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क्वांटम संख्या , मुख्य , द्विगंशी , चुम्बकीय, चक्रण ,एक विमीय बॉक्स , ठोसों की ऊष्माधारिता

quantum numbers in hindi (क्वांटम संख्या , मुख्य , द्विगंशी , चुम्बकीय, चक्रण)
एक विमीय बॉक्स (1D box) : माना की m द्रव्यमान वाला कण a चौड़ाई वाले box में स्थित है।  माना यह कण केवल x दिशा में ही गति करता है एवं x = 0 से x = a के बीच दो मोटी परतों /दीवारों के मध्य रहता है।
यह कण बॉक्स की दीवारों को भेदकर बाहर नहीं जा सकता अर्थात बॉक्स के बाहर कण का अस्तित्व नहीं होता। बॉक्स के अन्दर कण की स्थितिज ऊर्जा को शून्य माना जाता है अर्थात v = 0
बॉक्स की दीवारों पर एवं बाहर स्थितिज ऊर्जा का मान अन्नत लेते है अर्थात v =  

1D box में स्थित कण के लिए श्रोडिंगर समीकरण

ठोसों की ऊष्माधारिता : किसी पदार्थ का ताप 1′ c बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा की उष्माधारिता कहते है।
इसे c से दर्शाते है।
ठोस पदार्थों के लिए स्थिर आयतन ऊष्मा धारिता Cv एवं स्थिर दाब पर उष्माधारिता Cp है का मान समान होता
ठोसों की गतिज ऊर्जा इनके कणों कम्पन्न के कारण होती है।
रुढ यांत्रिकी के अनुसार प्रत्येक कंपन्न की लम्बवत तीन अक्षों के लिए कुल स्वतंत्रता कोटि का मान 3KT/2 होता है।
एक झूलते हुए पेंडुलम के समान कम्पन्न करते हुए प्रत्येक कण की स्थितिज ऊर्जा एवं गतिज उर्जा परस्पर अन्तर परिवर्तित होती रहती है अत: 1 कण परमाणु , अणु या आयन के लिए कुल ऊर्जा E = E + E
E = गतिज ऊर्जा + स्थितिज उर्जा
E = 3KT/2 + 3KT/2
E = 3KT
ड्यूलॉव व पेटिट के अनुसार एक ठोस अणु के लिए ऊष्मा धारिता का मान एक स्थिरांक प्राप्त होता है।
परन्तु यह नियम कई जगह असफल रहता है जिसका कारण उष्माधारिता का ताप के साथ परिवर्तन होना है।
चिरसम्मत सिद्धांत के अनुसार एक ठोस अणु के लिए ऊष्माधारिता का मान ताप पर निर्भर नहीं करता परंतु यह प्रायोगिक रूप से सत्य नहीं है।  वास्तव में ऊष्मा धारिता का मान तापमान के कम होने से घटता है।
तापमान के साथ ऊष्माधारिता के परिवर्तन को आइन्स्टीन ने प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त का उपयोग करके समझाया जिसके अनुसार प्रत्येक ठोस में जो कम्पन्न होता है उससे संबंधित कम्पन्न ऊर्जा होती है अत: जब ठोस पदार्थ को गर्म किया जाता है तो इसकी कम्पन्न ऊर्जा लगातार नहीं बढती अर्थात क्वांटीकृत रूप से बढती है।
प्रश्न : क्वांटम संख्याएं किसे कहते है , इनके महत्व को लिखिए।
उत्तर : किसी परमाणु में नाभिक के चारों ओर पाए जाने वाले electron की ऊर्जा , स्थिति आदि की जानकारी के लिए जिन 4 नियतांको की आवश्यकता होती है उन्हें क्वान्टम संख्या कहते है।
1. मुख्य क्वांटम संख्या (n)
2. द्विगंशी क्वान्टम संख्या (l)
3. चुम्बकीय क्वांटम संख्या (m)
4. चक्रण क्वान्टम संख्या (s)

1. मुख्य क्वांटम संख्या (n)

यह क्वांटम संख्या नाभिक के चारों ओर electron की स्थिति ऊर्जा की जानकारी देती है। यह क्वांटम संख्या दर्शाती है की electron किस कोश में स्थित है।
n = 0,1,2,…….
K,L,M ,N ……
2. द्विगंशी क्वान्टम संख्या (l)
यह क्वान्टम संख्या दर्शाती है की electron किसी कोश के किस उपकोश में है।
किसी n के लिए l के लिए निम्न मान होते है –
n के लिए l = [0,1,2,3………(n-1)]
जैसे n = 1 तो l = 0
n = 2 तो l = 0,1
n = 3 तो l = 0,1,2
अत: किसी कोश में कोश की संख्या के बराबर ही उपकोश होते है।
3. चुम्बकीय क्वांटम संख्या (m)
यह क्वांटम संख्या नाभिक के चारों ओर पाए वाले electron के त्रिविम अभिविन्यास को दर्शाती है , यह क्वान्टम संख्या दर्शाती है की electron किसी उपकोश के किस कक्षक में उपस्थित है।
किसी l के लिए m के मान = -l ……. 0 ……… +l
जैसे l = 0 तो m = 0
l = 1 तो m = -1 , 0 , +1
l = 2 तो m = -2 , -1 , 0 ,+1 , +2
4. चक्रण क्वान्टम संख्या (s)
यह क्वांटम संख्या परमाणु में स्थित किसी electron के चक्रण की दिशा का निर्धारण करती है।  यदि s = +1/2 तो सामान्यतया electron का चक्रण दक्षिणावृत्त (clock wise) , यदि s=-1/2 तो सामान्तया: electron का चक्रण वामावृत (anti clock wise) होता है।