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joule thomson effect thermodynamics in hindi coefficient जूल थॉमसन प्रभाव क्या है गुणांक

जूल थॉमसन प्रभाव क्या है गुणांक किसे कहते हैं  joule thomson effect thermodynamics in hindi coefficient ? 

जूल थामसन प्रभाव (Joule Thomson Effect)

रुद्धोष्म अवस्था में यदि गैसों को एक संरध डाट (porous plug) से होकर उच्च दाब से निर्वात या निम्न दाब की ओर प्रवाहित किया जाता है तो गैस के ताप में कमी हो जाती है। यह प्रभाव जूल थॉम्सन प्रभाव या शीतलन प्रभाव कहलाता है। गैस के ताप में यह कमी संरध्र डाट के दोनों ओर दाब में अन्तर के समानुपाती होती है।

T = Ρ

H2 तथा He गैस यह प्रभाव निम्न ताप (-80°C से कम H2 तथा – 240°C से कम He) पर ही प्रदर्शित करती है।

ताप में यह कमी गैस के अणुओं की गतिज ऊर्जा में कमी होने के कारण होती हैं उच्च दाब पर गैस के अणुओं के बीच वान्डरवाल आकर्षण बल होते हैं। जब गैस का निर्वात या निम्न दाब पर प्रसार किया जाता है तो कुछ ऊर्जा इन वान्डरवाल बलों को समाप्त करने में व्यय होती है। इस प्रकार गैस अणुओं की गतिज ऊर्जा में कमी हो जाती है और शीतलन प्रभाव उत्पन्न होता है।

आदर्श गैसों में वान्डरवाल बल नगण्य होते हैं अतः आदर्श गैसों के प्रसारण में जूल- टॉमसन प्रभाव शून्य होता है।

जून – थॉम्सन प्रयोग (Joule Thomson Experiment)-

ताप अवरोधी पदार्थ से बनी एक नलिका SS’ है जिसके मध्य भाग में एक सरन्ध्र झिल्ली या सरन्ध्र डाट A लगा हुआ है। A के दोनों ओर भारहीन घर्षणहीन पिस्टन X तथा Y लगे हैं। सरन्ध्र डॉट के दोनों ओर दो सुग्राही थर्मामीटर लगे हैं। (चित्र 1.7)। पूर्ण उपकरण को ऊष्मा अवरोधी अवस्था में रखा जाता है कि बाहर से ऊष्मा का विनिमय न हो ।

बांयी ओर के पिस्टन X द्वारा दाब लगाकर गैस को सरंध्र डॉट A से होकर प्रवाहित किया जाता है, अर्थात दॉयी ओर गैस का प्रसार होता है तथा ताप में कमी होती है। इस प्रभाव की ऊष्मागतिक व्याख्या निम्न प्रकार से की जाती है।

माना कि एक गैस जिसका आयतन व दाब क्रमश: V1 तथा P1 है सरन्ध्र डॉट तथा पिस्टन X के बीच भरी है। इस गैस को धीरे धीरे पिस्टन X द्वारा संरन्ध्र डॉट से होकर प्रवाहित किया जाता है। पिस्टन Y को बाहर की ओर सरका कर गैस का आयतन V2 तथा दाब P2 तक प्रसार होने दिया जाता है।

चूंकि तंत्र बाहर से ऊष्मा का विनिमय नहीं करता है अर्थात् प्रसारण रूद्धोष्म प्रक्रम से किया गया है (q= 0) | अतः उपरोक्त कार्य में तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा व्यय (खर्च) होगी। परिणामस्वरूप तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा मे कमी होगी। यदि E, तथा E, तंत्र की दोनों अवस्थाओं में ऊर्जा हों तो ऊर्जा में कमी (E2-E1) होगी। ऊष्मागतिकी के प्रथम नियमानुसार

उपरोक्त व्यंजक से यह स्पष्ट है कि वास्तविक गैस के रूद्धोष्म प्रसार होने पर तंत्र की एन्यैल्पी स्थिर अर्थात् अपरिवर्तित रहती है न कि आन्तरिक ऊर्जा ।

जूल थामसन गुणांक (Joule Thomson oefficient)

किसी तंत्र की एन्थैल्पी उसके ताप व दाब का फलन है। अतःयदि किसी गैस के प्रसारण से उसके ताप में कमी dT तथा दाब में कमी dP हो तो एन्थैल्पी में हुआ परिवर्तन निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

यहाँ  स्थिर दाब पर ताप के साथ एन्थैल्पी में परिवर्तन की दर है तथा स्थिर  ताप पर दाब के साथ एन्थेल्पी में परिवर्तन की दर है हम जानते हैं कि

रन्तु जूल थामसन प्रयोग के अनुसार प्रसारण में एन्थैल्पी स्थिर रहती है अतः dH = 0 ( समीकरण (54) से)

स्थिर एन्यैल्पी पर दाब के साथ ताप में परिवर्तन की दरजूल थॉम्सन गुणांक Η कहलाता है। इसे ujt द्वारा व्यक्त किया जाता है।

यदि ujt के मान को दाब की परास में स्थिर मान लिया जाये तो समीकरण (55) को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।

यहाँ T प्रसार द्वारा ताप में हुई कमी तथा P दाब में अन्तर है। T का मान प्रयोग द्वारा चित्र में दिखाए थर्मामीटर द्वारा ताप माप कर किया जाता है। सरन्ध्र पात्र के दोनों ओर के दाब दाब मापक (Pressure gauge) द्वारा माप कर AP का मान ज्ञात किया जाता है। यदि गैस की स्थिर दाब पर ऊष्मा धारिता (Cp) का मान ज्ञात हो तो  का प्रायोगिक मान ज्ञात किया जा सकता है।

 आदर्श गैस के लिये जूल थॉम्सन गुणांक (Joule Thomson Coefficient for Ideal Gas)- 

समीकरण (57) द्वारा

इस प्रकार समीकरण (59) में उपरोक्त शर्ते लगाने पर

uJT = 0 …(60)

अतः आदर्श गैस के लिये जूल-थॉम्सन गुणांक का मान शून्य होता है। आदर्श गैस में वान्डरवाल्स बल नगण्य होते हैं, अतः आदर्श गैसों के प्रसारण में जूल थॉम्सन प्रभाव शून्य होता है। ऐसा पाया भी गया है। जैसे-जैसे गैस आदर्श व्यवहार की ओर अग्रसर होती है, जूल थॉम्सन प्रभाव कम होता जाता है।

 वास्तविक गैसों के लिये जूल थाम्सन गुणांक एवं व्युत्क्रम ताप (Joule Thomson Coefficient for Real Gases and Inversion Temperature)

सामान्य या कम दाब तथा कमरे के ताप पर H2 तथा He को छोड़कर अन्य सभी गैसों के जूल- थॉम्सन गुणांक के मान धनात्मक होते हैं। अर्थात् गैसों के सरन्ध्र डाट प्रसार में ताप घटता है।

बहुत उच्च तापों पर सभी गैसों के जूल- थॉम्सन गुणांक ऋणात्मक होते हैं। अर्थात् बहुत उच्च ताप पर गैसों के सरन्ध्र डाट प्रसार में ताप बढ़ता है।

अतः प्रत्येक गैस के लिये एक ऐसा ताप अवश्य होता है, जिस पर जूल थॉम्सन गुणांक uJT) का चिन्ह बदलता है। इस ताप को व्युत्क्रम ताप (Inversion temperature) कहते हैं। इस ताप पर uJT का मान शून्य होता है।

वास्तविक गैसों के लिये जूल थॉम्सन गुणांक uJT की गणना (Calculation of ujt for real gases)-वास्तविक गैसों के लिये जूल थॉम्सन गुणांक की गणना वान्डरवाल समीकरण द्वारा की जाती है। एक मोल गैस के लिये वान्डरवाल समीकरण निम्न प्रकार से व्यक्त की जाती है।

चूंकि वान्डरवाल स्थिरांक a तथा b के मान बहुत कम होते है, अतः ab/V2के मान की उपेक्षा की जा सकती है

एक मोल गैस के लिये PV= RT (लगभग) माना जा सकता है,

समीकरण (62) का ताप के सन्दर्भ में स्थिर ताप पर अवकलन करने पर

निम्नलिखित ज्ञात ऊष्मा गतिक व्यंजक का उपयोग समीकरण (55) में करने पर

इस समीकरण के द्वारा Cp, a, b तथा T के मान ज्ञात होने पर वास्तविक गैसों के uJT का मान ज्ञा किया जा सकता है। उपरोक्त समीकरण से यह स्पष्ट है कि यदि 2a /RT > b तो RT uJT का मान धनात्मक होगा। और यदि 2a/RT< b तो Ujt का मान ऋणात्मक होगा। समीकरण ( 68 ) में a, b तथा R स्थिरांक है। अतः ujT का मान एवं चिन्ह उस ताप पर निर्भर करता है जिस पर प्रसार किया जाता है। अर्थात् ujt का मान केवल ताप पर ही निर्भर करता है। वह ताप जिस पर uJT अपना चिन्ह बदलता है अर्थात् uJT का मान शून्य हो वह ताप व्युत्क्रम ताप (Inversion Temperature) होता है।

यदि T = Ti हो तो

Ti = 2a/Rb

समीकरण (69) से स्पष्ट है कि किसी भी गैस का व्युत्क्रम ताप उस गैस के वाण्डरवाल स्थिरांकों पर निर्भर करता है।

किसी गैस के a, b तथा R के मान ज्ञात हो तो Ti का मान ज्ञात किया जा सकता है।

हाइड्रोजन व निष्क्रिय गैस जूल थॉम्सन प्रभाव के लिए अपवाद है, क्योंकि ये सामान्य ताप पर प्रसारण में ठण्डी होने की अपेक्षा गर्म हो जाती है। परन्तु निम्न ताप पर ये गैसे भी सामान्य जूल-थॉम्स प्रभाव प्रदर्शित करती है। यह पाया जाता है कि प्रत्येक गैस एक निश्चित ताप से निम्न ताप पर ही प्रसारित करने पर शीतलन प्रदर्शित करती हैं इस ताप को व्युत्क्रम ताप कहते हैं।

व्युत्क्रम ताप से अधिक ताप प्रसारित करने पर गैसें गर्म हो जाती है। व्युत्क्रम ताप पर प्रसारित होने पर गैसें न तो शीतलन प्रदर्शित करती है और न ही तापन। हाइड्रोजन व हीलियम के लिए व्युत्क्रम ताप क्रमश: – 80° से. तथा 240° से. है। प्रसरण से शीतलन होने पर जूल- थॉम्सन प्रभाव धनात्मक तथा गर्म होने पर जूल-थॉम्सन प्रभाव ऋणात्मक कहा जाता है। व्युत्क्रम ताप गैस के दाब पर भी निर्भर करता है। व्युत्क्रम से नीचे तापों पर ही गैसों का प्रसारण कर जूल – थॉम्सन प्रभाव से गैसों को ठण्डा किया जाता है तथा अतंतः द्रवी भूत किया जा सकता है। क्लाइड, हेम्पसन तथा लिन्डे की विधि यों द्वारा गैसों के द्रवीकरण में जूल- थॉम्सन प्रभाव का ही उपयोग किया गया है।

व्यक्क्रम ताप बॉयल ताप का लगभग दुगुना होता है।

Ti = 2TB=2 (a /Rb)

बॉयल ताप वह न्यूनतम ताप है जिससे अधिक ताप पर गैस के PV का मान दाब के बढ़ने के साथ सदैव बढ़ता रहता है।

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