chelates in hindi definition chemistry , कीलेट किसे कहते है उदाहरण व महत्व लिखिए क्या हैं
जाने chelates in hindi definition chemistry , कीलेट किसे कहते है उदाहरण व महत्व लिखिए क्या हैं ?
कीलेट ( Chelates)
(i) परिभाषा (Definition)-
एकदन्तुक लिगण्डों में एक परमाणु / आयन पर इलेक्ट्रॉनों का एक एकल युग्म उपस्थित होता है जिसका उपयोग कर यह एक उपसहसंयोजकता आबंध बनाता है। लेकिन यदि किसी लिगण्ड में दो परमाणुओं पर इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित हैं और वह लिगण्ड उनका उपयोग कर धातु के साथ दो उपसहसंयोजकता आबंधों का निर्माण कर लेता है तो प्राप्त उपसहसंयोजकता यौगिक में एक वलय बन जायेगी। इन वलय युक्त उपसहसंयोजन यौगिकों को कीलेट कहते हैं। इस प्रकार कीलेट चक्रीय संरचना वाले व उपसहसंयोजन यौगिक हैं जिनमें किसी धातु आयन तथा बहुदन्तुक लिगण्ड के संयुग्मन से निर्मित कम से कम एक वलय उपस्थित हो।
दूसरे शब्दों में, कीलेट वे संकुल हैं जिनमें किसी लिगण्ड के एक से अधिक दाता परमाणु धातु परमाणु से सीधे ही इस प्रकार से जुड़े रहते हैं कि धातु विषम चक्रीय ( heterocyclic) वलय का एक भाग बन जाता है। ऐसी वलयों को कीलेट वलय तथा इस घटना को कीलेटीकरण (chelation) कहते हैं।
कीलेट शब्द यूनानी शब्द कीलोस (chclos) से लिया गया है जिसका अर्थ होता है ‘केकड़े का पंजा’ यह समानता इसलिए दी गई क्योंकि पंजा तथा बहुदन्तुक लिगण्ड दोनों ही किसी वस्तु (यहाँ आयन) को एक से अधिक बिन्दु से पकड़ते हैं। आगे दिये गये विवेचन में कीलेंटों के बहुत से पहलुओं का उल्लेख किया गया है।
(ii) स्थायित्व (Stability)-
पूर्णतः एक दन्तुक लिगण्डों से निर्मित संकुलों की तुलना में कीलेट अधिक स्थायी होते हैं। किसी धातु संकुल में कीलेट वलय की उपस्थिति के कारण उत्पन्न अतिरिक्त स्थायित्व को कीलेट प्रभाव (chelate effect) कहते हैं तथा इसका श्रेय निम्न कारणों को दिया जाता है।
(अ) एन्ट्रॉपी (entropy) में वृद्धि – हम जानते है कि किसी तंत्र की एन्ट्रॉपी उसमें अव्यवस्था (disorder) का माप है ओर इस कारण से अणु का स्थायित्व उसके निर्माण से बने कणों की कुल संख्या से सीधे ही जुड़ा होता है क्योंकि तंत्र में अभिक्रिया के फलस्वरूप कणों की संख्या बढ़ने पर अव्यवस्था बढ़ती है तथा अव्यवस्था बढ़ने से एन्ट्रॉपी अतः स्थायित्व बढ़ता है। अतः एक उत्क्रमणीय (reversible) अभिक्रिया उस दिशा में अग्रसर होगी जिसमें कणों की संख्या अधिक हो । जब एक से अधिक एकदन्तुक लिगण्ड किसी बहुदन्तुक लिगण्ड से विस्थापित होते हैं तो तंत्र में कणों की संख्या बढ़ने से एन्ट्रॉपी, अत: स्थायित्व, बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, निम्न अभिक्रिया में NH, के एथिलीनडाइऐमीन (en) द्वारा विस्थापन पर विचार करते हैं।
[Co(NH3)6]3++3en = [Co(en3)]3+ +6NH3
समीकरण के बायीं ओर चार कण (संकुल +3en) हैं जबकि दायीं ओर सात (संकुल +6NH3) है जिसके कारण NH3 का विस्थापन होने पर तंत्र में कणों की संख्या, अतः ऐन्ट्रॉपी, बढ़ जाती है। ऐन्टॉपी की इस वृद्धि से तंत्र की मुक्त ऊर्जा में काफी परिवर्तन आता है।
(ब) अनुनाद (Resonance) – ऐसिटिलऐसीटोनेटो जैसे अनुनाद प्रदर्शित करने वाले लिगण्डों से प्राप्त संकुलों के स्थायित्व में अनुनाद का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि ऐसे लिगण्डों में हर तीसरा ( alternate) बंध द्विबंध होता है 1
(स) वलय का आकार तथा वलय की संख्या ( Ring size and number of rings) – सामान्यतः एक कीलेट वलय में धातु आयन समेत 5 या 6 सदस्य होते हैं, क्योंकि इतनी संख्या में परमाणु उपस्थित होने पर वलय में विकृति (strain) बहुत कम रह जाती है। यदि किसी लिगण्ड में द्विबन्ध नहीं है तथा वह धातु आयन के साथ पाँच व छः तत्वीय, दोनों ही, वलय बना सकता हो तो पाँच सदस्यों वाली वलय को प्राथमिकता मिलती है जिससे पता चलता है कि पाँच परमाणुओं से निर्मित वलय सर्वाधिक स्थायी होती है। यही कारण है कि ऐथिलीनडाइऐमीन का 1,3 प्रोपेनडाइऐमीन द्वारा विस्थापन नहीं होता है क्योंकि ऐसा होने पर वलय का आकार 5 से 6 परमाणु वाला हो जायेगा :
लिगण्डों द्वारा कम विकृति की वलय बनाने की तुलना कार्बनिक रसायन में कार्बन वलयों के निर्माण की प्रवृत्ति से की जा सकती है। तथापि, कार्बन की रसायन से विपरीत, बहुत से चार अंगीय वलय वाले स्थायी कीलेट ज्ञात है तथा यहाँ तक कि तीन अंगीय वलय वाले कीलेट भी बनाये जा चुके हैं। चार सदस्यों वाली कीलेट वलयों का स्थायित्व, संभवतः धातु आयनों के बड़े आकार (कार्बन की में तुलना) के कारण है। वलयों में परमाणुओं की संख्या 6 से अधिक होने पर इनका स्थायित्व कम होने लगता है। सात अंगीय बहुत कम वलय ज्ञात हैं, जबकि आठ परमाणुओं से निर्मित वलय वाले कीलेट अभी तक नहीं बनाए जा सके हैं।
कीलेटी लिगण्ड में दाता परमाणुओं की संख्या बढ़ने पर उसका कीलेटी प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐथिलीनट्राईऐमीन (trien) H2 NCH2 CH2 NH2 CH2 CH 2 NH2 (तीन दाता परमाणु) लिगण्ड ऐथिलीनडाईऐमीन NH2 CH2 CH 2 NH2 (दो दाता परमाणु) की अपेक्षा अधिक स्थाई संकुल बनाता है। क्योंकि trien लिगण्ड से दो पाँच सदस्यी वलय बनती है जबकि ऐथिलीऩडाऐमीन से ऐसी एक ही वलय बनती है।
छः दाता परमाणुओं वाले कीलेटी अणु भी ज्ञात हैं जो काफी स्थाई कीलेट का निर्माण करते हैं। (द) धातु आयन की प्रकृति – यह पाया गया है कि प्रथम संक्रमण श्रृंखला के M2+ आयनों के संकुलों के स्थायित्व का क्रम Cu2+ आयन तक बढ़ता है जिसे इविंग – विलियम्स (Irving-Williams) श्रृंखला द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
Mn2+ < Fe2+ < Co2+ < Ni2+ < Cu2+ > Zn2+
(स) स्टेरिक प्रभाव (Steric effect) – त्रिविम विन्यासी बाधा (steric hindrance) भी संकुलों के स्थातित्व को काफी प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए यदि ऐसिटिलऐसीटोन के 3-स्थान पर आइसोप्रोपिल या द्वितीयक ब्यूटिल जैसे अधिक स्थान घेरने वाले समूह उपस्थित हैं तो क्यूप्रिक या फैरिक आयन के साथ संकुल नहीं बनता है लेकिन 3-स्थान पर यदि एकरेखीय श्रृंखला समूह (straight chain group) उपस्थित हे तो संकुल बन जाता है।
(iii) कीलेटों का वर्गीकरण (Classification of chelates)-
वलय के निर्माण हेतु धातु के साथ लिगण्ड सहसंयोजक या उपसहसंयोजकता या दोनों ही प्रकार के आबंध बना सकता है। वास्तव में, कीलेट यौगिकों का वर्गीकरण बंध की प्रकृति के आधार पर किया जाता है। किसी कार्बनिक क्रियात्मक समूह में प्रोटॉन के स्थानापन्न (substitution) से धातु सहसंयोजक आबंध का निर्माण करती है। इस प्रकार के क्रियात्मक समूहों को अम्लीय समूह कहते हैं क्योंकि इनमें से हाइड्रोजन प्रतिस्थापित की जा सकती है। इस तरह के अति सामान्य क्रियात्मक समूह COOH (कार्बोक्सिल), —SO3H (सल्फोनिक), – OH (ईनॉली हाइड्रॉक्सिल), तथा = NOH (ऑक्साइम) हैं। उपसहसंयोजकता आबंध लिगण्ड परमाणु द्वारा धातु को एक इलेक्ट्रॉन युग्म के दान से निर्मित होते हैं। अतः इनमें हाइड्रोजन का प्रतिस्थापन नहीं होता है। इस प्रकार के क्रियात्मक समूह उपसहसंयोजनकारी क्रियात्मक समूह कहलाते हैं। – NH2, > NH,N (प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक ऐमीन), —OH
(ऐल्कोहॉली हाइड्रॉक्सी) तथा > C = O (कार्बोनिल) इस श्रेणी के अति सामान्य क्रियात्मक समूह हैं।. क्योंकि बहुदन्तुक लिगण्ड अपने अम्लीय एवं उपसहसंयोजनकारी क्रियात्मक समूहों का उपयोग करते हुए केन्द्रीय धातु परमाणु से दो प्रकार बंधित हो सकते हैं, कीलेट यौगिकों के तर्कसंगत वर्गीकरण बंध की प्रकृति तथा दोनों प्रकार के बंधों की संख्या को महत्व दिया जाता है । डाऐल (Dielh) ने निम्न आधार पर कीलेटों का वर्गीकरण किया है-
(i) संकुलकारक अभिकर्मक में कुलदाता परमाणुओं की संख्या (एकदन्तुक, द्विदन्तुक आदि तथा)
(ii) वलय निर्माण में अम्लीय तथा उपसहसंयोजन समूहों की आपेक्षिक संख्या ।
यह वर्गीकरण जिसमें बंधों की संख्या तथा बंधों के प्रकार दोनों को महत्व दिया जाता है, निम्न प्रकार
(a) द्विदन्तुक लिगण्ड से प्राप्त कीलेट-
द्विदन्तुक लिगण्ड द्वारा धातु के साथ दो स्थान पर बंध बनाए जाने से 5 से 6 परमाणुयुक्त कीलेट वलय का निर्माण हो सकता है। ऑक्सेलेटो, ग्लाइसीन तथा एथिलीनडाइऐमीन इस प्रकार के लिगण्डों के उदाहरण हैं। बंधन की प्रकृति के आधार पर इन कीलेटों को फिर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) दो अम्लीय समूह युक्त लिगण्ड से निर्मित कीलेट – इस प्रकार के संकुलों में धनायन केवल सहसंयोजक बंधों द्वारा लिगण्ड से संलग्न होता है । वलय निर्माण के लिए धात्विक धनायन दो हाइड्रोजन परमाणुओं का प्रतिस्थापन कर देता हैं इस कार्य के लिए सामान्यतः हाइड्रॉक्सिल व कार्बोक्सिल समूह प्रयुक्त होते हैं। इनमें से कार्बोक्सिल समूह 5 या 6 अंगीय वलय का निर्माण कर सकता है। बैरिलियम तथा ऑक्सेलेट आयनों के संयोग से निर्मित संकुल की संरचना, उदाहरणस्वरूप चित्र 3.6 में दी गई है ।
(ii) एक अम्लीय तथा एक उपसहसंयोजनकारी समूह युक्त लिगण्ड से निर्मित कीलेट – इन कीलेटों में धातु आयन दोनों प्रकार के सहसंयोजक व उपसहसंयोजक, एक – एक आबंध बनाता है। कॉपर तथा ग्लाइसीनेट ऋणायन द्वारा निर्मित संकुल [ चित्र 3.7(a)] इस प्रकार का एक उदाहरण है।
धातु मात्र उपसहसंयोजकता आबंधों द्वारा लिगण्ड से संलग्न होता है। ऐमीन समूह, उदाहरण के लिए, धातु को अपना इलेक्ट्रॉन युग्म देकर उपसहसंयोजकता आबंध बना सकता है। इस प्रकार बिस (एथिलीन- डाइऐमीन) कॉपर (II) आयन (चित्र 3.7 (b)) इस श्रेणी का संकुल है ।
(b) त्रिदन्तुक लिगण्डों से प्राप्त कीलेट-
एक त्रिदन्तुक लिगण्ड एक धातु परमाणु से तीन स्थानों से आबंध बनाकर दो वलयों का निर्माण करता है। यदि लिगण्ड अनम्य (rigid ) है तो यह संकुल की संरचना पर प्रतिबन्ध भी लगा सकता है। उदाहरण के लिए, त्रिपिरिडीन तभी उपसहसंयोजकता आबंध बना सकता है जब तीनों दाता N परमाणु समतलीय हों । त्रिदन्तुक संकुल चार प्रकार के संभव हैं। अतः इनसे प्राप्त कीलेटों को निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) तीन अम्लीय समूह युक्त लिगण्ड से निर्मित कीलेट – इस प्रकार के संकुलों में केन्द्रीय आयन केवल सहसंयोजक आबंधों द्वारा ही संलग्न होता है। उदाहरण के लिए, टार्टरेट आयन ऐन्टीमनी धनायन से पारस्परिक क्रिया करके तीन सहसंयोजक बंध वाले संकुल का निर्माण करता है जिसे चित्र 3.8(a) में दिखाया गया है।
(ii) दो अम्लीय तथा एक उपसहसंयोजनकारी समूह युक्त लिगण्ड से निर्मित कीलेट-इन संकुलों में केन्द्रीय धातु लिगण्ड के दो सहसंयोजक तथा एक उपसहसंयोजकता आबंधों द्वारा जुड़ा रहता है। उदाहरणार्थ, ऐस्पार्टिक अम्ल Co3 + धनायन के साथ संयुक्त होकर इस प्रकार का कीलेट बनाता है जिसकी संरचना चित्र 3.8 (b) में दिखाई गई है।
(iii) एक अम्लीय तथा दो उपसहसंयोजनकारी समूह युक्त लिगन्ड से निर्मित कीलेट-इन कीलेटों में लिगन्ड तथा धातु के मध्य एक सहसंयोजक तथा दो उपसहसंयोजकता आबंध होते हैं । डाइऐमीनोप्रोपिऑनिक अम्ल का कोबाल्ट (III) संकुल इस प्रकार का उदाहरण है [ चित्र 3.9 (a)] ।
(iv) तीन उपसहसंयोजनकारी समूह युक्त लिगन्ड से निर्मित कीलेट-इन कीलेटों में लिगण्ड धातु के साथ तीन उपसहसंयोजी आबंधों द्वारा बंधित होता है। उदाहरणार्थ, ट्राइऐमीनप्रोपेन तथा Col3+ आयन पारस्परिक क्रिया करके इस श्रेणी का संकुल बनाते हैं (चित्र 3.9 (b)) ।
(c) चतुर्दन्तुक लिगण्डों से प्राप्त कीलेट-
चतुर्दन्तुक लिगण्ड अपने चारों दाता परमाणुओं का धातु आयन के साथ उपसहसंयोजन हेतु उपयोग हुए तीन या कभी-कभी चार वलयों वाले कीलेटों का निर्माण करता है। तनाव रहित सरंचना निर्माण करते हुए इस प्रकार के लिमण्डों पर कुछ त्रिविमरासायनिक प्रतिबन्ध लागू होते हैं। उदाहरण के लिए ट्रिस (2- ऐमीनोऐथिल) ऐमीन}, N(CH2 CH2NH2)3. लिगण्ड से बने कीलेट असमतलीय ज्यामितीय को वरीयता देते हैं, जबकि पार्फिरिन (porphyrin) वलय का समतलीय ज्यामिती पर झुकाव होता है।पाँच प्रकार के जो कीलेट संभव है उनमें नीचे दिये तीन प्रकार के अधिक सामान्य होते हैं-..
(i) तीन अम्लीय तथा एक उपसहसंयोजी समूह युक्त लिगन्ड से निर्मित कीलेट – इस प्रकार के कीटों में तीन सहसंयोजक तथा एक उपसहसंयोजकता आबंध होते हैं। उदाहरण के लिए, ट्राइऐथिनॉलऐमीन, N(CH2CH2OH)3 तथा धातु आयनों के संयोग से निर्मित कीलेटों, जिन्हें मेटलोट्रेन (metallotrans कहते हैं, में से एलुमिनोट्रेन की संरचना चित्र 3.10 (a) में दिखाई गई है।
(ii) दो अम्लीय तथा दो उपसहसंयोजी समूह युक्त लिगन्ड से निर्मित कीलेट – ऐथिलीनडाइऐमीन -डाइऐसीटिक अम्ल (HOOCH2C)HN-CH2-CH2-NH (CH2 COOH)2 (EDDA), चतुर्दन्तुक लिगण्ड है जो क्यूप्रिक आयन से अभिक्रिया करके जिस कीलेट का निर्माण करता है उसमें दो सहसंयोजक तथा दो उपसहसंयोजक बंध होते हैं जैसा कि चित्र 3.10 (b) से स्पष्ट है
- चार उपसहसंयोजनकारी समूह युक्त लिगण्ड से निर्मित कीलेट : प्रकृति में चतुर्दन्तुक लिगण्ड युक्त संकुल पाये जाते हैं जो हमारे जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। क्लोरोफिल में Mg2+ आयन तथा रक्त के हीम में Fe 2 + आयन चतुर्दन्तुक लिगण्डों से ही बंधित होते हैं। टेट्रापिरिडिल कुछ द्विसंयोजकीय संक्रमण धातु आयनों, जैसे कि Fe2+ Co2+, Ni2+, Cu2+ तथा Zn 2+ के साथ संयुक्त होकर जो कीलेट बनाते हैं उनमें सभी नाइट्रोजन परमाणु धातु आयन के साथ उपसहसंयोजी आबन्ध बनाते हैं। (चित्र 11) में Zn 2 + आयन से बंधित 6, 6′ – बिस (2- ऐमीनोपिरिडिल) -2, 2′ बाइपिरिडीन लिगण्ड से. Zn2+ आयन का बंधन दिखाया गया है जिसमें चारों N परमाणु दाता का कार्य करते हैं ।
- पंच तथा षट-दन्तुक लिगण्ड से निर्मित कीलेट-
इस प्रकार के सर्वसाधारण ऋणायन ऐथिलीनडाइऐमीनटेट्राऐसीटिक अम्ल ( EDTA). H 4Y, से प्राप्त ऋणायन है । इस अम्ल के पूर्ण आयनन से प्राप्त ऋणायन Y4 में चार ऑक्सीजन परमाणु धातु आयन के साथ चार सहसंयोजक आबंध तथा दो नाइट्रोजन परमाणु दो उपसहसंयोजकता आबंध का निर्माण कर सकते है और इस प्रकार यह ऋणायन षटदन्तुकता प्रदर्शित करता है। लेकिन आंशिक रूप से आयनित होने से प्राप्त आयन HY3- में बंधन हेतु तीन ऑक्सीजन ही मुक्त हो पाते हैं, जिससे EDTA ऋणायन पंचदन्तुक होता है। [Mg(EDTA)] 2 – कीलेट की संरचना. चित्र 3.12 में दिखाई गई हैं।
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