glycolipids in hindi , cerebrosides examples functions ग्लाइकोलाइपिड्स अथवा सेरेब्रोसाइड्स क्या है
ग्लाइकोलाइपिड्स अथवा सेरेब्रोसाइड्स क्या है glycolipids in hindi , cerebrosides examples functions ?
संयुग्मी लाइपिड्स (Compound lipids)
यह वसीय अम्ल तथा एल्कोहल के एस्टर्स हैं जिसमें कुछ अतिरिक्त यौगिक जैसे- फॉस्फोरिक अम्ल, शर्कराएँ व प्रोटीन्स आदि भी पाये जाते हैं। इन्हें निम्न 4 समूहों में वर्गीकृत किया जाता है :
(i) फॉस्फोलाइपिड्स ( Phospholipds)
इन वर्ग में वे लिपिड्स आते हैं जिनमें फॉस्फोरस पाया जाता है। इनमें नाइट्रोजनी क्षारक (base) तथा अम्ल पदार्थ भी होते हैं। बहुत से फॉस्फोलाइपिड्स जैसे-ग्लीसरोफॉलाइपिड्स में, एल्कोहल – ग्लीसरॉल होता है, किन्तु कुछ अन्य जैसे कि स्फिगोफॉस्फोलाइपिड्स में, यह स्फिगोसीन होता हैक विभिन्न प्रकार के फॉस्फोटिडिक के उदाहरण निम्न हैं-
- फॉस्फोटिडिक अम्ल (Phosphatidic Acid)- यह अम्ल ट्राइग्लीसेराइड्स तथा अन्य फॉस्फोलिपिड्स के जैव संश्लेषण में एक मध्यवर्ती (intermediate) पदार्थ के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रमुख फॉस्फोग्लीसेराइड्स फॉस्फेटिडिक अम्ल के व्युत्पन्न होते हैं।
इस अम्ल को फॉस्फेट समूह कई प्रकार के एल्कोहलों के हाइड्रोक्सिल (OH) समूह के साथ एस्टर बनाता है। फॉस्फोग्लीसराइड्स के सामान्य एल्कोहल अर्धांश (monicties) कोलीन, इथेनोलेमाइन, सेरीन तथा आइनोसिटौल आदि हैं।
- लेसिथिन या फॉस्फोटिडिल कोलीन (Lecithine or phosphatidylcholine) – इसकी रचना ग्लीसरोल के 1 अणु वसीय अम्लों के 2 अणु तथा फॉस्फोरिक अम्ल के 1 अणु द्वारा होती है इसके साथ नाइट्रोजनी क्षारक कोलाइन (choline) जुड़ा रहता है। लेसिथिन्स प्राणी कोशिकाओं में पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।-
- सिफेलिन या फॉस्फेटिडिल ‘इथेनोलेमाइन (Caphalin or Phosphatidyl ethanolamine)– यह अधिकांश गुणों में लेसिथिन के समान होता है, किन्तु इसमें कोलाइन के स्थान पर, एक अन्य पदार्थ इथेनोलेमाइन पाया जाता है।
- फॉस्फेटिडिल सेरीन (Phosphatidyl serine )- यह सिफेलिन के प्रकार का एक फॉस्फोलाइपिड है जिसमें इथेनोलेमाइन के स्थान एक अमीनों अम्ल सेरीन पाया जाता है। 5. फॉस्फेटिडिल आइनोसिटौल (Phosphatidyl inositol)- इसमें नाइट्रोजनी क्षारक के
स्थान पर आइनोसिटौल होता है। यह मुख्य रूप से पोधौं तथा तंत्रिका ऊत्तक में पाया जाता है। 6. स्फिगोमायलिन्स (Sphingomyleins)- यह मस्तिष्क तथा तंत्रिका ऊत्तक, विशेष रूप • से नाड़ियों की माइलिन आच्छद (myeline sheath of nerves) में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं। यह रक्त के लिपिड्स में भी मिलते हैं।
- प्लाज्मेलोजेन्स (Plasmalogens)- यह मस्तिष्क तथा नाड़ियों की माइलिन के फॉस्फोलाइपिड्स का लगभग 10% भाग बनाते हैं।
यह रचना में यह लेसिथिन्स तथा सिफेलिन्स के समान होते हैं किन्तु इनमें पहले कार्बन परमाणु पर अधिकांश ट्राइग्लीसराइड्स में पायी जाने वाली एस्टर सन्धि (ester link) के स्थान पर ईथर सन्धि (ether link) पायी जाती है।
(ii) ग्लाइकोलाइपिड्स अथवा सेरेब्रोसाइड्स (Glycolipids or Cerebrosides)
जैसा कि इनमें नाम से इंगित होता है, तो ग्लाइकोलाइपिड्स शर्करा वाले लिपिड्स होते हैं। यह मस्तिष्क, एड्रीनल ग्रन्थियों, वृक्क, प्लीहा, यकृत, श्वेत रक्त कोशिकाओं, थाइमस ग्रन्थि, फेफड़े, रेटिना, अण्ड-पीतक (egg yolk) तथा मछलियों के शुक्राणुओं में पाए जाते हैं।. सेरिब्रोसाइड्स के प्रमुख उदाहरण निम्न है:
(1) किरेसिन (Kersain)
(3) नर्वोन (Nervone)
(2) सेरिब्रोन (Cerebron)
*(4) आक्सीनर्वोन (Oxynervone)
(iii) गैंगलिओसाइड्स (N-Acetyl Neuraminic acid : NANA)
इनमें वसीय अम्ल, स्फिगोसीन, तथा हेक्सोजन शर्कराओं (ग्लूकोज व गैलेक्टोज) के तीन अणु पाये जाते हैं।
यह तंत्रिका ऊत्तक तथा कुछ अन्य विशेष अंगों, जैसे कि प्लीहा (spleen) में पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।
(iv) लाइपोप्रोटीन (Lipoproteins)-
ट्राइग्लीसेराइड्स, कोलेस्ट्रॉल अथवा फॉस्फोलाइपिड्स के नाम संयुग्मित प्रोटीन्स को लाइपाप्रोटीन्स कहा जाता है।
- व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived lipid)
ये सरल एवं संयुग्मित लिपिड्स के व्युत्पन्न होते हैं। स्टीरॉड्स महत्वपूर्ण प्रकार के व्युत्पन्न लिपिड्स होते हैं।
स्टीरॉयड्स में एक आधारभूत (basic), सामन वलय रचना (ring structure) पायी जाती है जिसे साइक्लोपेन्टोनोपरहाइड्रोफिनैन्थ्रीन केन्द्रक (cyclopentanoper-hydrophenathrene nucleus) कहते हैं।
पिलिड्स की भाँति यह जल में अघुलनशील और वसा विलायकों (fat solvents) में घुलनशीन होते हैं।
स्टीरॉइड्स के अन्तर्गत कोलेस्ट्रॉल व अन्य स्टेरॉल्स (sterols), पित्त अम्ल (bile juice), लैंकिग हॉर्मोन (sex hormones) तथा एड्रीनल कार्टेक्स (adrenal cortex) के हार्मोन्स आते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण स्टेरॉल्स निम्न प्रकार है :
(i) कोलेस्ट्रोल (Cholesterol) – यह शरीर की सभी कोशिकाओं में पाया जाता है किन्तु मस्तिष्क तथा तंत्रिका ऊत्तक, एड्रीनल ग्रन्थियों, व त्वचा में इसकी मात्रा अधिक होती है।
स्तनियों में कोलेस्ट्रॉल एक प्रकार के पैतृक स्टेरॉल (parent sterol) की भाँति कार्य करता है जिससे विटामिन डी, पित्त अम्ल, लैंगिक हार्मोन्स तथा एड्रोनोकार्टिकोट्रोपिक (adrenocorticotropic) हॉर्मोन्स बनते हैं। (ii) 7-डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल (7-Dehydrocholesterol)- स्तनियों की त्वचा में पाया जाने वाला यह एक प्रोविटामिन (probitamin) है जो पराबैंगनी (ultraviolet) प्रकाश द्वारा सूखरोग निरोधक (antirachitic) विटामिन कोलेकैल्सीफेरॉल (Chole-calciferol, vitamin D3) में परिवर्तित हो जाता है।
(iii) अर्गोस्टीरॉल (Eresterol)- यह अर्गेट तथा यीस्ट जैसी फफूंदियों में पाया जाता है। विटामिन-डी के अन्य रूप अर्गोकेल्सीफैरॉल (ergocalciferal, D2) का यह एक पूर्ववर्ती (precursor) है। पराबैंगनी विकिरण (ultraviolet radiation) द्वारा इसमें सूखारोग निरोधक (antirachitic) गुण आ जाते हैं।
(iv) कोप्रोस्टेरॉल (Coprosterol)- यह मल ( facces) में पाया जाता है। कोप्रोस्टोरॉल आँतों में कोलेस्ट्रोल के पाँचवें तथा छठे कार्बन परमाणुओं के मध्य पाये जाने वाले द्विबन्ध (double bond) के बैक्टीरिया द्वारा अवकरण (reduction) के फलस्वरूप बनता है। (v) पित्त अम्ल (Bile acid, C24 steroids)- पित्त में बहुत से स्टेरॉयड अम्ल जैसे- कोलिक अम्ल (cholic acid), डीऑक्सीकोलिक अम्ल ( deoxycholic acid), कीमो-डिऑक्सीकोलिक अम्ल ( chemo deoxycholic acid) तथा लिथोकोलिक अम्ल (lithocholic acid) पाये जाते हैं।
यह यकृत की कोशिकाओं द्वारा स्रावित होकर पित्त रस में मिल जाते हैं। आहार नाल में पहुँचन पर ये भोजन की वसा गोलियों (fat globules) के वसीकरण (emulsification) में सहायता देते हैं।
चित्र 15.1 : कोलेस्ट्रॉल
(vi) लैंगिक हॉर्मोन्स (Sex hormones)- स्टीरॉयड्स नर तथा माता लैंगिक हॉर्मोन्स का आणिक ढाँचा (molecular tramework) बनाते हैं नर लिंग हॉर्मोन्स अथवा एन्ड्रोजन्स (androgens-C19) अन्तर्गत टेस्टोस्टीरोन (testosterone) तथा इसकी उपापचय (metabolite)- एन्ड्रोस्टीरोन (androsterone) आते हैं।
(vii) एस्ट्रोजेन्स (Estrogens – C18) तथा प्रोजेस्टोरोमन (Progesterone – C21)- ये मादा लैंगिक हॉर्मोन्स (female sex hormones) हैं।
मादा में द्वितीयक लैंगिक अभिलक्षणों के प्रकट होने के लिए एस्ट्रोजेन्स अपेक्षित होते हैं। प्रोजेस्ट्रोज, पीत पिड ( vorpus luteum) का हॉर्मोन्स है जो गर्भाशय भित्ति को अण्ड प्रतिरोपण (egg-implantation) के लिये तैयार करता है।
(viii) एड्रीनोकार्टिकल हॉमोन्स (Adrenocortical hormones)- एड्रीलन कार्टेक्स के हॉर्मोन्स एल्डोस्टीरोन (aldosterone), कार्टिसोन (cortisone) तथा कार्टिसौल (cortisol- C21) रासायनिक प्रकृति में स्टेरॉड्स होते हैं।
एल्डोस्टीरोन द्वारा वृक्क में Nat, CI- तथा HCO, आयन्स के अवशोषण में वृद्धि हो जाती है जिससे रक्त का आयतन (blood volume) तथा रक्त चाप (blood pressure) बढ़ जाते हैं।
(ix) कीट हॉर्मोन्स (Insect hormones)- एक्डयसॉन (ecdyson) एक स्टेरॉयड हॉर्मोन है जो कीट रूपान्तरण (metamorphosis) के दौरान लार्वा अवस्था के प्यूपा में परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है। कुछ प्रकरणों में जुड़े हुए चार पाइरोल वलय एक सरल श्रृंखला का निर्माण करते हैं।
इस प्रकार टेट्रापइराइरॉल्स में लाल, नीले एवं अन्य प्रकार के वर्णक सम्मिलित होते हैं जो कई शैवाल-समूहों में, पक्षियों के अण्डों के खोलों में तथा स्तनधारियों के मल-मूत्र में पाये जाते हैं। अन्य टेट्रापाइरॉल्स में चार पाइरॉल-वलय जुड़कर एक बड़े वलय का निर्माण करते हैं।
इस बड़े वलय के केन्द्रक में धातु का एक परमाणु स्थित होता है। साइटोक्रोम एवं हीम इस प्रकार के प्रमुख वर्णक हैं, जिनमें पाया जाने वाला धातु-परमाणु लोह (iron) होता है। साइटोक्रोम्स एवं हीम साधारणतया वाहक – प्रोटीन्स से बन्धित होती है। पौधों का हरा वर्णक, वर्ण हरित (chlorophyll) भी ऐसा ही वलय रूप ही टेट्रापाइरॉल होता है जिसमें केन्द्रीय धातु परमाणु मैग्नीशियम होता है।
लिपिड्स का महत्व (Importance of lipids)
- वसा एवं वसा अम्ल प्राणियों के खाद्य-संचयन यौगिकों की निरूपित करते हैं।’ अन्य सभी प्राणियों के महत्वपूर्ण संचय खाद्यों में भी ये सम्मिलित होते हैं।
- ये कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा श्वसन- ऊर्जा के अधिक उत्तक स्रोत हैं।
- लेसिथिन्स शक्तिशाली पृष्ठ तनाव सक्रिय पदार्थ होते हैं। ये बड़े अध्रुवी अणुओं को पायसीकृत (emulsified) अवस्था में बनाये रखने में सहायक होते हैं।
- वसाएँ एवं वसा अम्ल, कोशिकाओं, विशेषकर कोशिका की विभिन्न कलाओं एवं कुछ कोशिकाओं के संरचनात्मक संघटकों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अदा करते हैं। 5. कोशिकाओं की अनावहित सतहों पर एवं कई प्राणियों के शरीर की सतहों पर मोम
(waxes) जल-सहकारक द्रव्य (water proofing material) के रूप में कार्य करते हैं। 6. लेसिथिन्स कोशिका कला के घटकों के रूप में तथा कला- पारगम्यता को नियंत्रत करने वाले कारकों के रूप में भी आवश्यक भूमिका अदा करते हैं।
- फॉस्फेटिडिल कोलीन (phosphatidyl choline) कुछ एंजाइम्स को सक्रिय करता है। 8. जब रक्त वाहिका की क्षति (injury) के कारण कुछ बिम्बाणु अपघटित होते हैं, उस समय सिफेलिन्स रक्त-स्कन्दन को प्रारम्भ करने वाले कारकों के रूप में कार्य करते हैं।
लिपिड्स के पाचन से प्राप्त पदार्थों का उपापचय निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है।
ग्लीसरॉल उपापचय (Glycerol metabolis)
वाओं के पाचन से प्राप्त ग्लीसरॉल ग्लाइकोलाइसिस (glycolysis) एवं क्रैब्स चक्र (Kreb’s cycle) द्वारा ऑक्सीकृत होता है अथवा इसके उत्पाद (product) कार्बोहाइड्रेट्स के संश्लेषण में काम आ सकते हैं। ग्लीसरॉल के ऑक्सीकरण (oxidation) में निम्न क्रियाएँ होती हैं-
(1) प्रारम्भ में ग्लीसरॉल ATP से ग्लीसरोकाइनेज (glycerokinase) एंजाइम की उपस्थिति में फॉस्फेट ग्रहण कर ग्लीसरोफॉस्फेट (glycerophosphate) में परिवर्तित हो जाता है।
ग्लीसरॉल + ATP à ग्लीसरोफॉस्फेट + ATP
(2) इस प्रकार प्राप्त ग्लीसरोफॉस्फेट का ऑक्सीकरण (विहाइड्रोजनीकरण) होता है जिसमें हाइड्रोजन परमाणु पृथक होते हैं। इस प्रकार पृथक् हुए नाइड्रोजन परमाणु एन.ए.डी. 1. वाहक-तंत्र” (NAD trasport system) पर गुजरते हैं जिससे NADH, बनता है जो SfETS(Electron transport system) में प्रवेश कर तीन अणु (ATP) देता है। इस प्रकार ग्लीसरोफॉस्फेट से फॉस्फोग्लिसरैल्डीहाइड (phosphoglyceryldehyde : PGAL) प्राप्त होता है।
ग्लीसरोफॉस्फेट + ATP –>> फॉस्फोग्लीसरैल्डीहाइड (PGAL)
(3) इस प्रकार प्राप्त फॉस्फोग्लिसरैल्डीहाइड ग्लूकोस के ऑक्सीकरण द्वारा प्राप्त PGAL के समान ही होता है जो शेष ग्लाइकोलाइसिस के उल्टे पथ (reverse pathway) में प्रवेश कर ग्लूकोस का संश्लेषण कर सकता है।
वसा अम्लों का उपापचय (Fatty acids metabolism)
शरीर की पेशीय कोशिकाओं (muscle cells) में ऊर्जा प्राप्त हेतु ग्लूकोज (ग्लाइकोजन) का ऑक्सीकरण होता है। इन कोशिकाओं में ग्लूकोज (ग्लाइकोजन) की कमी होने पर वसा अम्लों का भी ऑक्सीकरण होता है। वसा अम्लों के ऑक्सीकरण से एसीटाइल कोएंजाइम – A (acetyl CoA) या सक्रिय एसीटेट (active acetate) का निर्माण होता है जो क्रैब्स चक्र में प्रवेश करके ऊर्जा ( energy) उत्पन्न करता है।
वसा अम्लों का ऑक्सीकरण एक अनुक्रमीय क्रिया है जिसकों समझाने हेतु निम्न दो पथ प्रस्तुत किये गये हैं-
- बीटा-ऑक्सीकरण (P-Oxidation)
वसा अम्लों के अपघटन हेतु ‘बीटा-ऑक्सीकरण’ एक प्रमुख एवं सर्वमान्यता प्राप्त पथ हैं इसे कनूप (Knoop; 1905) ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार वसा अम्लों की श्रृंखला से ऑक्सीकरण के समय एक साथ दो कार्बन परमाणु पृथक् होते हैं। इस क्रिया में कार्बोक्सिल के B-कीटों मे स्थित कार्बन परमाणु B-कीटों अम्ल के रूप में पृथक् हो जाता है तथा दो अन्तिम कार्बन परमाणु -कीटों अम्ल के रूप में पृथक हो जाता है तथा दो अन्तिक कार्बन परमाणु एसीटिक अम्ल के रूप में अलग होते हैं। इसी के साथ कीटो समूह (= CO2) के समीप एक नया कार्बोक्सिल समूह बन जाता है। इसके बाद फिर B कार्बन परमाणु पर क्रिया होती है जिससे 2 कार्बन परमाणु पुनः पृथक् हो जाते हैं। इस प्रकार 2 कार्बन के बाहर निकलने की क्रिया सुचारू रूप से तब तक चलती रहती है जब तक एसीटो-एसीटिक अम्ल (B-कीटो ब्यूरिक अम्ल) प्राप्त नहीं हो जाता है। यह सम्पूर्ण क्रिया माइटोकॉण्ड्रिाया में होती है।
ग्रीन (Green), लेनन (Lynen) एवं केनेडी (Kennedy) के आधुनिक विचारों के अनुसार वसा अम्लों के ऑक्सीकरण के समय निम्न पाँव क्रियाएँ होती हैं-
(i) वसा अम्ल का सक्रियण (Activation of fatty acid)- इस क्रिया में वसा अम्ल का अणु अणु थायोकाइनेस (thiokinase) एंजाइम की उपस्थिति में अन्तिक सिरे द्वारा कोएंजाइम्स-A से जुड़ता है। ATP से दो फॉस्टेट समूह पृथक् होने से आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा AMP जाता है।
(ii) सक्रिय वसा का विहाइड्रोजनीकरण (Dehydrogenation of avtivated fat)- इस क्रिया में प्रत्येक प्रथम (एल्फा) तथा द्वितीय (बीटा) कार्बन से एक-एक हाइड्रोजन परमाणु पृथक किया जाता है। यह क्रिया एमाइल डिहाइड्रोजेनेस (acyl dehydrogenase) द्वारा उत्प्रेरित होती है। इस क्रिया में FAD हाइड्रोजन ग्राही (hydrongen acceptor) का कार्य करता है जिससे FADH बनता है। यह इलैक्ट्रॉन अभिगमन तंत्र (electron transport system) द्वारा दो ATP अणु देता है। विहाइड्रोजन के कारण एल्फा तथा बीटा कार्बनों के बीच असंतृप्त युग्म (unsaturated double bond) बन जाता है।
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