अर्ध तरंग तथा पूर्ण तरंग दिष्टकारी में अंतर की तुलना half wave and full wave rectifier difference in hindi
half wave and full wave rectifier difference in hindi अर्ध तरंग तथा पूर्ण तरंग दिष्टकारी में अंतर की तुलना ?
अर्द्ध तरंग तथा पूर्ण तरंग दिष्टकारी की ‘तुलना (COMPARISON OF HALF WAVE AND FULL WAVE RECTIFIERS)
3.6 फिल्टर (FILTERS) इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में अत्यल्प ऊर्मिका गुणांक वाली दिष्ट धारा की आवश्यकता होती है इसलिए दिष्टकारी की निर्गत स्पंदमान वोल्टता में से प्रत्यावर्ती घटक को पृथक् करते हैं। इस प्रक्रिया को मसृणन (smoothing) कहते हैं। मसृणन प्रक्रिया को करने वाले विद्युत परिपथ फिल्टर ( filter) कहलाते हैं। फिल्टर परिपथ प्रेरक कुण्डलियों तथा संधारित्रों के संयोजन से बनाये जाते हैं। फिल्टर परिपथ कई प्रकार के होते हैं इनमें से मुख्य निम्न हैं- (i) पार्श्व-पथ संधारित्र (shunt capacitor) फिल्टर (ii) श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर (series inductor filter) (iii) L- अनुभाग (L-section ) फिल्टर तथा (iv) – अनुभाग (r-section) फिल्टर । (i) पार्श्व – पथ संधारित्र फिल्टर (Shunt capacitor filter) धारा मसृणन करने की इस विधि में संधारित्र C को दिष्टकारी के निर्गम में लोड प्रतिरोध के समान्तर लगाया जाता है जैसा कि चित्र (3.6-1) तथा (3.6-3) में दर्शाया गया है।
संधारित्र C का मान इस प्रकार लेते हैं कि इसकी प्रतिबाधा Xc = I/wC लोड प्रतिरोध RL की तुलना में अत्यल्प हो ताकि संधारित्र स्पंदमान निर्गत वोल्टता के प्रत्यावर्ती घटक को उपपथ (bypass) प्रदान कर दे।
फिल्टर के रूप में उपस्थित संधारित्र C आवेशित होकर ऊर्जा संगृहीत करता है और जब लोड पर वोल्टता घटती है तो यह लोड के द्वारा अनावेशित होकर वोल्टता नियत रखने का प्रयास करता है। जब दिष्टकारी के डायोड में से धारा का चालन होता है तो बिन्दु P पर विभव का मान निर्गत स्पंदमान वोल्टता के शिखर मान Em तक बढ़ता है जिससे संधारित्र का आवेशन महत्तम वोल्टता E तक हो जाता है। जब निर्गत वोल्टता का मान कम होता है तो संधारित्र का अनावेशन प्रतिरोध R में से प्रारम्भ हो जाता है। प्रतिरोध R के द्वारा अनावेशन परिपथ के कालांक (time constant) RC पर निर्भर करता है। अनावेशन में किसी क्षण सेकण्ड पश्चात् संधारित्र पर विभव का मान
यदि कालांक RLC का मान अत्यधिक हो तो समीकरण (1) सन्निकटत: होगा
मान. क्रमागत दो विभव शिखरों के मध्य समय अन्तराल T है अर्थात् संधारित्र C का पुनः आवेशन समय T के पश्चात् माना जा सकता है। आवेशन डायोड प्रतिरोध द्वारा होता है व अग्र बायसित डायोड का प्रतिरोध अत्यल्प होने से आवेशन के लिए कालांक भी अत्यल्प होगा। इसलिये पुनः आवेशन प्रारम्भ होने की स्थिति में संधारित्र पर विभव का मान
होगा ।
इस प्रकार लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता का शिखर मान Em और के बीच उच्चावचन (fluctuation) होगा (चित्र 3. 6-5)
जैसा कि चित्र (3.6-5) में दर्शाया गया है कि यह उच्चावच वोल्टता दिष्ट वोल्टता
तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता जिसका शिखर मान
होता है, के मिश्रण से बना मान सकते हैं। यह प्रत्यावर्ती वोल्टता फिल्टर से निर्गत ऊर्मिका वोल्टता कहलाती है।
तथा ऊर्मिका वोल्टता का शिखर मान = EmT/2RLc
चित्र (3.6-5) के अनुसार ऊर्मिका वोल्टता सन्निकटतः आरादन्ती (sawtooth) वोल्टता, चित्र (3.6-6) के समतुल्य मानी जा सकती है। इसलिये Eac47 संधारित्र के महत्तम आवेशन के समय ET पश्चात् ऊर्मिका वोल्टता है-
जो ऊर्मिका वोल्टता के समय के साथ परिवर्तन को निरूपित करता है।
ऊर्मिका वोल्टता का वर्ग माध्य मूल मान
चूँकि ऊर्मिका गुणांक ऊर्मिका वोल्टता के वर्ग माध्य मूल मान तथा दिष्ट वोल्टता के अनुपात को कहते हैं।
RLC संधारित्र-लोड परिपथ का कालांक है जो समय अन्तराल T के सापेक्ष बहुत अधिक होता है अर्थात् RLC>>T
अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के लिए समय अन्तराल होता है यहाँ / निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता की आवृत्ति है। अर्द्ध तरंग दिष्टकारी का
परन्तु पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लिए समय अन्तराल T = 1/2f होता है।
इस समीकरण से स्पष्ट है कि ऊर्मिका गुणांक r, आवृत्ति f लोड प्रतिरोध R तथा धारिता C के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यदि लोड प्रतिरोध R_ का मान अनन्त कर दिया जाये तो ऊर्मिका गुणांक का मान शून्य हो जाता है और धारिता पर दिष्ट वोल्टता शिखर मान के बराबर Em प्राप्त होती है। इसी प्रकार समीकरण (3) में
चूँकि वोल्टता नियमन (Em – Edc) पर निर्भर करता है अत: वोल्टता नियमन भी आवृत्ति, लोड प्रतिरोध R तथा धारिता C के व्युत्क्रमानुपाती है। इन तीनों में वृद्धि करने से ऊर्मिका गुणांक न्यून होने के साथ-साथ वोल्टता नियमन भी सुधार होता है।
(ii) श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर (Series inductor filter )
दिष्टकारी के लोड के श्रेणी क्रम में उच्च प्रेरकत्व की प्रेरक कुण्डली प्रयुक्त कर अधिक लोड धाराओं के लिये ऊर्मिका कम की जा सकती है। जब दिष्टकारी की निर्गत धारा औसत मान (dc मान) से अधिक होती है तो धारा वृद्धि से प्रेरक कुण्डली में चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में ऊर्जा संचित हो जाती है तथा जब लोड धारा हासित होती है तो स्वप्रेरकत्व के द्वारा कुण्डली में अतिरिक्त वि.वा. बल की उत्पत्ति होती है जो लोड में धारा घटने का विरोध करती है। इस प्रकार लोड में प्रवाहित धारा के उच्चावचन प्रेरकत्व फिल्टर से कम हो जाते हैं। अन्य रूप में निर्गत धारा दिष्ट धारा व प्रत्यावर्ती धारा घटकों का मिश्रण होती है। उच्च प्रेरकत्व के कारण यह कुण्डली प्रत्यावर्ती धारा घटकों के लिये उच्च प्रतिबाधा उपस्थित करती है, दिष्ट धारा के लिये प्रतिबाधा नगण्य (केवल अल्प प्रतिरोध के कारण ही) होती है। अतः प्रत्यावर्ती घटकों का कुण्डली पर वोल्टता पतन होता है और लोड पर वोल्टता में इन घटकों का मान घट जाता है।
श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर के साथ अर्ध तरंग दिष्टकारी चित्र (3.6-7) में व पूर्ण तरंग दिष्टकारी चित्र (3.6-8) में प्रदर्शित किया गया है। गणितीय विश्लेषण केवल पूर्ण तरंग दिष्टकारी के लिये प्रस्तुत है।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी से प्राप्त निर्गत वोल्टता
प्रेरक कुण्डली दिष्ट धारा के लिये नगण्य प्रतिबाधा उपस्थित करती है अतः कुल दिष्ट वोल्टता सन्निकटतः लोड पर प्राप्त होगी, अर्थात् लोड पर दिष्ट वोल्टता
जिससे लोड में प्रवाहित दिष्ट धारा
(R–अग्रबायसित डायोड तथा ट्रांसफार्मर द्वितीयक कुण्डली के अर्ध भाग का संयुक्त प्रतिरोध है जो RL की तुलना में अत्यल्प है)
निर्गत वोल्टता के प्रत्यावर्ती घटक के द्वितीय व चतुर्थ संनादियों के आयाम 1: (1/5) अनुपात में है तथा इसके लिये प्रतिबाधायें लगभग 1 : 2 अनुपात में होगी (wL >> RL मान कर ) । अतः धारा के द्वितीय संनादी के आयाम के सापेक्ष चतुर्थ संनादी का आयाम (1/10) होगा। इस प्रकार प्रत्यावर्ती भाग में केवल प्रथम पद (द्वितीय संनादी) महत्वपूर्ण होगा, शेष की उपेक्षा की जा सकती है।
अतः दिष्टकारी की निर्गत वोल्टता में मुख्य प्रत्यावर्ती घटक का प्रभावी मान
यह वोल्टता प्रेरकत्व L व लोड RL के श्रेणी संयोजन पर आरोपित होती है। अतः लोड से प्रवाहित प्रत्यावर्ती धारा का प्रभावी मान
इस प्रकार श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर प्रयुक्त करने पर R बढ़ाने अर्थात् लोड धारा कम होने पर ऊर्मिका गुणांक बढ़ेगा तथा RŁ घटाने अर्थात् अधिक लोड धारा प्राप्त करने पर ऊर्मिका गुणांक घटेगा। यह व्यवहार पार्श्व – पथ संधारित्र फिल्टर प्रयुक्त करने पर प्राप्त व्यवहार के विपरीत है।
पार्श्व – पथ संधारित्र प्रयुक्त कर कम ऊर्मिका गुणांक के साथ अधिक वोल्टता प्राप्त की जा सकती है जब कि श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर के साथ कम ऊर्मिका गुणांक के साथ अधिक धारा प्राप्त कर सकते हैं। ये दोनों सरल फिल्टर वास्तविक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिये उपयुक्त नहीं है। इनके स्थान पर संयुक्त L-C फिल्टरों का उपयोग किया
जाता है।
(iii) L- अनुभाग फिल्टर या चोक निवेशी L-C फिल्टर (L-section filter or choke input L-C filter )– लोड प्रतिरोध के पार्श्व पथ में संयोजित संधारित्र फिल्टर अथवा श्रेणी क्रम में प्रेरक कुण्डली द्वारा सभी लोड प्रतिरोधों के लिए ऊर्मिका गुणांक का मान अपेक्षित मान तक कम नहीं किया जा सकता है। इसलिए ऊर्मिका गुणांक का मान अल्पतम करने के लिये L-C फिल्टर का उपयोग करते हैं जिसमें लोड प्रतिरोध के श्रेणी क्रम में एक प्रेरक कुण्डली व पार्श्व पथ में संधारित्र संयोजित होते हैं। एक प्रेरक कुण्डली व एक संधारित्र से बना L-C फिल्टर L आकृति का होने के कारण L-अनुभाग फिल्टर कहलाता है। जब दिष्टकारी से प्राप्त स्पंदमान दिष्ट वोल्टता प्रेरक कुण्डली में से प्रवाहित होता है तो इसका दिष्ट वोल्टता घटक प्रेरकत्व की प्रतिबाधा शून्य होने के कारण निर्बाध रूप से प्रवाहित होता है और प्रत्यावर्ती घटक (ऊर्मिका घटक) के लिए प्रेरक कुण्डली की प्रतिबाधा के कारण ऊर्मिका घटक वोल्टता का पतन होता है। इससे निर्गत धारा में जो शेष ऊर्मिका धारा रह जाती है उसको संधारित्र C उपपथ (by pass) प्रदान करता है और दिष्ट धारा के लिए संधारित्र अनन्त मान की प्रतिबाधा उपस्थित कर रोकता है। इस प्रकार यह फिल्टर परिपथ एक छलनी के समान कार्य करता है जो ऊर्मिका धारा को उपपथ प्रदान करके अलग कर देता है तथा टि धारा लोड प्रतिरोध में से प्रवाहित होने देता है। उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है ऊर्मिका आवृत्ति के लिये चोक का प्रतिघात अधिक तथा संधारित्र का प्रतिघात कम होना चाहिए। गणितीय रूप से L – अनुभाग के फिल्टर का विश्लेषण करने के लिए फिल्टर के निवेश पर प्राप्त वोल्टता तरंग रूप के फूरिये विस्तार का उपयोग करते हैं। पूर्ण तरंग दिष्टकारी से प्राप्त स्पंदमान वोल्टता के फूरिये प्रसार से
यहाँ डायोड पर निविष्ट वोल्टता का शिखर मान Em तथा आवृत्ति w है।
2Em
उपरोक्त समीकरण का प्रथम पद 2Em/π फिल्टर के निवेश पर दिष्ट वोल्टता को व्यक्त करता है।
यहाँ दिष्ट धारा के कारण लोड प्रतिरोध R के सिरों पर निर्गत वोल्टता Edc है ।
इस समीकरण का दूसरा तथा तीसरा पद द्वितीय तथा चतुर्थ प्रसवादियों (harmonics) को व्यक्त करता है जिन्हें फिल्टर द्वारा पृथक करना चाहते हैं। चूँकि उच्च संनादियों वाली वोल्टता का मान द्वितीय संनादी वोल्टता (प्रथम ऊर्मिका पद) की तुलना में नगण्य होता है इसलिए ऊर्मिका घटकों में केवल प्रथम पद अर्थात् द्वितीय संनादी वाली वोल्टता ही महत्वपूर्ण होती है।
आवृत्ति 2w पर संधारित्र का प्रतिघात Xc = 1/2wc लोड प्रतिरोध RL की तुलना में नगण्य लेते हैं इसलिए लगभग सम्पूर्ण ऊर्मिका धारा प्रेरक कुण्डली तथा संधारित्र में से प्रवाहित मानी जा सकती है।
ऊर्मिका धारा का वर्ग माध्य मूल मान (प्रभावी मान)
अतः ऊर्मिका धारा द्वारा संधारित्र C के सिरों के मध्य वोल्टता
लोड पर ऊर्मिका वोल्टता
इस प्रकार ऊर्मिका गुणांक लोड प्रतिबाधा अर्थात् लोड धारा पर निर्भर नहीं करता है तथा इसके मान को न्यून d j usd sfy, g vlo’ ; d glsk fd 4w2LC का मान । के सापेक्ष बहुत अधिक हो । अतः 4w2 LC >> 1 के लिए
इस समीकरण से स्पष्ट है ऊर्मिका गुणांक, आवृत्ति के वर्ग 2, प्रेरकत्व L तथा धारिता C के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अत: कम ऊर्मिका गुणांक के लिए आवश्यक है कि प्रेरकत्व L तथा धारिता C का मान अधिक होना चाहिए।
निवेशी प्रेरकत्व का क्रांतिक मान (Critical value of input inductor)
L-C फिल्टर में कम लोड पर अर्थात् R के अधिक मानों व कम लोड धारा के लिये संधारित्र अधिक प्रभावी होता है। संधारित्र निविष्ट वोल्टता के शिखर मान तक आवेशित होता है तथा लोड से अनावेशन अल्प मात्र में ही हो पाता है जिससे निर्गत dc वोल्टता अधिक रहती है। लोड धारा बढ़ने (R) कम होने पर संधारित्र का लोड से अनावेशन तीव्र गति से होता है जिससे माध्य वोल्टता dc वोल्टता से कम हो जाती है। धारा बढ़ने के साथ फिल्टर में प्रेरकत्व का प्रभाव बढ़ता है और एक निश्चित Ik मान के पश्चात् फिल्टर लगभग श्रेणी प्रेरकत्व फिल्टर की भाँति कार्य करता है। चित्र (3.6-11 ) में dc वोल्टता का लोड धारा के साथ परिवर्तन दिखाया गया है।
पार्श्व – पथ संधारित्र फिल्टर में डायोड का चालन अल्प समय (अल्प चालन कोण) के लिये होता है जब कि निविष्ट वोल्टता संधारित्र पर वोल्टता से अधिक होती है । लोड प्रतिरोध R कम होने पर संधारित्र का अनावेशन तीव्र होने से डायोड का चालन कोण बढ़ता जाता है। लोड धारा I की स्थिति में व उससे अधिक लोड धारा के लिये डायोड चालन निरन्तर होता है व प्रेरक कुण्डली से धारा प्रवाह निरंतर होने से प्रेरकत्व के द्वारा वोल्टता नियमन प्रभावी हो जाता है। क्रांतिक अवस्था Idc = Ik पर मुख्य ऊर्मिका घटक (द्वितीय संनादी) का आयाम ( शिखर मान) निर्गत दिष्ट धारा के बराबर हो जाता है।
निर्गत दिष्ट धारा
द्वितीय संनादी के संगत धारा का शिखर मान = 4Em/3πZ2
जहाँ Z2 द्वितीय संनादी के लिये प्रतिबाधा है।
अत: क्रांतिक अवस्था में
Ik का मान कम से कम रखा जाता है और इसके लिये अधिक प्रेरकत्व का उपयोग करना पड़ता है।
स्रावी प्रतिरोध ( Bleeder resistance)
लोड प्रतिरोध अधिक होने पर जब लोड धारा क्रान्तिक धारा 1 से कम होती है तो निर्गत दिष्ट वोल्टता में वृद्धि होती है (चित्र 3.6–11)। दिष्ट वोल्टता का यह परिवर्तन रोकने के लिये लोड प्रतिरोध के समान्तर क्रम में एक उपयुक्त प्रतिरोध लगा दिया जाता है जिससे RL अधिक होने पर लगभग Ik धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार परिणामी लोड धारा Ik से कम नहीं हो पाती और निर्गत दिष्ट वोल्टता नियत बनी रहती है। लोड के समान्तर क्रम में जोड़ा गया यह प्रतिरोध स्रावी ( bleeder ) प्रतिरोध कहलाता है।
(iv) π अनुभाग फिल्टर या संधारित्र निवेशी L-C फिल्टर (π-Section filter or capacitor input L-C filter )–
L- अनुभाग फिल्टर से निर्गत दिष्ट वोल्टता नियत रखने के लिये लोड धारा क्रांतिक धारा Ik से अधिक रखी जाती है तथा इस अवस्था में निर्गत वोल्टता निविष्टं शिखर वोल्टता के सापेक्ष यथेष्ट रूप से कम होती है। अधिक दिष्ट वोल्टता प्राप्त करने के लिये फिल्टर परिपथ के निवेश पर समान्तर क्रम में एक अन्य संधारित्र C1 लगाते हैं जिससे फिल्टर परिपथ का प्रारूप के समान बन जाता है ( चित्र 3.6-13 ) और इसे π अनुभाग फिल्टर कहते हैं।
इस फिल्टर को दो भागों से मिलकर बना मान सकते हैं- (1) पार्श्व संधारित्र फिल्टर (Shunt capacitor filter)
यह C1 धारिता के संधारित्र से बनता है।
(2) L अनुभाग फिल्टर (L-section filter ) – यह प्रेरक कुण्डली L तथा संधारित्र C2 से मिलकर बनता है। जब दिष्टकारी के डायोड में से किसी एक में धारा का चालन होता है तो बिन्दु P पर वोल्टता का मान स्पंदमान वोल्टता के शिखर मान Emm तक बढ़ता है जिससे संधारित्र C1 का आवेशन महत्तम वोल्टता Em तक होता है। जब दिष्टकारी की निर्गत वोल्टता का मान Em से कम होता है तो संधारित्र का अनावेशन प्रेरक कुण्डली L और लोड प्रतिरोध RL में से प्रारम्भ हो जाता है और तब तक होता है जब तक दूसरे डायोड के चालन द्वारा संधारित्र का आवेशन पुनः प्रारम्भ न हो जाये। संधारित्र के द्वारा उत्पन्न अनावेशन धारा की गणना अत्यन्त कठिन है परन्तु इसका मान सन्निकटत ज्ञात कर सकते हैं यदि संधारित्र के अनावेशन से उत्पन्न ऊर्मिका का तरंग रूप त्रिकोणीय आकृति का मान लें जै कि चित्र (3.6-14 ) में दर्शाया गया है।
फूरिये प्रमेय के अनुसार संधारित्र C1 से उत्पन्न ऊर्मिका वोल्टता er को फूरिये प्रसार से निम्न रूप में लिख सकते हैं
जहाँ w निविष्ट प्रत्यावर्ती वोल्टता की कोणीय आवृत्ति है।
प्रेरकत्व L में प्रवाहित धारा में उच्च संनादी ( harmonics) वाली धाराएं नगण्य होती हैं इसलिए केवल प्रथम पद (द्वितीय संनादी) वाली ऊर्मिका वोल्टता महत्वपूर्ण होती है।
संधारित्र C2 की प्रतिबाधा Xc = 1/wC2 लोड प्रतिरोध RL की तुलना में अत्यन्त कम होती है इसलिए लगभग सम्पूर्ण ऊर्मिका धारा संधारित्र C2 में से प्रवाहित हो जाती है।
अतः इस ऊर्मिका धारा के कारण संधारित्र C2 के सिरों के मध्य ऊर्मिका वोल्टता
यही ऊर्मिका वोल्टता लोड RL पर होगी । समीकरण (4) से
समीकरण (20) से स्पष्ट है कि अनुभाग के फिल्टर का ऊर्मिका गुणांक r, आवृत्ति )w धारिता C1 व C2, प्रेरकत्व L तथा लोड प्रतिरोध R पर निर्भर करता है । इस प्रकार के फिल्टर में साधारणतः 4w2 LC2 का मान 1 से बहुत अधिक होता है। इसलिये
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