Insect hormones in hindi and their functions , कीटों के हार्मोन के नाम कार्य क्या है , प्रभाव
कीटों के हार्मोन के नाम कार्य क्या है , प्रभाव Insect hormones in hindi and their functions ?
कीटों के हार्मोन्स (Insect hormones)
कीटों द्वारा स्रावित किये जाने वाले हार्मोन्स को दो श्रेणियों में विभक्त करते हैं।
- अ- तन्त्रिका हार्मोन्स (Non-neural hormones)
- तन्त्रिकीय हार्मोन्स (Neural hormones)
- अ-तन्त्रिकीय हार्मोन्स (Non – Neural hormones) : इस श्रेणी के हार्मोन्स अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित होते ह। न कि तन्त्रिका कोशिकाओं से ये निम्न है हैं :
- हाइपरग्लाइसेमिक हार्मोन (Hyperglycemic hormone) : यह हार्मोन कॉर्पोरा कार्डिएका की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओ से स्रावित किया जाता है। इसे अतिग्लूकोस रक्तता स्रावी हार्मोन कहते हैं। यह कीटों में उड़ान के समय स्रावित किया जाता है। यह काइनेस एन्जाइम को सक्रिय करता है। काइनेज निष्क्रिय फॉस्फोरिलेज को सक्रिय अवस्था में रूपान्तरित कर देता है। यह एन्जाइम ग्लाइकोजन को विखण्डित कर ग्लूकोज में बदल देता है जिसकी इस समय ऊर्जा (ATP) उत्पादन हेतु आवश्यकता होती है।
- एडिपोकाइनेटिक हार्मोन (Adipokinetic hormone) : कीटों की माँसपेशियों में संग्रहित ग्लाइकोजन आरम्भिक लघु उड़ानों हेतु उपयुक्त ऊर्जा स्रोत होता है किन्तु लम्बी उड़ानो हेतु वसा ऊत्तकों (एडीपोज ऊत्तकों) में संग्रहित वसा का उपयोग किया जाता है। कॉर्पोरा कार्डिएका द्वारा स्रावित यह हार्मोन वसा ऊत्तकों को विखण्डित कर देता है। परिवर्धन काल में कॉर्पोरा कार्डिएका में नियमित चक्र पाया जाता है। परिवर्धन के समय इस ग्रन्थि के आकार में नियमित रूप से परिवर्तन देखे जाते हैं। ये परिवर्तन इस ग्रन्थि में हार्मोन के संग्रह एवं मोचन से सम्बन्धित होते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इस ग्रन्थि के आकार में परिवर्तन परिवर्धन एवं निर्मोचन (moulting ) से सम्बन्धित होते हैं। ये परिवर्तन विनिर्गमन (eclosion) एवं निर्माचन में कार्यिकी समानता को प्रदर्शित करते हैं।
- बाल हार्मोन (Juvenile hormone) : यह हार्मोन कॉर्पोरा ऐलटा द्वारा स्रावित किया जाता है। अलग-अलग कीट जातियों में इसका रासायनिक संगठन भिन्न प्रकार का हो सकता है। एक ही कीट की भिन्न-भिन्न परिवर्धनीय अवस्थाओं में भी इसकी रासायनिक संरचना भिन्न प्रकार की हो सकती है। रासायनिक तौर पर यह तीन टेरिपिनॉइड का मिश्रण होता है। इस आधार पर यह हार्मोन JH-1 (C-18 JH), JH-II (C-17 JH) एवं JH-III (C-16 JH) कहलाता है। विभिन्न कीट समूह में ये तीन प्रकार के हार्मोन प्रथकित किये गये हैं। यह हार्मोन कायान्तरण के साथ ही साथ प्रजनन अंगों के विकसित होने में नियन्त्रण करता है। JH निओटेनिन (neotenin) भी कहलाता है। रोलर (Roller. 1967-90) के अनुसार यह मिथाईल 10, 11 एपोक्सी – 7, इथाईल – 3 – 11 डाइमिथाईल – 2,6. डाई डेकोडेओनेट होता है। JH के द्वितीय प्रतिरूप को मेयर व साथियों (Meyer and Colleagues, 1969-70) ने मिथाईल, 10 11 एपोक्सी 3. 7. 11 ट्राइमिथाईल 2. 6 ट्राइडेकाडियोनेट के रूप में पहचाना है।
- एक्डाइसोन हार्मोन (Eedysone hormone) : यह प्रोथोरेसिक ग्रन्थि से स्रावित किया जाता है। इसे निर्मोचन हार्मोन (moulting hormone) भी कहते हैं। कार्लसन एवं बुटेनान्डट (Karlson and Butenandt, 1954) ने इसका क्रिस्टलीकरण करने में सफलता प्राप्त की। रासायनिक रूप से यह तीन रूपों ca-एक्डाइसीन, B- एक्डाइसोन तथा 20-26 हाइड्राक्सी एक्डाइसोन में पाया जाता है। यह एक प्रकार का स्टिरॉयड है। कोलेस्टिरॉल सम्भवतः इसका पूर्ववर्ती पदार्थ होता है। इसका मूलानुपाती सूत्र C27H0% होता है। कीटों में कोलेस्टिरॉल का संश्लेषण नहीं किया जाता है। पादपभक्षी कीटों में पादप स्टिरॉयड को कोलेस्टिरॉल में परिवर्तन की क्षमता उपस्थित होती है। माँसाहारी कीट इसे अपने शिकार से प्राप्त कर लेते हैं। प्रोथोरथिक ग्रन्थि B – एक्डाइसोन को स्रावित करती है। यह लक्ष्य अंगों में 0 – एक्डाइसोन में परिवर्तित कर दिया जाता है। यह लार्वा के परिवर्धन के समय निर्मोचन क्रिया का नियमन करता है। प्यूपा का वयस्क में रूपान्तरण की क्रिया का नियमन भी इसी के द्वारा किया जाता है। वयस्क कीट में यह ग्रन्थि अदृश्य हो जाती है।
- अण्डाशयी हार्मोन (Ovarian hormone ) : यह हार्मोन अण्डाशय की पुटक को कोशिकाओं (follicle cells) से स्रावित होता है। यह वसा पिण्डों पर कार्य करता है। यह पीतक संश्लेषण की क्रिया का नियमन करता है।
- तन्त्रिकीय हार्मोन्स (Neural hormones) : इस श्रेणी के हार्मोन्स तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं से स्रावित किये जाते हैं। इस समूह के प्रमुख हार्मोन्स निम्न हैं:
- विनिर्गमन हार्मोन (Eclosion hormone) : यह पेप्टाईड प्रकृति का हार्मोन है। इसका संग्रह कॉर्पोरा कार्डिएका में किया जाता है। यह विनिर्गमन की क्रियाओं का नियमन करता है। यह निर्मोचन सम्बन्धी व्यावहारिक क्रियाओं का नियमन भी करता है। हेमिमेटाबोलस (hemimetabolous) प्रका के कीटों में यह हार्मोन नहीं पाया जाता। होलोमेटाबोल्स (holometabolous) प्रकार के कीटों में प्यूपा के वयस्क में रूपान्तरण के समय केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में होने वाले परिवर्तनों का नियमन सम्भवतः यह हार्मोन करता है।
- बर्सिकान (Bursicon) : यह हार्मोन मस्तिष्क की विभिन्न तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं द्वारा सावित किया जाता है। यह पॉलिपेप्टाइड प्रकृति का हार्मोन है। सम्भवतः यह अधर तन्त्रिका रज्जु च्छों से सम्बन्धित न्यूरोहीमल अंगों में पाया जाता है। यह हार्मोन त्वकच्छेदन (एकडाइसिस) के पश्चात् तनुत्वक में स्क्लैरोशियम भवन या दृढ़ीकरण (sclerotisation) की क्रिया को प्रेरित करता है एवं वक्षीय गुच्छक से इसका मोचन किया जाता है। अन्य कीटों में यह उदर के अन्तस्थ गुच्छक से मुक्त किया जाता है। इस हार्मोन का अणुभार 40,000 है। यह जाति विशिष्ट नहीं होता। सम्भवतः यह बहिस्रवण की क्रिया द्वारा निर्मुक्त किया जाता है।
- एलैन्टोट्रापिन (Allantotropin ) : यह मस्तिष्क की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं से स्रावित किया जाता है एवं JH के उत्पादन को प्रेरित करता है।
- डाइयूरेटिक हार्मोन (Diuretic hormone) : यह वक्षीय गुच्छक की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं से स्रावित किया जाता है। यह मैलपीघी नलिकाओं व मलाशय की कोशिकाओं पर प्रभाव डाल कर मूत्रलता ( diuresis) क्रिया का नियमन करता है।
- एक्डायसिओट्रापिन (Eedysiotropin ) : यह प्रोटोसेरेब्रम की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं स्रावित किया जाता है। यह एक्डाइसोन हार्मोन के संश्लेषण एवं स्रावण की क्रिया का नियमन करता है।
- संगम निरोधी हार्मोन (Mating Inhibiting hormone) : यह हार्मोन नर प्रजनन सहायक ग्रन्थियों से स्रावित किया जाता है। इसका लक्ष्य अंग मस्तिष्क होता है। यह पुन: संगम (remating ) को रोकता है। इस प्रकार जनन चक्र का नियमन करता है।
- अण्डनिक्षेपण आरम्भन हार्मोन (Oviposition initiation hormone) : यह हार्मोन मादा की सहायक प्रजनन ग्रन्थियों द्वारा स्रावित किया जाता है। यह अण्ड – निक्षेपण ( oviposition) की क्रिया को नियन्त्रित करता है ।
- हृदय त्वरक हार्मोन (Cardio accelerator hormone) : यह हार्मोन मस्तिष्क द्वारा स्रावित किया जाता है। इसका लक्ष्य अंग मायोकार्डियम होता है। यह हार्मोन हृदय पेशियों में कुंचन आकुंचन की गतियों का नियमन करता है ।
है। इसके 9. प्रोलैक्टिन (Prolactin): यह हार्मोन कॉर्पोरा कार्डिएका से स्रावित किया जाता लक्ष्य अंग आन्तरंग पेशियाँ, हृदय एवं अण्डवाहिनियाँ होती है। यह पेशी संकुचन, मल त्याग, अण्ड निक्षेपण, हृदय गति जैसी क्रियाओं का नियमन करता है ।
कीटों में विभिन्न क्रियाओं पर अन्तःस्रावी प्रभाव (Endocrine effect on different activities of insects)
- वृद्धि एवं परिवर्धन का तन्त्रिका अन्तःस्रावी नियमन (Neuroendocrine regulation of growth and development) : अन्य आर्थ्रोपोड जन्तुओं की भाँति कीटों में भी वृद्धि असतत् (discontinuous) प्रक्रिया के रूप में होती है अर्थात् यह अण्डे से लावा, प्यूपा या इनस्टार (instars) जैसी प्रावस्थाओं से होती हुई परिपक्वता तक देखने में आती है। प्रत्येक इन्स्टार अवस्था के अन्त में निर्मोचन की क्रिया होती है। इस क्रिया के अन्तर्गत इस अवस्था का पुराना, छोटा, बाह्य कंकाल (exoskeleton) उतार कर फेंक दिया जाता है तथा इन्स्टार की देह पर इसके स्थान पर नया व बड़े आमाप का बाह्य स्रावित किया जाता है। इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य कीट में वृद्धि के फलस्वरूप विकसित अंग-तंत्रों को पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराना है। अन्तिम निर्मोचन का हो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि इस काल में लारवा के लक्षणों का ह्रास होता है एवं वयस्क कीट के लक्षण ग्रहण किये जाते हैं। यह परिवर्तन ही कायान्तरण या मेटामॉरफोसिस (metamorphosis) कहलाता है।
तिलचट्टों, टिड्डियों व दीमक जैसे कीटों में परिवर्धन हेमीमेटाबोलस (hemimetabolous) प्रकार का होता है अर्थात् अण्डे से विकसित अवस्था निम्फ ( nymph) कहलाती है। ये निम्फल प्रावस्थाएँ (nymphal stages) एक बढ़ते क्रम में इस प्रकार विकसित होती है कि अन्तिम निम्फ बिल्कुल वयस्क के लक्षणों के समान ही दिखाई देता है । प्रत्येक निम्फ निर्मोचन पर बाह्य कंकाल का बदलाव भी करता है । अन्तिम निम्फ अवस्था में व वयस्क कीट में विकसित पंखों का, , जनदों का एवं जन्तु के आमाप का अन्तर पाया जाता है।
बरों या वास्प, चींटी, मक्खी, भृंग व तितली जैसे कीटों में परिवर्धन होलोमेटाबोलस (holometabolous) प्रकार का होता है। इनमें अण्ड से विकसित इनस्टार केटरपिलर (caterpillar) इल्ली या मेगट (maggots) एवं लट या ग्रब (grub) कहलाते हैं जो कायान्तरण की क्रिया होने पर पूर्ण विकसित कीट, इमेगों (imago) में विकसित होता है । पूर्ण विकसित कीट व परिवर्धन की .. विभिन्न अवस्थाओं में लक्षणों के आधार पर बहुत अधिक भिन्नता होती है। मच्छरों के लावा, प्यूपा व वयस्कों की आकृति, केटरपिलर व तितली आदि से सभी परिचित है।
सबसे प्रारम्भिक पंखरहित कीटों जैसे लेपिस्मा या सिल्वर फिश में सतत् वृद्धि होती है। इस प्रकार का परिवर्धन सरलतम प्रकार का एमेटाबोल्स (ametabolous) कहलाता है।
(i) तन्त्रिका स्रावी नाभिकों से जो कि प्रमस्तिष्क में उपस्थित होते हैं से एक्डायसिओट्रापिन (ecdysiotropin) नामक तन्त्रिका स्रावी पदार्थ का स्रवण किया जाता है। यह कॉर्पस कार्डिएका में संग्रहित होता है। यह वसीय प्रकृति का होता है इसे मस्तिष्क हार्मोन (brain hormone) BH भी कहते हैं। उद्दीपन दिये जाने पर यह कॉर्पस कार्डिएका से मुक्त होता है । यह तन्त्रिका स्रावी चाप (arc) अपने अभिवाही पथ द्वारा जो कि परिधीय ग्राही (proprio receptors) द्वारा रचित होता है, तन्त्रिका रज्जु (ventral nerve cord) द्वारा आवेग प्रेषित करता है।
(ii) एक्डायसिओट्रापिन हार्मोन प्रोथोरेसिक या एक्डायसिल ग्रन्थि को एक्डायसोन (ecdiosone) या निर्मोकी हार्मोन स्रवण हेतु उत्तेजित करता है अतः निर्मोचन की क्रिया होती है।
कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इस क्रिया हेतु तीन प्रकार से नियन्त्रण होता है। (a) अधर तन्त्रिका रज्जु से उग्दमित तन्त्रिका स्रावी कणिकाओं के मुक्त होने से (b) एक्डायसोन द्वारा स्वउद्दीपन से (c) जुवेनाइल हार्मोन JH के उद्दीपन या संदमन प्रभाव से ।
एक्डायसोन के प्रभाव से कंकाल उतारने की क्रिया एवं उत्तकों के विभेदन की क्रिया होती है जो वयस्क अवस्था में परिवर्धन हेतु आवश्यक होती है।
चित्र 11.5 : मोथ में तन्त्रिका अन्तःस्रावी का नियन्त्रण वृद्धि व निर्मोचन पर (iii) कॉर्पोरा एलेटा से जुवेनाइल हार्मोन (Juvenile hormone) JH स्रवित होता है जो कीट को जुवेलाइल अवस्था अर्थात् लारवास्था में ही बने रहने हेतु प्रभाव दर्शाता है।
यह हार्मोन उपरति (diapause) अर्थात् प्रसुप्त ( dormant ) अवस्था को बढ़ाने हेतु आवश्यक होता है। डायपॉज वह शांत अवस्था है जिसमें कीट इस प्रावस्था में रहकर प्रतिकूल परिस्थितियों के •गुजरने तक अथवा पर्याप्त वृद्धि हेतु आवश्यक समय के चाहने हेतु बिताता है। यह अवस्था अण्ड लारवा, प्यूपा या वयस्क में आवश्यकता के समय उत्पन्न की जाती है। इस अवस्था में कीट का परिवर्धन कुछ समय के अन्तराल हेतु रूक जाता है। क्रियात्मक अवस्था के रूप में यह अल्प सक्रिय उपापचयी अवस्था है। इसमें देह के भीतर जल की मात्रा का ह्रास होता है। इस काल में संवेदनशील क्रियाओं में ह्रास होता है। असहनशील वातावरणी कारकों से छुटकारा पाने का यह एक साधन है जो खण्ड से वयस्क तक कभी भी उपयोग में लाया जाता है। मादा के द्वारा अण्डे यदि ऐसे समय में दिये जाते हैं जब दिन अधिक लम्बा तथा तापक्रम अधिक होता है तो अण्डों में डायपॉज की अवस्था पायी जाती है ताकि भ्रूणीय विकास के दौरान किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न न हो। बॉम्बिक्स मोरी (Bombyx mori) में डायपॉज उत्पन्न करने हेतु अधो ग्रसिका गुच्छकों की कोशिकाओं द्वारा तन्त्रिका स्रावी स्रवणों का संश्लेषण उसी समय आरम्भ होता है जब अण्डे जनन वाहिनियों में ही होते हैं। लारवा या प्यूपल अवस्थाओं में डायपॉज अपेक्षाकृत कम ही पाया जाता है। प्यूपल डॉयपॉज वयस्क बनने से पूर्व आवश्यकता से कम तापक्रम होने के कारण पाया जाता है। एक्डिसियल ग्रन्थियों से स्रवित एक्डायसोन हार्मोन डायपॉज अवस्था को समाप्त करता है।
चित्र 11.6 : कीटों में वृद्धि एवं कायान्तरण पर तन्त्रिका स्रावी स्रवणों के नियमन का
रेखाचित्र
हार्मोनों के उपरोक्त प्रभावों के परीक्षण से ज्ञात होता है कि देह की प्रत्येक कोशिका अपरिपक्व अथवा परिपक्व कीट लक्षणों के लिये जीन्स के एक से अधिक युग्मों (multiple sets of genes) परनिर्भर करती है। अतः किसी विशिष्ट जीन के युग्म को हारमोनों के द्वारा उद्दीप्त किये जाने पर एक विशेष प्रका की क्रियाओं द्वारा ही निर्मोकी क्रियाएँ सम्पन्न होती है एवं परिवर्धन चक्र पूर्ण होता है। अतः इन दोनों हार्मोनों की पर्याप्त मात्रा ही यह तय करने में सक्षम होती है कि निर्मोचन हो अथवा लारवा अवस्था के लक्षण ही कुछ समय तक बने रहें प्रत्येक निर्मोक के उपरान्त भी JH उस नव निर्मोक के लक्षणों के बने रहने हेतु आवश्यक होता है।
- जनन-चक्र का नियमन (Regulation of reproductive cycle) : जनदों की क्रिया पर अनेकों आन्तरिक स्रवणों का नियंत्रण होता है। अनेक कीटों के अण्ड के पीतक (yolk) के संग्रह किये जाने की क्रिया हेतु JH आवश्यक होता है। इसी प्रकार का प्रभाव शुक्राणुधरों (spermatophoes) के बनने हेतु पाया जाता है। अण्डों के परिपक्व होने हेतु इस हार्मोन के अतिरिक्त BH की आवश्यकता भी होती है।
चित्र 11.7 : तिलचट्टे में अण्डोत्सर्ग की क्रिया पर अन्तस्रावी एवं तन्त्रिकीय नियन्त्रण बिरसोट्रिया (Byrspotrid) नामक मादा तिलचट्टा कॉर्पस एलेटा से वाष्पशील (volatile) लिग आकर्षी पदार्थों का स्रवण करता है जो कीट के मैथुन व्यवहार को प्रभावित करता है। जनदनाशन का इस प्रकार की क्रियाओं में कोई प्रभाव नहीं होता किन्तु कॉर्पस एलेटा को देह से शल्य क्रिया. द्वारा हटा देने पर जन्तु में लिंग फेरोमोन्स का स्रवण नहीं होता। इस प्रकार की क्रियाओं का नर कीट के जनन व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है।
सिल्क कृति बोम्बिक्स (Bombyx) में प्रोथोरेसिक ग्रन्थि जनन क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका
रखती है। इससे स्रवित हार्मोन दोनों लिंग के कीटों में लैंगिक परिपक्वता हेतु आवश्यकता होते हैं।
- उपापचय पर हार्मोनों का प्रभाव (Effect of Hormones on Metabolism) : अनेक तिलचट्टों के कॉर्पोरा कार्डिएका से अधि-ग्लूकोस प्रभावी कारक (hyperglycemic factor) के स्रवित होने की जानकारी प्राप्त हुई है जिनके प्रभाव से कीट के रक्त में शर्कराओं की मात्रा में वृद्धि होने के प्रमाण मिलते हैं। यह क्रिया वसीय ऊत्तकों में फॉस्फोराइलेज एन्जाइम के तन्त्र को उत्तेजित किये जाने के परिणामस्वरूप होती है। कॉर्पोरा एलेटा की क्रियाओं में कमी होने पर कोट में वसाओं के संश्लेषण को प्रभावित कर डायपॉज हेतु प्रेरित करता है। मस्तिष्क एवं कॉर्पस एलेटा से स्रवित तन्त्रिका स्रावी स्रवण कीट के प्रोटीन उपापचय को प्रभावित करते हैं।
- परासरण-नियमन (Osmo-regulation) : तन्त्रिका स्रावी अंगों एवं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से मूत्रल तथा प्रतिमूत्रल अथवा डाइयूरेटिक तथा एंटीडाइयूरेटिक ( diuretic and antidiuretic) कारकों के स्रावित किये जाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं किन्तु इनका मैल्पीघी नलिकाओं पर किस प्रकार
नियंत्रण होता है, इसकी जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं है।
- वर्णक परिवर्तन एवं अनुकूलन (Colour changes and Adaptation) : कीटों के विभिन्न समूहों में देह का रंग या वर्ण परिस्थितियों के वश अथवा क्रियात्मक सक्रियता (Physical activity) हेतु किये जाने के प्रमाण है। क्रियात्मक सक्रियता हेतु वर्णक परिवर्तन अधोग्रसिका गुच्छकों (suboesophageal ganglion) में स्थित अन्तःस्रावी तन्त्रिका कोशिकाएँ एवं तृतीय मस्तिष्क (tritocerebrum) में स्थित अन्तःस्रावी कोशिकाएँ न्यूरोहार्मोन्स के द्वारा किया जाता है। कॉर्पोरा कार्डिएका में स्रावित हारमोन का भी इसी प्रकार का किन्तु क्षीण प्रभाव उत्पन्न होता है। इन कारकों के प्रभाव से उपकला का गहरे वर्ण का होना पाया जाता है। वातावरणी कारकों के प्रभाव से वर्णक परिवर्तन क्षीण प्रभाव उत्पन्न करते हैं। वातावरणी कारकों के प्रभाव से वर्णक परिवर्तन एक्डायसॉन व जुवेनाइल हार्मोन संयुक्त प्रभाव रखते हैं।
ग्रास हापर की अनेक प्रजातियों में हरे व भूरे वर्णक में में बहुरूपता पायी जाती है। हरे वर्णक का निर्माण JH द्वारा निर्मोचन के समय होता है। कॉर्पोरा ऐलटा की क्रियाशीलता तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं द्वारा नियंत्रित रहती है। इनमें से कुछ JH के मोचन को प्रेरित करते हैं जबकि कुछ इसे अवमन्दित भी करते हैं।
लोकस्ट के निम्फ में वर्णकता का नियमन दो हार्मोन्स के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। JH हार्मोन की मात्रा अधिक होने पर हरे रंग का वर्णक उत्पन्न किया जाता है किन्तु इसकी मात्रा कम होने पर पीला वर्णक उत्पन्न होता है। JH हार्मोन की सान्द्रता बढ़ने के साथ ही काले वर्णक की मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न (Questions)
- निम्नलिखित प्रश्नों का लघु उत्तर दीजिए ।
(Write short answers of the following questions) (i) कीटों में प्रमुख अन्तःस्रावी रचनाओं के नाम बताइये ।
(ii) कीट के तन्त्रिका स्रावी तन्त्र का चित्र बताइये ।
(iii) कीट के अन्तःस्रावी तन्त्र एवं प्रमस्तिष्की तन्त्रिका स्रावी जटिलांगों का नामांकित चित्र बनाइये।
(iv) कीट के मस्तिष्क में कौन सी तन्त्रिका स्रावी केन्द्रिकाएँ हार्मोन स्रावित करती है ? इनके
नाम बताइये।
कीट के एक न्यूरोहीमल अंग की संरचना व कार्य बताइये।
(vi) निर्मोकी ग्रन्थि की संरचना व कार्य बताइये ।
(vii) निओटेमिन किस अन्तःस्रावी अंग से स्रावित किया जाता है ? इसके कार्यों पर प्रकाश
डालिये।
(viii) कीटों के अन्तन्त्रिकीय हार्मोन्स के नाम व कार्य बताइये। (ix) कीटों के तन्त्रिकीय हार्मोन्स के नाम व कार्य बताइये। (x) मस्तिष्क हार्मोन की प्रकृति व कार्यों का उल्लेख कीजिये । 2. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये।
(Write short notes on the following)
(i) एक्डायसोन
(ii) मस्तिष्क हार्मोन
(iii) जुवेनाइल हार्मोन
(iv) प्रोथोरेसिक ग्रन्थि
(v) कॉर्पोरा एलेटा
(vi) कॉर्पोरा कार्डिएका
(vii) तन्त्रिका स्रावी कोशिकाएँ (viii) डायपाज या उपरेति
(ix) निर्मोचन
(x) हाइपरग्लाइसेमिक हार्मोन
(xi) एडिपोकाइनेटिक हार्मोन (xii) बर्सिकाल
(xiii) कायान्तरण का हार्मोन नियन्त्रण
(xiv) कीटों में जनन क्रिया का हार्मोनीय नियन्त्रण
(xv) कीटों में उपापचय पर हार्मोनीय नियंत्रण (xvi) कीटों में परासरण नियमन
(xvii) कीटों में वर्णक परिवर्तन (xviii) कीटों के हार्मोन्स
- निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दीजिये ।
(Give answers of the following questions in detail)
(i) कीटों की अन्तःस्रावी रचनाओं का वर्णन कीजिये ।
(ii) कीटों के हार्मोन्स पर निबन्ध लिखियें।
(i) कीटों के /हार्मोन्स द्वारा नियन्त्रित क्रियाओं पर लेख लिखिये।
(iv) कीटों में अन्तःस्रावी तन्त्र पर लेख लिखिये ।
(v) कीटों में वृद्धि व परिवर्धन पर हार्मोन नियन्त्रण पर लेख लिखिये।
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