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क्लोरोप्लास्ट क्या है , क्लोरोप्लास्ट की संरचना तथा कार्य किसे कहते है , हरित लवक परिभाषा chloroplast definition in hindi

chloroplast definition in hindi क्लोरोप्लास्ट क्या है , क्लोरोप्लास्ट की संरचना तथा कार्य किसे कहते है , हरित लवक परिभाषा ?

  1. लवक (Plastids )

पादप जगत् में जीवाणु, नीले हरे शैवाल एवम् कवकों को छोड़कर सभी पादपों की कोशिका में पाये जाने वाले सबसे बड़े किन्तु केन्द्रक से छोटे कोशिकांग लवक (Plastids ) कहलाते हैं । पादपों में इनकी उपस्थिति एक मुख्य लक्षण है, जिसके आधार पर जन्तुओं को पादपों से विभेदित किया गया है। किन्तु कुछ जन्तु कोशिकाओं, जैसे-युग्लीना में अपवाद के रूप में प्लास्टिड्स पाये जाते हैं । हिकेल (Haeckel, 1865) ने इन कोशिकांगों को लवक कहा। किन्तु ए.एफ. डब्ल्यू. शिम्पर (A.F. W. Schimper, 1885) ने इन्हें ‘प्लास्टिकास’ (Plastikas moulded ढाले गये) कहा। इनका मुख्य कार्य खाद्य पदार्थों का संश्लेषण व संचय करना है। ये जीवित संरचनाएँ होती हैं, अर्थात् विभाजित होकर संख्या में वृद्धि करती हैं। इनकी उत्पत्ति पूर्ववर्ती संरचनाओं से होती है। जिन्हें ‘प्रोप्लास्टिड्स’ (Proplastids) कहते हैं ।

उच्च पादपों में वे सभी कोशिका द्रव्यी संरचनाओं का समूह, जिनमें प्राकृतिक वर्णक (natura coloured substances), लिपिड्स, प्रोटीन्स तथा काब्रोहाइड्रेट्स संचित रहते हैं, प्लास्टिड्स कहलाते हैं । किन्तु निम्न पादप समूहों, जैसे- नीले-हरे शैवाल, कवक व कुछ प्रोटोजोआ के सदस्यों में सुविकसित, झिल्ली आबद्ध प्लास्टिड्स के स्थान पर प्लास्टिड समान संरचनाएँ ‘क्रोमेटोफोर’ (Chromatophores) पायी जाती हैं।

प्लास्टिड्स का वर्गीकरण (Classification of Plastids )

प्लास्टिड्स को, उनमें संचित भोजन व विभिन्न वर्णकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति के आधार पर निम्न समूहों में वर्गीकृत किया गया है-

(A) ल्यूकोप्लास्ट्स (Leucoplasts) अथवा अवर्णी लवक

इन प्लास्टिड्स में वर्णक नहीं पाये जाते । ये अप्रकाश संश्लेषी होते हैं। इनका मुख्य कार्य विभिन्न खाद्य पदार्थों, जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, लिपिड्स तथा प्रोटीन संचय करना है। ये आकृति में गोलाकार अथवा छड़नुमा सामान्यतः पादप की भ्रूणीय, जनन तथा विभाज्योतकी कोशिकाओं में वितरित रहते हैं। इनमें संचित होने वाले पदार्थों के आधार पर इन्हें निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।

(i) एमाइलोप्लास्ट्स (Amyloplasts)

स्टार्च संचित करने वाले, रंगहीन प्लास्टिड्स एमाइलोप्लास्ट्स कहलाते हैं । ये मुख्य रूप से स्टार्च संचित करने वाले कंदों (tubers), बीजपत्रों तथा भ्रूणपोष कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इनमें न्यूक्लिओटाइड्स व राइबोसोम्स पाये जाते हैं ।

(ii) इलियोप्लास्ट्स (Elaioplasts)

इन प्लास्टिड्स का मुख्य कार्य तेल संचित करना है। ये एक बीजपत्री व द्विबीजपत्री पादपों के बीजों (Seeds) में पाये जाते हैं। ऑर्कीडेसी (Orchidaceae) तथा लिलिएसी (Liliaceae) कुलों के पादपों की अधिचर्मीय कोशिकाओं में असंगठित प्लास्टिड्स (हरे) संगलित होकर तेल की बूँदें बनाते हैं। (iii) प्रोटीनोप्लास्ट्स (Proteinoplasts or aleuroplasts)

प्रोटीन संचित करने वाले रंगहीन प्लास्टिड्स प्रोटीनोप्लास्ट कहलाते हैं। हेलीबोरस (Helleborus) की अधिचर्मीय कोशिकाओं, रिसिनस (Ricinus) के बीजों तथा ब्राजील नट (Brazil nut) में पाये जाते हैं।

(B) क्रोमोप्लास्ट्स (Chromoplasts)

रंगीन प्लास्टिड्स क्रोमोप्लास्टस (Chromoplasts) कहलाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के वर्णक पाये जाते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा ही खाद्यपदार्थों का संश्लेषण करते हैं । पादपों में ये तना, पत्ती, पुष्प व फलों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इनमें पाये जाने वाले वर्णकों के रंगों के आधार पर इन्हें निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) क्लोरोप्लास्ट्स (Chloroplasts, Gr. Chloro-green, Plast-living)

हरे रंग के वर्णक युक्त प्लास्टिड्स क्लोरोप्लास्ट कहलाते हैं। इनमें क्लोरोफिल -a व b (chil- va & chl-b) वर्णक तथा DNA व RNA पाये जाते हैं। ये प्लास्टिड्स उच्च श्रेणी के पादपों व हरे शैवालों में पाये जाते हैं। जैविकीय (Biologically) रूप से ये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्लास्टिड्स हैं, क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मुख्य भूमिका निभाते हैं । अपवाद रूप में मक्का की पत्ती की शीथ (Sheath) कोशिकाओं तथा कुछ अन्य घासों में क्लोरोप्लास्ट प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग नहीं लेते हैं [रोहडस व करवाल्हो ( Rhodes & Carvalho, 1944)]

(ii) फीयोप्लास्ट्स (Phaeoplast)

जिन प्लास्टिड्स में भूरे अथवा पीले रंग का वर्णक पाया जाता है, फीयोप्लास्ट्स कहलाते हैं । ये भूरे शैवालों डायएटम्स (Diatoms) तथा डाइनोफ्लेजिलेट्स (Dinoflagellates) की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। भूरे शैवालों में पाया जाने वाला भूरा वर्णक ‘फ्यूकोजैन्थीन’ (Fucoxanthin) ही प्रकाश ऊर्जा (Radiant energy) को अवशोषित कर, क्लोरोफिल को स्थानान्तरित करता है। यह वर्णक क्लोरोफिल के हरे रंग को दबा देता है ।

(iii) रोडोप्लास्ट्स (Rhodoplasts)

ये लाल रंग के प्लास्टिड्स हैं। जो कि लाल शैवालों (Rhodophyceae के सदस्यों में) में पाये जाते हैं। इनमें लाल रंग का वर्णक ‘फाइकोईरीथ्रीन’ (Phycoerythrin) पाया जाता है । यह वर्णक भी फ्यूकोजैन्थीन के समान प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर क्लोरोफिल तक स्थानान्तरित करता है ।

भूरे शैवालों तथा उच्च पादपों में पाये जाने वाले क्रोमोप्लास्ट के अध्ययन से ज्ञात होता है कि दोहरी झिल्ली आबद्ध संरचनाएँ होती हैं, जिनमें मैट्रिक्स (Stroma) पाया जाता है। मैट्रिक्स में खुरदरी सतह वाली लैमिली (पटलिकाएँ) पायी जाती हैं । ये विभिन्न आकृतियों के जैसे- कोणीय (angular), गोलाकार (spherical), सूच्याकार (needle shaped) अथवा बहुमुजी ( rhomboidal) हो सकते हैं (चित्र 2.28) 1

 (C) क्रोमेटोफार्स (Chromatophores)

जीवाणु, नीले हरे शैवालों तथा कुछ कवक कोशिकाओं में वर्णक विशिष्ट झिल्ली आबद्ध कोशिकांगों (Plastids) में नहीं पाये जाते हैं । इनमें वर्णक प्रायः संकेन्द्री वलयों अथवा प्लेट्स के रूप में व्यवस्थित पटलिकाओं (lamellae) में पाये जाते हैं, जिन्हें क्रोमेटोफोर्स कहा जाता वभिन्न प्रकार के क्रोमेटोफोर्स निम्नानुसार होते हैं –

(i) जीवाणु कोशिका में पाये जाने वाले क्रोमेटोफोर्स (Bacterial chromatophores)

‘बैक्टीरियोक्लोरोफिल’ – कुछ जीवाणु, जैसे- परपल सल्फर- बैक्टीरिया (Purple sulphur bacteria) में ‘बैक्टीरियो विरिडिन’ (Bacterio-viridin) नामक वर्णक क्रोमेटोफोर्स में पाया जाता है। बैक्टीरियो (bacteriochlorophyll) पाया जाता है। इसी प्रकार ग्रीन सल्फर बैक्टीरिया में क्लोरोफिल इनफ्रारेड लाइट (Infra-red light) को अवशोषित करने में मुख्य भूमिका निभाता है। नील-हरे शैवालों में नीला-हरा वर्णक C फाइकोसायनीन (C-phycocyanine) व C – फाइकोईरीश्रीन (C-phycoreythrin) क्रामेटोफोर्स में पाये जाते हैं। ये भी प्रकाश अवशोषित करके क्लोरोफिल को स्थानान्तरित करते हैं। वैसे इनका मुख्य कार्य शैवालों को रंग प्रदान करना हैं।

कैरोटिनॉइड्स (Carotenoides)

सामान्यतः कुछ जीवाणुओं, कवक, पके हुए फलों तथा पुष्प आदि में पाये जाते हैं। जीवाणु तथा कवकों के कैरोटिनॉइड्स में केपसेन्थीन (capsanthin ) वर्णक पाया जाता है। इसी प्रकार शैवालों तथा अन्य् पादपों में कैरोटिनॉइड्स में विभिन्न प्रकार के वर्णक, जैसे- फ्यूकोजैन्थीन, जैन्थोफिल्स तथा कैरोटीन पाये जाते हैं ।

कई बार क्रोमोप्लास्ट, क्लोरोप्लास्ट में अप्रकाश संश्लेषी वर्णकों के इकट्ठा होने से बन जाते हैं, जैसे-टमाटर में लाइकोपीन किन्तु इन वर्णकों के संश्लेषण के लिए जीन केन्द्रक में ही पाये जाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न पुष्पों व फलों में लाल, पीले अथवा भूरे रंग के कैरोटीन पाये जाते हैं । ये कोशिका की प्रकाशीय श्वसन (photo respiration) से रक्षा करते हैं ।

विभिन्न प्रकार के प्लास्टिड्स आपस में समजात (homologous) होते हैं। इन सबकी उत्पत्ति प्रोप्लास्टिड्स (Proplastids ) से होती है । किन्तु ये आपस में एक के दूसरे के रूप में बदल सकते हैं।

उपरोक्त सभी प्लास्टिड्स में से पौधों के जीवन में क्लोरोप्लास्ट्स का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि ये ही वे अंगक हैं, जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा (energy stored in food materials) में परिवर्तित करने की क्षमता होती है। यही ऊर्जा सभी सजीवों द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उपयोग में ली जाती है ।

क्लोरोप्लास्ट या हरित लवक ( chloroplast)

(1) आकारिकी (Morphology)

यद्यपि एक ही जाति की विभिन्न कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट के आकारिकीय लक्षणों, आकृति (shape), आकार (size) एवम् संख्या (number) में परिवर्तन हो सकता है । किन्तु एक प्रकार के ऊतक को बनाने वाली समस्त कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट की आकारिकी लगभग समान रहती है।

(a) आकृति (Shape)

क्लोरोप्लास्ट्स विभिन्न आकृतियों के जैसे – तंतुवत ( filamentous) प्यालीनुमा ( saucer shaped हो सकते हैं। अधिकतर शैवालों की कोशिकाओं में एक बड़ा जालिका रूपी ( reticulate), सर्पिल बिम्बाम ( discoid), गोलाकार (spheroid), अण्डाकार (Ovoid) तथा मुगदाकार (club shaped) आदि

(spiral) अथवा तारे की आकृति (stellate ) का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है (चित्र 2.29)।

(b) आकार ( Size)

क्लोरोप्लास्ट्स का आकार कोशिका में पाये जाने वाले क्रोमोसोम्स की संख्या व पादप के आवास (habitat) पर निर्भर करता है । छाया में उगने वाले बहुगुणित पादपों की कोशिका में पाये जाने वाले क्लोरोप्लास्ट का आकार, प्रकाश में उगने वाले द्विगुणित पादपों की कोशिका के क्लोरोप्लास्ट से अधिक होता है । उच्च श्रेणी के पादपों में इन अंगकों का आकार औसतन 2-3 μ मोटा व 5 -10μ लम्बा होता

है ।

(c) संख्या (Number)

कोशिका में इनकी संख्या लगभग स्थिर रहती है। अधिकतर शैवालों में 1, किन्तु उच्च श्रेणी के पादपों की कोशिकाओं में 20-40 क्लोरोप्लास्ट पाये जा सकते हैं।

कोशिका विज्ञान, आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन

क्लोरोप्लास्ट की सूक्ष्म संरचना (Ultrastructure of chloroplast ) ( चित्र 2.30)

क्लोरोप्लास्ट संरचना में जटिल होते हैं। प्रत्येक क्लोरोप्लास्ट दो संकेन्द्री ( concentric) बाहरी द्वारा निर्मित, त्रिस्तरीय होती है, जिसकी मोटाई लगभग 50 A होती है। ये कलाएँ चिकनी एवम् (outer) व आन्तरिक (inner) कलाओं से बने आवरण द्वारा घिरा रहता है। प्रत्येक कला लाइपोप्रोटीन वरणात्मक रूप से पारगम्य ( differentially permeable) होती हैं। दोनों कलाओं के मध्य, अन्तर कला स्थान (Inter membrane space) में Mg” आयन आधारित AT Pase पाया जाता है। जो कि अधिक प्रकाश में क्लोरोप्लास्ट संकुचन में भाग लेता है। कलाओं द्वारा आबद्ध दो स्पष्ट तंत्र पाये जाते हैं-

(i) कणिकामय मैट्रिक्स या स्ट्रोमा (Granular matrix or stroma)

क्लोरोप्लास्ट में एक जलीय (watery ) प्रोटीनयुक्त पदार्थ भरा रहता है, जिसे मैट्रिक्स अथवा स्ट्रोमा कहते हैं। इसमें 50% मात्रा में घुलनशील प्रोटीन्स, राइबोसोम्स तथा DNA पाये जाते हैं। इसमें स्टार्च कण तथा ऑसमिओफिलिक बूँदें ( osmiophilic droplets) भी पायी जाती हैं। क्लोरोप्लास्ट की निष्क्रिय अवस्था में इन बूँदों की संख्या बढ़ जाती है। इनके अतिरिक्त मैट्रिक्स में फाइटोपेरिटीन (phytoferetin) कण तथा प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिय अभिक्रिया (Dark reaction) में काम आने वाले सभी एन्जाइम्स तथा विभिन्न वर्णकों व खाद्य पदार्थों के संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाले एन्जाइम्स पाये जाते हैं।

चित्र 2.30 : क्लोरोप्लास्ट की विस्तृत संरचना

ऐसा माना जाता है कि ऑसमिओफिलिक बूँदों में अतिरिक्त लिपिड्स संचित रहते हैं (Green blood et al. 1963) इसी प्रकार फाइटोफेरिटीन (लौह-प्रोटीन-जटिल) में हानिरहित लौह युक्त प्रोटीन्स पाये जाते हैं।

(ii) ग्रेना फ्रेटवर्क तंत्र अथवा पटलिका तंत्र (Grana fretwork system or lamellar system)

इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ्स द्वारा ज्ञात होता है कि क्लारोप्लास्ट में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हेतु आवश्यक वर्णक पटलिका तंत्र (lamellar system) को बनाने वाली चपटी, प्लेटनुमा दोहरी झिल्ली से कोशिकांग एवं केन्द्रकीय पदार्थ

बनी हुई पटलिकाओं (lamellae) में पाये जाते हैं, जिन्हें थाइलेकॉइड्स (thylakoids) भी कहा जा

है (चित्र 2.30 ) । सम्पूर्ण पटलिका तंत्र मैट्रिक्स में धँसा (embedded) हुआ रहता है। उच्च पादपां क्लोरोप्लास्ट में ये वर्णक पटलिका तंत्र के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित होते हैं। इन क्षेत्रों में थाइले

परतों के रूप में, एक के ऊपर एक रखे हुए सिक्कों (coins) के ढेर के समान व्यवस्थित होकर एक विशिष्ट संरचना बनाती हैं, जिसे ग्रेनम (granum) (Plural grana) कहते हैं । ग्रेनम को बनाने वाली प्रत्येक प्लेट अथवा डिस्क दूसरे ग्रेनम की प्लेट से एक नली (fret) द्वारा जुड़ी रहती हैं, जिसे इंटर ग्रेनम (Inter granum) अथवा स्ट्रोमा थाइलेकॉइड कहते हैं। ग्रेना का आकार 0.3 से 1.71. तक हो सकता है।

प्रत्येक ग्रेनम में 50 या इनसे भी अधिक अथवा कम थाइलेकॉइड्स पायी जा सकती हैं। प्रत्येक थाइलेकॉइड अपनी बाहरी सतह द्वारा मैट्रिक्स के सम्पर्क में रहती है तथा इसकी आन्तरिक सतह अन्तः थाइलेकॉइड स्थान (intra thylakoid space) आबद्ध किये रहती है । थाइलेकॉइड कला प्रकाशसंश्लेषी वर्णकों व एन्जाइम्स के लिए विस्तृत कला क्षेत्र (large membrane area) प्रदान करती है। इसकी कला को बनाने वाली प्रोटीन एवम् लिपिड परतों के मध्य क्लोरोफिल अणुओं की परत पायी जाती है। प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय अभिक्रिया ( light reaction) थाइलेकॉइड में ही सम्पन्न होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप बनने वाले उत्पाद ATP व अपचयित को एन्जाइम्स थाइलेकॉइड से मैट्रिक्स में विसरित हो जाते हैं तथा अप्रकाशीय अभिक्रिया (dark reaction) के दौरान CO, के स्थायीकरण में उपयोग में आ जाते हैं (चित्र 2.31 A & B)।

चित्र 2.31 A : एक ग्रेनम में थाइलेकाइड्स की व्यवस्था प्रदर्शित