एंजाइम ATP से प्राप्त उर्जा का उपयोग कर दो यौगिको को सहसंयोजक बन्धो द्वारा जुड़ने वाली अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते है | उदाहरण – पाइरन्वेट कार्बोक्सीलेज

सहकारक (CO- factors)

अधिकांश एंजाइम प्रोटीन के बने होते है , परन्तु कुछ एंजाइम प्रोटीन व अप्रोटीन भाग से बने होते है , एंजाइम के प्रोटीन भाग को एपोएंजाइम व अप्रोटीन भाग को सहकारक कहते है |

एंजाइम = एपोएंजाइम + सहकारक

सहएन्जाइम : ऐसे कार्बनिक पदार्थ जो एंजाइम में अस्थायी रूप से जुड़े होते है , सहएंजाइम कहलाते है , ये सामान्यत: विटामीन या विटामिन जैसे यौगिक होते है |

उदाहरण : (i) निकोटीनेमाइड एडिनिन डाइन्युक्लियोटाइड (NAD)

(ii) निकोटीनेमाइड एडिनिन डाइन्युक्लियोटाइड फास्फेट (NADP)

धातु आयन / सक्रियक कारक : जब सहकारक अकार्बनिक (धातु आयन) हो तो सक्रियक कारक कहलाते है |

जैसे : साइटोक्रोम में आयरन

एन्जाइम : एंजाइम प्रोटीन पदार्थ है जो बिना परिवर्तित हुए उपापचयी क्रियाओ को उत्प्रेरित करने में सक्षम होते है। ये कार्बनिक उत्प्रेरक अथवा जैव उत्प्रेरक भी कहलाते है।

2000 से अधिक एंजाइम ज्ञात हो चुके है। एंजाइम सजीव कोशिका में ही निर्मित होते है अधिकांशत: एंजाइम कोशिका के अन्दर ही कार्य करते है जहाँ वे निर्मित होते है। ये अंत: एंजाइम कहलाते है। दूसरी ओर वे एंजाइम जो कोशिका से निकलकर बाहर कार्य करते है , बाह्य एंजाइम (exoenzymes) कहलाते है। पाचक एन्जाइम इसी श्रेणी में आते है।

किरचोफ ने सजीव तंत्र में एंजाइमो की उपस्थिति का सर्वप्रथम पता लगाया। लुईस पाश्चर (1860) ने बताया कि शर्करा का एल्कोहल में सजीव यीस्ट कोशिका द्वारा किण्वन कुछ पदार्थो द्वारा उत्प्रेरित होता है जो कि यीस्ट कोशिका में होते है। उन्होंने इन पदार्थो को किण्वक कहा।

एंजाइम नाम “डबल्यू कूहने” ने दिया था।

एडवर्ड बुचनेर ने दिखाया कि यीस्ट कोशिका शर्करा का किण्वन करती है। किण्वक (एंजाइम) इसके लिए जिम्मेदार समझे गये।

जे.बी. समर (1926) ने एंजाइम यूरिएज का शुद्धिकरण और क्रिस्टलीकरण किया जो कि यूरिया के अमोनिया और कार्बन डाई ऑक्साइड जल अपघटन में उत्प्रेरक का कार्य करता है। उन्होंने बताया कि एंजाइम प्रोटीन से निर्मित होते है। जॉन नार्थरोप और कुनित ने पेप्सिन , ट्रिप्सिन और काइमोट्रिप्सिन का क्रिस्टलीकरण किया।

हेन्सन ने रेनिन प्राप्त किया जो दूध को ज़माने में उपयोग किया जाता है। आर्बर , स्मिथ और नाथान्स को रेस्ट्रिकशन एण्डोन्यूक्लिएस की खोज के लिए 1978 में नोबल पुरस्कार मिला जो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग में डीएनए की कटिंग में उपयोग होता है।

एंजाइमों का रासायनिक स्वभाव

सभी एंजाइम प्रोटीन प्रकृति के होते है। अपवादस्वरूप राइबोजाइम और राइबोन्यूक्लिएज एंजाइम प्रोटीन प्रकृति के नहीं होते है।

थॉमस केच (1981) ने प्रथम RNA खोजा जो एंजाइम की भांति कार्य करता है। उन्होंने इस राइबोजाइम कहा।

यह टेट्राहायोमिना थर्मोफ़ाइला (प्रोटोजोआ) से प्राप्त किया गया जो नवनिर्मित RNA से इंट्रोन को अलग करता है।

सिडनी ऑल्टमैन (1983) ने राइबोन्यूक्लिएज-P एंजाइम (RNAase-P) खोजा जो कि tRNA को hnRNA से अलग करता है।

थॉमस केच और सिडनी ऑल्टमैन को 1989 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ। एंजाइमो की बड़ी संख्या में अतिरिक्त रूप से अप्रोटीनकृत समूह इनकी प्रभावी क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है।

इस प्रकार दो प्रकार के एंजाइम होते है –

  1. सरल एंजाइम
  2. संयुग्मित एंजाइम
  3. सरल एंजाइम: वे एंजाइम जो केवल प्रोटीन से निर्मित होते है। उदाहरण : पेप्सिन , ट्रिप्सिन , एमाइलेज , यूरिएज।
  1. संयुग्मित एंजाइम: ये एंजाइम दो भागो से मिलकर बने होते है। प्रोटीन भाग एपोएंजाइम कहलाता है और अप्रोटीन भाग co-फैक्टर कहलाता है। सम्पूर्ण संयुग्मित एंजाइम होलोएंजाइम , उदाहरण : डिहाइड्रोजिनेज म हेक्सोकाइनेज , डी कार्बोक्सिलेज।

होलोएन्जाइम = एपोएंजाइम + को-फैक्टर

प्रोटीन भाग में एमिनों अम्लों का क्रम , संरचना और विशिष्टता को बताता है और co-फैक्टर एंजाइम की उत्प्रेरक क्रिया को दर्शाता है और समूह या परमाणु के लिए दाता या ग्राही के रूप में कार्य करता है। यदि को-फैक्टर हटा दिया जाए तो एंजाइम की क्रिया लगभग नष्ट हो जाती है। गर्म करने से केवल एपोएंजाइम भाग ही प्रभावित होता है और को-फैक्टर भाग अप्रभावित रहता है। यहाँ तक कि पेप्टाइड बंध भी गर्म करने से नहीं टूटते है। बंध नियंत्रक त्रिविमीय संरचना टूट जाती है।

को-फैक्टर (co-factor)

को-फेक्टर एंजाइम से डायलायसिस के द्वारा पृथक किये जा सकते है। को-फैक्टर कार्बनिक या अकार्बनिक हो सकते है।

तथा ये तीन प्रकार के होते है (lehninger 1993)

(a) को-एन्जाइम (कार्बनिक को-फेक्टर) : ये दुर्बल रूप से जुड़े हुए जटिल अप्रोटीन , कम अणुभार , तापस्थायी , कार्बनिक या कार्बधात्विक समूह है जो एपोएंजाइम से शीघ्रता से पृथक हो जाते है। ये दो प्रकार के होते है –

(i) को-एन्जाइम जो हाइड्रोजन ट्रान्सफर का कार्य करता है। उदाहरण : NAD , NADP , FMN , FAD , CoQ

(ii) H+ के अतिरिक्त समूह को ट्रान्सफर करने का कार्य करते है। उदाहरण : ATP , CoA , TPP , B6 , PO4 , कोबालएमीन , बायोटिन मुख्य रूप से विटामिन B काम्प्लेक्स से बने होते है इसलिए इन विटामिनों की कमी से इन एंजाइमों की क्रियाशीलता कम हो जाती है। उदाहरण : NAD , NADP , TPP (थायमिन पाइरोफास्फेट) , CoA (कोएन्जाइम) , FMN , FAD , कोएंजाइम Q (यूबीक्यूनोन) , ATP , लिपोइक अम्ल।

(b) प्रोस्थैटिक समूह (कार्बनिक को-फैक्टर) : यह सहसंयोजी बंध युक्त सख्त और स्थायी रूप से जुड़ा हुआ धात्विक आयन का अप्रोटीन कार्बनिक समूह है जो आसानी से पृथक नहीं होता है। इनका कार्य कुछ समूहों का वहन करना है। को-एंजाइम के विपरीत प्रोस्थैटिक समूह ट्रान्सफर के लिए केवल एक एंजाइम आवश्यक होता है। उदाहरण : बायोटिन , पायरिडॉक्सल फास्फेट और साइटोक्रोम का पोरफायरिन , हीमोग्लोबिन का हीम।

को-एंजाइम विटामिन जिससे वो बनते है एंजाइम जिसके साथ काम करते है
ATP Hexokinase
NAD Niacin Dehydrogenase
NADP Niacin (B5) Dehydrogenase
FAD , FMN Riboflavin (B2) Dehydrogenase
लिपोइक अम्ल लिपोइक अम्ल डीकार्बोक्सीलेज
CoA पेंटोथेनिक अम्ल थिओकाइनेज
TPP (थायमिन पायरोफोस्फेट) थाइमिन (B1) डीकार्बोक्सीलेज , ट्रांसकीटोलेज
PP (पायरीडोक्सिन फास्फेट) पायरीडोक्सिन (Bc) ट्रांसएमिनेज
बायोसायटिन बायोटिन कार्बोक्सीलेज
कोबामाइड विटामिन B12

(c) अकार्बनिक को-फैक्टर (धात्विक सक्रियक) : ये आवश्यक तत्व जो एंजाइम के एपोएंजाइम भाग से दुर्बल रूप से जुड़े होते है। उदाहरण : Mn2+ , Fe2+ , Co2+ , Zn2+ , Mg2+ , K+ , Ca2+ |

कुछ स्थानों पर जैसे साइटोक्रोम के आयरन में धात्विक आयन सक्रीय मजबूती से जुड़ा होता है। धात्विक आयनों की आवश्यकता वाले एन्जाइम धात्विक एंजाइम कहलाते है।

धात्विक आयन Metalloenzyme
Fe2+ , Fe3+ Cytochrome oxidase , catalase , peroxidase
Ca2+ Lipase , succinic dehydrogenase
Mg2+ Hexokinase , pyruvate kinase , DNA polymerase , enolase , phosphotransferase
Cu2+ Cytochrome oxidase , tyrosinase
Co2+ Ascorbic acid oxidase , peptidases
Mo Dinitrogenase , nitrate reductase
Mn2+ Ribouncleotide reductase , Arginase
Zn2+ Alcohol dehydrogenase , carbonic anydrase , LDH , carboxypeptidase glycine reductase , thiolase
Se Glycine reductase , thiolase
K+ Pyruvate kinase
 Ni Urease
Cl Salivary amylase
Na+ ATPase

एंजाइमों का नामकरण

एंजाइमों का नाम तय करना नामकरण कहलाता है। एंजाइमों के नामकरण के तीन तरीके है –

  1. Duclaux (1883) ने एन्जाइमों के नामकरण का एक सिस्टम दिया जिसमे सब्सट्रेट के अंत में जिस पर एंजाइम कार्य करता है अथवा अभिक्रिया के प्रकार जिसे एन्जाइम उत्प्रेरित करता है , के अंत में प्रत्यय ‘एज’ लगाया जाता है।

(a) by adding suffix : प्रत्यय ‘एज’ लगातार एंजाइम का नामकरण उदाहरण : सुक्रेस , माल्टेज , लाइपेज , न्यूक्लिएज , पेप्टिडेज (ये सुक्रोज , माल्टोज , लिपिड्स , न्यूक्लिक अम्ल , पोलीपेप्टाइड पर कार्य करते है। )

(b) कार्य के आधार पर : उदाहरण : डीहाइड्रोजेनेज (हाइड्रोजन को हटाना) , कार्बोक्सीलेज (कार्बन डाई ऑक्साइड का जुड़ना ) , डीकार्बोक्सीलेज (कार्बन डाइ ऑक्साइड को निकलना) , ऑक्सीडेज (ऑक्सीजन का जुड़ना) आदि।

  1. एंजाइम का दोहरा नामकरण: इसमें एंजाइम का नाम दो शब्दों द्वारा दिया जाता है। प्रथम शब्द सब्सट्रेट के बाद और दूसरा शब्द एंजाइम के द्वारा किये गए कार्य का होता है। उदाहरण : सक्सीनिक डीहाइड्रोजिनेज यह सक्सीनिक अम्ल से हाइड्रोजन हटाती है।
  2. स्रोत के आधार पर: कुछ एन्जाइम उनके स्रोत के आधार पर नामांकित किये गए। उदाहरण : पेपेन , जो पपीता की पर्णवृन्त से प्राप्त होता है। ब्रोमिलिएसी कुल के अनानास से ब्रोमेलिन प्राप्त होता है। पेपेन प्रोटीन विघटनकारी होता है तथा 60 डिग्री सेल्सियस से उच्च ताप पर भी कार्य करता है।

हालाँकि कुछ प्राचीन नाम जैसे टाइलिन , पेप्सिन , ट्रिप्सिन अपवाद है।

एन्जाइमों का वर्गीकरण (classification of enzymes)

इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ बायोकेमिस्ट्री के अनुसार उत्प्रेरित अभिक्रिया के प्रकार के आधार पर छ: श्रेणियों में एंजाइम को बांटा गया है –

वर्ग उत्प्रेरित अभिक्रिया उदाहरण
1.       ऑक्सीडोरिडक्टेज हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पर इलेक्ट्रॉन का एक पदार्थ से अन्य पर स्थानांतरण सक्सीनिक डिहाइड्रेजिनेज , नाइट्रेट रिडक्टेजेज
2.       ट्रांसफरेजेज विशिष्ट समूह (मिथाइल , एसाइल , एमिनों या फास्फेट ) का एक पदार्थ से अन्य पर स्थानान्तरण पाइरूवेट ट्रांसएमीनेज , ग्लूकोहेक्सोकाइनेज
3.       हाइड्रोलेजेज जल के द्वारा दीर्घ सब्सट्रेट का छोटे भागो में अपघटन लाइपेज , एमाइलेज , सुक्रेज , लेक्टेज , पेप्टाइटेज , एस्टरेज , फास्फेटेज , प्रोटिएज
4.       लाइजेस सब्सट्रेट से समूह का अजलीय विलगन या युग्मन | C-C , C-N , C-O , या C-S बंध टूट सकते है | हिस्टीडिन डीकार्बोक्सीलेज
5.       आइसोमरेजेज अन्तरान्विक पुनर्विन्यास के द्वारा सब्सट्रेट का सम्बंधित रूप में परिवर्तन आइसोमरेजेज , एपीमरेजेज , म्यूटेजेज
6.       लाइगेजेज (सिन्थेटेजेज ) दो अणुओं का नए C-O , C-S , C-N या C-C बन्धो द्वारा जुड़ना एसाइल को एंजाइम A सिन्थेटेज , पाइरुवेट कार्बोक्सीलेज , RUBP कार्बोक्सीलेज PEP कार्बोक्सीलेज

एन्जाइमों के गुणधर्म

  1. प्रोटीन प्रकृति: सभी एंजाइम रासायनिक रूप से प्रोटीन के बने होते है। (राइबोजाइम और राइबोन्यूक्लिएज-P के अलावा) इनमे यद्यपि अतिरिक्त कार्बनिक या अकार्बनिक घटक क्रियाशीलता के लिए हो सकता है।
  2. उभयधर्मी प्रकृति: एंजाइम बाह्य विलयन की अम्लता के आधार पर अम्ल या क्षार को आयनीकृत करने की क्षमता रखते है इसलिए इनकी प्रकृति उभयधर्मी होती है .ये अम्ल और क्षार की तरह कार्य कर सकते है।
  3. कोलॉइडल प्रकृति: ये कोलाइडल प्रकृति के होते है। इस प्रकार अभिक्रिया के लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते है। ये जल स्नेही है और कोशिका में हाइड्रोसोल बनाते है।
  4. उत्क्रमणीयता: वास्तविक उत्प्रेरक की भांति एंजाइम रासायनिक अभिक्रिया को किसी भी दिशा में उत्प्रेरित कर सकते। उदाहरण : अग्र और पश्च अभिक्रिया जो ऊर्जा , pH , उत्पादों की सांद्रता एवं अभिकारको की उपलब्धता पर निर्भर करता है।

CH3CH2OH + NAD+  → CH3CHO + NADH + H+

  1. अणुभार: एन्जाइम प्रोटीन अत्यधिक अणुभार वाले पदार्थ है। परोक्सीडेज जो सूक्ष्मतम एंजाइम है , का अणुभार 40,000 है। जबकि केटालेज दीर्घतम एंजाइम है , का अणुभार 250000 होता है। (यूरिएज 483000)
  2. एंजाइम की विशिष्टता: एन्जाइम प्रकृति से काफी विशिष्ट होते है। उदाहरण के लिए एक विशेष एंजाइम केवल विशेष अभिक्रिया को ही उत्प्रेरित कर सकता है। एंजाइम मेलिक डिहाइड्रोजिनेज मेलिक अम्ल से हाइड्रोजन हटा सकता है। अन्य किटो अम्लो से नहीं।

एंजाइम की विशिष्टता सक्रीय स्थानों पर एमिनो अम्ल के क्रमों से निर्धारित होती है। सक्रीय स्थान एक विशेष बंधित स्थान रखते है जो विशेष सब्सट्रेट के साथ ही युग्मित होता है। इस प्रकार एक उपयुक्त सब्सट्रेट एक सक्रिय स्थान की आवश्यकता सम्पूर्ण कर सकता है और इससे मजबूती से जुड़ सकता है।

  1. अपरिवर्तित रूप: एन्जाइम रासायनिक अभिक्रिया में किसी भी रूप में परिवर्तित नहीं होते और न ही कार्य में आते है बल्कि अभिक्रिया के अंत में अपरिवर्तित रूप से बने रहते है।
  2. रासायनिक अभिक्रिया: एंजाइम रासायनिक अभिक्रिया को प्रारंभ नहीं करते , बल्कि उसकी गति को बढाते है। ये साम्य को भी परिवर्तित नहीं करते है। यद्यपि ये गति को बढ़ाकर साम्य को शीघ्र स्थापित कर देते है। कार्बोनिक एनहाइड्रेज सबसे तेज क्रियाशील एंजाइम है।

CO2 + H2O → CO2 + H2O  → H+ + HCO3

किसी भी एंजाइम की अनुपस्थिति से यह अभिक्रिया बहुत धीमी हो जाती है। लगभग 200 अणु H2CO3 के एक घंटे में निर्मित होते है। यद्यपि कोशिकाद्रव्य में उपस्थित एंजाइम कार्बोनिक एनहाइड्रेज के द्वारा अभिक्रिया की गति लगभग 600,000 अणु प्रति सेकंड बढ़ जाती है। एंजाइम अभिक्रिया दर को लगभग 10 मिलियन गुना बढ़ा देता है।

  1. क्षमता: एंजाइम की क्षमता उसके “टर्न ओवर संख्या” से निर्धारित की जाती है। जैसे प्रति मिनट एक एंजाइम के अणु से सब्सट्रेट के अणुओं की संख्या में परिवर्तन।

यह एंजाइम पर उपस्थित सक्रीय क्षेत्रों , अभिकारको के मध्य प्रभावी टक्कर और उत्पादों के हटने की दर पर निर्भर करता है। एन्जाइम कार्बोनिल एनहाइड्रेट टर्न ओवर संख्या 36 मिलियन , केटालेज 5 मिलियन , सुक्रेज या इन्वर्टेज का 10 हजार और फ्लेवोप्रोटीन का 50 होता है।

एंजाइम अभिक्रिया की गति किस प्रकार बढाते है ?

किसी भी रासायनिक अभिक्रिया के प्रारम्भ के लिए एक निश्चित ऊर्जा की मात्रा आवश्यक होती है। यह सक्रियण ऊर्जा कहलाती है। प्रत्येक सब्सट्रेट के अणुओं में ज्यादातर औसत गतिज ऊर्जा , कुछ अधिक और कुछ कम औसत ऊर्जा वाले अणु होते है। सामान्य ताप पर तुलनात्मक रूप से अधिक ऊर्जा वाले अणु क्रिया कर उत्पाद बनाते है इसलिए अभिक्रिया धीमी होती है।

अभिक्रिया को तीव्र गति से करने के लिए मिश्रण का तापक्रम बढाया जा सकता है। यह अणुओं की गतिज ऊर्जा को बढाता है , टक्कर कराता है और अभिक्रिया होती है। अभिक्रिया को शीघ्र करने का अन्य तरीका एंजाइम को जोड़ना है। एंजाइम अभिक्रिया को सक्रीय ऊर्जा को कम करता है एवं एक ही समय पर अधिक संख्या में अणु अभिक्रिया करते है। वास्तव में एंजाइम सक्रीय ऊर्जा कैसे काम करता है , यह ज्ञात नहीं है। हालांकि एंजाइम सब्सट्रेट अणु के साथ जुड़कर उन्हें समीप लाकर , टक्करों की संख्या बढाकर उपयुक्त दिशा और स्थान पर अभिक्रिया को पूर्ण करता है। अकार्बनिक उत्प्रेरक इसी प्रकार कार्य करते है। यह तथ्य माना जाता है कि सक्रीय क्षेत्र में आकाशीय परिवर्तन वास्तव में सब्सट्रेट अणु को क्रिया के लिए धकेलता है। स्टार्च का ग्लूकोज में जल अपघटन एक कार्बनिक रासायनिक अभिक्रिया है। किसी भौतिक या रासायनिक प्रक्रिया की दर प्रति यूनिट समय में उत्पाद की मात्रा को बढाती है। यह इस प्रकार प्रदर्शित की जाती है –

दर = δp/δt

यदि दिशा ज्ञात हो तो दर को ही वेग कहते है।

एंजाइम निर्माण के सम्बन्ध में जानकारी

यह जानकर आश्चर्य होता है कि किसी भी कोशिका में किसी भी समय पर जिसका औसत व्यास 20 माइक्रो मीटर होता है , में लगभग हजारों विभिन्न रासायनिक क्रियाएं होती रहती है। प्रत्येक अभिक्रिया विशिष्ट एंजाइम से उत्प्रेरित होती है। कोशिका किस प्रकार जानती है कि कौनसा एन्जाइम निर्मित करना है ?

हर कोशिका का डीएनए हर एंजाइम के निर्माण की जानकारी ग्रहण किया होता है जो एंजाइम आवश्यक होते है। कोशिका यह जानकारी उपयोग करती है जब अभिक्रिया के लिए एंजाइम की जरुरत होती है।

एंजाइम क्रिया के स्थान

सभी एन्जाइम जीवित कोशिकाओं में निर्मित होते है। लगभग 2000 एंजाइम ज्ञात हो चुके है , इनकी क्रिया के क्षेत्र के आधार पर दो प्रकार से वर्गीकृत किया है –

  1. अंत: कोशिकीय
  2. अन्तराकोशिकीय
  3. अंत: कोशिकीय एंजाइम: अधिकतम एन्जाइम कोशिका के अन्दर रहते और कार्य करते है। ये अंत: कोशिकीय एंजाइम या एंडोएंजाइम कहलाते है। कुछ कोशिकाद्रव्य में घुलित अवस्था में होते है। यकृत कोशिकाओं में , ग्लूकोज से लेक्टिक अम्ल में परिवर्तन में आवश्यक सभी 11 एंजाइम होते है। कुछ एंजाइम कणों से बंधित होते है जैसे राइबोसोम , माइटोकोंड्रीया , क्लोरोप्लास्ट।

माइटोकोंड्रीया में लेक्टिक अम्ल से कार्बन डाई ऑक्साइड और जल बनाने हेतु श्वसनीय एंजाइम होते है।

  1. बाह्य कोशिकीय या अंतराकोशिकीय एंजाइम: कुछ एंजाइम कोशिकाओं से बाहर कार्य करते है , बाह्यकोशिकीय या एक्सोएंजाइम कहलाते है। इनमे मुख्यतः पाचक एंजाइम आते है। उदाहरण : लार एमाइलेज , जठरीय पेप्सिन , अग्नाशयी लाइपेज , जो क्रमशः लार ग्रंथि , जठर ग्रंथि और अग्नाशय से स्त्रावित होते है।

लाइसोजाइम अश्रू  और नासा स्त्राव में होता है।

एंजाइम कोशिका से बाहर भी अपना उत्प्रेरिकीय गुण धारण करते है। रेनेट टेबलेट जिसमे मवेशी के आमाशय का रेनिन एंजाइम उपस्थित होता है , का उपयोग दुग्ध प्रोटीन केसीनोजन के स्कंदन के द्वारा पनीर बनाने में होता है।

एंजाइम की क्रियाविधि

एंजाइम क्रियाविधि को समझाने हेतु दो अवधारणाऐ दी गयी है –

  1. कुंजी और ताला अवधारणा: यह अवधारणा ‘एमिल फिशर (1894) ‘ द्वारा दी गयी है। इसके अनुसार सब्सट्रेट और एंजाइम दोनों अणु की विशेष ज्यामितीय संरचना होती है।

यह ताला व चाबी तंत्र के समान है। जिसमे क्रिया के स्थान पर विशेष ज्यामितीय आकृति होती है। सक्रीय क्षेत्र विशेष समूह -NH2 , -COOH , -SH धारण करते है , जिससे सब्सट्रेट अणु के साथ सम्पर्क होता है।

जिस प्रकार एक ताला एक विशेष चाबी द्वारा खुल सकता है , उसी प्रकार एक सब्सट्रेट का अणु विशेष एंजाइम के द्वारा ही क्रियाशील होता है। यह एंजाइम क्रिया की विशिष्टता को समझाती है। एंजाइम के सक्रिय क्षेत्र के संपर्क में आकर सब्सट्रेट अणु या अभिकारक एक यौगिक एंजाइम सब्सट्रेट कॉम्प्लेक्स (जटिल) बनाता है।

एंजाइम सब्सट्रेट कॉम्प्लेक्स में सब्सट्रेट के अणु रासायनिक परिवर्तन के बाद उत्पाद बनाते है।

उत्पाद दीर्घ समय तक सक्रीय क्षेत्र पर नहीं रूकता और वातावरण में विसरित हो जाता है। इस दौरान वह सक्रीय क्षेत्र को मुक्त कर अन्य सब्सट्रेट अणु से बंधने को छोड़ देता है। यह धारणा यह दर्शाती है कि कैसे एंजाइम की अल्प मात्रा सब्सट्रेट की बड़ी मात्रा पर कार्य करती है। यह ये भी समझाती है कि कैसे एंजाइम अभिक्रिया के अंत में अपरिवर्तित रहता है। इसके अनुसार यह भी समझाया जा सकता है कि कैसे सब्सट्रेट के समान संरचना वाला पदार्थ प्रतियोगी अवरोधक की भांति कार्य करता है।

  1. प्रेरित समायोजित (फिट) अवधारणा: यह कोश्लैंड (1960) द्वारा दी गयी। इसके अनुसार एंजाइम का सक्रीय क्षेत्र प्रारम्भ में आकार में सब्सट्रेट के लिए संपूरक नहीं होता है बल्कि सब्सट्रेट के एंजाइम से जुड़ने के बाद प्रेरित होकर संपूरक आकार ग्रहण करता है। कोश्लैंड के अनुसार सक्रीय क्षेत्र एक संपूरक आकृति के लिए उसी प्रकार प्रेरित किया जाता है जिस प्रकार हाथ दस्तानों के आकार में परिवर्तन कर देता है। एंजाइम का सक्रीय क्षेत्र पॉकेट होती है जिसमे सब्सट्रेट जुड़ता है। इस प्रकार एंजाइम अपनी सक्रीय क्षेत्र द्वारा अभिक्रिया को उच्च दर से उत्प्रेरित करता है। इस प्रकार एन्जाइम लचीला होता है। एंजाइम के सक्रीय क्षेत्र पर दो समूह होते है।

(a) बट्रेसिंग समूह :  जो सब्सट्रेट की सहायता के लिए होता है।

(b) उत्प्रेरकीय समूह : जो अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है। जब सब्सट्रेट बट्रेसिंग समूह के सम्पर्क में आता है तो सक्रीय क्षेत्र परिवर्तित होकर उत्प्रेरकीय समूह सब्सट्रेट बंध के विपरीत दिशा से बंध तोड़ देता है।

एंजाइम क्रियाशीलता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. pH: एंजाइम की उत्प्रेरकीय गुण एक सिमित pH सीमा में ही कार्य करता है। इस सीमा में क्रियाशीलता एक विशिष्ट pH पर अधिकतम हो जाती है , जिसे ऑप्टिमम pH कहते है और फिर पुनः गिर जाती है। प्रत्येक एंजाइम की अपनी optimum pH होती है।

जठर रस पेप्सिन की optimum pH 2.0 जबकि ट्रिप्सिन की अधिकतम क्रियाशीलता pH 8.5 पर और सुक्रेज की pH 4.5 पर देखी जाती है।

हालाँकि अधिकतर अंत: कोशिकीय एंजाइम अधिकतम क्रियाशीलता pH 6.5 से 7.5 के मध्य दर्शाते है। (उदासीन pH के समीप) यूरिएज के अलावा अन्य एंजाइम संकीर्ण pH सीमा में कार्य करते है। pH के आकस्मिक परिवर्तन प्रोटीन को प्रभावित कर हाइड्रोजन और अन्य बंध जो एंजाइम की तृतीयक संरचना को बनाते है , तोड़ देता है।

  1. तापक्रम: प्रत्येक एंजाइम का विशिष्ट optimum तापक्रम होता है। सामान्य नियम के अनुसार Q10(तापक्रम गुणांक) का मान 2 -3 होता है। जैसे न्यूनतम और optimum तापक्रम के मध्य (5-40 डिग्री सेल्सियस) , अभिक्रिया की गति 10 डिग्री सेल्सियस ताप बढाने पर 2-3 गुना बढ़ जाती है।

यदि ताप जमाव बिंदु के पास या नीचे ले जाए तो एंजाइम अक्रियाशील हो जाते है। अधिकतम एंजाइम अपनी अधिकतम क्रिया तापक्रम 25-40 डिग्री सेल्सियस के मध्य में दर्शाते है। एंजाइम ताप संवेदी होते है।

अधिक तापक्रम पर टूट जाते है। उत्प्रेरकीय गुणों का हास 35 डिग्री सेल्सियस पर प्रारंभ होकर 60 डिग्री सेल्सियस पर पूर्ण हो जाता है। हालाँकि शुष्क एंजाइम निष्कर्षण 100-120 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर भी जीवित रहता है। इसलिए शुष्क बीज अंकुरित बीजों से अधिक तापक्रम सहन कर सकते है। ताप स्थायित्व इस प्रकार ताप स्नेही जीवों से विलगित एंजाइमों का महत्वपूर्ण गुण है। उदाहरण : Taq. polymerase

  1. सब्सट्रेट सांद्रता: सब्सट्रेट की सांद्रता बढाने पर एक निश्चित समय तक उत्पाद निर्माण की दर बढती है। अंत में एक बिंदु पर जब एंजाइम सब्सट्रेट से संतृप्त हो जाते है। इस बिंदु पर सब्सट्रेट सांद्रता बढाने पर उत्पाद निर्माण की दर पर कोई प्रभाव नहीं होता है। यदि सब्सट्रेट सांद्रता और अभिक्रिया वेग के मध्य ग्राफ देखे तो यह परवलयाकार वक्र होता है। एक अवस्था पर वेग अधिकतम हो जाता है। यह सब्सट्रेट सान्द्रता बढाने पर नही बढ़ता है। इस अवस्था पर एंजाइम अणु पूर्णतया संतृप्त हो जाते है। और कोई सक्रीय क्षेत्र उपलब्ध नहीं रहता है। यह संतृप्त प्रभाव सभी एंजाइम दर्शाते है।

माइकेलिस नियतांक (माइकेलिस मेन्टन स्थिरांक , Km: यह स्थिरांक है जो सब्सट्रेट की वह सांद्रता बताता है जिस पर एंजाइम के द्वारा उत्प्रेरित रासायनिक क्रिया अपने अधिकतम वेग का आधा वेग ग्रहण कर लेती है। माइकेलिस मेंटन नियतांक सामान्यतया 10-1 से 10-6 M के मध्य होता है।

उच्च Km कम बन्धुता जबकि कम K उच्च बन्धुता को दर्शाता है। यदि एक एंजाइम एक से अधिक सब्सट्रेट पर कार्य करता है तो यह उनके लिए विभिन्न Km के मान दर्शाता है।

यह  माइकेलिस मेन्टन समीकरण निम्न प्रकार है –

इस प्रकार  Km का मान सब्सट्रेट की उस सांद्रता के समान होता है जिस पर अभिक्रिया की गति अधिकतम की आधी होती है। माइकेलिस मेन्टन नियतांक का मान एंजाइम क्रिया के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

Km का उच्च मान मतलब है कि अभिक्रिया की अधिकतम गति का आधा वेग प्राप्त करने हेतु सब्सट्रेट की सांद्रता उच्च होगी।

सीधे शब्दों में इसका तात्पर्य है कि एंजाइम की सब्सट्रेट से बन्धुता कम होती है। एंजाइम क्रिया और सब्सट्रेट सान्द्रता के व्युत्क्रम मान के मध्य वक्र खिंचा जाए तो हमें एक सीधी रेखा प्राप्त होगी। इस प्लोट में Km का मान रेखा को पश्च दिशा में बढ़ाकर प्राप्त किया जा सकता है।

  1. एंजाइम सांद्रता: यदि आवश्यकता से अधिक सब्सट्रेट उपस्थित है तो एंजाइम दोगुनी करने से अभिक्रिया की दर दुगुनी हो जाती है। यह केवल अभिक्रिया के प्रारंभ में उचित होता है क्योंकि अभिक्रिया का अंतिम उत्पाद अक्सर एंजाइम पर विपरीत प्रभाव डालता है और इसकी प्रभाविता को कम करता है।
  2. उत्पाद की सान्द्रता: जैसे ही उत्पाद एकत्र होता है  अभिक्रिया की गति कम होती जाती है।
  3. भारी धातुएँ: कुछ धातुएं एंजाइम को अक्रिय रूप में परिवर्तित कर देती है। उदाहरण : Ag , Zn , Cu , Pb , और Cd आदि।

सक्रियण ऊर्जा

अधिकतर रासायनिक अभिक्रियाएँ स्वत: प्रारंभ नहीं होती है क्योंकि अभिकारक अणुओं का ऊर्जा अवरोधक होता है जिसको प्राप्त करके ही वे सक्रीय होती है। ऊर्जा अवरोधक कई प्रकार से होता है –

  1. इनकी सतह पर उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के आपसी प्रतिकर्षण के कारण।
  2. सक्रीय अणुओं के क्रियास्थल छोटे होते है तो उचित टक्कर नहीं हो पाती है। ऐसी अभिक्रियाएँ प्रारंभ होने हेतु बाहर से ऊर्जा ग्रहण करती है। यह सक्रियण ऊर्जा कहलाती है।

सक्रियण ऊर्जा तन्त्र की गतिज ऊर्जा को बढ़ाती है और क्रियाकारकों में प्रभावी टक्कर करवाती है। सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता अत्यधिक होती है। उदाहरण : सुक्रोज का अम्लीय जल अपघटन लगभग 32000 cal/mole ऊर्जा ग्रहण करता है।  जैसा कि हम जानते है कोशिका में हजारों रासायनिक अभिक्रियाएँ होती रहती है इसलिए इतनी अभिक्रियाओं के लिए आवश्यक सक्रियण ऊर्जा सजीव तन्त्र द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती है। एंजाइम अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा को कम करता है। उदाहरण : एंजाइम सुक्रेज या इन्वर्टेज की उपस्थिति में सुक्रोज का जल अपघटन 9000 cal/mole ऊर्जा ग्रहण करता है (32000 cal/mole के स्थान पर)

प्रोएंजाइम या जाइमोजन

प्रोएन्जाइम का अक्रिय पूर्व निर्मित भाग होते है। जाइमोजन शब्द सामान्यतया प्रोटीन अपघटनी एंजाइमों की अक्रिय अवस्था को दर्शाने के लिए उपयोग होता है। उदाहरण : एंजाइम पेप्सिन के लिए पेप्सिनोजन। एंजाइम प्रारंभ में प्रोएंजाइम या जाइमोजन अवस्था में निर्मित होते है। एक निश्चित pH , सब्सट्रेट की उपलब्धता या विशेष उपचार के बाद ही ये क्रियाशील होते है। उदाहरण : पेप्सिनोजन जठर रस के HCl की उपस्थिति में सक्रीय एंजाइम पेप्सिन में परिवर्तन होता है। तत्पश्चात आगे का परिवर्तन पेप्सिन के स्व-उत्प्रेरकीय प्रभाव से होता है।

एलोस्टेरिक एंजाइम

वे एंजाइम जिनमे कुछ स्थान ऐसे होते है जो विभिन्न रसायनों से बंधित हो जाते है और सक्रीय स्थल की संरचना को बदलकर इसे प्रभावी या अप्रभावी बना देते है। ये एलेस्टोरिक स्थल में परिवर्तन करते है , मोड्यूलेटर या एलोस्टेरिक पदार्थ कहलाते है। ये दो प्रकार के होते है। सक्रियक तथा अवरोधक। एलोस्टेरिक सक्रियक एलोस्टेरिक स्थल पर इस प्रकार जुड़ते है कि सक्रियक स्थल को कार्यवाहक बनाते है। दूसरी ओर एलोस्टेरिक अवरोधक सक्रियक स्थल में ऐसे परिवर्तन करते है कि यह सब्सट्रेट अणुओं के साथ में संयोजित होने योग्य नहीं रहते है। उदाहरण : एंजाइम फास्फोफ्रक्टोकाइनेज ADP द्वारा सक्रीय और ATP द्वारा अवरोधित किया जाता है।

आइसोएंजाइम

पूर्व में यह विश्वास था कि एक जीव में एक उपापचयी अभिक्रिया के एक पद के लिए केवल एक एंजाइम होता है। बाद में यह खोजा गया कि एक से अधिक एंजाइम समान उत्पाद बनाने के लिए एक सब्सट्रेट पर भी क्रिया कर सकते है। समान जीव में एक एंजाइम की विभिन्न आण्विक संरचना और समान सब्सट्रेट क्रियाशीलता वाले एंजाइम आइसोएन्जाइम या आइसोजाइम कहलाते है। लगभग 100 से अधिक एंजाइमो के आइसोएंजाइम ज्ञात है। इस प्रकार गेहूं के एण्डोस्पर्म के एल्फा-एमाइलेज के 16 आइसोजाइम मनुष्य में लेक्टिक डिहाइड्रोजिनेज के 5 आइसोजाइम और मक्का में एल्कोहल डीहाइड्रोजिनेज के 4 आइसोजाइम होते है। आइसोजाइम अपनी क्रियाशीलता और अवरोधन में भिन्न होते है। यह जीव को वातावरणीय अवस्थाओं से अनुकूल बनाने में मदद करती है।

एंजाइम क्रिया का अवरोध : एन्जाइम क्रिया चार प्रकार से बाधित होती है –

  1. डीनेचुरेशन (विकृतिकरण)
  2. प्रतियोगी अवरोधन
  3. अप्रतियोगी अवरोधन
  4. एलोस्टेरिक अवरोधन
  5. डीनेचुरेशन (विकृतिकरण): 55 से 60 डिग्री सेल्सियस , उच्च ताप पर प्रोटीन अणु के अन्दर पोलीपेप्टाइड श्रृंखला की त्रिविम व्यवस्था बदलकर इसकी अद्वितीय संरचना बदल जाती है। फलस्वरूप भौतिक और जैविक गुण बदल जाते है। एंजाइम का डीनेचुरेशन अनुत्क्रमणीय अवरोधन का उदाहरण है।
  6. प्रतियोगी अवरोधन: यह सामान्यतया होते है क्योंकि अधिक सब्सट्रेट की मात्रा अवरोधन के प्रभाव को कम कर देती है इस प्रकार के अवरोधन में अवरोधक संरचना में सब्सट्रेट के समान होता है और सब्सट्रेट से सक्रीय स्थल पर प्रतियोगिता करता है। इस प्रकार यह अग्र अभिक्रिया को रोकता है। एंजाइम की इन्ही अवरोधक या सब्सट्रेट से बन्धुता सब्सट्रेट और अवरोधक की सांद्रता पर निर्भर करती है। अवरोधन की मात्रा सब्सट्रेट की सांद्रता बढ़ाकर कम की जा सकती है। प्रतियोगी अवरोधक की उपस्थिति Km, को बढ़ाती है। उदाहरण : जीवाणु में सल्फा ड्रग , कोलिक अम्ल का संश्लेषण पेराएमिनो बेन्जोइक अम्ल से प्रतियोगिता कर रोक देती है। सक्सीनेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम की क्रिया मेलोनिक अम्ल के द्वारा सक्सीनेट अम्ल से प्रतियोगिता करने से रुक जाती है।

अवरोधन महत्वपूर्ण होता है और यह एंजाइम क्रिया के ताला चाबी अवधारणा के समरूप एंजाइमों द्वारा उपापचयी नही होते है।

  1. अप्रतियोगी अवरोधन: किसी पदार्थ की उपस्थिति जो सब्सट्रेट के साथ संरचनात्मक समानता नहीं दर्शाता की उपस्थिति में एंजाइम क्रिया को अवरोधन होता है। अप्रतियोगी अवरोधक एंजाइम के क्रियात्मक समूह के साथ अनुत्क्रमणीय रूप से जुड़कर या इसे नष्ट कर एंजाइम क्रिया को रोकता है।

यह अवरोधक Vmax को कम करता है परन्तु Km परिवर्तित  नहीं होता है। सब्सट्रेट सांद्रता बढाने पर अवरोधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण : सायनाइड , साइटोक्रोम ऑक्सीडेज की क्रिया का अवरोधन करता है। इसकी साइटोक्रोम C नामक एंजाइम से कोई संरचनात्मक समानता नहीं होती है। साइटोक्रोम ऑक्सीडेज एक श्वसनीय एंजाइम है।  इस अवरोधन में जीव जन्तु श्वसन न कर पाने के कारण मर जाते है।

डाइ-आइसोप्रोपाइल फ्लोरो फास्फेट एसीटाइलकोलीन एस्टरेज के एमिनो अम्ल सेरिन के साथ जुड़कर आवेग स्थानान्तरण को रोकता है।

  1. एलोस्टेरिक अवरोधन:

(i) फीडबैक अवरोधन या एलोस्टेरिक मोड्यूलेशन : यह उत्क्रमणीय अप्रतियोगी अवरोधन है जो एलोस्टेरिक एंजाइम में होता है ये अवरोधक सामान्यतया एंजाइमों द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रियाओं के उत्पाद का मध्यवर्ती है। इस प्रकार एलोस्टेरिक अवरोधन अंत उत्पाद अवरोधन , फीडबैक या रिट्रो अवरोधन कहलाता है। उत्पाद अवरोधक ऋणात्मक मोड्युलेटर की भांति कार्य करते है। ये अवरोधक स्थल पर जुड़कर सक्रिय स्थल पर एलोस्टेरिक परिवर्तन कर देते है।

(ii) एंजाइम हेक्सोकाइनेज , ग्लूकोकाइनेज तथा ATP : D-ग्लूकोज फास्फोट्रांसफेरेज , ग्लूकोज 6-फास्फेट अग्र अभिक्रिया में बनाता है।

(iii) जीवाणु Escherichia coli , में थ्रियोनिन एमिनों अम्ल , आइसोल्युसिन में 5 पदीय अभिक्रिया एंजाइम नियंत्रित अवस्था में बदलता है। आइसोल्यूसिन का अनुपयोग का बाहर से अवशोषण होने के कारण एकत्र होना इस परिवर्तन को रोकता है , क्योंकि प्रथम पद में सम्मिलित एंजाइम थ्रियोनिन डाइएमीनेज का एलोस्टेरिक अवरोधन हो जाता है।

एंजाइम अवरोधन का महत्व

  • फीडबैक अवरोधन उत्पाद के अधिक निर्माण को नियंत्रित करता है।
  • एन्जाइम अवरोधन उपापचयी क्रियाओं के अध्ययन में उपयोगी होता है।
  • यह एंजाइम की क्रियाविधि दर्शाता है।
  • सल्फोनामाइडस या सल्फर ड्रग्स , कोलिक अम्ल संश्लेषण में उपयोग प्रोकेरियोटिक एन्जाइम की अवरोधी क्रिया के आधार पर निर्मित किया गया है।
  • मेलाथियोन और कई एवं कीटनाशी उनके तंत्रिका प्रवाह पर अवरोधी क्रिया के आधार पर निर्मित किये गये है।

एन्जाइम से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • ELISA : यह एंजाइम सम्बन्धित इम्यूनोसोर्बेन्ट ऐसे है , जब एक प्रोटीन , प्रतिरक्षी या प्रतिजनन एंजाइमों के द्वारा जाँची जाती है , उदाहरण : AIDS
  • प्रोटिएजेज : डिटर्जेंट में डालकर कपड़े धोने में काम आता है एवं एमाइलेज भी डिटरजेंट में बर्तन धोने में काम में लिया जाता है।
  • एलोजाइम्स : भिन्न एंजाइमों द्वारा बनाये जाते है।
  • निर्माणकारी एंजाइम हमेशा उपस्थित होते है क्योंकि जैविक क्रियाओं में आवश्यक होते है : उदाहरण : ग्लाइकोलिसिस
  • Ki एंजाइम अवरोधक जटिल का अपघटन नियतांक है। यह प्रतियोगी अवरोधक के लिए उपयुक्त है। अल्प Ki एंजाइम क्रिया के लिए आवश्यक है जबकि उच्च Ki इसे घटाता है।
  • प्रतिरक्षी जो एंजाइम की तरह कार्य करती है , Abzimes कहलाती है।
  • एंजाइमों और इनकी क्रियाओं का अध्ययन एन्जाइमोलोजी कहलाती है।
  • प्रथम ज्ञात एंजाइम डायस्टेज था।
  • अधिकतम एन्जाइम सर्वाहारियो में पाए जाते है।
  • मायोसीन एक संकुचनशील प्रोटीन है जिसमे संरचनात्मक एवं एंजाइमेटिक दोनों क्रियाएँ होती है। (ATpase क्रिया होती है। )
  • एंजाइम मार्कर के रूप में :

(i) सक्सीनिक डीहाइड्रोजिनेज तथा ग्लुटामेट डीहाइड्रोजिनेज माइटोकोंड्रीयल मार्कर है।

(ii) एसिड फास्फेटेज लाइसोसोमल मार्कर है।

(iii)  राइबोसोम मार्कर RNA होता है।

(iv) साइटोक्रोम ऑक्सीडेज अंत: माइकोंड्रीयल झिल्ली का मार्कर एंजाइम है।