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व्यापक ऊष्मागतिक अन्योन्य क्रियाएं क्या है , General Thermodynamical Interactions in hindi

जानिये व्यापक ऊष्मागतिक अन्योन्य क्रियाएं क्या है , General Thermodynamical Interactions in hindi ?

व्यापक ऊष्मागतिक अन्योन्य क्रियाएं
(साम्यावस्था प्रतिबन्ध, गिब्स मुक्त ऊर्जा, क्लॉसियस – क्लेपीरॉन समीकरण, हैल्म्होल्ट्ज मुक्त ऊर्जा, ऐन्थैल्पी तथा मैक्सवेल सम्बन्ध) (General Thermodynamical Interactions) (Equilibrium Conditions, Gibb’s Free Energy, Clausius-Clapeyron Equation, Helmholtz Free Energy, Enthalpy and Maxwell Relations)
अवस्थाओं की संख्या की बाह्य प्राचलों पर निर्भरता
(Dependance of the Number of States on External Parameters)
जब एक स्थूल निकाय (macroscopic system) किसी दूसरे स्थूल निकाय से अन्योन्य क्रिया करता है तो उनमें ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया के साथ-साथ यांत्रिकी अन्योन्य क्रिया भी संभव है। यांत्रिक अन्योन्य क्रिया कुछ ऐसे प्राचलों (parameters) के परिवर्तन के द्वारा होती है जिन्हें स्थूल रूप से माप सकते हैं और जो निकाय के कणों की गति को प्रभावित करते हैं तथा निकाय के ऊर्जा स्तरों को प्रभावित करते हैं। इन्हें बाह्य प्राचल (external parameters) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर आयतन, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र, बाह्य विद्युत क्षेत्र आदि।
सरलता के लिए माना केवल एक बाह्य प्राचल x परिवर्तनशील है। किसी ऊर्जा परास E तथा E + δE में निकाय के अभिगम्य (accessible) ऊर्जा स्तरों की संख्या Ω न केवल ऊर्जा E पर निर्भर करती है बल्कि बाह्य प्राचल x पर निर्भर करेगी। अतएव Ω ऊर्जा E तथा बाह्य प्राचल x का फलन होगा-
Ω = Ω (E, x) …………… (1)
अब निकाय के किसी ऊर्जा स्तर r पर विचार करते हैं जिसकी ऊर्जा Er बाह्य प्राचल x पर निर्भर करती है, अर्थात्
E = Er (x)
यदि बाह्य प्राचल x में dx परिवर्तन किया जाय तो इससे ऊर्जा में परिवर्तन होगा-

चूंकि बाह्य प्राचल के नियत dx परिवर्तन के लिए विभिन्न ऊर्जा स्तरों की ऊर्जाऐं विभिन्न मात्रा में परिवर्तित होती हैं इसलिए समीकरण (2) से विभिन्न ऊर्जा स्तरों के लिए X के मान भी भिन्न हो सकते हैं। i वें उपनिकाय में ऊर्जा स्तरों की संख्या में परिवर्तन Xr के परिवर्तन को समझने के लिए Xr के सम्भावित मानों को δX नियत परास के अल्पांशों में विभाजित करते हैं। अत:

अब माना Xi तथा Xi + δX के मध्य सम्बद्ध ऊर्जा स्तरों की संख्या Ωi (E, x) है। इन ऊर्जा स्तरों की यह विशेषता होती है कि जब बाह्य प्राचल x में dx परिवर्तन होता है तो प्रत्येक स्तर में ऊर्जा का मान समीकरण (2) की भांति Xi dx से परावर्तित होता है। यदि Xi धनात्मक है तो वे सभी ऊर्जा स्तर, जिनकी ऊजायें E व (E – Xi dx) के बीच में हैं, की ऊर्जा बढ़कर E तथा (E + Xi dx) के बीच में आ जायेंगी। चूंकि प्रति एकांक ऊर्जा परास स्तरों की संख्या Ωi (E, x)/δE है इसलिए Xidx परास में ऊर्जा स्तरों की संख्या

चित्र

यहाँ Γi(E), i वें उपनिकाय Ω (E, x) में वे ऊर्जा स्तर हैं जिनकी ऊर्जा E से कम होती है और परिवर्तन के पश्चात् E से अधिक हो जाती है। यदि Xi ऋणात्मक है तो भी समीकरण (5) वैध रहेगा परन्तु अब Γi (E) उन ऊर्जा स्तरों की संख्या है जिनकी ऊर्जा E से अधिक मान से बदलकर E से कम हो जाती है। E तथा (E + δE) के बीच ऊर्जा स्तरों की संख्या में परिवर्तन अब हम उन सभी ऊर्जा स्तरों की संख्या Ω (E, x) पर विचार करते हैं जिनकी ऊर्जाऐं E तथा ( E + δE) के बीच होती हैं, जब बाह्य प्राचल का मान x होता है। माना Ω (E, x) ऊर्जा स्तरों में से Γ(E) उन ऊर्जा स्तरों की संख्या है जिनकी ऊर्जा E से कम होती है और बाह्य प्राचल में dx परिवर्तन के कारण उनकी ऊर्जा E से अधिक हो जाती है।

नियत ऊर्जा परास δE तथा बाह्य प्राचल परास dx के लिए

x̄ उन सभी अभिगम्य ऊर्जा स्तरों पर X का माध्यमान है जिनकी ऊर्जा E तथा E + δE के बीच होती है, क्यों प्रायिकता के सिद्धान्त के सन्तुलन की स्थिति में इन सभी ऊर्जा स्तरों की प्रायिकता समान होती है। समीकरण (3) से

यह समीकरण निकाय की ऊर्जा की औसत वृद्धि को व्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में यह समीकरण उस स्थल कार्य (macroscopic work) को व्यक्त करता है, जब सन्तुलन अवस्था में बाह्य प्राचल x (quasi-static) परिवर्तन किया जाता है। x̄ का भौतिक महत्त्व यदि निकाय का बाह्य प्राचल x दूरी हो तो समीकरण (9) से x̄ की विमा बल (force) आती है। सामान्यत: X की कुछ भी विमा हो सकती है इसलिए x̄ को निकाय पर माध्य व्यापीकृत बल (mean generalized force| कहते हैं।

इसी प्रकार यदि निकाय का बाह्य प्राचल आयतन V हो तो समीकरण (9) से x̄ की विमा दाब के बराबर आती है।
बाह्य प्राचल में dx परिवर्तन से ऊर्जा स्तरों की संख्या में परिवर्तन जब बाह्य प्राचल x + dx तक अनंत सूक्ष्म परिवर्तन किया जाता है तो E तथा E+δE के मध्य ऊर्जा स्तरी की संख्या Ω (E, x) में परिवर्तन
हो जायेगा। इस परिवर्तन में वे ऊर्जा स्तर सम्मिलित होंगे जिनकी ऊर्जा E से कम होती है और परिवर्तन के पश्चात् E से अधिक अर्थात् E + δE के मध्य हो जाती है तथा वे ऊर्जा स्तर कम जो जायेंगे जो E व E + δE के मध्य थे व परिवर्तन द्वारा इस परास से बाहर निकल जायेंगे, अर्थात्
यदि बाह्य प्राचल x आयतन V है तो समीकरण ( 10 ) से x̄ निकाय द्वारा लगाये गये माध्य दाब द्वारा व्यक्त किया जाता है अर्थात्, x̄ = – p̂ अतः समीकरण ( 14 ) से
इस प्रकार यदि किसी निकाय की एन्ट्रॉपी का आयतन के साथ सम्बन्ध ज्ञात हो तो समीकरण ( 17 ) से निकाय का माध्य दाब ज्ञात किया जा सकता है। पुन: समीकरण ( 13 ) से
समीकरण ( 19 ) एवं (20) से निम्न निष्कर्ष निकलते हैं।
(i) जब किसी रूद्धोष्म रूप से विलगित निकाय के बाह्य प्राचल में अनंत सूक्ष्म परिवर्तन किया जाता है तो निकाय के ऊर्जा स्तरों की ऊर्जाओं में परिवर्तन हो जाता है और निकाय की कुल ऊर्जा में निकाय पर किये गये कार्य के बराबर वृद्धि हो जाती है।
(ii) यदि प्राचल परिवर्तन रूद्धोष्म स्थैतिक – कल्प है तो निकाय उन्हीं ऊर्जा स्तरों में पुनर्व्यवस्थित रहता है जिन स्तरों पर प्रारम्भ में था । यद्यपि इन स्तरों की ऊर्जा परिवर्तित हो जाती है। (iii) रूद्धोष्म स्थैतिक-कल्प प्रक्रम में एन्ट्रॉपी में कोई परिवर्तन नहीं होता है क्योंकि निकाय के लिए ऊर्जा स्तरों की संख्या परिवर्तन से पूर्व व परिवर्तन के पश्चात् समान होती है व S = k InΩ (iv) यदि रूद्धोष्म प्रक्रम के बाह्य प्राचल में बड़ी मात्रा में परिवर्तन सूक्ष्म स्थैतिक कल्प प्रक्रमों द्वारा कराया जाता है तो एन्ट्रॉपी में परिवर्तन नहीं होता है परन्तु यदि स्थैतिक कल्प प्रक्रमों द्वारा परिवर्तन नहीं कराया जाता है तो निकाय की एन्ट्रॉपी में वृद्धि होगी ।
साम्यावस्था में व्यापक सम्बन्ध (General Relations in Equilibrium)
साम्यावस्था में वैध व्यापक सम्बन्धों को ज्ञात करने के लिए दो ऊष्मागतिक निकायों A तथा A’ पर विचार करते हैं जिनमें परस्पर व्यापक अन्योन्य क्रिया होती है, अर्थात् दोनों के बीच ऊर्जा विनिमय होता है तथा वे एक दूसरे पर कार्य करते हैं। माना इन दोनों से मिलकर एक संयुक्त विलगित ( isolated) निकाय A* बनता है।
अतः A* = A + A’
चित्र
चूंकि विलगित निकाय की ऊर्जा E* = E + E’ सदैव नियत रहती है अतः यदि निकाय A की ऊर्जा E ज्ञात है तो दूसरे निकाय A’ की ऊर्जा E’ = E* – E ज्ञात की जा सकती है। हम जानते हैं कि संयुक्त निकाय A* के लिए अभिगम्य स्तरों की संख्या Ω* तथा एन्ट्रॉपी S* निकाय A की ऊर्जा E तथा बाह्य प्राचलों X1, x2, x3, Xn = Xα के फलन होते हैं,
अब यदि संयुक्त निकाय की एन्ट्रॉपी s* या अभिगम्य ऊर्जा स्तरों की संख्या Ω* का आरेख ऊर्जा E तथा बाह्य प्राचल Xα के सापेक्ष खींचा जाये तो किसी निश्चित मान E = Ē तथा Xα = x̄α के लिए संयुक्त निकाय की एन्ट्रॉपी प्राचल Xg. अधिकतम प्राप्त होती है। ऊर्जा E तथा xx 1) के अन्य मानों के लिए 52* या S* के मान उच्चतम मान से कम होते हैं। अत: जब निकाय A की ऊर्जा E तथा बाह्य प्राचल x है तो इस स्थिति में दोनों निकाय A व A’ परस्पर साम्यावस्था में होते हैं अर्थात् इस स्थिति में संयुक्त निकाय की एन्ट्रॉपी एवं अभिगम्य स्तरों की संख्या उच्चतम् होती है। अत: इस अधिकतम सम्भाव्य अवस्था में निकाय की मध्यमान ऊर्जा E = Ē तथा माध्य बाह्य प्राचल x̄α = Nα हो जायेगी।