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जालक की विशिष्ट ऊष्मा , Dulong petit law , आइंस्टीन मॉडल , डिबाई सिद्धान्त

Specific heat of the lattice in hindi जालक की विशिष्ट ऊष्मा : जब ठोसो को heat दी जाती है तो ठोसों का ताप व आन्तरिक उर्जा में वृद्धि होती है।

solids में internal energy में वृद्धि दो प्रकार से हो सकती है

1. ठोसों के atom अपनी साम्यवस्था के इर्द गिर्द कम्पन्न के कारण कम्पन्न उर्जा में वृद्धि से

2. solids में उपस्थित free electrons के high energy level में excited state में जाने से।

अत: ठोसों की आन्तरिक उर्जा , lattice की उर्जा व electron की उर्जा के योग के बराबर होती है।

सामान्य ताप पर क्रिस्टलों की S.H केवल lattice कम्पन्न के कारण होती है क्योंकि सामान्य ताप पर मुक्त इलेक्ट्रान का प्रभाव नगण्य माना जाता है।

Dulong petit law or classical theory

solid atom अपनी मध्य स्थिति के प्रति freely कम्पन्न करते है , अत: कणों की कुल उर्जा उनकी गतिज व स्थितिज उर्जा के बराबर होती है।
कणों की औसत गतिज उर्जा k/2 तथा स्थितिज उर्जा k/2 होती है।  (1D में )
परन्तु atom 3D में कम्पन्न करते है अत: atoms की औसत उर्जा
E = 3k
इसे हम ड्यूलॉग पेटिट नियम कहते है। अर्थात इसके अनुसार lattice की विशिष्ट ऊष्मा नियत होती है।  (T पर निर्भर नहीं करती )

ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा का आइंस्टीन मॉडल

आइन्स्टीन ने प्लान्क क्वाण्टम थ्योरी के अनुसार ठोसों की औसत उर्जा की अभिधारणा दी
आइन्स्टीन की अभिधारणाए :
1. आइन्स्टीन ने atoms को simple harmonic oscillator माना जो समान आवृति v से कम्पन्न करते है।
2. सभी दोलित्रो की उर्जा सतत न होकर असतत होती है जो hv के integer multiply के रूप में होती है।
अर्थात
E = nhv  (जहाँ n = 0,1,2……. )
3. प्रत्येक हारमोनिक दोलित्र के x,y,z अक्षों के अनुदिश 3 normal mode होते है।  माना lattice में 3 number of atoms है , अत: total number of mode of vibration की संख्या 3n होगी।
यह दोलित्र M.B सांख्यिकी का अनुसरण करते है।

आइंस्टीन सिद्धांत की कमियाँ

1. यदि Cv के प्रायोगिक मान व आइन्स्टीन सूत्र से प्राप्त मान Qe के मध्य ग्राफ खिंचा जाए तो ग्राफ एक समान प्राप्त होता है , परन्तु कम ताप पर आइन्स्टीन curve , प्रायोगिक curve से मेल नहीं खाता।
साथ ही Qe (आइन्स्टीन सूत्र से प्राप्त मान) का मान ज्ञात करना संभव नहीं हो जो कम ताप पर व high ताप पर एक साथ संतुष्ट हो।
यदि आइन्स्टीन सूत्र से प्राप्त मान एक विशेष मान choose किया जाए तो high temperature के लिए तो प्रायोगिक व सैद्धांतिक मान लगभग बराबर प्राप्त होते है , परन्तु low temprature पर बराबर प्राप्त नहीं होते।
अर्थात Qe (आइन्स्टीन सूत्र से प्राप्त मान) के विशेष मान के लिए कम ताप पर प्रायोगिक व सैद्धांतिक मानों में अंतर प्राप्त होता है।

 ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा का डिबाई मॉडल

अभिधारणा : ठोसों को समदैशिक , प्रत्यास्थ , समांगी , सात्यात्क माना जाता है।
ठोसों में प्रत्येक परमाणु युग्मित दोलक के समान कार्य करता है।  इस युग्मित दोलक के कम्पन्न normal modes के रूप में व्यक्त किये जाते है।
n atoms वाले ठोसों में normal modes 3n होती है , जिनकी आवृति 0 से cut off frequency तक कुछ भी हो सकती है इसे अभिलाक्षणिक आवृति भी कहते है।
यदि क्रिस्टल में wavelength 2a से कम हो तो इस क्रिस्टल में wave संचरित नहीं होती है।
normal mode की आवृति में 0 से cut off frequency तक सतत परिवर्तन होता है।
डिबाई cut off frequency का मान अनुप्रस्थ व अनुदैध्र्य दोनों विधाओ में समान होता है।
डिबाई सन्निकटन :
यदि क्रिस्टल में गतिशील प्रत्यास्थ तरंगो का तरंग दैध्र्य atoms की अंतर परमाण्विक दूरी से बहुत अधिक हो तो क्रिस्टल माध्यम को सतत माना जा सकता है।  यदि क्रिस्टल में number of atoms n हो तो कम्पन्न विधाये 3n होंगे , जिनकी आवृति 0 से डिबाई cut off frequency तक होगी।

डिबाई सिद्धान्त की कमियाँ

1. डिबाई ने ठोसों में परमाणुओं का कम्पन्न सतत माना
2. डिबाई ने क्रिस्टल संरचना पर कोई चर्चा नहीं की।
3. डिबाई ने यह मान की ध्वनी का वेग सभी तरंगदैध्र्य पर समान होता है परन्तु प्रायोगिक रूप से ध्वनी का वेग तरंगदैध्र्य पर निर्भर करता है।
4. डिबाई सिद्धांत में डिबाई ताप को नियत माना गया जबकि प्रायोगिक Qe , ताप पर निर्भर करता है।
5. डिबाई सिद्धांत में विशिष्ट ऊष्मा के व्यंजक व्युत्पन्न करने के लिए free electrons की गति को नगण्य माना गया जबकि 1 डिग्री सेंटीग्रेट पर lattice में atoms के युग्मित कम्पन्न का विशिष्ट ऊष्मा में योगदान कम होता है , तब free electrons के कारण ही विशिष्ट ऊष्मा होती है।