WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

Common Collector Configuration in hindi bjt of transistor उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास किसे कहते हैं ?

उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास किसे कहते हैं ? Common Collector Configuration in hindi bjt of transistor ?

(C) उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास (Common Collector Configuration)—- चित्र (4.6-12) में संधि ट्रॉजिस्टर NPN तथा PNP के उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास को प्रदर्शित किया गया है। इस विन्यास में संग्राहक निवेश (input) तथा निर्गम (output) दोनों में उभयनिष्ठ होता है तथा इसे भूसम्पर्कित किया जाता है। उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास को सामान्यतया प्रतिबाधा सुमेलन (impedance matching) के लिये प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि इसके निवेश प्रतिबाधा (input impedance) का मान अधिक तथा निर्गत प्रतिबाधा ( output impedance) का मान कम होता है। जबकि उभयनिष्ठ आधार विन्यास तथा उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में इसके विपरीत होता है। इस विन्यास में निवेश आधार व भू-सम्पर्कित संग्राहक के मध्य होता है और चूंकि आधार-संग्राहक संधि पश्चदिशिक बायसित होती है निवेश प्रतिरोध अत्यधिक होता है। लोड सामान्यतः उत्सर्जक के साथ उत्सर्जक E मैं भू-टर्मिनल G के मध्य लगाया जाता है। प्रवर्धक के रूप में प्रयुक्त इस परिपथ को उत्सर्जक अनुगामी परिपथ (emitter follower circuit) भी कहते हैं। निर्गम टर्मिनलों E व G के मध्य (V; को लघुपस्थित करने पर) परिणामी प्रतिरोध समान्तर में लोड, प्रतिरोध R व ट्रॉजिस्टर का निवेश प्रतिरोध होते हैं अतः निर्गम प्रतिरोध बहुत कम होता है।

उभयनिष्ठ संग्राहक परिपथ उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ का विशेष रूप माना जा सकता है केवल अन्तर यह (9) है कि उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में लोड संग्राहक परिपथ में होता है जबकि उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास में लोड उत्सर्जक परिपथ में होता है।

इस विन्यास में निर्गम अभिलाक्षणिक IL व VEG के मध्य होते हैं जो कि उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास के निर्गम

1 व Vort के मध्य निर्गम अभिलाक्षणिकों के समान होते हैं।

क्योंकि IE ~ Ic तथा |VEc| = |VCE|

चित्र (4.6-14) में उभयनिष्ठ संग्रहक विन्यास के लिये निर्गम अभिलाक्षणिक प्रदर्शित किये गये हैं।

धारा सम्बन्ध (Current relations )

हम जानते हैं कि संधि ट्रॉजिस्टर के लिये

उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास में अनुपात IE/IB को कभी-कभी . से प्रदर्शित करते हैं तथा इसे dc धारा  (dc current gain) कहते हैं।

समीकरण (4) से यह ज्ञात होता है कि उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास में dc धारा लाभ का मान अधिकतम होत है तथा इसका मान (BdC + 1) के बराबर होता है। इस विन्यास में क्षरण धारा (leakage current) का मान उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास के लिये LcBO की कोटि का ही होता है।

 लोड लाइन की अवधारणा तथा प्रचालन बिन्दु (CONCEPT OF LOAD LINE AND OPERATING POINT) ट्रॉजिस्टर का उपयोग मुख्यत: प्रवर्धक ( amplifier) के रूप में किया जाता है। इसके लिये आवश्यक होता है कि उसके निर्गम परिपथ में एक प्रतिरोध (या प्रतिबाधा ) को प्रयुक्त किया जाये जिस पर प्राप्त वोल्टता निर्गत संकेत प्रदान करती है। निर्गम

परिपथ के इस प्रतिरोध को लोड (load) कहते हैं। लोड की उपस्थिति में ट्रॉजिस्टर के निर्गम टर्मिनलों के मध्य वोल्टता नियत नहीं रहती वरन् निर्मम धारा पर निर्भर होती है क्योंकि निर्गम परिपथ में धारा प्रवाह के कारण लोड पर वोल्टता पतन होता है। लोड की उपस्थिति में ट्रॉजिस्टर के केवल स्थैतिक लाक्षणिकों से परिपथ के व्यवहार की व्याख्या संभव नहीं होती है। इसके लिये स्थैतिक लाक्षणिक के साथ लोड लाइन (load line) की सहायता लेना आवश्यक होता है।

चित्र (4.7-1) में एक NPN उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक के मूल परिपथ को दिखाया गया है। प्रायोगिक परिप कुछ भिन्न होता है, उसमें दो बैटरी के स्थान पर एक बैटरी व बायसन व्यवस्था भी होती है। बैटरी VBB उत्सर्जक संधि को अग्रदिशिक बायस प्रदान करती है तथा प्रतिरोध RB आधार धारा को नियंत्रित करता है। बैटरी Vcc के द्वारा संग्राहक संधि को पश्चदिशिक बायस दिया जाता है। प्रतिरोध RL संग्राहक परिपथ में लोड प्रतिरोध है। प्रवर्धित संक वोल्टता प्रतिरोध R पर प्राप्त होती है। संधारित्र C1 व C2 दिष्ट धारा को अवरुद्ध करते हैं परन्तु संकेत से सम्बद्ध धार को प्रवाहित होने देते हैं।

जब निवेश परिपथ में कोई संकेत ( signal) वोल्टता नहीं लगायी जाती है तो इस अवस्था को शान्त अवस (quiescent condition) कहते हैं। शान्त अवस्था में ट्रॉजिस्टर के प्रवर्धक का प्रभावी परिपथ निम्न होता है, चित्र (4.7-2)

शान्त अवस्था में, बैटरी Vcc के कारण निर्गम परिपथ (संग्राहक – उत्सर्जक परिपथ) में धारा Ic का मान वोल्टता Vcc, लोड प्रतिरोध R तथा संग्राहक उत्सर्जक के वोल्टता पतन VCE पर निर्भर होती है। किरचॉफ के नियम उपयोग से

Vcc = Ic R1 + Vce … (1)

उपरोक्त समीकरण के पदों को व्यवस्थित करके लिखने पर

Vocनियत होने पर I तथा VCE में उपरोक्त सम्बन्ध एक सरल रेखा को निरूपित करता है।IC को Y – अक्ष की ओर तथा VCE को X अक्ष की ओर आलेखित करने पर उपरोक्त समीकरण (2) का स्वरूप सरल रेखा के समीकरण y = mx + c की भांति प्राप्त होता है, जिसमें m रेखा की प्रवणता है तथा c, Y अक्ष पर रेखा के कटान बिन्दु की मूल बिन्दु से दूरी है। इस रेखा को ट्रॉजिस्टर के निर्गम अभिलाक्षणिकों के साथ खींचने पर इसे लोड लाइन (load line) कहते हैं। लोड लाइन की प्रवणता (slope )

0> 90°, तथा जैसे-जैसे RL का मान बढ़ता है0 भी बढ़ता है। इस रेखा के IC अक्ष पर कटान बिन्दु (0, Vcc/RL) तथा VCE अक्ष पर कटान बिन्दु (Vcc, 0) होते हैं, क्योंकि समीकरण (2) से जब VCE = 0, Ic = (Vcc /RL) तथा जब Ic = 0 तो VCE = Vcc

इस प्रकार यदि Ic अक्ष पर (0, Vcc/Rq) तथा VCE अक्ष पर बिन्दु (Vcc, 0) ले तो इन बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा ही लोड लाइन होगी। इस अवस्था से प्राप्त लोड लाइन को दिष्ट धारा लोड लाइन (DC load line) कहते हैं। निम्न चित्र (4.7-3) में प्रदर्शित रेखा AB dc लोड लाइन है।

ट्रॉजिस्टर परिपथ में धारा (Ic) तथा वोल्टता (VCE) से परिभाषित अवस्था उसके निर्गम अभिलाक्षणिकों पर निश्चित बिन्दु के द्वारा प्रदर्शित

लोड की उपस्थिति में IC  VCE के इन मानों से लोड लाइन का समीकरण भी पंतुष्ट होना चाहिये। अन्य रूप में लोड लाइन निर्गम लाक्षणिकों को जिन बिन्दुओं पर काटती है वे उसके लिये विभिन्न IB के मानों के संगत प्रचालन बिन्दु होंगे। यह ज्ञात है कि ट्रॉजिस्टर अभिलाक्षणिकों के सक्रिय क्षेत्र में ही रेखिक व्यवहार (अपरूपण रहित प्रवर्धन) प्रदान करता है। अतः शान्त अवस्था ( quiescent state) में प्रचालन बिन्दु सक्रिय क्षेत्र में स्थित लोड लाइन के भाग के लगभग मध्य में होना चाहिये, जिससे संकेत के साथ निवेश धारा IB में परिवर्तन से

प्रचालन बिन्दु विस्थापित होकर भी सक्रिय क्षेत्र में ही बना रहे।

इलेक्ट्रॉनिकी एवं ठोस प्रावस्था युक्तियों

संकेत की अनुपस्थिति में प्रचालन बिन्दु को शान्त बिन्दु ( quiescent point) या केवल Q बिन्दु (Q-point) कहते हैं। किसी भी 0 बिन्द की स्थिति जिस पर युक्ति कार्य करेगी, उसका निर्धारण आधार धारा Ig पर निर्भर होता है तथा आधार धारा का मान वोल्टता VRE, प्रतिरोध Rg तथा बैटरी वोल्टता VBIB के द्वारा निर्धारित होता है। किरचॉफ के नियम से ट्रॉजिस्टर के आधार परिपथ के लिये,

या

VBB = IB RB + VBE

IB = VBB – VBE /RB ~VBB /RB ………………….(4)

समीकरण (4) से VBB, VBE तथा RB का मान ज्ञात होने पर इससे आधार धारा IB का मान ज्ञात किया जा सकता है। प्राप्त IB के मान के लिये ट्रॉजिस्टर के संग्राहक अभिलाक्षणिक वक्र तथा लोड लाइन का कटान प्रचालन बिन्दु (quiescent operating point) Q होगा ।

प्रत्यावर्ती संकेत प्रयुक्त करने पर निर्गम परिपथ में प्रयुक्त संधारित्र C2 (चित्र 4.7-1) निर्गम टर्मिनलों से जुड़े अन्य परिपथ या अन्य लोड को युग्मित करता है। यदि इस प्रकार युग्मित परिपथ या लोड का प्रतिरोध R है तो अवस्था में ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक में परिणामी लोड RL न होकर RL और R का समांतर संबंधन होगा। यदि प्रत्यावर्ती संकेत की उपस्थिति में प्रभावी लोड RL ‘ है तो RL’ = RLR/ (RL+R)। प्रभावी लोड RL’ के लिये प्राप्त लोड लाइन जो शान्त अवस्था में dc लोड लाइन पर प्राप्त Q बिन्दु से गुजरती है, गतिक अथवा ac लोड लाइन कहलाती है। ac लोड लाइ की प्रवणता dc लोडलाइन से अधिक होती है क्योंकि RL / <RL | चित्र (4.7-3) में A ‘B’ रेखा ac लोड लाइन है। यदि मूल प्रवर्धक परिपथ से कोई अन्य परिपथ या लोड युग्मित न हो अर्थात् R = ० हो तो dc लोड लाइन ही ac लोड लाइन का कार्य करेगी।

जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि अपरूपण रहित प्रवर्धन के लिये लोड लाइन पर Q बिन्दु सक्रिय क्षेत्र के लगभग मध्य में होना चाहिये । यदि ( बिन्दु संतृप्त प्रभाग अथवा अंतक क्षेत्र के अधिक निकट होगा तो संकेत प्रयुक्त करने पर धारा IB में परिवर्तन के कारण प्रचालन बिन्दु Q का सक्रिय क्षेत्र पार कर संतृप्त क्षेत्र अथवा अंतक क्षेत्र में संक्रमण होगा और इन प्रभागों में निर्गत धारा I का IB के साथ परिवर्तन रैखिक नहीं होने से निर्गत संकेत में अपरूपण उत्पन्न होगा। लघु आयाम के संकेतों के लिये प्रचालन बिन्दु Q की एक मात्र स्थिति निश्चित करना आवश्यक नहीं होता क्योंकि सक्रिय क्षेत्र की अन्तिम सीमाओं को छोड़ कर अन्य सब स्थितियों के लिये प्रवर्धन रैखिक प्राप्त होगा ।

संग्राहक परिपथ में प्रयुक्त बैटरी वोल्टता Vcc व प्रयुक्त लोड RL के अनुसार लोड लाइन प्राप्त कर, निवेशी परिपथ में आधार वोल्टता का मान इस प्रकार लिया जाता है कि आधार धारा IB के संगत निर्गम अभिलाक्षणिक व लोड लाइन का कटान बिन्दु अर्थात् शान्त अवस्था में प्रचालन बिन्दु ( सक्रिय क्षेत्र के लगभग मध्य में स्थित हो । अब यदि निविष्ट संकेत वोल्टता v के कारण IB में परिवर्तन से धारा (IB + lB) हो तो Q बिन्दु लोड लाइन पर IB + lB व IB – lB के संगत निर्गम अभिलाक्षणिकों के लोड लाइन में कटान बिन्दुओं A व B के मध्य संक्रमण करेगा [(चित्र 4.74) ] | Q बिन्दु के इस प्रकार विस्थापन से निर्गम धारा (संग्राहक धारा) In भी परिवर्तित होगी। यदि परिवर्ती संग्राहक धारा को ic से निरूपित करें तो ic के RL से प्रवाहित होने से संकेत के अनुरूपी वोल्टता (ic RL) लोड R के सिरों के मध्य प्राप्त होगी। इस प्रकार निर्गत संकेत V = (icRL) होगा तथा (vo/vi) वोल्टता लाभ होगा। यदि संकेत vi के कारण निवेशी धारा में परिवर्तन को iB से लिखें तो (ic/iB) धारा प्रवर्धन या धारा लाभ होगा।

चित्र (4.7-4) में शान्त अवस्था में Q बिन्दु के लिये IB = 50uA, Ic = 5mA, जबकि Vcc = 30 V व R1 = 3000 । लोड लाइन Ic अक्ष पर (Vcc/RL) = 10mA व VCE अक्ष पर Vcc = 30V के बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा है। यदि 10mV आयाम की संकेत वोल्टता के कारण आधार धारा (50+10) uA मानों के मध्य परिवर्तित होती है तो प्रचालन बिन्दु लोड लाइन पर IB = 60uA व IB = 40 uA के अभिलाक्षणिकों के लोड लाइन से कटान बिन्दुओं के A व B तक संक्रमण करेगा। निवेश धारा in परिवर्तन का आयाम 10uA है, परन्तु निर्गत धारा ic के परिवर्तन का आयाम ImA है जिससे धारा लाभ (प्रवर्धन ) ( 10 – 3 / 10 × 10-6) = 100 होगा। संकेत के अनुरूपी निर्गत वोल्टता का आयाम (1 x 10-3 x 3000 ) = 3 V होगा तथा वोल्टता लाभ (3/10 x 10 – 3 ) = 300 होगा। इस प्रकार के प्रवर्धक में उच्च शक्ति लाभ भी होगा, दिये गये उदाहरण में शक्ति लाभ = धारा लाभ x वोल्टता लाभ = 100 × 300 = 3 x 104 |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *