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लैन्थेनाइड संकुचन किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , इसका कारण उदाहरण देकर समझाइए lanthanide contraction definition in hindi

lanthanide contraction definition in hindi लैन्थेनाइड संकुचन किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , इसका कारण उदाहरण देकर समझाइए ?

आयनिक त्रिज्याएँ ( Ionic Radii)

क्षारीय धातुएँ, क्षारीय मृदा धातुएँ तथा लैन्थेनाइड जैसी क्रियाशील धातुओं के रसायन की दृष्टि से उनकी परमाणु त्रिज्याएँ अधिक उपयोगी नहीं होती है क्योंकि हम ऐसी धातुओं का अध्ययन उनके विलयन या यौगिकों में करते हैं और विलयन में ये धातुएँ आयनिक रूप में पायी जाती हैं। लैन्थेनाइड क्रियाशील तत्व हैं। इनके लिए परमाणु त्रिज्या की अपेक्षा आयनिक त्रिज्याओं का अधिक महत्व है। ऊपर बताया जा चुका है कि सभी लैन्थेनाइडों के लिए +3 ऑक्सीकरण अवस्था सामान्य अवस्था है तथा कुछ लैन्थेनाइड +2 या 4 असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं। अतः लैन्थेनाइडों की आयनिक त्रिज्या का विवेचन आगे दिये गये दो प्रकार से किया जा सकता है: (1) सम आवेशित विभिन्न आयनों की तुलना द्वारा, तथा (ii) ‘एक ही लैन्थेनाइड के भिन्न-भिन्न आवेशित आयनों के अध्ययन द्वारा ।

  1. सम आवेशित आयनिक त्रिज्याओं की तुलना समावेशित आयनों की श्रृंखला में जब हम बायीं से दायीं ओर चलते हैं तो नाभिकीय आवेश तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या में हर कदम पर एक-एक की वृद्धि होती है। त्रिधनीय तथा चतुर्धनीय लैन्थेनाइड आयनों में ये इलेक्ट्रॉन 4f इलेक्ट्रॉन होते हैं। Ln3+ आयनों की आयनिक त्रिज्या का परिवर्तन चित्र 4.4 में दिखाया गया है यहाँ यह देखा जा सकता है कि त्रिधनीय लैन्थेनाइड आयनों की त्रिज्या लगभग नियमित रूप से घटती है। बाह्यतम तीन इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से जब Ln3+ आयन बनते हैं तो 4f इलेक्ट्रानों का परिरक्षण प्रभाव 85% (100% के स्थान पर) रह जाता है क्योंकि आयनों में बाह्यतम कोश पाँचवा कोश हो जाने के कारण 4f इलेक्ट्रॉन (n-1) उपान्तिम (Penultimate) इलेक्ट्रॉन हो जाते हैं जिनका परिरक्षण प्रभाव 85% होता है जबकि परमाणुओं मैं अन्तिम कोश छठा कोश होने से 4f इलेक्ट्रॉन (n-2), लगभग 100% परिरक्षण प्रभाव वाले, अन्तराउपान्तिम (Innerpenultimate) इलेक्ट्रॉन होते हैं। फलतः लैन्थेनाइड आयनों में प्रत्येक 4f इलेक्ट्रॉन जुडने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश में 0.15 की वृद्धि होती जाती है। एक परमाणु से तीन इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने पर Ln3+ आयन बनता है तो 4f इलेक्ट्रॉन स्थायी 5s 2p6 बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (जीनान विन्यास) के आवरण के अन्दर ढक जाते हैं। आयनों में 4f इलेक्ट्रॉनों की वृद्धि के साथ-साथ जब नाभिकीय आवेश बढ़ता है तो प्रत्येक इलेक्ट्रॉन के जुड़ने पर बाह्यतम इलेक्ट्रॉनों द्वारा समान प्रभाव अनुभव किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप आयनिक त्रिज्या नियमित रूप से घटने लगती है। यही कारण है कि लैन्थेनाइडों की परमाणु त्रिज्या की अपेक्षा आयनिक त्रिज्या में एक समान व अधिक कमी आती है- श्रृंखला के आरम्भ से अन्त तक जहाँ परमाणु त्रिज्या में मात्र 7.6% कमी आती है, आयनिक त्रिज्या में यह कमी 20% होती है क्योंकि परमाणुओं में (n – 2) कोश में जुड़ने वाले इलेक्ट्रॉन नाभिकीय आवेश में वृद्धि के प्रभाव को लगभग पूर्ण रूप से निरस्त कर देते हैं।

Ln4+ आयनिक त्रिज्या में भी इसी प्रकार का परिवर्तन पाया जाता है जिसका विवेचन भी उपर्युक्त प्रकार से किया जा सकता है। यही कारण है कि चतुर्संयोजकीय आयनों में Ce4+ आयन सबसे बड़ा है तथा दार्यी ओर आने वाले आयन छोटे होते चले जाते हैं जैसा कि चित्र 4.4 में निचली वक्र से स्पष्ट है, अर्थात Tb4+ सबसे छोटा चर्तुसंयोजकीय आयन है। द्विसंयोजकीय आयनों में Eu2+ का Sm2+ से तथा Yb2+ का Tm2 + से छोटा पाया जाना भी Eu2 + तथा Yb 2 + का क्रमश: Sm 2 + तथा Tm से अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश का परिणाम है।

  1. किसी लैन्थेनाइड के विभिन्न आयनों की त्रिज्या :- कुछ लैन्थेनाइड +3 ऑक्सीकरण अवस्था के अतिरिक्त +2 यां +4 अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं। ऑक्सीकरण अवस्था बढ़ने पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या घटेगी। चूंकि नाभिकीय आवेश स्थिर रहता है, प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ने से त्रिज्या घटेगी । यही कारण है कि Ln+ आयन Ln3+ आयनों की तुलना में छोटे होते हैं। इसके विपरीत, ऑक्सीकरण अवस्था +2 होने पर Ln2+ में Ln3+ आयन की अपेक्षा एक इलेक्ट्रॉन अधिक होगा। फलतः प्रभावी नाभिकीय आवेश कम हो जायेगा तथा Lini2+ का आकार Ln3+ की तुलना में बड़ा होगा जैसा कि सारणी 4.4 तथा चित्र 4.3 में दिखाया गया है।

 लैन्थेनाइड संकुचन (Lanthanide Contraction)

लैन्थेनाइड श्रृंखला में परमाणु संख्या बढ़ने के साथ-साथ लैन्थेनम से ल्यूटेसियम परमाणु या La3+ से Lu 3+ आयन तक उनके आकार में निरन्तर कमी आने लगती हैं। आकार में यह कमी लैन्थेनाइड संकुचन के नाम से जानी जाती है’ लैन्थेनाइडों की परमाणु त्रिज्याएँ सारणी-4.4 में दी गयी हैं जिनके अवलोकन से स्पष्ट है कि-

(i) परमाणु त्रिज्या में संकुचन बहुत कम होता है। (rce – rlu = 0.09 A)

(i) परमाणु त्रिज्या में परिवर्तन नियमित नहीं है।

(iii) आयनिक त्रिज्या में संकुचन अपेक्षाकृत बहुत अधिक (~20%) होता है, तथा

(ii) आयनिक त्रिज्या में परिवर्तन एक सा तथा निरन्तर होता है।

उपर्युक्त बिन्दुओं को लैन्थेनाइडों के (i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Pd] 4m 5s2 p6 d0 or 16s2 तथा एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 4f इलेक्ट्रॉन द्वारा अपूर्ण परिरक्षण (shielding) के आधार पर समझाया जा सकता है| परमाणु आकार, वस्तुतः, 6s इलेक्ट्रॉनों की तथा आयनिक आकार 5p इलेक्ट्रॉनों की नाभिक से दूरी द्वारा निर्धारित होता है। हम जानते हैं कि इलेक्ट्रॉन की यह दूरी उस पर नाभिक द्वारा लगाये गये आकर्षण बल का प्रतिफल है जो प्रभावी नाभिकीय आवेश पर निर्भर करता है । लैन्थेनाइडों में एक तत्व से दूसरे तत्व तक जाने में एक इकाई नाभिकीय आवेश तथा एक 4f इलेक्ट्रॉन की वृद्धि होती है। परमाणुओं में यह आने वाला इलेक्ट्रॉन चूँकि (n – 2) कोश में जुड़ता है, स्लाटर के नियमानुसार इसका परिरक्षण नियतांक (screening constant), S, का मान 1 होगा अर्थात् नाभिकीय आवेश में वृद्धि के कारण उत्पन्न आकर्षण बल में वृद्धि इलेक्ट्रॉन – इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण द्वारा पूर्ण रूप से उदासीन हो जायेगी जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश पूरी श्रृंखला में स्थिर (2.65) अपेक्षित है। अतः यह सोचा जा सकता है कि सम्पूर्ण लैन्थेनाइड श्रृंखला में परमाणु त्रिज्या समान रहेगी। परन्तु वास्तविक स्थिति इस सैद्धान्तिक स्थिति से थोड़ी हटकर है। वास्तव में, एक 4f इलेक्ट्रॉन द्वारा दूसरे 4f इलेक्ट्रॉन का पूर्ण परिरक्षण नहीं होता है। 4f कक्षकों की आकृति तथा दिशा विशिष्टता ऐसी होती है कि 4f इलेक्ट्रॉन स्वयं का तथा अन्य इलेक्ट्रॉनों का नाभिकीय आवेश से पूर्णतः परिरक्षण नहीं कर पाते हैं जिसके कारण लैन्थेनाइड श्रृंखला में इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि से प्रतिकर्षण में बढ़ोतरी नाभिकीय आवेश में वृद्धि के प्रभाव को पूर्णतः संतुलित करने में असमर्थ रहती है। परिणामस्वरूप, प्रभावी नाभिकीय आवेश थोड़ा-थोड़ा बढ़ता चला जाता है, जिससे सभी इलेक्ट्रॉन नाभिक की ओर कुछ-कुछ खिंचते चले जाते हैं तथा प्रत्येक परमाणु व आयन अपने से पछले तत्व की तुलना में कुछ सकुचित हो जाता है। सभी परमाणुओं का सकल संकुचन ही लैन्थेनाइड संकुचन है जो लैन्थेनाइड श्रृंखला के अन्तिम तथा प्रथम सदस्यों की त्रिज्याओं के अन्तर के समान है।

इस प्रकार, पूरी लैन्थेनाइड श्रृंखला में 6s इलेक्ट्रॉन लगभग समान नाभिकीय आकर्षण का अनुभव करते हैं । इसके परिणामस्वरूप लैन्थेनाइडों की परमाणु त्रिज्या में बहुत कम कमी आती है। लेकिन लैन्थेनाइड आयनों में, संक्रमण तत्वों की भाँति, संकुचन तुलनात्मक दृष्टि से अधिक होता है क्योंकि संक्रमण तत्वों में नया जुड़ने वाला इलेक्ट्रॉन (n-1) कोश में प्रवेश करता है जिससे मात्र 85% अतिरिक्त नाभिकीय आकर्षण ही उदासीन हो पाता है। अर्थात्, लैन्थेनाइड श्रृंखला में दायीं ओर चलने पर बाह्यतम 5p इलेक्ट्रॉन प्रत्येक कदम पर 0.15 अतिरिक्त नाभिकीय आवेश अनुभव करता है। फलतः लैन्थेनाइड आयनों में परमाणुओं की अपेक्षा अधिक संकुचन पाया जाता है।

चित्र 4.4 को देखने से पता चलता है कि लैन्थेनम व सीरियम के मध्य संकुचन काफी अधिक है तथा यूरोपियम एवं यटर्बियम के परमाणु अपेक्षा से बड़े आकार के हैं। यदि सभी लैन्थेनाइडों की धात्विक संयोजकता तीन होती तो परमाणु त्रिज्याएँ लगभग एक सरल रेखा में पड़ती जिसका कुछ भाग चित्र 4.4 में निचली बिन्दु रेखा द्वारा प्रदर्शित किया गया है। यूरोपियम, तथा यटर्बियम के अत्यधिक बड़े परमाणु आकार, ठोस तत्वों में दुर्बल बंधन की ओर संकेत करते हैं। ये दोनों तत्व अपने स्थायी विन्यासों (अर्धपूर्ण f7 तथा पूर्ण रूप से भरे f14) से बाहर वाले अपने दोनों 6s इलेक्ट्रॉनों का उपयोग करते हुए द्विक धात्विक संयोजकता दर्शाते हैं। इस कथन की इस तथ्य से भी पुष्टि होती है कि बेरियम, यूरोपियम तथा यटर्बियम की परमाणु त्रिज्याओं में एक समान कमी पाई जाती है जिससे ये एक सरल रेखा में पड़ते हैं जैसा कि चित्र 4.4 में ऊपर वाली बिन्दु रेखा से दिखाया गया है। इस प्रकार धात्विक संयोजकता के दृष्टिकोण से यूरोपियम तथा यटर्बियम तत्व बेरियम के अनुरूप हैं।

सीरियम, प्रेसियोडायमियम तथा टर्बियम भी सामान्य से भिन्न आचरण करते हैं लेकिन Eu तथा Yb से विपरीत दिशा की ओर। अर्थात्, ये धातुएँ तीन से अधिक धात्विक संयोजकता दर्शाती हैं। प्रेसियोडायमियम तथा टर्बियम की अपेक्षा सीरियम के परमाणु आयतन में अधिक कमी पाई जाती है जो धात्विक क्रिस्टल के बंधन में Ce4+ आयन के काफी हद तक योगदान की ओर संकेत करती है Pr तथा Tb के परमाणु आयतनों में अपेक्षाकृत थोड़ी कमी का संबंध धात्विक जालक में +4 आयनों की तुलना में त्रिधीय धातु आयनों के अधिक योगदान से बताया गया है।

लैन्थेनाइड संकुचन के परिणाम

लैन्थेनाइड संकुचन का प्रभाव केवल लैन्थेनाइड तत्वों के गुणों पर ही नहीं पड़ता, वरन इस श्रृंखला के बाद में आने वाले तत्वों के गुणों पर भी बहुत अधिक पाया जाता है। वास्तव में, लैन्थेनाइडों तथा उसके बाद में आने वाले तृतीय संक्रमण श्रृंखला के सभी तत्व एवं लैड (82) तक आने वाले p-ब्लॉक तत्वों के असाधारण आचरण सीधे ही लैन्थेनाइड संकुचन के परिणाम हैं। लैन्थेनाइड संकुचन के परिणामों का विवेचन आगे दिये गये शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है (i) लैन्थेनाइडों में बहुत अधिक समानता (i) इट्रियम तथा भारी लैन्थेनाइडों के मध्य समानता (iii) लैन्थेनाइडों के बाद के तत्वों का असामान्य आचरण ।

(i) लैन्थेनाइडों में बहुत अधिक समानताः- इस श्रृंखला में तत्वों की आयनिक त्रिज्या में परिवर्तन बहुत कम होता है- एक तत्व से उसके बाद आने वाले तत्व में औसतन संकुचन लगभग 0.013Åपाया जाता है। यही कारण है कि तत्वों के समूह के रूप में लैन्थेनाइडों की रसायन बहुत अधिक समान है। इतनी समानता आवर्त सारणी में किसी अन्य तत्वों के समूह में नहीं पाई जाती है। फलतः किसी लैन्थेनाइड का जलीय विलयन रसायन किसी दूसरे लैन्थेनाइड के जलीय विलयन रसायन जैसा ही होता है क्योंकि पूरी श्रृंखला के तत्व +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं तथा उनके मध्य मुख्यतः आकार का ही अन्तर पाया जाता है, जो बहुत कम होता है। यही कारण था कि आयन विनिमय तथा क्रोमेटोग्राफी जैसी आधुनिक विधियों की खोज से पहले इन तत्वों का पृथक्करण बहु 7 मुश्किल था ।

(ii) इट्रियम (39) की भारी लैन्थेनाइडों के साथ समानता:- IIIB वर्ग में इट्रियम लैन्थेनम के ऊपर आता है, अतः परमाण्वीय आकार में छोटा होता है (Sc< Y < La)। लैन्थेनाइड तत्वों के आकार में उत्तरोत्तर कमी होने से हम एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं, जहाँ Ho 3 + (67) की आयनिक त्रिज्या y3+ (39) की आयनिक त्रिज्या के लगभग समान हो जाती है। Y3 + (39) की आयनिक त्रिज्या 0.897Å है जबकि La3+ की आयनिक त्रिज्या 1.061Å है। लैन्थेनाइड श्रृंखला में आकार में संकुचन के फलस्वरूप आयनिक त्रिज्या घटती जाती है जिन्हें सारणी 4.4 में दिया गया है। La 3 + आयन से घटना आरम्भ होकर Ho3+ का आयनिक आकार 0.894Å रह जाता है जो Y3+ के आयनिक आकार के अतिनिकट है । यही कारण है कि प्रकृति में इट्रियम भारी लैन्थेनाइडों के साथ पाया जाता है तथा इन तत्वों से इट्रियम को पृथक करना कठिन होता है। इट्रियम के गुण भारी लैन्थेनाइडों से इतने अधिक मिलते-जुलते हैं कि इसे स्केन्डियम का साथी तत्व मानने की अपेक्षा लैन्थेनाइड श्रृंखला का एक सदस्य भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं हैं ।

(iii) क्षारीय तथा जल अपघटन प्रवृत्ति लैन्थेनाइड हाइड्रॉक्साइड, Ln (OH)3, प्रकृति से आयनिक तथा क्षारीय हैं। ये Al(OH) 3 से अधिक प्रबल लेकिन Ca(OH)2 से दुर्बल क्षार हैं। ऊपर बताया जा चुका है कि लैन्थेनाइड तत्वों में बायीं से दायीं ओर प्रभावी नाभिकीय आवेश में कुछ-कुछ वृद्धि तथा आकार में कुछ-कुछ कमी आने लगती है जिससे आयनों पर धनावेश घनत्व लगातार बढ़ता जाता है। चूंकि क्षारीय गुण उसी दिशा में कम होते हैं जिस दिशा में धनावेश घनत्व बढ़ता है, श्रृंखला के हाइड्रॉक्साइडों में La(OH), प्रबलतम तथा Lu (OH), दुर्बलतम क्षार हैं। इस आचरण के समानान्तर ही जलयोजित आयन [Ln (H2O)x] 3 + में जल अपघटन की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है क्योंकि अधिक धनावेश घनत्व वाला आयन जल के OH- समूह से अधिक सबल बंध बनाते हुए H+ आयन मुक्त कर देता है। यही कारण है कि लैन्थेनाइड लवणों के जलअपघटन रोकने के लिए विलयन की अम्लीयता बढ़ानी पड़ती है।

(iv) लैन्थेनाइडों के बाद के संक्रमण तत्वों का असामान्य आचरण :- लैन्थेनाइडों के बाद में आने वाले /-ब्लाक तत्वों के गुण अपने वर्ग के अन्य तत्वों के अनुरूप नहीं हैं। आवर्त सारणी में सामान्य रूप से देखा जाता है कि किसी वर्ग के समस्त तत्वों के गुणों में काफी समानता होती है तथा गुणों में परिवर्तन क्रमिक होता है। यद्यपि संक्रमण धातु वर्गों के प्रथम तथा द्वितीय तत्वों के गुणों में अपेक्षित समानता पायी i) जाती है, लेकिन तृतीय श्रंखला के सदस्यों के गुण इतने अधिक भिन्न होते हैं कि उनके गुणों को उस वर्ग के लिए असामान्य आचरण की श्रेणी में रखा जा सकता है। हम जानते हैं कि लैन्थेनाइड III B वर्ग के सदस्य है। अतः यहाँ IV B तथा उसके पश्चात आने वाले वर्गों के अन्तिम सदस्यों, जो लैन्थेनाइडों के पश्चात् आते हैं, के असामान्य आचरण की विवेचना करेंगे। इस प्रकार के कुछ प्रमुख गुण, जिनमें लैन्थेनाइड तत्वों के बाद आने वाले तत्वों का असामान्य आचरण स्पष्ट होता है, निम्न प्रकार है : (a) भारी संक्रमण तत्वों की अपेक्षाकृत कम परमाणु एवं आयनिक त्रिज्याएँ- सारणी 4.5 को देखने से पता चलता है कि अपेक्षा के अनुसार संक्रमण धातु वर्गों में द्वितीय तत्वों की परमाण्विक एवं आयनिक त्रिज्याएँ प्रथम तत्वों की त्रिज्याओं से अधिक होती हैं। उदाहरण के लिए, Zr की परमाणु एवं आयनिक Zr4+ ) त्रिज्या Ti से लगभग 9% अधिक है लेकिन द्वितीय श्रृंखला से तीसरी श्रृंखला तक आने पर ऐसा नहीं होता है। Hf की परमाणु त्रिज्या एवं आयनिक त्रिज्या (Hf4+) इससे हलके तत्त्व Zr के लगभग समान होती है। इसी प्रकार, पाँचवें वर्ग में Nb + तथा Ta5+, छठे वर्ग में Mo6+ तथा W 6 + एवं सातवें वर्ग में Tc7+ तथा Re7+ लगभग समान आकार के है। यदि लैन्थेनाइड बीच में नहीं आते तो तृतीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की त्रिज्याएं वर्तमान त्रिज्या से लगभग 0.15 A अधिक होती – लेकिन तृतीय संक्रमण तत्वों से पहले आने वाले लैन्थेनाइड तत्वों का लैन्थेनाइड संकुचन उनके आकार में होने वाली अपेक्षित वृद्धि को समाप्त कर देता है ।

(b) वर्गों में भारी संक्रमण तत्वों की अत्यधिक समानता :- संक्रमण तत्व वर्गों के द्वितीय एवं तृतीय सदस्यों के गुणों में द्वितीय एवं प्रथम सदस्यों के गुणों की तुलना में, बहुत अधिक समानता की व्याख्या आयनिक त्रिज्या के आधार पर की जा सकती है। इस कारण, जर्कोनियम तथा हैफनियम, नायोबियम तथा टेन्टेलम, मॉलिब्डेनम तथा टंगस्टेन, टेक्नीशियम तथा रेनियम आदि के गुणों में एक दूसरे से बहुत समानता है जिससे प्रकृति में ये एक साथ पाये जाते हैं।

(b) पश्च लैन्थेनाइड संक्रमण तत्वों की अति उच्च आयनन ऊर्जा तथा विद्युतऋणता-तृतीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनन ऊर्जा के मान तथा विद्युतऋणता में वृद्धि के रूप में भी लैन्थेनाइड संकुचन का प्रभाव देखा जा सकता है। सामान्य रूप से तत्वों के ये गुण ऊपर से नीचे आने पर घटते हैं। इस दृष्टि से वर्गों में प्रथम सदस्यों की आयनन ऊर्जाएँ सर्वाधिक तथा तीसरे तत्वों की आयनन ऊर्जाओं का मान न्यूनतम होना चाहिए। लेकिन लैन्थेनाइड संकुचन के कारण तृतीय संक्रमण श्रृंखला के सदस्यों की आयनन ऊर्जाओं के मान अपने-अपने वर्ग में सर्वाधिक होते हैं। संक्रमण श्रंखलाओं कुछ तत्वों की आयनन ऊर्जाओं के मान, तुलना के लिए सारणी 4.6 में दिये गये हैं।

लैन्थेनाइड संकुचन के कारण, पश्च लैन्थेनाइड संक्रमण तत्वों का प्रभावी नाभिकीय आवेश इतना बढ़ जाता है कि इलेक्ट्रॉन अत्यधिक मजबूती से आकर्षित होते हैं। यदि लैन्थेनाइड तत्व इन तत्वों से पहले नहीं आये होते तो यह आकर्षण इतना अधिक नहीं होता तथा आयनन ऊर्जा भी इतनी अधिक नही होती क्योंकि उस स्थिति में इनके आकार बड़े होते हैं।

साधारणतया आवर्त सारणी के वर्गों में विद्युतॠणता ऊपर से नीचे की ओर कम होती है। लैन्थेनाइड संकुचन के कारण पश्च लैन्थेनाइड तत्वों की सहसंयोजक त्रिज्या द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के अपने सजातीय वर्गों की सहसंयोजक त्रिज्या के लगभग समान हो जाती है। लेकिन पश्च लैन्थेनाइड तत्वों का प्रभावी नाभिकीय आवेश अधिक होने से इनकी विद्युतॠणता (अपने ऊपर के तत्वों की तुलना में) अधिक हो जाती है। यही कारण है कि संक्रमण वर्गों में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत्णता पहले तो घटती है, लेकिन बाद में बढ़ती है।

(c) उच्च घनत्व-लैन्थेनाइड संकुचन के कारण लैन्थेनाइडों के बाद में आने वाले तत्वों के परमाणु बहुत छोटे हो जाते हैं जिसके कारण धात्विक क्रिस्टलों में परमाणुओं का संकुलन घना’हो जाता है तथा तत्वों के घनत्व उच्च हो जाते हैं। अतः जबकि द्वितीय श्रृंखला के तत्वों के घनत्व प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों के घनत्वों से कुछ ही अधिक होते हैं, तृतीय श्रृंखला के तत्वों के घनत्व द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों के घनत्वों से लगभग दुगने होते हैं जैसा कि निम्न सारणी से स्पष्ट है।