प्रदिश राशि क्या है tensor quantity in hindi definition example formula types
tensor quantity in hindi definition example formula types प्रदिश राशि क्या है ?
अध्याय – प्रदिश (TENSOR)
अभी तक अधिकांश भौतिक राशियाँ अदिश तथा सदिश रूप में विचार की जाती हैं। अदिश राशियों में केवल परिमाण होता है तथा दिशाओं पर निर्भर नहीं करती हैं, जैसे कण का द्रव्यमान । सदिश राशियों में परिमाण के साथ-साथ दिशा भी होती है, जैसे बल में एक निश्चित दिशा में परिमाण होता है। अदिश तथा सदिश राशियों का व्यापक रूप जिसके द्वारा भौतिक राशियों को व्यक्त किया जा सकता है, प्रदिश कहलाती है। अतः अदिश तथा सदिश राशियों, प्रदिश का ही एक अन्य रूप है। प्रारम्भ में प्रदिश का विकास गॉस, लेवी-केविटा, रिमान, क्रिस्टोफर, रिकी आदि ने किया था। परन्तु बाद में प्रदिश विश्लेषण का चलन बहुतायत से होने लगा जब आइंस्टीन ने इसका उपयोग 1905 में आपेक्षिकता के सामान्य सिद्धान्त ( General theory of Relativity) के विकास में किया। अब प्रदिशों का उपयोग सैद्धान्तिक भौतिकी की कई शाखाओं में, जैसे सांतत्यक भौतिकी (continuum mechanics), द्रव्य यांत्रिकी (fluid mechanics), प्रत्यास्थता (elasticity), विद्युत चुम्बकिकी (electromagnetism) आदि । प्रदिश का उपयोग विषम दैशिक माध्यम में विद्युत चालकता (electrical conductivity) द्वारा समझा सकते हैं जिसे निम्न सम्बन्ध द्वारा परिभाषित कर सकते हैं।
समदैशिक माध्यम में विद्युत चालकता सभी दिशाओं में समान रहता है। अतः इस स्थिति में यह एक अदिश राशि होती है तथा विद्युत धारा घनत्व प्रयुक्त विद्युत क्षेत्र के समानुपाती होता है अर्थात् J तथा Ē के परिमाण सभी दिशाओं में समान रूप से परिवर्तित होते हैं। अतः तथा J E सदिश राशि होती है। यदि चालक विषम दैशिक है तो J तथा E के परिमाण तथा दिशा दोनों पृथक रूप से परिवर्तित होते हैं। अतः इस प्रकार परिवर्तित होता है वह इस परिवर्तन का समायोजन कर सके। इस स्थिति में का रूप प्रदिश की तरह हो जाता है। उदाहरण के तौर पर समीकरण (1) को व्यापक रूप से निम्न प्रकार लिख सकते हैं।
यहाँ Jy, Jy, Jz तथा Ex, Ey, E, कार्तीय निर्देशांकों में क्रमश: सदिश J तथा E घटक है तथा (i j = 1, 2, 3 ) विद्युत चालकता के घटक कहलाते हैं।
इस प्रकार प्रदिश सामान्य तौर पर गणितीय राशियाँ होती है जिसे माध्यम के भौतिक गुणों को वर्णन करने के लिए अदिश एवं सदिश की तरह उपयोग किया जाता है। वास्तव में प्रदिश, अदिश एवं सदिश राशियों का व्यापक रूप है; अदिश की कोई विमा नहीं होती है इसलिये यह शून्य कोटि का प्रदिश कहलाता है। सदिश की दिशा होती है इसलिये यह प्रथम कोटि का प्रदिश कहलाता तथा इसे 3 1 कॉलम सारणिक ( matrix ) द्वारा वर्णित किया जा सकता है। माध्यम जिनके वर्णन के लिए दो दिशाओं की आवश्यकता होती उन्हें 9 संख्याओं के द्विविमीय व्यूह (two dimensional array) या 3 x 1 सारणिक ( matrix ) या द्वितीय कोटि के प्रदिश द्वारा वर्णित का सकते हैं। इसी प्रकार nth के प्रदिश को बहुविमीय व्यूह (multi dimensional array) के 3″ घटकों द्वारा परिभाषित कर सकते हैं। प्रदिश में घटकों को व्यक्त करने के लिये व्यूह ( array) में स्थितनुसार प्रदिश के सांकेतिक नाम पर मूर्धांक तथा पादांक का उपयोग किया जाता है।
अतः विद्युत चालकता एक द्वितीय कोटि का प्रदिश होता है। द्वितीय कोटि के प्रदिश के दूसरे उदाहरण हैं; विद्युत प्रवृत्ति, ऊष्मीय चालकता, प्रतिबल तथा विकृति आदि। ये एक सदिश से दूसरे सदिश को या द्वितीय कोटि के प्रदिश को अदिश से संबंध स्थापित करते हैं। उच्च कोटि के प्रदिश जैसे दुर्नम्यता (e.g. stiffness ) (4th rank )) द्वितीय कोटि के प्रदिश को एक द्वितीय कोटि के प्रदिश से तथा दाब विद्युत (e.g. piezoelectricity ( 3rd rank)) द्वितीय कोटि के प्रदिश को एक सदिश से सम्बन्ध स्थापित करता है।
प्रदिश में उपयोग किये जाने वाले कुछ संकेताक्षर (SOME NOTATIONS USED IN TENSOR)
(i) मूर्धांक तथा पादांक (Superscripts and subscripts)
(a) प्रतिचर प्रदिश (Contravariant tensor): इस प्रदिश में प्रतिचर घटकों को व्यक्त करने के लिए मूर्धांक का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए Tij
(b) सहचर प्रदिश (Covariant tensor) : इस प्रदिश में सहचर घटकों को व्यक्त करने के लिए पादांक का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए Tij,
(c) मिश्रित प्रदिश (Mixed tensor ) : इस प्रदिश में मिश्रित घटकों को व्यक्त करने के लिए मूर्धांक तथा पादांक दोनों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए Tjk
(ii) क्रोनेकर डेल्टा (Kronecker delta)
क्रोनेकर डेल्टा को निम्न संबंध द्वारा परिभाषित किया जाता है।
नोट : जब निर्देशांकों को मूर्धांक द्वारा व्यक्त किया जाता है तो निर्देशांकों के घातों को व्यक्त करने के लिए ब्रेकेट (brackets) का उपयोग करते हैं ताकि घात एवं मूर्धांक में अंतर स्पष्ट किया जा सके उदाहरण के तौर पर dx1 का वर्ग (dx 1 ) 2 द्वारा व्यक्त करते हैं।
नोट : क्रोनेकर डेल्टा की उपरोक्त परिभाषा एवं गुणधर्म में आइंसटीन संकलन- परिपाटी (Einstein summation convention) का उपयोग किया जाता है। इसके अनुसार यदि कोई सूचकांक (index) दो बार प्रयुक्त हो ( एक बार मूर्धांक के रूप में तथा एक बार पादांक की भांति ) तो इसका अर्थ है कि निर्धारित परिसीमा में योग है तथा योग चिन्ह को हटा देते हैं। उदाहरण के लिए
यदि सूचकांक किसी पद में दो बार प्रयुक्त हो तो यह सूचकांक मूक सूचकांक (dummy index) कहलाता है और यदि सूचकांक प्रत्येक पद में एक बार प्रयुक्त हो तो वह मुक्त सूचकांक (free index) कहलाता है। इसका अर्थ है कि वह समीकरण समीकरणों का समुच्चय है। (h) दो सदिशों का अदिश गुणनफल (Scalar product of two vectors) : माना दो निम्न सदिश है
उपपत्ति: (a) यदि i, j, k या r, s, t में से कोई दो सूचकांक समान हो तो सर्वसमिका [ejk = 0 जब i = k] का उपयोग करने पर, समीकरण का LHS शून्य के बराबर हो जायेगा। सारणिक के दो पंक्ति या दो स्तम्भ (column) के परस्पर बराबर होने पर भी यही परिणाम प्राप्त होता है इसलिये समीकरण का RHS भी शून्य के बराबर हो जायेगा ।
(b) यदि i.j, k तथा r, s, t दोनों 1, 2, 3 के बराबर है तो समीकरण के दोनों ओर के मान के एक बराबर हो जायेंगे। समीकरण LHS 1x 1 = 1 के बराबर होगा तथा RHS एकक सारणिक के बराबर होगा।
(c) यदि i, j, k तथा r, s, t में से कोई सूचकांक परस्पर बदल दें तो समीकरण के LHS में संगत क्रमचय संकेत में चिन्ह परिवर्तित हो जायेगा। समीकरण के RHS में दो सूचकांक के परस्पर बदलने से सारणिक के दो पंक्ति या दो स्तम्भ परस्पर बदल जायेंगे तथा चिन्ह विपरीत हो जायेगा। अतः सूचकांक के सभी सम्भावित संयोजन में समीकरण के दोनों पक्ष बराबर होते हैं।
क्रमचय संकेताक्षर गुणधर्म का उपयोग करने पर
उपरोक्त सभी समीकरणों को एक समीकरण में लिखने पर
आइंसटीन के संकलन परिपाटी का उपयोग करने पर,
यहाँ i तथा j दो मूक सूचकांक है।
निर्देशांक रूपान्तरण (COORDINATE TRANSFORMATION )
(i) रैखिक रूपान्तरण (Linear transformation) सामान्यतः कार्तीय निर्देशांक तंत्र के निर्देशांक (x, y, z) को प्रदिश संकेतन पद्धति में (x,x, (x) से प्रदर्शित करते हैं।
इसी प्रकार दूसरे कार्तीय निर्देशांक तंत्र के निर्देशांक (x, y, z’ ) को प्रदिश संकेतन पद्धति में (x1,x2 ,x 3 ) से प्रदर्शित करते हैं।
यदि ये निर्देशांक रैखिक समीकरणों द्वारा सम्बन्धित हों तो इन्हें रैखिक रूपान्तरण कहते हैं।
इन समीकरणों को सारणिक रूप में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है।
सारणिक [a] रूपान्तरण सारणिक कहलाता है। यह निर्देशांकों को एक निर्देशांक तंत्र से दूसरे निर्देशांक तंत्र में परिवर्तित कर देता है।
प्रदिश संकेतन पद्धति में समीकरण (3) निम्न प्रकार लिखा जा सकता है।
यहाँ a रूपान्तरण सारणिक aji में iवीं पंक्ति तथा jवीं स्तम्भ में स्थित अवयव है। समीकरण (4) में सूचकांक j, a तथा xj दोनों में है इसलिए यह मूक सूचकांक कहलाता है और संकलन इसी सूचकांक पर होता है। सूचकांक । केवल एक बार आता है इसलिये यह मुक्त सूचकांक कहलाता है। यदि हम आइंस्टीन संकलन परिपाटी का उपयोग करे तो समीकरण (4) को निम्न प्रकार लिख सकते हैं।
(ii) व्युत्क्रमण रैखिक रूपान्तरण ( Inverse linear transformation)
यदि सारणिक [b] इस प्रकार है कि इसके अवयव निम्न समीकरण को संतुष्ट करते हैं अर्थात्
तो यह रूपान्तरण को व्युत्क्रमित करने में उपयोग में लाया जा सकता है।
समीकरण (5) को bk से गुणा करने पर,
समीकरण (6) का उपयोग करने पर,
यह समीकरण (7) समीकरण (5) का व्युत्क्रम है इसलिये यह रूपान्तरण व्युत्क्रमण रूपान्तरण कहलाता है। सारणिक [b], जिसका अवयव bij है सारणिक [a] का व्युत्क्रम होता है। इस प्रकार
(iii) फलनिक रूपान्तरण (Functional transformation) n-विमीय आकाश में एक निर्देश तंत्र से दूसरे निर्देश तंत्र में निर्देशांकों का व्यापक रूपान्तरण फलनिक रूपान्तरण कहलाता है। माना दो निर्देशांक तंत्रों में एक ही बिन्दु के निर्देशांक क्रमशः (x1,x2,x3) तथा ( x1, x2, x3 ) है। रैखिक रूपान्तरण से निर्देशांक (x1,x2,x3) निर्देशांको (x1, x2, x3 ) के फलन होंगे। अतः
अतःx1′ निर्देशांक का मान निर्देशांकों (x1, x2, x3 ) के अद्वितीय समुच्चय से सम्बन्धित होता है।
यदि आकाश को n-विमीय आकाश में विस्तृत किया जाये तो बिन्दु के निर्देशांक n राशियों (x1,x2, x 3 …xn) का समुच्चय होगा। समीकरण ( 8 ) को n – विमीय आकाश के लिये लिखा
जा सकता है-
(iv) द्विविमीय आकाश में घूर्णन रूपान्तरण (Rotational transformation in two dimensional space)
माना निर्देश तंत्र S में किसी बिन्दु P के निर्देशांक x, y, वz हैं।
x = PB = OA तथा y = PA = OB ……..(1)
दूसरा निर्देश तंत्र S’, जो निर्देश तंत्र 5 के सापेक्ष 6 कोण से इस तरह झुका है कि मूल बिन्दु O तथा Z-अक्ष दोनों निर्देशांक तंत्रों में संपाती रहें जैसा कि चित्र (2.3-1) में दर्शाया गया है। माना निर्देश तंत्र S’ में उसी बिन्दु P के निर्देशांक x’, y a z’ है। अत:
x’ = PD = OC तथा y’ = PC = OD
Z तथा Z’ अक्ष सम्पाती है, इसलिए z = z
अब एक लम्ब AF रेखा PD पर डालते हैं,
समकोण त्रिभुज OAE में,
प्रदिश संकेतन पद्धति में इन समीकरणों को लिखने पर
प्रदिश रूप में भी ये रूपान्तण समीकरण लिख सकते हैं,
(v) त्रिविमीय रूपान्तण (Three dimensional transformations) यदि निर्देशांक तंत्र S’ के सभी तीनों अक्ष झुके हों तो समीकरण (5) की सहायता से त्रिविमीय निर्देशांक तंत्र में रूपान्तरण समीकरण निम्न प्रकार लिख सकते हैं।
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