chemistry of lanthanide elements bsc 2nd year in hindi , आवर्त सारणी में स्थान (Position in Periodic Table)
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लैन्थेनाइड तत्वों का रसायन (Chemistry of Lanthanide Elements)
परिचय (Introduction)
सामान्य संक्रमण तत्वों में बाह्यतम दो कोश आंशिक रूप से भरे होते हैं। एक अन्य प्रकार के संक्रमण तत्व और भी पाये जाते हैं जिन्हें अन्तर्भूत संक्रमण तत्व (inner transition elements) कहते हैं। ये सामान्य संक्रमण तत्वों से इस बात में भिन्न हैं कि इनमें बाह्यतम तीन कोश आंशिक रूप से भरे होते हैं। सामान्य संक्रमण तत्वों में इलेक्ट्रॉन (n-1)d कक्षकों को भरते हैं जबकि अन्तर्भूत संक्रमण तत्वों में इलेक्ट्रॉन (n – 2)/ कक्षकों में भरे जाते हैं। अतः अन्तर्भूत संक्रमण तत्व आवर्त सारणी के ∫ खण्ड का निर्माण करते हैं, जिसमें दो श्रृंखलाएँ होती है। चूँकि कक्षकों में अधिकतम 14 इलेक्ट्रॉन भरे जा सकते हैं, प्रत्येक अन्तर्भूत संक्रमण श्रृंखला में 14 तत्व होते हैं। दो अन्तर्भूत संक्रमण श्रृंखलाएँ ज्ञात हैं- प्रथम श्रृंखला लैन्थेनाइड श्रृंखला है। यह श्रृंखला लैन्थेनम (57) के पश्चात् सीरियम (58) से आरम्भ होकर ल्यूटेशियम (71) तक चलती है। दूसरी श्रृंखला को ऐक्टिनाइड श्रृंखला कहते हैं क्योंकि यह ऐक्टिनियम (89) के पश्चात आने वाले 14 तत्वों, थोरियम (90) से लारेन्सियम (103) तक से बनी होती है। इस श्रृंखला में इलेक्ट्रॉन 5 / कक्षकों में प्रवेश करते हैं।
लैन्थेनाइड श्रृंखला के सदस्यों को साधारणतया लैन्थेनाइड, लैन्थेनॉन या दुर्लभ मृदा तत्वों (rare earth) के नाम से पुकारा जाता है। प्रथम दोनों नाम लैन्थेनाइड श्रृंखला के तत्वों की लैन्थेनम से गुणों में बहुत अधिक समानता के कारण दिए गए हैं। “दुर्लभ मृदा” नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि आरम्भ काल में इन तत्वों को ऐसे ऑक्साइडों से निष्कर्षित किया गया था जिनके लिए उस समय में प्राचीन नाम मृदा (earth) प्रचलित था तथा ये ऑक्साइड दुर्लभ माने जाते थे। इनमें से कुछ तत्व अब वास्तव में दुर्लभ नहीं है बल्कि बहुतायत में पाए जाते हैं। लैन्थेनाइडों को सामूहिक रूप से Ln द्वारा तथा आयनों को Lnn+ द्वारा प्रदर्शित करते हैं, जहाँ n लैन्थेनाइड की ऑक्सीकरण संख्या है।
आवर्त सारणी में स्थान (Position in Periodic Table)
मेन्डेलीफ ने जब सर्वप्रथम आवर्त सारणी बनाई थी उस समय में वर्तमान लैन्थेनाइडों में से केवल चार तत्व ही ज्ञात थे। मैन्डेलीफ का मूल वर्गीकरण परमाणु भार पर आधारित था । अतः उस समय के ज्ञात लैन्थेनाइड तत्वों में से कुछ को बेरियम के पश्चात् रखा गया था क्योंकि इन तत्वों के परमाणु भार बेरियम् (56) के परमाणु भार से कुछ अधिक हैं। उस समय तक अज्ञात तत्वों के लिए लगभग सभी वर्गों में रिक्त स्थान छोड़ते हुए मैन्डेलीफ ने ज्ञात तत्वों में से दो को तीसरे वर्ग में तथा शेष दो को चौथे वर्ग में रखा। बाद में अन्य ग्यारह तत्व भी खोज निकाले गए, जिससे इनकी कुल संख्या 15 हो गई। इन 15 तत्वों के परमाणु भार बेरियम ( 56 ) तथा हैफिनियम (72) के परमाणु भारों के मध्य पड़ते हैं, इसलिए लैन्थेलाइडों को इन दोनों तत्वों के मध्य स्थान देना आवश्यक था। मोज्ले ने भी अपनी आवर्त में इन लैन्थेनाइड तत्वों को बेरियम तथा हैफनियग के मध्य रखा था ।
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को परमाणु भार के स्थान पर परमाणु क्रमांक के आधार पर आवर्ती करें। प्रचलित आवर्त सारणी में s-ब्लॉक के IA तथा IIA वर्गों के पश्चात d ब्लॉक IIIB. IVB आदि वर्ग इस प्रकार रखा जाता है जिससे समान गुणों तथा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के तत्व एक ही वर्ग की अ को तथा दायीं ओर अन्तिम छोर पर p-ब्लॉक को रखा जाता है जैसा कि सारणी 5.1 में उनके परमाणु क्रमांकों के साथ बताया गया है। इस प्रकार प्रत्येक आवर्त एक क्षार धातु से आरम्भ होकर एक उत्तम गैस पर समाप्त होता है। इन दोनों सीमाओं के मध्य अन्य तत्त्वों को एक के बाद एक बढ़त हुए परमाण क्रमांक के क्रम में रखा जाता है।
तत्वों की इस व्यवस्था में पाँचवें आवर्त तक के तत्वों का स्थान अपेक्षा के अनुसार है क्योंकि इन आवर्ती के तत्व आरम्भ से अन्त तक परमाणु क्रमांकों के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित हैं। चतुर्थ आवतं में Sc(21) के पश्चात Ti ( 22 ) को तथा पांचवे आवर्त में Y (39) के पश्चात Zr (40) को रखा गया है लेकिन छठे आवर्त में La(57) को Ba(56) के पश्चात् III B वर्ग में Sc( 21 ) तथा y (39) के नीचे अपेक्षित स्थान पर रखा जाता है। लेकिन अगले तत्व Ce( 58 ) को यदि La ( 57 ) के तुरन्त पश्चात रखा जाये तो यह IV B वर्ग में Ti(22) तथा Zr(40) के नीचे आयेगा | Ce(58) गुणों की दृष्टि से IV B वर्ग के सदस्यों के साथ पूर्णतया बेमेल है। वास्तव में, Ce (58) से Lu(71) तक के तत्व परस्पर इतनी अधिक समानता तथा IVB वर्ग के तत्वों के साथ इतनी असमानता दर्शाते हैं कि उनमें से किसी को भी IV B वर्ग में नहीं रखा जा सकता है| गुणों की दृष्टि से Lu(71) के पश्चात आने वाला तत्व Hf(72) सब प्रकार से IV B वर्ग में रखे जाने योग्य है | अतः इसे III B वर्ग के La(57) के पश्चात् IV B वर्ग में Ti(22) तथा Zr(40) के नीचे स्थान दिया जाता है | आवर्त सारणी में HI(72) का यह स्थान इस दृष्टि से भी तर्क संगत प्रतीत होता है कि Hf(72) के पश्चात् आने वाले समस्त सक्रमण तत्व तथा p-ब्लॉक तत्वों को आवर्त सारणी में वर्तमान स्थान तभी दिया जा सकता है जब Hf (72) को La ( 57 ) के तुरन्त पश्चात् रखा जाये।
छठे आवर्त में तत्वों की यह व्यवस्था प्रथम दृष्टया (Prima facie ) अनुपयुक्त प्रतीत होती है क्योंकि दोनों तत्वों के परमाणु क्रमांकों में 14 का अन्तर है। तथापि, तत्वों के गुणों तथा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की दृष्टि से HI को Ti तथा Zr के साथ IV B वर्ग एक साथ ही रखा जाना उचित है। परमाणु क्रमांक की दृष्टि से La(57) तथा Hf(72) के मध्य Ce (58) से Lu (71) लैन्थेनाइड श्रृंखला को रखा जाना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब IVB तथा उसके पश्चात आने वाले सभी वर्गों को दायीं ओर IIIB से इतना दूर खिसका दिया जाये कि उनके मध्य 14 स्तम्भों में लैन्थेनाइड तत्वों को स्थान दिया जा सके। लेकिन ऐसा करने से न केवल आवर्त सारणी की लम्बाई अत्यधिक बढ़ जायेगी अपितु d-खंड की क्रमता भी भंग हो जायेगी (IIIB तथा IVB वर्गों के मध्य लैन्थेनाइडों के आजाने से) । इसी प्रकार की स्थिति सातवें आवर्त में Ac के पश्चात उत्पन्न होती है। III B वर्ग में ऐक्टिनियम (89) के तुरन्त बाद IVB वर्ग में रूदरफोर्डियम (104) रखा गया है। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की दृष्टि से इन 14 ऐक्टिनाइड तत्वों ( 90-103) को लैन्थेनाइडों के नीचे रखा जाना चाहिए। वैज्ञानिकों ने यह उचित समझा है कि लैन्थेनाइड तथा ऐक्टिनाइड श्रृंखलाओं को आवर्त सारणी के मुख्य भाग में रखने की अपेक्षा उसके नीचे पृथक से रख दिया जाये। इस प्रकार s, p तथा d ब्लॉक एक साथ आवर्त सारणी के मुख्य भाग में तथा /- ब्लॉक इसके नीचे पृथक से रखा जाता है। ऐसा करने से उपर्युक्त दोनों कमियाँ स्वतः दूर हो जाती हैं।
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration)
पाँचवें आवर्त के अन्तिम तत्व जीनॉन ( 54 ) में 5p कक्षक पूर्णतया भरे होते हैं जिससे इसका इलेक्ट्रानिक विन्यास 1s 2 2p2 2p6 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p6 प्राप्त होता है। इसके पश्चात्, छठे आवर्त के प्रथम सदस्य, सीजियम ( 55 ) में आने वाला इलेक्ट्रॉन 6s कक्षक में प्रवेश करता है । हलकी क्षारीय मृदा धातुओं की तरह बेरियम ( 56 ) में 6s कक्षक पूर्ण रूप से भर जाता है, लेकिन यहाँ 5d कक्षक तथा 4f कक्षक खाली पाए जाते हैं। इन कक्षकों के मध्य बहुत कम ऊर्जा अन्तर होता है। गणनाओं से पता चलाता है कि Ag (47) से La (57) तक के तत्वों में 45 कक्षकों का स्थानिक विस्तार (spatial extension) इतना अधिक होता है कि ये परमाणु की सतह पर आ जाते हैं जिससे ये 5d तथा 6s कक्षकों से उच्च ऊर्जा के होते हैं । फलतः बेरियम (56) के पश्चात् लैन्थेनम ( 57 ) में आगन्तुक इलेक्ट्रॉन 5d कक्षकों में प्रवेश करता है तथा 4f कक्षक रिक्त रहते हैं जिससे इसका विन्यास इट्रियम (39) के समरूप d1 s2 हो जाता है लेकिन परमाणु संख्या बढ़ने पर 45 कक्षकों की ऊर्जा तथा स्थानिक विस्तार दोनों ही घटने लगते हैं। उदाहरण के लिए, लैन्थेनम (57) में 4f की बन्धन ऊर्जा (binding energy) -91.8 kJ/mol होती है जो नीओडायमियम (60) में घटकर – 482.5 kJ/mol रह जाती है। स्पष्ट है कि लैन्थेनाइड श्रृंखला आरम्भ होने पर 45. कक्षकों का स्थायित्व तेजी से बढ़ता है।
लैन्थेनम के पश्चात् नाभिकीय आवेश में . एक की वृद्धि होते ही 4f कक्षकों की ऊर्जा तेजी से कम होने लगती है जिससे ये 5d कक्षकों की अपेक्षा कुछ कम ऊर्जा के हो जाते हैं (चित्र 6.1) परिणामस्वरूप d कक्षकों के भरने का क्रम, जो लैन्थेनम पर शुरू हुआ था, प्रथम तथा द्वितीय श्रृंखला की तरह आगे चालू न रह कर सीरियम पर ही टूट जाता है जिससे सीरियम का विन्यास Sd 652 के स्थान पर 452 652 पाया जाता है। 4f कक्षकों के भरने का यह क्रम सीरियम (58) से आरम्भ होने के पश्चात् पूर्णतः भर जाने तक चलता रहता है। इस प्रकार, सभी लैन्थेनाइड परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की विशेषता यह है कि इनमें 4f कक्षकों में इलेक्ट्रॉन अवश्य पाए जाते हैं जबकि Sd कक्षक अधिकांश तत्वों में पूर्णतः खाली रहते हैं और कुछ तत्वों में एक ही 5d इलेक्ट्रॉन होता है जिससे 14 तत्व, सीरियम (58) से ल्यूटेसियम (71) तक प्राप्त होते हैं। लैन्थेनाइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4f1-14 5s2 5p6 5d1 या 06s2 द्वारा प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सारणी 6.2 में दिए गए हैं।
सारणी 4.2 के अध्ययन से एक बात स्पष्ट है कि लैन्थेनाइड तत्वों में 4f कक्षकों का भरना पूर्णतः नियमित नहीं है। सीरियम (58) में एक साथ दो इलेक्ट्रॉन 4f कक्षकों में प्रवेश करते हैं। इसके पश्चात आगे बढ़ने पर हर बार 4 कक्षकों में एक इलेक्ट्रॉन बढ़ जाता है तथा Eu (63) का विन्यास 4f76s2 हो जाता है। यहाँ 4 कक्षक अर्ध पूर्ण हैं, जो अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं। अगले तत्व Gd (64) का विन्यास 4f8 6s 2 अपेक्षित है लेकिन अर्धपूर्ण विन्यास 4f 7 अधिक स्थायी होने के कारण आठवां इलेक्ट्रॉन थोड़ा सा अधिक ऊर्जा के 5d कक्षकों में चला जाता है जिससे Gd का विन्यास 4f1 5d1 6s2 हो जाता है। लेकिन टर्बियम (65) में अगला इलेक्ट्रॉन 5d कक्षकों में नहीं जा सकता क्योंकि अधिक ऊर्जा के 5d कक्षकों में दो इलेक्ट्रॉनों के प्रवेश से तन्त्र अस्थायी हो जायेगा। इसलिए Tb का विन्यास 4f96s2 हो जाता है। बाद के तत्वों में प्रत्येक परमाणु क्रमांक वृद्धि पर 4f कक्षकों में एक इलेक्ट्रॉन जुड़ता चला, जाता है। Yb (70) पर 4f कक्षक पूर्ण रूप से भर जाते हैं जिससे लैन्थेनाइड श्रंखला के अन्तिम तत्व Lu (71) में अन्तिम इलेक्ट्रॉन के 5d कक्षकों में प्रवेश करने से इसका विन्यास 4f145d1 6s 2 प्राप्त होता है। दूसरी ओर त्रिधनीय आयनों में 45 कक्षकों का भरना पूर्णतः नियमित है (सारणी 6.2) | Ln3+ आयनों का निर्माण दोनों 6s इलेक्ट्रॉन तथा एक 5d या 4fइलेक्ट्रॉन के निकलने से होता है। दोनों बाह्य इलेक्ट्रॉनों (6s) एवं 4f कक्षकों से इलेक्ट्रॉन निकलने के बाद 4f कक्षक और अधिक सिकुड जाते हैं, अतः और अधिक स्थायी हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में Gd3 + (4f7) के बाद आने वाला इलेक्ट्रॉन अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा के 5d कक्षकों में न जाकर 4f कक्षकों में ही प्रवेश करता है जिससे अगले आयन Tb3+ का विन्यास 4f5d1 के स्थान पर 4f 8 पाया जाता है। इस प्रकार Ln 3 + आयनों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4f1 – 145s25p6 लिखा जा सकता है।
ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation States)
लैन्थेनाइडों की रसायन की प्रमुख विशेषता यह है कि सभी लैन्थेनाइड +3 ऑक्सीकरण अवस्था में स्थायी यौगिकों का निर्माण करते हैं। कुछ लैन्थेनाइड सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 के अतिरिक्त +2 या +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं। परन्तु ये ऑक्सीकरण अवस्थाएँ +3 अवस्था की अपेक्षा कम स्थायी होती हैं। और इन्हें असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ कहा जाता है।
+3 ऑक्सीकरण अवस्था का विवेचन
तत्वों के ऑक्सीकरण अवस्था की व्याख्या सामान्यतः उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा उनके यौगिकों की प्रकृति के आधार पर की जाती है। लैन्थेनाइड तत्व बहुत वैद्युतधनीय तथा क्रियाशील धातुएँ हैं जिनकी चमक s-ब्लॉक धातुओं की तरह, वायु के सम्पर्क में आने पर मलिन पड़ जाती है। s-ब्लॉक तत्वों की भांति इनके यौगिकों में बंधन भी मुख्यतः आयनिक प्रकृति का होता है । धातुओं की आयनिक संयोजकता की व्याख्या उनकी आयनन ऊर्जा के मानों की सहायता से आसानी से की जा सकती है। लैन्थेनाइडों की प्रथम (I2), द्वितीय (l2) तथा तृतीय (I3) आयनन ऊर्जाओं के मान सारणी 6.3 में दिये गये हैं। प्रथम तथा द्वितीय आयनन ऊर्जाओं के ये मान तुलना की दृष्टि से, Ca, Sr तथा Ba की प्रथम तथा द्वितीय आयनन ऊर्जाओं के लगभग समकक्ष हैं। लेकिन 1⁄2 व के मानों का अन्तर जहाँ क्षारीय मृदा धातुओं के लिए 5000kJ/mol से अधिक पाया जाता है, लैन्थेनाइड धातुओं के लिए यह लगभग 1100 kJ/mol होता है। फलतः लैन्थेनाइडों से दो इलेक्ट्रॉन निकलने के पश्चात तीसरे इलेक्ट्रॉन का निष्कासन भी आसानी से हो जाता है क्योंकि I के निम्नतर ऊर्जा मानों के कारण तीनों इलेक्ट्रॉनों के निष्कासन के लिए वांछित सकल कुल ऊर्जा ( I1 + I2 + I3), Ln3+ आयन के जलयोजन से प्राप्त ऊर्जा के लगभग समान होती है। इसके विपरीत क्षारीय मृदा धातुओं के अति उच्च I3 मान के कारण ये द्विधनीय आयन ही बना पाते हैं।
अब हम इन तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर विचार करते हैं। जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है, सभी लैन्थेनाइइडों में 6s2 इलेक्ट्रॉन बाह्यतम इलेक्ट्रॉन होते हैं। अतः सर्वप्रथम 6s 2 इलेक्ट्रॉन ही निकलते हैं ।
क्योंकि अधिकांश लैन्थेनाइडों के लिए +3 ऑक्सीकरण अवस्था सामान्य अवस्था होती है (सारणी 4.4), ऊपर बताया जा चुका है कि सभी लैन्थेनाइडों में 6s2 इलेक्ट्रॉन बाह्यतम इलेक्ट्रॉन होते हैं, अत: अभिक्रिया के फलस्वरूप सबसे पहले ये ही निकलते हैं। +3 ऑक्सीकरण अवस्था को प्राप्त करने में दो बाह्यतम इलेक्ट्रॉनों (6s 2 ) के साथ – साथ अन्दरूनी इलेक्ट्रॉन का भी उपयोग होता है । यह अन्दरूनी इलेक्ट्रॉन एक 5d इलेक्ट्रॉन (La, Gd तथा Lu में) या 5d इलेक्ट्रॉन की अनुपस्थिति में एक 4f इलेक्ट्रॉन होता है (शेष लैन्थेनाइडों में ) । लैन्थेनाइडों में 4f तथा 5d स्तर लगभग समान ऊर्जा के हैं जिससे लैन्थेनाइड़ों में से 4f इलेक्ट्रॉन लगभग उतनी ही आसानी से निकाला जा सकता है जितनी आसानी से 5d इलेक्ट्रॉन । लेकिन एक परमाणु से तीन इलेक्ट्रॉनों (652 समेत) के निकल जाने के पश्चात लैन्थेनाइडों में 4f कक्षक परमाणु को भेदते हुए इतने अन्दर तक घुस जाते हैं कि वे 5s तथा 5p कक्षकों के भी नीचे के कक्षक हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि एक उदासीन परमाणु से किसी इलेक्ट्रॉन के निकलने से सभी कक्षक नाभिक द्वारा पहले से अधिक बल से आकर्षित होने लगते हैं। लेकिन आकर्षण बलों में यह वृद्धि सभी कक्षकों के लिए समान नहीं होती है। बाह्यतम कक्षकों के लिए यह क्रम 4f > 5d>6s अर्थात् नाभिक की ओर 4f कक्षक सबसे तेजी से घुसने लगते हैं। अत: Ln3 + आयन से एक 4f इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी। अतः +3 आक्सीकरण अवस्था लैन्थेनाइडों की सामान्य तथा सर्वाधिक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था होती है। त्रिसंयोजकीय अवस्था में कुछ अपवादों को छोड़कर सभी लेन्थेनाइडों का एक सा बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5s25p6 (बाह्य जीनॉन विन्यास) अर्थात अक्रिय क्रोड होता है। अतएव सामान्य संक्रमण धातुओं के त्रिसंयोजकीय धनायनों की अपेक्षा लैन्येनाइड त्रिधनीय आयन आपस में बहुत अधिक हद तक मिलते हैं, क्योंकि संक्रमण में d- कक्षक सतह पर रहते हैं जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है। धातु धनायनों असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ एवं आपेक्षिक स्थायित्व :- सारणी 6.4 से स्पष्ट है कि लैन्थेनाइड़ों श्रृंखला के आरम्भ, मध्य तथा अन्त में कुछ तत्व ऐसे हैं जो +3 ऑक्सीकरण अवस्था अतिरिक्त +2 या +4 अवस्था प्रदर्शित करते हैं। इन ऑक्सीकरण अवस्थाओं को असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ कहते हैं। सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि जिन तत्वों के विन्यास 5d1 6s2 हैं उनके तुरन्त पूर्व आने वाले तत्वों के लिए +2 ऑक्सीकरण अवस्था तथा तुरन्त पश्चात आने वाले तत्वों के लिए +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी स्थाई हैं। हम जानते हैं कि La, Gd तथा Lu का बाह्यतम विन्यास 5d16s2 है । अतः इनके पूर्व आने वाले लैन्थेनाइड Sm, Eu, Tm तथा Yb द्विसंयोजकीय यौगिकों का निर्माण करते हैं जबकि इनके पश्चात आने वाले लैन्थेनाइड Ce Pr . Tb तथा Dy में चर्तुसंयोजकीय यौगिक बनाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। श्रृंखला के आरम्भिक तत्वों में तीन इलेक्ट्रॉन निकल जाने के पश्चात भी 4f कक्षक Ln3+ आयन की सतह के निकट ही रहते हैं। लेकिन चौथे इलेक्ट्रॉन निकल जाने के पश्चात वे अक्रिय क्रोड 5525p° से काफी अन्दर चले जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप Ce तथा कुछ हद तक Pr +4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित कर पाते हैं लेकिन +4 से उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्थाएँ किसी भी तत्व के लिए स्थाई नहीं हो पाती हैं।
ये ऑक्सीकरण अवस्थाएँ खाली, अर्धपूर्ण तथा पूर्ण रूप से भरे हुए 4f स्तरों के अतिरिक्त स्थायित्व का परिणाम मानी जा सकती है। इस प्रकार, सीरियम तथा टर्बियम, जिनमें क्रमशः खाली तथा अर्धपूर्ण 4/स्तर से दो इलेक्ट्रॉन अधिक (4f2 तथा 4f9 ) होते हैं, चार इलेक्ट्रॉनों (दो 4f तथा दो 6s इलेक्ट्रॉनों) को खोकर स्थायी चतुर्धनीय आयन बनाते हैं । दूसरी ओर, यूरोपियम तथा यटर्बियम की परमाण्वीय अवस्था में 6s2 इलेक्ट्रॉनों के अतिरिक्त 4f कक्षक क्रमशः अर्धपूर्ण तथा पूर्ण होते हैं। अतः इन तत्वों में 6s2 इलेक्ट्रॉन खोकर स्थायी अर्धपूर्ण व पूर्ण (4f7 तथा 4f14) विन्यास प्राप्त करने हेतु द्विसंयोजकीय आयन बनाने की प्रवृत्ति पायी जायेगी । यह मानते हुए कि f0,f7 तथा f14 विन्यास विशेष रूप से स्थायी होते हैं, समेरियम तथा थूलियम में एक संयोजकीय आयन बनाने की (f7 व f14 विन्यास), प्रेसियोडायमियम तथा डिस्प्रोसियम में +5 ऑक्सीकरण अवस्था (f0 वf7 विन्यास) प्रदर्शित करने की तथा निओडायमियम व हॉलमियम में +6 ऑक्सीकरण अवस्था (f0 व f7 विन्यास) प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति का अनुमान लगाया जा सकता है लेकिन ऐसा कभी नहीं पाया जाता है। इसके स्थान पर समेरियम तथा थूलियम +2 अवस्था (f1 व f13 विन्यास) तथा प्रेसिओडायमियम व निओडायमियम +4 अवस्था (f1 व f2 विन्यास) प्रदर्शित करते हैं। इन अवस्थाओं का अस्तित्व समझाने के लिए यह सुझाव दिया गया था कि उपर्युक्त तत्वों की +2 तथा +4ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व, तथा 14 विन्यासों के निकट पहुँचने की इन तत्वों के प्रयासों का परिणाम है, यद्यपि इस प्रकार का विन्यास पूर्ण रूप से कभी भी प्राप्त नहीं होता है। लेकिन इस अनुमान की सत्यता संदेहजनक है। यह विश्वास करने के लिए समुचित प्रमाण हैं कि यद्यपि, f7 तथा ∫14 विन्यासों का अतिरिक्त स्थायित्व एक कारक हो सकता है, किसी विशेष ऑक्सीकरण अवस्था को निर्धारित करने में अन्य कारकों का भी हाथ होता है जो इतने ही या अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
आपेक्षित स्थायित्व : इन तत्वों में अपनी कम स्थायी असामान्य ऑक्सीकरण अवस्था ( + 2 व + 4) से अधिक स्थायी + 3 अवस्था में आने की प्रवृति पाई जाती है। अतः उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्था (+4) में ये तत्व ऑक्सीकारक का काम करते हैं तथा निम्नतर अवस्था (+2) में अपचायक का काम करते हैं। किसी लैन्थनाइड की + 3 अवस्था की तुलना में +4 या + 2 अवस्था का अस्थायित्व उसकी ऑक्सीकरण या अपचायक प्रकृति की प्रबलता बतलाता है जिन्हें निम्न अर्ध-सेल अभिक्रियाओं द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
Ln4++ e → Ln3+ (ऑक्सीकरण)
Ln2+ →Ln3+ + e (अपचयन)
चर्तुसंयोजकीय अवस्था में सीरियम तथा द्विसंयोजकीय अवस्था में यूरोपियम अन्य तत्वों की तुलना में सर्वाधिक स्थाई यौगिकों का निर्माण करते हैं। Ce (IV) तथा Eu (II) के यौगिक ठोस तथा द्रव दोनों ही अवस्थाओं में स्थाई हैं। यही कारण है कि सीरियम यौगिक प्रबल ऑक्सीकारक तथा यूरोपियम यौगिक प्रबल अपचायक होते हैं। अन्य लैन्थेनाइड तत्वों की असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (PrTV, TbIV, NdlV, SmII, DyIV, TmII, YbII) ठोस यौगिकों में तो स्थाई हैं लेकिन जलीय विलयन में अस्थाई होती हैं। लैन्थेनाइडों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं का आपेक्षिक स्थायित्व चित्र 4.2 की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है जिसमें इन तत्वों के वोल्ट तुल्यांक nE°, को ऑक्सीकरण अवस्था के प्रति आलेखित किया गया है (यहाँ किसी प्रजाति Mn+ तथा परमाणु के मध्य अर्धक्रिया Mn+ + M के लिए मानक अपचयन विभव E° तथा उसकी ऑक्सीकरण अवस्था n है ) ।
हम जानते हैं कि किसी अर्धक्रिया के वोल्ट तुल्यांक को क्रियाकारी पदार्थ की ऑक्सीकरण अवस्था के प्रति आलेखित करने पर प्राप्त वक्र, जिसे फ्रॉस्ट आरेख कहते हैं (देखिये अध्याय 8), विभिन्न प्रजातियों के आपेक्षिक स्थायित्व को बतलाता है। एक फ्रॉस्ट आरेख में न्यूनतम बिन्दु सर्वाधि ाक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था को प्रदर्शित करता है तथा उच्चतर बिन्दु अपेक्षाकृत अस्थाई ऑक्सीकरण अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। इन अस्थाई ऑक्सीकरण अवस्थाओं में स्थाई ऑक्सीकरण प्राप्ति की सहज प्रवृत्ति पाई जाती है। चित्र 4.2 (a) तथा (b) से स्पष्ट है कि लैन्थेनाइडों के लिए +2 व +4 ऑक्सीकरण अवस्थाओं की अपेक्षा +3 ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थाई है । अतः ये असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थायें +3 अवस्था में आने का प्रयत्न करेंगी। साथ ही Tb(IV), Pr(IV) तथा Ce(IV) में Ce(IV) तथा Yb (II), Sm (II) तथा Eu (II) में Eu (II) सर्वाधिक स्थाई ऑक्सीकरण अवस्था होंगी क्योंकि इन दोनों अवस्थाओं का वोल्ट तुल्यांक सबसे कम है।
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