WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

CASCADE AMPLIFIER in hindi बहुचरणी (सोपानी) प्रवर्धक किसे कहते हैं , परिभाषा चित्र सहित समझाइये

जानिये CASCADE AMPLIFIER in hindi बहुचरणी (सोपानी) प्रवर्धक किसे कहते हैं , परिभाषा चित्र सहित समझाइये ?

बहुचरणी (सोपानी) प्रवर्धक (CASCADE AMPLIFERS)

प्रवर्धक अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक परिपथों का मुख्य संरचना खण्ड होता है। एकल चरण प्रवर्धक प्रायोगिक इलेक्ट्रॉनिकी तंत्र के निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं होता क्योंकि प्रवर्धक से प्राप्त लाभ की एक निश्चित सीमा होती है। एक से अधिक प्रवर्धक चरणों को प्रयुक्त करके संकेतों का वोल्टता स्तर, वांछनीय स्तर तक प्राप्त किया जा सकता है। जब अधिक संख्या में प्रवर्धकों को क्रमानुसार लगाया जाता है तो यह व्यवस्था बहुचरणी प्रवर्धक (multistage amplifier) या सोपानी प्रवर्धक (cascaded amplifier) कहलाती है। इस व्यवस्था को चित्र (4.18- 1) में प्रदर्शित किया गया है।

प्रथम चरण से प्राप्त निर्गम संकेत द्वितीय चरण के लिए निवेशी संकेत का कार्य करता है। द्वितीय चरण से प्राप्त निर्गम संकेत तृतीय चरण के निवेशी संकेत के रूप में कार्य करता है तथा यही प्रक्रिया अन्तिम प्रवर्धक तक चलती है। प्रथम चरण के निवेशी टर्मिनलों के मध्य संकेत वोल्टता vs लगाने पर प्राप्त निर्गम संकेत होगा

V1 = A1vs

जहाँ A प्रथम चरण का चरण से प्राप्त निर्गम संकेत वोल्टता लाभ है। यह निर्गम संकेत द्वितीय चरण के लिए निवेशी संकेत होगा । द्वितीय

V2 =A2V1 = A1A2 Vs

इसी प्रकार n चरणों से प्राप्त निर्गम संकेत यदि vo है तो

Vo = A1A2 …..Anvs

प्रत्यक्ष युग्मन ( DIRECT COUPLING)

अनेक अनुप्रयोगों में अति अल्प आवृत्ति संकेतों (< 10 Hz) को भी प्रवर्धित करना आवश्यक होता है, जैसे ताप विद्युत युग्म (thermocouple) से प्राप्त संकेत का उपयोग भट्टी में ताप का मापन करने हेतु किया जाता है। अत्यल्प वोल्टता संकेत को प्रेक्षित करने के लिए इसे प्रवर्धित करना आवश्यक होता है। ऐसे संकेतों को प्रवर्धित करने के लिए प्रत्यक्ष युग्मन (direct coupling) विधि प्रयुक्त की जाती है। वह विधि जिसमें प्रवर्धक के एक चरण से प्राप्त संकेतों को अगले चरण में सीधे ही जोड़ा जाता है, प्रत्यक्ष युग्मन (direct coupling) विधि कहलाती है।

जब निवेशी संकेत वोल्टता की आवृत्ति 10 हर्ट्ज से कम होती है, युग्मन संधारित्र व उपपथ संधारित्रों का प्रयोग नहीं किया जाता है। निम्न आवृत्ति परास में ये संधारित्र इन संकेतों के लिए उच्च प्रतिबाधा उत्पन्न करते हैं।

चित्र (4.19-1) दो चरणों वाले प्रत्यक्ष युग्मित प्रवर्धक को प्रदर्शित करता है। अतः प्रथम चरण से प्राप्त ac तथा dc दोनों संकेत द्वितीय चरण में पहुँचते हैं। प्रथम चरण के संग्राहक पर प्राप्त dc वोल्टता द्वितीय चरण के आधार  पहुँचती है। द्वितीय चरण के बायसीकरण परिपथ को बनाते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए।

प्रत्यक्ष युग्मन विधि की एक मुख्य कमी है कि ट्रांजिस्टर प्राचल VBE व B ताप के साथ परिवर्तित होते हैं जिसके कारण संग्राहक धारा वं वोल्टता परिवर्तित होती है। प्रत्यक्ष युग्मन के कारण यह वोल्टता परिवर्तन निर्गम पर प्राप्त होता है। निर्गम वोल्टता में यह अवांछित परिवर्तन जिसका निवेशी वोल्टता से कोई सम्बन्ध नहीं है, अपवाह (drift) कहलाता है। इसके कारण निर्गत वोल्टता का गलत विश्लेषण हो जाता है। अपवाह (drift) का प्रभाव न्यूनतम करने हेतु (npn) व (pnp) दोनों प्रकार के ट्रॉजिस्टरों का संयोजन किया जाता है।

इस संयोजन (अर्थात् npn के बाद pnp) में जब ताप बढ़ता है तब ट्रांजिस्टरों में संग्राहक धारा में वृद्धि की दिश विपरीत होती है। अतः एक ट्रांजिस्टर में परिवर्तन दूसरे ट्रांजिस्टर में होने वाले परिवर्तनों को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है । इस प्रकार का एक प्रत्यक्ष युग्मित प्रवर्धक चित्र (4.19-2) में प्रदर्शित है।

 RC युग्मित ट्रांजिस्टर प्रवर्धक (R-C COUPLED TRANSISTOR AMPLIFER)

बहुचरणी प्रवर्धकों (multistage amplifiers or cascaded amplifiers) में एक चरण को दूसरे चरण से किसी युग्मन लोड (coupling load) या युग्मन जाल (coupling network) की सहायता से युग्मित किया जाता है। वह ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक जिसमें युग्मन लोड या युग्मन जाल के रूप में प्रतिरोध- संधारित्र जाल ( resistance capacitance network or R – C network) प्रयोग में लाया जाता है उसे R-C युग्मित ट्रांजिस्टर प्रवर्धक (R-C coupled transistor amplifier) कहते हैं। यह युग्मन जाल सबसे अधिक प्रचलित है क्योंकि सस्ता होने के साथ-साथ आवृत्ति के विस्तृत परास के लिए अत्यधिक तदरूपता (fidelity) प्रदान करता है। इसे साधारणतया वोल्न प्रवर्धन (voltage amplification) के लिए उपयोग में लाया जाता है।

(a) R – C युग्मित ट्रांजिस्टर प्रवर्धक का परिपथ-

चित्र (4.20 -1 ) में R-C युग्मित उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक के दो चरण के परिपथ को प्रदर्शित किया गया है।

परिपथ में T तथा T2 क्रमश: प्रथम तथा द्वितीय चरण में उपयोग में लाये गये संधि ट्रॉजिस्टर है। R लोड प्रतिरोध हैं तथा Cc युग्मन धारिता है। इन दोनों की सहायता से प्रथम चरण के निर्गम (output) को द्वितीय चरण से युग्मित किया जाता है। संधारित्र Cc प्रथम चरण के निर्गम में से प्रत्यावर्ती (ac) भाग को पारगमित करता है तथा उसके दिष्ट (dc) भाग को द्वितीय चरण के आधार पहुँचने से रोकता है। इसलिये इसको अवरोधी संधारित्र (blocking condenser ) भी कहते हैं। प्रतिरोध R1 R2 तथा RE, RL के साथ ट्रॉजिस्टर के लिये उचित बायस प्रदान करते हैं। प्रतिरोध RE को पार्श्वपथित करने वाला संधारित्र CE उपपथ संधारित्र (by pass condensor) है।

“CE की उपस्थिति से संकेत के लिये RE के कारण ऋणात्मक पुनर्निवेश नगण्य हो जाता है। सामान्यतः प्रवर्धक के मूल्य को कम रखने के लिये CE जो उच्च मान की धारिता का संधारित्र होता है, प्रयुक्त नहीं किया जाता। इसमें वोल्टता लब्धि में हानि होती है जिसकी पूर्ति बहुचरणी प्रवर्धक में चरणों की संख्या बड़ा कर करली जाती है।

(b) R-C युग्मित ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक की एकल चरण का आवृत्ति अनुक्रिया विश्लेषण (Frequency Response of Single Stage R-C Coupled Transistor Amplifier)

एकल चरण की आवृत्ति अनुक्रिया विश्लेषण (frequency response analysis) को निम्न तीन आवृत्ति परासों (frequency ranges ) में विभाजित किया जा सकता है–

(i) निम्न आवृत्ति परास (Low frequency range)

(ii) मध्य आवृत्ति परास (Mid frequency range)

(iii) उच्च आवृत्ति परास (High frequency range) मध्य आवृत्ति परास (Mid frequency range)

मध्य आवृत्ति परास लगभग आवृत्ति 300 से 30000 आवृत्ति के बीच होता है। आवृत्तियों के इस परास में युग्मन संधारित्र Cc व उपपथीय संधारित्र CE की प्रतिबाधा Xc =1/C का मान नगण्य होता है इसलिये इन्हें निष्प्रभावी (लघुपथित) माना जा सकता है। अवांछित धारिता (stray capacitance) तथा अन्य धारितायें जो कि निवेश व निर्गम को पार्श्वपथित करती हैं उनकी प्रतिबाधा का मान इस आवृत्ति परास में अत्यधिक होने के कारण उन्हें खुले परिपथ के रूप में माना जा सकता है। यदि ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक के प्रथम चरण के परिपथ को -प्राचलों के तुल्य परिपथ के रूप में प्रदर्शित किया जाये तो उसमें प्राचल hre तथा hoc का मान अत्यल्प या नगण्य होता है इसलिये इन्हें इस परिपथ में प्रदर्शित नहीं किया गया है। मध्य आवृत्ति परास के लिये ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक के एकल चरण का प्राचल तुल्य परिपथ चित्र (4.20-2) में प्रदर्शित किया गया है। लोड RL को द्वितीय चरण का निवेश प्रतिरोध hre पार्श्वपथित करता है। प्रवर्धक के प्रथम चरण का प्रभावी लोड प्रतिरोध

अन्योन्य चालकता (transconductance)

 ……………..(5)

समीकरण (4) तथा (5) में Z का मान समीकरण (1) से रखने पर

उपर्युक्त समीकरणों (4) से (7) तक में उपस्थित ऋणात्मक (-) चिन्ह यह प्रदर्शित करता है कि निर्गत तथा । निवेशी संकेत वोल्टता के मध्य रेडियन या 180° कलान्तर होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *