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संवितरण या विभाजन फलन क्या होता है , Partition Function in hindi लघु मात्रा में ऊष्मा स्थानान्तरण ( Small Heat Transfer)

Partition Function in hindi संवितरण या विभाजन फलन क्या होता है ?
 लघु मात्रा में ऊष्मा स्थानान्तरण ( Small Heat Transfer) अब हम एक विशेष महत्त्व के सरल प्रक्रम का विचार करते हैं जिसमें एक निकाय A किसी दूसरे निकाय के साथ ऊष्मीय सम्पर्क में होता है और लघु मात्रा में ऊष्मा Q अवशोषित करता है। माना इसका परिमाण इतना कम है कि
जहाँ Ē निकाय की माध्य ऊर्जा तथा E0 निकाय की मूल अवस्था में ऊर्जा है। समीकरण (1) से स्पष्ट है कि ऊष्मा अवशोषण से माध्य ऊर्जा में वृद्धि Q = Ē ऊर्जा अन्तर ( Ē – Eo) की तुलना में नगण्य मानते हैं। माना ऊर्जा स्थानान्तरण से ताप में परिवर्तन △T होता है। अतः उसके β प्राचल में परिवर्तन
अतः स्पष्ट है कि यदि निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा का परिमाण अत्यल्प हो तो निकाय के ताप में परिवर्तन नगण्य होता है। मान लीजिये कि साम्यावस्था में निकाय A की माध्य ऊर्जा Ē है और इस अवस्था में अभिगम्य (accessible) अवस्थाओं की संख्या Ω(Ē) है। यदि इस निकाय को अत्यल्प मात्रा में ऊष्मा Q दें तो इसकी अब माध्य ऊर्जा ( Ē + Q) हो जोयगी। इस अवस्था में माना निकाय की अभिगम्य अवस्थाओं की संख्या Ω( Ē + Q) है। अतः टेलर श्रेणी प्रसार (Taylo series expansion) द्वारा
यदि निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा का परिमाण अत्यणु (infinitesimal) है तो इसके संगत एन्ट्रॉपी में अत्यणु परिवर्तन का मान होगा –
यहाँ ऊष्मा δQ केवल एक अत्यणु राशि है जबकि ds राशि एक अवकल राशि है। दूसरे शब्दों राशि ds निकाय की अन्तिम एवं प्रारम्भिक स्थूल अवस्थाओं के मध्य एन्ट्रॉपियों का अत्यणु अन्तर (infinitesimal difference) होता है। उपरोक्त संबंध ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (second law of thermodynamics) भी कहलाता है। ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम के अनुसार एन्ट्रॉपी s किसी भी निकाय की स्थूल साम्यावस्था का अभिलाक्षणिक होता है तथा
(i) ऊष्मीय रूप से विलगित निकाय में किसी भी प्रक्रिया के द्वारा यदि निकाय एक स्थूल अवस्था में दूसरी में संक्रमण करता है तो उसकी एन्ट्रॉपी में वृद्धि की प्रवृत्ति होती है अर्थात् △S ≥ 0 (ii) यदि निकाय विलगित नहीं है और अत्यणु प्रक्रिया से 8Q ऊष्मा अवशोषित करता है तो उसकी एन्ट्रॉपी में परिवर्तन ds = δQ/T यदि किसी निकाय का ताप अन्य निकायों से किसी भी प्रकार की ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया करने पर पर भी अनिवार्यतः अपरिवर्तित रहता है तो ऐसे निकाय को ऊष्मा भण्डार (heat reservoir) या ऊष्मा पात्र (heat bath) कहते हैं। ऐसे निकाय के एन्ट्रॉपी परिवर्तन को समीकरण ( 7 ) से ज्ञात कर सकते हैं। एन्ट्रॉपी परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी अभिगम्य अवस्थाओं Ω(E) में वृद्धि के आकलन के लिए समीकरण (6) में, मान लीजिये नियत ताप पर निकाय के लघु ऊष्मा Q अवशोषित करने पर उसकी अभिगम्य अवस्थाओं में वृद्धि ΔΩ(E) होती है।
इससे स्पष्ट है कि निकाय में लघु ऊष्मा के स्थानान्तरण से अभिगम्य अवस्थाओं में परिवर्तन चरघातांकी रूप से होता है।
ऊष्मा भंडार के सम्पर्क में निकाय (System in Contact with Reservoir)
किन्हीं दो निकायों A व A ́ के मध्य अन्योन्य क्रिया विशेषतः आसान हो जाती है यदि उनमें से एक निकाय A’ को दूसरे निकाय की तुलना में बहुत बड़ा ले लें। उदाहरण के रूप में परिवेश ( environment) को बहुत बड़ा निकाय A ́ माना जा सकता है जिसकी तुलना में अन्य निकाय A जैसे पात्र में गैस, कमरा, मेज आदि लघु निकाय होते हैं। यदि लघु निकाय A से ऊष्मा स्थानान्तरण होने पर निकाय A’ (परिवेश) का ताप अपरिवर्तित रहता है तो निकाय A को ऊष्मा भंडार (heat reservoir) कहते हैं। अब हम यह जानना चाहते हैं कि यदि कोई निकाय A किसी ऊष्मा भंडार A ́ के सम्पर्क में साम्यावस्था में है तो निकाय A की, ऊर्जा Ei की किसी विशिष्ट अवस्था में होने की प्रायिकता P(Ei) क्या होगी ?
माना निकाय A किसी निश्चित अवस्था i में है और उसकी ऊर्जा E है। इन दोनों निकायों से बना संयुक्त निकाय A’ पूर्णत: विलगित (isolated) होने के कारण इनकी संयुक्त ऊर्जा E* सदैव नियत रहती है। अत: जब A की ऊर्जा Ei है तो A ́ की ऊर्जा होगी,
E ́ = E* – Ei …..(1)
चूंकि निकाय A एक निश्चित अवस्था i में है अत: A * के लिए ही ऊर्जा अवस्थाएँ अभिगम्य (accessible) होंगी जो ऊष्मा भंडार A ́ के लिए अभिगम्य होती हैं अर्थात् निकाय A* की अभिगम्य ऊर्जा अवस्थाओं की संख्या होगी Ω’ (E’)। परन्तु सांख्यिकी के मूलभूत अभिगृहीत सम पूर्व प्रायिकता के सिद्धान्त ( principle of apriori probabilities) के अनुसार संयुक्त निकाय A* की प्रत्येक अभिगम्य अवस्था, में पाये जाने की प्रायिकता समान होती है । अतएव किसी विशिष्ट अवस्था में निकाय के पाये जाने की प्रायिकता संयुक्त निकाय A* के अभिगम्य अवस्थाओं की संख्या Ω’ (E’) के अनुक्रमानुपाती होती है।

समीकरण (4) सांख्यिकीय यांत्रिकी का एक महत्वपूर्ण व्यापक परिणाम है जिसके द्वारा किसी निकाय के नियत ताप T पर ऊर्जा Ei की अवस्था i में होने की प्रायिकता Pi का बोध होता है। इसे प्रायिकता वितरण फलन (probability distribution function ) या विहित ( कैनोनिकल) वितरण ( canonical distirbution) कहते हैं तथा इसमें चरघातांकी फलन (exp-βEi) बोल्ट्ज़मान गुणक (Boltzmann factor) कहलाता है। निकायों का वह समुच्चय (ensemble) जो नियत ताप T पर किसी ऊष्मा भण्डार के साथ ऊष्मीय सम्पर्क में है और साम्यावस्था में भी है तथा समुच्चय के प्रत्येक घटक में अभिगम्य अवस्थाओं में वितरण P = Ce βEi  अनुसार होता है, विहित समुच्चय (canonical ensemble) कहलाता है। समीकरण (4) के अनुक्रमानुपाती नियतांक C को प्रसामान्यीकरण (normalization) प्रतिबंध के द्वारा ज्ञात कर सकते हैं। इसके अनुसार निकाय A के अभिगम्य अवस्थाओं में से किसी में होने की कुल प्रायिकता 1 होगी,

नियत ताप T पर ऊष्मा भण्डार के सम्पर्क में किसी निकाय के लिये प्रायिकता वितरण फलन समीकरण (5) का उपयोग कर उसके प्राचलों का मध्यमान ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप निकाय से सम्बद्ध किसी राशि y को लें जिसकी अवस्था i में मान yi है तो y का मध्यमान होगा।

संवितरण या विभाजन फलन (Partition Function) नियत ताप T पर ऊष्मा भण्डार (heat reservoir) के सम्पर्क में स्थित किसी भी निकाय की Ei ऊर्जा वाली अवस्था i में होने की प्रायिकता है-

निकाय की सभी अवस्थाओं के लिए बोल्टजमान गुणकों का योग है। इसे अवस्थाओं का योगफल या संवितरण फलन (partition function) कहते हैं। इसे साधारणतः फलन Z से व्यक्त करते हैं।

यह फलन एक महत्त्वपूर्ण राशि है क्योंकि इसका सम्बन्ध सभी ऊष्मागतिक स्थूल प्राचलों जैसे माध्य ऊर्जा, ऊष्माधारिता, एन्ट्रॉपी, एन्थैल्पी, हेल्महोल्टज मुक्त ऊर्जा फलन, दाब एवं गिब्स ऊर्जा फलन आदि से होता है। अब हम संवितरण फलन Z एवं ऊष्मागतिक फलनों में सम्बन्ध स्थापित करेंगे।

(i) माध्य ऊर्जा (Mean energy) Ē : मान लीजिये कि एक गैस परम ताप T पर साम्यावस्था में है। यदि हम किसी एक अणु पर विचार करें और उसे एक लघु निकाय के रूप में माने जो कि ताप T पर ऊष्मा भण्डार के ऊष्मीय सम्पर्क में है, तो ऊर्जा Ei की किसी अवस्था i में अणु के होने की प्रायिकता होगी।

यहाँ यह कल्पना की गई है कि अणुओं के मध्य अन्योन्य क्रिया नगण्य है व उनकी माध्य स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा की तुलना में नगण्य है। अतः अणुओं की माध्य ऊर्जा होगी।

जहाँ N आवोगाद्रो संख्या है।

(ii) ऊष्मा धारिता (Heat capacity) Cv: ऊष्मा धारिता की परिभाषा से

समीकरण (6) से Ē का मान रखने पर

(iii) एन्थैल्पी (Enthalpy) H: एन्थैल्पी की परिभाषा से, मोलर एन्थैल्पी

चूंकि संवितरण फलन सभी अवस्थाओं के लिए योग है। माना ऊर्जा परास E एवं E + dE के मध्य अभिगम्य अवस्थाओं की संख्या Ω(E) है इस लघु परास में सभी सम्भव ऊर्जा अवस्थाओं या परासों के लिए e-βE नियत माना जा सकता है। अतः इस परास में स्थित अवस्थाओं के लिये इस फलन का योग Ω(E) eE होगा, जिससे

पिछले खण्ड (1.4) के अनुसार Ω(E) फलन एक द्रुततः वर्धमान फलन है तथा e-βE चरघातांकी ह्रासमान (exponentially decreasing) फलन है इसलिए Ω(E) e-βE का किसी विशिष्ट ऊर्जा E = É पर तीक्ष्ण उच्चिष्ठ प्राप्त होता है और वक्र की चौड़ाई △E < < E होती है । (चित्र 1.11.1)। इस प्रकार हम देखते हैं कि माध्य ऊर्जा E = Ē पर प्राप्त होती है और समीकरण ( 12 ) में योग Ω(E) eE के बराबर होता है।