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feedback amplifiers notes in hindi पुनर्निवेशी प्रवर्धक किसे कहते हैं ऋणात्मक पुनर्निवेशन की परिभाषा

पुनर्निवेशी प्रवर्धक किसे कहते हैं ऋणात्मक पुनर्निवेशन की परिभाषा feedback amplifiers notes in hindi ?

अध्याय – 5 पुनर्निवेश तथा पुनर्निवेशी प्रवर्धक (Feed Back and Feed Back Amplifiers)

 पुनर्निवेश (FEED BACK)

किसी विद्युत नेटवर्क (network) के निर्गम (output ) से उसके निवेश (input) में ऊर्जा के स्थानान्तरण को पुनर्निवेश (feed back) कहते हैं। जब किसी प्रवर्धक ( amplifier) के निर्गम से कुछ अंश या सम्पूर्ण, वोल्टता या धारा के रूप में लेकर उसके निवेश में पुनर्निवेश कर दिया जाता है तो इससे प्रवर्धक की कार्य क्षमता परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार के प्रवर्धक को पुनर्निवेशी प्रवर्धक (feed back amplifier) कहते हैं। पुनर्निवेश दो प्रकार के होते हैं-

(i) धनात्मक या पुनरुत्पादक (Positive or regenerative) पुनर्निवेश- जब प्रवर्धक के निवेशी परिपथ में मूल संकेत (signal) तथा पुनर्निवेश संकेत एक ही कला में होते हैं तो निविष्ट संकेत के परिमाण में वृद्धि हो जाती है। इससे प्रवर्धक की लब्धि (gain) बढ़ जाती है। इस प्रकार के पुनर्निवेश को धनात्मक पुनर्निवेश कहते हैं। धनात्मक पुनर्निवेश से प्रवर्धक की लब्धि में वृद्धि होने के कारण इसका उपयोग साधारणतया दोलित्र ( oscillators) में किया जाता है।

(ii) ऋणात्मक या विपोषी (Negative or degenerative ) पुनर्निवेश – जब प्रवर्धक के निवेशी परिपथ में संकेत तथा पुनर्निवेश संकेत विपरीत कला में होते हैं तो इसमें निवेशी संकेत के परिमाण में कमी होती है। इस प्रकार पुनर्निवेश को ऋणात्मक पुनर्निवेश कहते हैं। यद्यपि ऋणात्मक पुनर्निवेश से प्रवर्धक की लब्धि का हास (decrease) होता है परन्तु इससे प्रवर्धक में विरूपण (distortion) में कमी, लब्धि के स्थायित्व ( stability) में सुधार, आवृत्ति अनुक्रिया (frequency response) अपेक्षाकृत उत्तम तथा निवेशी एवं निर्गम प्रतिबाधाओं में परिवर्तन हो जाता है।

 पुनर्निवेश का सिद्धान्त (PRINCIPLE OF FEED BACK)

पुनर्निवेशन के सिद्धान्त को चित्र (5.2-1) में दर्शाया गया है। इसमें प्रवर्धक (amplifier) को एक बॉक्स के रूप में दिखाया गया है। इसमें प्रवर्धक के परिपथ के बारे में जानने की आवश्यकता नहीं होती VV है क्योंकि पुनर्निवेश में प्रवर्धक की लब्धि (gain) A का ही उपयोग करते हैं। इसके निर्गत वोल्टता के निश्चित अंश को या सम्पूर्ण भाग को

एक अन्य परिपथ द्वारा जिसे चित्र में आयताकार बॉक्स से दिखाया गया है, प्रवर्धक के निवेश पर पुनः निविष्ट किया जाता है। निर्गत वोल्टता के इस अंश को, जिसे B द्वारा व्यक्त किया जाता है, पुनर्निवेश अनुपात (feed back ratio) या प्रतीप अन्तरण अनुपात (reverse transfer ratio) कहते हैं तथा नेटवर्क को नेटवर्क या पुनर्निवेश जाल (feed back network) कहते हैं। यह पुनर्निवेशी नेटवर्क सामान्यतः निष्क्रिय अवयव (passive elements) जैसे प्रतिरोध, धारिता तथा प्रेरकत्व आदि से बना होता है परन्तु इसमें सक्रिय (active) अवयव जैसे ट्रॉजिस्टर भी हो सकते हैं। आदर्श स्थिति में B-नेटवर्क की विशेषताएँ होनी चाहिए।

  1. B नेटवर्क के कारण प्रवर्धक की लब्धि (gain) में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  2. निविष्ट संकेत वोल्टता केवल प्रवर्धक में से संचरित होनी चाहिए ।

(3) पुनर्निवेश वोल्टता केवल B-नेटवर्क में से संचरित होनी चाहिए।

(4) B-नेटवर्क के कारण प्रवर्धक के निर्गम या निवेशी परिपथ पर कोई अतिरिक्त लोड नहीं लगना चाहिए। जब पुनर्निवेश वोल्टता Vf को प्रवर्धक के निवेश पर अध्यारोपित किया जाता है तो पुनर्निवेश वोल्टता Vi संकेत वोल्टता V; में या तो जुड़ता है या घटता है। इन दोनों वोल्टताओं के अन्तर को त्रुटि संकेत ( error signal) भी कहते है।

यदि प्रवर्धक के निवेश पर परिणामी वोल्टता

Vif = Vi – Vf

हो तो यह प्रवर्धक ऋणात्मक पुनर्निवेश प्रवर्धक कहलाता है और यदि

Vif = Vi + Vf ……………………(1)

हो तो प्रवर्धक धनात्मक पुनर्निवेश प्रवर्धक कहलाता है।

व्यापक रूप से  Vif = (Vi + Vf)

जहाँ Vf= -ve ऋणात्मक पुनर्निवेश तथा Vf = +ve धनात्मक पुनर्निवेश के लिए हैं।

यदि मूल प्रवर्धक की लब्धि A, निर्गत वोल्टता V तथा निविष्ट वोल्टता Vo है तो पुनर्निवेश नहीं होने पर प्रवर्धक की लब्धि

A = Vo/ V1

पुनर्निवेश होने पर यदि परिणामी निविष्ट वोल्टता Vif है तथा निर्गत वोल्टता Vo है तो A = Vo/Vif प्रवर्धक की मूल लब्धि पुनर्निवेश से प्रभावित नहीं होती है। )

A को प्रवर्धक की आन्तरिक लब्धि (internal gain) भी कहते हैं।

Vif = Vo/A ……………………(2)

माना निर्गम वोल्टता का कुछ अंश B पुनर्निवेश नेटवर्क द्वारा निविष्ट किया जाता है।

पुनर्निवेश वोल्टता Vf = BVo …………………(3)

समीकरण ( 2 ) व (3) के उपयोग से

अतः मूल प्रवर्धक व पुनर्निवेशी परिपथ को एक निकाय (प्रवर्धक) माने तो पुनर्निवेश के साथ प्रवर्धक की

परिणामी लब्धि

यह समीकरण व्यापक पुनर्निवेश समीकरण (general feed back equation) कहलाता है और धारा लब्ध (current gain) के लिए भी यथार्थ रहता है।

गुणक (BA) को परिपथ की पाश लब्धि (loop gain) कहते हैं। यदि परिपथ से B-नेटवर्क हटा दिया जाय तो इस स्थिति में लब्धि A के बराबर हो जाती है। अतः लब्धि Af को बन्द पाश लब्धि (closed loop gain) तथा A खुला पाश लब्धि (open loop gain) कहते हैं। एक तथा पाश लब्धि का अन्तर अर्थात् (1-AB) प्रतिगमन · (return difference) कहलाता है।

परिपथ में A तथा B धनात्मक या ऋणात्मक, वास्तविक या समिश्र (complex) हो सकते हैं, इसलिए

(i) यदि |1 – Aß|> 1 है अर्थात् AB ऋणात्मक है तो |Af| <|A|

यह पुनर्निवेश ऋणात्मक पुनर्निवेश कहलाता है।

(ii) यदि | 1 – AB| = 0 है अर्थात् AB = 1 तो | Af] = ∞

इस स्थिति में प्रवर्धक से बिना निविष्ट वोल्टता प्रयुक्त किये लगातार निर्गत वोल्टता प्राप्त की जा सकती है। यह परिस्थिति दोलित्र ( oscillator) परिपथ में उपयोग में लाई जाती है।

(iii) यदि | 1 – AB| < 1 है अर्थात् AB धनात्मक है तो |Af] > |A|

यह पुनर्निवेश धनात्मक पुनर्निवेश कहलाता है।

किसी प्रवर्धक में प्रयुक्त पुनर्निवेश की मात्रा को बिना पुनर्निवेश लब्धि तथा पुनर्निवेश के साथ लब्धि के अनुपात द्वारा डेसीबल में व्यक्त किया जा सकता है

 ऋणात्मक पुनर्निवेशन द्वारा लब्धि का स्थायीकरण (STABILIZATION OF GAIN BY NEGATIVE FEED BACK)

किसी प्रवर्धक की लब्धि ताप, शक्ति प्रदायक (power supply) की वोल्टता व ट्रॉजिस्टरों के प्राचलों के परिवर्तन से तथा प्रयुक्त ट्रॉजिस्टर के स्थान पर अन्य तुल्य ट्रॉजिस्टर लगाने से प्रभावित होती है। इन प्रभावों का अध्ययन प्रवर्धक की लब्धि के स्थायित्व गुणांक ( stability factor ) अर्थात् प्रवर्धक की लब्धि का स्थायित्व लब्धि के आनुपातिक परिवर्तन द्वारा ज्ञात करते हैं। अत:

बिना पुनर्निवेशन के प्रवर्धक का स्थायित्व गुणांक S = dA/A……..(1)

तथा पुनर्निवेशन सहित प्रवर्धक का स्थायित्व गुणांक Sf = dAf/Af……………………….(2)

पुनर्निवेशन सहित प्रवर्धक की लब्धि

प्रवर्धक के स्थायीकरण के लिये आवश्यक है कि स्थायित्व गुणांक का मान कम से कम होना चाहिए। चौक पुनर्निवेशन रहित प्रवर्धक में ट्रॉजिस्टर के प्राचलों में तापीय परिवर्तन के कारण इसका स्थायित्व गुणांक कम नहीं किया जा सकता है परन्तु पुनर्निवेशन सहित प्रवर्धक में (1 AB) का मान अधिक से अधिक कर Sf का मान कम किया जा सकता है। इसके लिये दो सम्भावनायें हैं।

(1) जब पुनर्निवेशन ऋणात्मक हो, AB ऋणात्मक हो, क्योंकि ऋणात्मक पुनर्निवेशन के लिए (1-AB) > 1 होता है।

(2) जब पुनर्निवेशन रहित प्रवर्धक की लब्धि अत्यधिक हो । उदाहरण के लिए सक्रियात्मक प्रवर्धक (OPAMP) की लब्धि A अत्यधिक होती है जिससे AB >> 1 होता है तथा समीकरण (3) से ऋणात्मक पुनर्निवेश के लिये

Af = 1/B

अतः जब A अत्यधिक होता है व पुनर्निवेशन ऋणात्मक होता है तो प्रवर्धक की परिणामी लब्धि केवल पुनर्निवेश गुणांक B पर निर्भर करती है, उसकी आन्तरिक लब्धि A पर नहीं ।

इस प्रकार ऋणात्मक पुनर्निवेश से प्रवर्धक की लब्धि (gain) में हानि होती है परन्तु उसके स्थायित्व में सुधार होता है।

 ऋणात्मक पुनर्निवेशन द्वारा अरेखीय विरूपण एवं रव का न्यूनीकरण (REDUCTION OF NONLINEAR DISTORTION AND NOISE BY NEGATIVE FEED BACK)

किसी प्रवर्धक के निवेश पर यदि अधिक आयाम का संकेत प्रयुक्त किया जाय तो प्रवर्धक के अन्तरण अभिलाक्षणिक (transfer characteristic) के अरेखीय होने के कारण निर्गत संकेत विकृत (distorted) प्राप्त होता है। यह विरूपण निर्गत संकेत में मूल आवृत्ति के संकेत के साथ संनादियों की उपस्थिति के कारण होता है। इसके अतिरिक्त विरूपण का एक अन्य कारण प्रवर्धक द्वारा उत्पन्न रव (noise) है। रव (noise) का तात्पर्य है निर्गत धारा में अनियमित ( यादृच्छिक random) परिवर्तन ( विचरण) । ये अनियमित परिवर्तन आवेश वाहकों की ताप जनित यादृच्छिक पति, संघट्ट व विसरण आदि के कारण होते हैं। प्रवर्धक द्वारा उत्पन्न अरेखीय विरूपण या रव को Vo वोल्टता के एक जनित्र से निरूपित किया जा सकता है जो प्रवर्धक के निर्गम पर श्रेणी क्रम में जुड़ा हुआ है।

बिना पुनर्निवेश के प्रवर्धक में यदि निविष्ट संकेत वोल्टता V हो व निर्गत वोल्टता V हो तो

Vo = AVi + VD ………………….(1)

अर्थात् अपरूपण रहित निर्गत संकेत वोल्टता Vos = AVi है |

पुनर्निवेश के साथ ( मान लीजिये) इस प्रकार निविष्ट संकेत वोल्टता समायोजित करे कि निर्गत वोल्टता पूर्व मान Vos के बराबर रहे। इस नियत निर्गत संकेत वोल्टता के लिये निश्चित ही निविष्ट संकेत वोल्टता Vi से भिन्न होगी, मान लीजिये यह संकेत वोल्टता V है। इस स्थिति में चित्र 5.4-2 के अनुसार

इस प्रकार पुनर्निवेश के साथ निविष्ट संकेत वोल्टता Vi को यदि ( 1 – AB)Vi के तुल्य लें तो निर्गत संकेत  वोल्टता समान रहेगी परन्तु विरूपण वोल्टता समी. (2) के अनुसार VD से परिवर्तित होकर VD = VD/(1-AB)  हो जायेगी तथा ऋणात्मक पुनर्निवेश (AB = – ve) के लिए VD < VD |

 ऋणात्मक पुनर्निवेश द्वारा आवृत्ति अनुक्रिया में सुधार, बैंड चौड़ाई में वृद्धि  (IMPROVEMENT OF FREQUENCY RESPONSE WITH NEGATIVE FEED BACK, INCREASE IN BAND WIDTH) 

पिछले अध्याय में ज्ञात किया था कि किसी एकल चरण ( single stage) R – C युग्मित प्रवर्धक की निम्न आवृत्तियों पर धारा या वोल्टता लब्धि

तथा उच्च आवृत्तियों पर धारा लब्धि

यहाँ मध्य आवृत्ति पर धारा लब्धि Am है तथा fi एवं fh क्रमश: निम्न तथा उच्च अर्ध शक्ति आवृत्तियाँ हैं । हम जानते हैं कि प्रत्येक संकेत – आवृत्ति के लिए पुनर्निवेशन सहित प्रवर्धक ( amplifier with feed back) की लब्धि

B यहाँ B पुनर्निवेशन अनुपात (feed back ratio) है।

निम्न आवृत्तियों पर पुनर्निवेश सहित प्रवर्धक की लब्धि

समीकरण (4) में समीकरण (1) से Af का मान देखने पर

यहाँ पुनर्निवेश सहित प्रवर्धक की मध्य आवृत्ति परास के लिये लब्धि

तथा निम्न अर्ध-शक्ति आवृत्ति

ऋणात्मक पुनर्निवेश में (1 – BAm) > 1 होता है इसलिए fif < fi अर्थात् बन्द पाश प्रवर्धक (closed loop amplifier) के लिए निम्न अर्ध शक्ति आवृत्ति f का मान खुले पाश प्रवर्धक ( open loop amplifier) या पुनर्निवेशन रहित प्रवर्धक ( amplifier without feed back) में निम्न अर्ध-शक्ति आवृत्ति fi के मान से कम होती है।

इसी प्रकार सिद्ध कर सकते हैं कि उच्च आवृत्ति पर खुले पाश प्रवर्धक की लब्धि

पुनर्निवेश करने पर संशोधित होकर लब्धि

यहाँ fhf = fh (1 – BAm) है। ऋणात्मक पुनर्निवेश के लिए ( 1 – BAm) का मान धनात्मक व 1 से अधिक हो  है जिसके कारण fhf > fh हो जाता है। अर्थात् बन्द पाश प्रवर्धक में उच्च अर्ध-शक्ति आवृत्ति fhf का मान खुले पाश प्रवर्धक परिपथ से प्राप्त आवृत्ति fh से अधिक होता है। पुनर्निवेशन सहित व पुनर्निवेशन रहित प्रवर्धक के लिए इन दोनों स्थितियों पर अनुक्रिया वक्र चित्र (5.5-1) में दिखाया गया है। चित्र से स्पष्ट है कि ऋणात्मक पुनर्निवेश के कारण प्रवर्धक की आवृत्ति अनुक्रिया वक्र की बैन्ड चौड़ाई में वृद्धि gist kh g$ (fhf – fif) > (fh fi) | इस प्रकार आवृत्ति की अधिक परास के लिये नियत लब्धि प्राप्त होती है।

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