eukaryotic cells in hindi , यूकैरियोटिक कोशिकाएं किसे कहते हैं , यूकैरियोटिक कोशिका का वर्णन क्या है
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यूकैरियोटिक कोशिकाएँ (Eukaryotic Cells)
यूकैरियोटिक कोशिकाएँ एकल अतः एककोशिकीय जीवों, जैसे- प्रोटोजोआ, शैवाल, आदि के रूप में पायी जाती है, अथवा समूह में बहुकोशिकीय पौधों व जन्तुओं के शरीर का निर्माण करती है। यद्यपि किसी जीव विशेष में तथा पौधों व जन्तुओं में इन कोशिकाओं की आकृति, परिमाप व कार्यिकी में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं, किन्तु एक प्रारूपिक यूकरियोटिक पादप कोशिकीय संगठन मुख्य रूप से तीन भागों से मिलकर बना होता है – (1) कोशिका भित्ति, (2) प्लाज्मा कला, (3) कोशिकाकाय (चित्र 1.3 A)।
यूकैरियोटिक कोशिकाओं के सामान्य लक्षण (General Characters) :
(1) यूकैरियोटिक कोशिकाओं में एक सुस्पष्ट, विकसित तथा दोहरी झिल्ली द्वारा आबद्ध केन्द्रक पाया जाता है, जिसमें केन्द्रिक (nucleolus) व क्रोमेटिन पदार्थ (chromatin material) पाये जाते हैं ।
(2) कोशिकाद्रव्य एक जीवित कला द्वारा आबद्ध रहता है, जिसे प्लाज्मा झिल्ली कहते हैं । इसमें स्टीरोल्स (sterols) पाये जाते हैं ।
(3) पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली, सेल्यूलोज से बनी कोशिका भित्ति द्वारा घिरी रहती है, जिसमें छिद्र पाये जाते हैं, जिनके द्वारा एक कोशिका का कोशिकाद्रव्य दूसरी कोशिका के कोशिकाद्रव्य से जुड़ा रहता है । इन्हें प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) कहते हैं।
(4) जन्तु कोशिकाओं में कोशिकाभित्ति का अभाव होता है व उसके स्थान पर प्लाज्मा झिल्ली पर एक पतला प्रोटीन आवरण पाया जाता है ।
(5) प्रोटोप्लाज्म कोशिकाद्रव्य व केन्द्रक द्रव्य में विभेदित होता है ।
(6) केन्द्रक द्रव्य में DNA व हिस्टोन प्रोटीन जटिल द्वारा निर्मित क्रोमेटिन सूत्रों का जाल पाया जाता है ।
(7) सुस्पष्ट व झिल्ली आबद्ध कोशिकांग, जैसे- माइटोकॉन्ड्रीया, अन्त: प्रद्रव्यी जालिका, गाल्जीकाय, लवक, सूक्ष्मकाय आदि उपस्थित होते हैं ।
(8) 80S प्रकार के राइबोसोम्स पाये जाते हैं।
(9) कोशिका विभाजन के समय समसूत्री उपकरण (स्पिण्डल उपकरण) का निर्माण होता है ।
(10) श्वसन व प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हेतु एन्जाइम्स व अन्य आवश्यक घटक इनसे सम्बन्धित कोशिकांग माइटोकॉन्ड्रीया व हरितलवक में पाये जाते हैं ।
(11) कोशिकाओं में सूक्ष्म नलिकाएँ व सूक्ष्म तन्तु पाये जाते हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखी गयी यूकैरियोटिक कोशिका की परासंरचना में निम्नलिखित मुख्य घटक पाये जाते हैं-
(1) कोशिका भित्ति (Cell Wall) :
कोशिका का बाह्य आवरण जो कि कोशिका झिल्ली के बाहर पाया जाता है तथा कोशिका द्रव्य को चारों ओर से घेरे रहता है, कोशिका भित्ति कहलाता है । यह कोशिका द्वारा स्रावित कठोर, अप्रत्यास्थ (non elastic), छिद्रित व मृत परत होती है। कोशिका भित्ति तीन पर्तों क्रमशः बाहरी व पतली दृढ़, प्राथमिक, मध्य व मोटी द्वितीयक तथा आन्तरिक तृतीयक द्वारा निर्मित होती है । संग में स्थित दो कोशिकाओं की प्राथमिक पर्तें एक-दूसरे से मिडिल लैमिला (Middle lamella) द्वारा जुड़ी रहती हैं। कोशिका भित्ति निर्माण में यह सर्वप्रथम स्रावित होने वाली परत है, जो कि रासायनिक दृष्टि से एक जिलैटिनी पदार्थ पेक्टिन द्वारा निर्मित होती हैं । इस पर प्राथमिक भित्ति का स्त्रवण होता है। प्राथमिक भित्ति सेल्यूलोज तन्तुओं, पेक्टिन व अन्य पदार्थों से मिलकर बनती है। प्राथमिक भित्ति की आन्तरिक सतह पर द्वितीयक भित्ति परत का जमाव होता है जो कि पेक्टिन, लिग्निन व अन्य पदार्थों द्वारा निर्मित । तृतीयक भित्ति परत कुछ विशिष्ट कोशिकाओं, होती है तथा कोशिका को यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करती जैसे- जाइलम वाहिनियों व वाहिनिकाओं में पायी जाती है। रासायनिक संगठन में यह सेल्यूलोज के स्थान पर जाइलेन (xylan) की बनी होती है। कोशिकाभित्ति का मुख्य कार्य प्लाज्मा झिल्ली को यांत्रिक सहायता प्रदान करना है तथा कोशिका की विपरीत वातावरणीय परिस्थितियोंसे रक्षा करना है।
जन्तु कोशिकाओं में कोशिकाभित्ति के स्थान पर ग्लाइकोप्रोटीन्स, ग्लाइकोलिपिड्स एवं पॉली सकैहराइड्स द्वारा निर्मित कोशिकीय आवरण ग्लायोकेलिक्स (Glyocalyx ) पाया जाता है, एन्जाइम्स व एन्टीजन्स भी पाये जाते हैं ।
(2) प्लाज्मा झिल्ली (Plasmamembrane) :
कोशिका की बाहरी जीवित परत प्लाज्मा झिल्ली कहलाती है । यह झिल्ली बहुत पतली, प्रत्यास्थ, छिद्रित तथा अर्धपारगम्य होती है। यह जीवद्रव्य को यांत्रिक सहायता प्रदान करती है तथा उसकी आकृति बनाये रखती है। इसी के साथ कोशिका में होने वाली महत्त्वपूर्ण क्रिया अन्तः परासरण, जिस पर कोशिका की अन्य क्रियाएँ आधारित होती हैं, उसे नियंत्रित करती है। इस दौरान कोशिका अन्दर व कोशिका से बाहर निकलने वाले अणुओं व आयन्स के आवागमन को नियंत्रित करना व कोशिका के बाह्य माध्यम व कोशिकाद्रव्य के आयनिक सान्द्रण में विभिन्नता बनाये रखना भी प्लाज्मा झिल्ली का कार्य है। प्रोकैरियोट्स से विपरीत यूकैरियोट्स में प्लाज्मा झिल्ली द्वारा मीजोसोम्स (Mesosomes ) का निर्माण नहींहोता है तथा वायवीय श्वसन हेतु एन्जाइम्स भी अनुपस्थित होते हैं ।
रासायनिक संरचना में प्लाज्मा झिल्ली लिपिड्स, प्रोटीन्स व कार्बोहाइड्रेट्स की बनी होती है। यह भी त्रिस्तरीय परत है जिसमें बाह्य व आन्तरिक पर्तें पोटीन की बनी होती हैं तथा मध्य परत लिपिड की बनी होती है। परासरण की क्रिया को नियंत्रित करने के अलावा यह अन्तःपायन (Endocytosis) व बाह्य पायन (Exocytosis) की क्रिया द्वारा वृहद् अणुओं के अन्तः गमन व अपशिष्ट पदार्थों के बाह गमन को नियंत्रित करती है।
(3) कोशिकाकाय (Cytosome) :
प्लाज्मा झिल्ली द्वारा आबद्ध आन्तरिक मैट्रिक्स कोशिकाकाय कहलाता है । यह दो भागों द्वारा निर्मित होता है – ( 1 ) कोशिका द्रव्य व (2) केन्द्रक।
(2) कोशिका द्रव्य एक पारभासक, समांगी कलिल द्रव्य है जिसका अकणिकामय भाग एक्टोप्लाज्मा अथवा कोर्टेक्स कहलाता है जो कि कोशिका द्रव्य का अधिक दृढ़ परिधीय भाग बनाता है। कोशिकाद्रव्य में थिक्सोट्रोपिज्म (Thixotropism) का गुण पाया जाता है । अतः यह सॉल (Sol) अवस्था से जैल (Gel) अवस्था व जैल से सॉल अवस्था में परिवर्तित हो सकता है। इसे हायलोप्लाज्म (Hyaloplasm) भी कहते हैं, जिसमें विभिन्न कोशिकांग निलम्बित रहते हैं। कोशिकाद्रव्य की रासायनिक संरचना में विभिन्न प्रकार के अकार्बनिक यौगिक, जैसे- Na, K, Ca तथा Fe के लवण, जल तथा कुछ गैसें, जैसे-ऑक्सीजन, कार्बनडाइ ऑक्साइड आदि घुलित अवस्था में पाये जाते हैं। इनके अलावा कार्बनिक पदार्थ, जैसे-काबा उड्रेट्स, लिपिड्स, प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्ल DNA व RNA तथा विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स पाये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त कोशिकाद्रव्य में जीवद्रव्यी स्ट्रेण्ड्स बिखरे रहते हैं, जिन्हें ट्रोफोप्लाज्म (Trophoplasm) कहते हैं। कोशिका द्रव्य में पायी जाने वाली वे सभी सजीव संरचनाएँ जो कि झिल्ली द्वारा घिरी रहती हैं, कोशिकांग कहलाते हैं जबकि अजीवित संरचनाएँ जैसे- तेल बूंदें, योक कण, वर्णक स्त्रावक कण, उत्सर्जी पदार्थ तथा ग्लाइकोजन आदि कोशिका द्रव्यी अन्तर्वस्तुएँ कहलाती हैं, जो कि कोशिका द्रव्य में निलंबित रहती हैं। सजीव कोशिकांगों में विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले कोशिकांग निम्नानुसार हैं-
(a) माइटोकॉन्ड्रीया (Mitochondria) :
ये अतिआवश्यक बड़े, छड़नुमा अथवा गोलाकार कोशिकांग हैं जो कि कोशिकाद्रव्य में बिखरी हुई अवस्था में पाये जाते हैं। कोशिका द्रव्य में ये एकल अथवा समूह में पाये जा सकते हैं। इनका संरचनात्मक संगठन विशिष्ट होता है। ये लाइपोप्रोटीन से बनी दोहरी झिल्ली द्वारा घिरे रहते हैं। इनमें बाहरी झिल्ली आन्तरिक झिल्ली को चारों ओर से थैलेनुमा संरचना के रूप में घेरे रहती है। आन्तरिक झिल्ली माइटोकॉन्ड्रीया के कक्ष में अंगुली सदृश्य उभार बनाती है जिन्हें क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं । ये क्रिस्टी माइटोकॉन्ड्रीय के आन्तरिक कक्ष में अपूर्ण पट के रूप में दिखाई देती । इनकी सतह पर F, कण पाये जाते हैं जो कि श्वसन क्रिया के दौरान होने वाली फोस्फोराइलेशन ( Phosphorylation) क्रिया से सम्बन्धित होते हैं । माइटोकॉन्ड्रीय के आन्तरिक कक्ष एवं दो कलाओं के मध्य स्थान में एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिसे माइटोकॉन्ड्रीयल मैट्रिक्स कहते हैं। दोनों ही कलाओं पर तथा मैट्रिक्स में विशिष्ट श्वसन एन्जाइम्स एवं कोएन्जाइम्स पाये जाते हैं। इनमें DNA व 70S प्रकार के राइबोसोम्स पाये जाते हैं जिनकी सहायता से ये अपने लिए आवश्यक कुछ प्रोटीन्स अथवा एन्जाइम्स का संश्लेषण करते हैं। कार्यिकी दृष्टि से ये कोशिकांग जैव रासायनिक मशीन होते हैं जिनमें श्वसन क्रिया द्वारा भोजन में संचित ऊर्जा को, कोशिका हेतु उपयोगी ऊर्जा ATP के रूप में बदलने की क्षमता होती है।
(b) लवक (Plastids ) :
ये मुख्य रूप से पादप कोशिका में पाये जाने वाले कोशिकांग है जो कि अपवाद के रूप में कुछ जन्तु कोशिकाएँ, जैसे – यूग्लीना में पाये जाते हैं। ये कोशिकांग कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स तथा लिपिड्स का संश्लेषण व संचय करते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक वर्णक व संचित पदार्थ पाये जाते हैं जिनके आधार पर इन्हें वर्गीकृत किया जाता है । लवकों के विभिन्न प्रकारों में से हरित लवक बहुत ही महत्त्वपूर्ण लवक हैं, जिनमें स्वयं का DNA, राइबोसोम्स व प्रोटीन संश्लेषण हेतु एन्जाइम्स पाये जाते हैं। इसके अलावा इनमें हरा वर्णक क्लोरोफिल पाया जाता है जिसकी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अतिरिक्त दूसरे लवक रंगीन अथवा रंगहीन हो सकते हैं । उदाहरणार्थ- ल्यूकोप्लास्ट रंगहीन लवक है जिसका मुख्य कार्य स्टार्च, लिपिड्स व प्रोटीन्स का संचय करना है । इसी प्रकार फीयोप्लास्ट (फ्यूकोजैन्थीन वर्णक), रोडोप्लास्ट (फाइकोइरिथ्रीन व फाइकोसायनिन वर्णक) व कैरोटिनोइड्स (जैन्थोफिल व कैरोटीन वर्णक) आदि रंगीन लवक हैं।
(c) अन्त: प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) :
यह अन्तरा कोशिकीय कला तन्त्र है जो कि शाखित व अशाखित नलिकाओं, पटलिकाओं एवं पुटिकाओं द्वारा निर्मित जाल होता है। यह कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न क्रियाओं में सक्रिय भूमिका निभाता है। इसका उद्भव प्लाज्मा कला के कोशिका द्रव्य में अन्तर्वलित हो जाने के कारण होता है । यह तन्त्र इकाई कला द्वारा निर्मित तीन प्रकार की संरचनाओं सिस्टर्नी, वेसिकल्स तथा टूयूबूल्स से मिलकर बना होता है। इस तन्त्र की बाहरी सतह कणिकामय अथवा अकणिकामय हो सकती है। कणिकामय सतह पर 250Á व्यास वाले राइबोसोम कण पाये जाते हैं। इन राइबोसोम्स में अणुआ का निर्माण होता है, जिन्हें अन्तःप्रद्रव्यी जालिका की नलियों में स्थानान्तरित कर दिया जाना है। दोनों प्रकार की अन्त: प्रद्रव्यी जालिकाएँ आपस में मिलकर विभिन्न प्रकार के उत्पादों के संचरण में मदद करती है। ये जालिकाएँ प्लाज्मा कला को केन्द्रक कला से जोड़ती हैं तथा कोशिका द्रव्य को यांत्रिक सहायता प्रदान करती हैं। इसके अलावा ये लिपिड्स, कॉलेस्ट्रॉल, ग्लिसराइड्स व ग्लाइकोजन के संश्लेषण में भाग लेती हैं।
(d) गाल्जीकाय (Golgi Complex) :
गाल्जीकाय अथवा गाल्जी सम्मिश्र केन्द्रक के पास स्थित कोशिकांग है जो कि अन्तः प्रद्रव्यं जालिका से सम्बद्ध रहता है। यह भी इकाई कला द्वारा निर्मित नलिकाकार तन्त्र है जिसमें थैलेनुम संरचनाएँ पायी जाती हैं। इसके निर्माण में भी तीन प्रकार की संरचनाएँ, केन्द्रीय चपटे कोश सिस्टनी परिधीय नलिकाएँ तथा पुटिकाएँ वैसीकल्स तथा गाल्जीयन रिक्तिकाएँ भाग लेती हैं। इस तंत्र को बनाने वाली इकाई कला भी लाइपोप्रोटीन्स की बनी होती है जिसका उद्भव अन्तःप्रद्रव्यी जालिका से होता है। द्रव्य पादप कोशिका में गाल्जी सम्मिश्र डिक्टिायोसोम (Dictyosome) कहलाता है जो कि कोशिका: में बिखरी हुई अवस्था में पाया जाता है। इस जटिल में कुछ विशिष्ट एन्जाइम्स जस थायमीन पाइरोफोस्फेट तथा आयनोसिनिक डाइ-फास्फेटेज पाये जाते हैं। डिक्टिायोसोम कोशिका विभाजन के समय कोशिका पट्टिका (cell plate) निर्माण में भाग लेते हैं तथा म्यूसिलेज व अन्य पदार्थों का संश्लेष करते हैं। इसी प्रकार जन्तु कोशिका में यह जटिल स्पर्म के एक्रोसोम निर्माण में सहायक होता है। विभिन्न प्रकार के हार्मोन्स व कार्बोहाइड्रेट्स के संश्लेषण व स्त्रवण में सहायक होता है ।
(e) लाइसोसोम्स (Lysosomes) :
ये बहुत छोटे गोलाकार, बेलनाकार अथवा अनियमित आकृति के पुटिकानुमा, एकल झिल्लों आबद्ध कोशिकांग हैं जिनमें अन्तराकोशिकीय पाचन हेतु जल अपघटनी एन्जाइम्स पाये जाते हैं । अधिकतर जन्तु कोशिकाओं में अधिक संख्या में पाये जाते हैं। कुछ पादप कोशिकाओं, जैसे- विभाज कोशिकाओं में ये कम संख्या में पाये जाते हैं । इनका मुख्य कार्य, कोशिकाशन (Phagocytosis) तथ कोशिकापायन (Pinocytosis) द्वारा कोशिका में प्रवेश करने वाले बाह्य कोशिकीय पदार्थों का पाच करना, अन्तराकोशिकीय पाचन व अपशिष्ट पदार्थों को कोशिका से बाहर निकालना है। इसके अतिरिक् कोशिका विभाजन को गति प्रदान करना है।
(f) सूक्ष्मकाय (Microbodies) :
एकल कला द्वारा आबद्ध संरचनाएँ, जैसे- ग्लाइऑक्सीसोम्स, परॉक्सीसोम्स व स्फीरोसोम्स सूक्ष्मकाय कहलाते हैं।
ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysosmes) :
इस काय में ग्लाइऑक्सीलेट ( Glyoxylate) चक्र के एन्जाइम्स, जैसे – आइसोसिट्रेटलाऐज तथा मैलेट सिंथटेज व अन्य एन्जाइम्स पाये जाते हैं जो कि वसा (Fats) को कार्बोहाइड्रेट्स में परिवर्तित कर देते हैं।
परॉक्सीसोम्स (Peroxysosomes ) :
इनमें हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) के उत्पादन एवं उसके अपघटन हेतु एन्जाइम्स पाये जाते हैं। इसके अलावा प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया के दौरान बनने वाले ग्लाइकोलेट पदार्थों के उपापचय में मदद करते हैं ।
स्फीरोसोम्स (Sphaerosomes) :
इन कोशिकांगों में विभिन्न जलअपघटनी क्रियाओं हेतु एन्जाइम्स पाये जाते हैं । इनमें मुख्य रूप से एसिड हाइड्रोलेज, एसिड राइबोन्यूक्लिएज व एसिड फास्फेटेज पाये जाते हैं । ये वसा के संश्लेषण, संचय व स्थानान्तरण में भी मदद करते हैं ।
(g) सेन्ट्रोसोम (Centrosome) :
यह जन्तु कोशिका में पाया जाने वाला कोशिकांग है । यह कोशिकाद्रव्य में केन्द्रक के पास स्थित होता है तथा सेन्ट्रियोल्स को घेरे रहता है। इस स्थान को सैन्ट्रोस्फीयर कहते हैं। इसमें पाया जाने वाला मैट्रिक्स काइनोप्लाज्म (Kinoplasm) कहलाता है जिसमें सैन्ट्रियोल्स धँसी रहती है। प्रत्येक सैन्ट्रियोल दोनों सिरों पर खुली रहती है तथा”” फाइब्रिलयुक्त इकाइयों द्वारा निर्मित होती है। प्रत्येक फाइब्रिल इकाई में 3 सूक्ष्म नलिकाएँ पायी जाती हैं जो कि एक वृत्त में व्यवस्थित होती हैं। सैन्ट्रियोल्स का मुख्य कार्य कोशिका विभाजन के समय स्पिण्डल तन्तुओं का निर्माण करना है।
(h) राइबोसोम्स (Ribosomes) :
यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80s प्रकार के राइबोसोम्स पाये जाते हैं। ये सूक्ष्म गोलाकार संरचनाएँ हैं जो कि राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन्स द्वारा निर्मित होती हैं। इनका उद्भव केन्द्रिक से होता है । ये कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र रूप से अथवा अन्तःप्रद्रव्यी जालिका पर जुड़ी हुई अवस्था में पाये जाते हैं। कोशिका में प्रोटीन का संशलेषण इन्हीं में होता है।
(i) सीलिया, बेसल बॉडीज तथा फलेजिला (Cilia, Basal bodies and Flagella) :
कुछ यूकैरियोटिक कोशिकाओं में सीलिया व फ्लेजिला पाये जाते हैं। सीलिया कोशिका की सतह पर पायी जाने वाली बहुत छोटी अतिवृद्धियाँ हैं जो कि कोशिका द्रव्य में बेसल बॉडीज अथवा ब्लीफेरोप्लास्ट से जुड़ी रहती है। इन कोशिकाओं में प्रत्येक सीलिया तथा फ्लेजिला 9 + 2 विन्यास प्रदर्शित करते हैं, जिसमें दो केन्द्रीय फाइब्रिल्स को 9 बाहरी फाइब्रिल्स चारों ओर से घेरे रहते हैं। प्रत्येक बाहरी फाइब्रिल दो सूक्ष्म नलिकाओं द्वारा निर्मित होता है।
(j) सूक्ष्म नलिकाएँ (Microtubules) :
पादप व जन्तु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में टूयूबुलिन प्रोटीन द्वारा निर्मित अत्यन्त पतली नलिकाएँ पायी जाती हैं। इन नलिकाओं की भित्ति 13 तन्तुओं से मिलकर बनी होती है। इनका मुख्य कार्य स्पिण्डल तन्तु बनाना व जल तथा आयन्स को कोशिका में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना है ।
(2) केन्द्रक (Nucleus) :
सुस्पष्ट केन्द्रक की उपस्थिति यूकैरियोटिक कोशिका का मुख्य लक्षण है । यह कोशिका का बहुत ही महत्त्वपूर्ण कोशिकांग है जो कि कोशिका में होने वाली समस्त क्रियाओं को निर्देशित व नियंत्रित करता है। यह अधिकतर कोशिका के केन्द्रीय भाग में पाया जाता है तथा दोहरी झिल्ली द्वारा आबद्ध रहता है जिसे कैरियोथिका (Karyotheca) या केन्द्रक आवरण कहते हैं, जिसमें छिद्र पाये जाते हैं। इन छिद्रों द्वारा केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य में पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। केन्द्रक आवरण को बनाने वाली दोनों झिल्लियाँ एक-दूसरे से पेरीन्यूक्लियर स्थान द्वारा अलग रहती हैं। केन्द्रक आवरण के अन्दर रंगहीन, पारदर्शी, समांगी व कलिल द्रव्य पाया जाता है जिसे केन्द्रक द्रव्य कहते हैं । इस केन्द्रक द्रव्य में केन्द्रिक व क्रोमेटिन सूत्र निलंबित रहते हैं । क्रोमेटिन सूत्र न्यूक्लिओप्रोटीन्स (Nucleic acids DNA तथा RNA + प्रोटीन्स) के बने होते हैं। केन्द्रक द्रव्य में फॉस्फोर्स, राइबोज शर्करा, प्रोटीन्स, न्यूक्लिओटाइड्स व न्यूक्लिक अम्ल पाये जाते हैं । केन्द्रिक एसिडोफिलिक प्रकृति की गोलाकार संरचना होती है जो कि केन्द्रक द्रव्य में पायी जाती है। यह राइबोसोमल प्रोटीन्स व r-RNA की बनी होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण में सक्रिय भूमिका निभाती है।
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