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Physiology of Nerve Impulse and Reflex Action in hindi , तंत्रिका आवेग एवं प्रतिवर्ती क्रिया की कार्यिकी

तंत्रिका आवेग एवं प्रतिवर्ती क्रिया की कार्यिकी (Physiology of Nerve Impulse and Reflex Action in hindi)

बहुकोशिकीय जन्तुओं में शरीर की विभिन्न क्रियाएँ दो अलग-अलग तंत्रों द्वारा नियंत्रित रहती है। एक तंत्र में विशेष प्रकार के रसायन स्त्रावित होते हैं जो हार्मोन्स (hormones) कहलाते हैं। ये रसायन रूधिर द्वारा अपने कार्य स्थल (tarvet site) पर पहुँचकर शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। इस तंत्र को तंत्रिका आवेग (nerge impulse) के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इस तंत्रिका तंत्र (nervous system) कहते हैं। तंत्रिका तंत्र की क्रियाशीलता अन्तः स्त्रावी तंत्र की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से होती है। तंत्रिका तंत्र के कार्यों को निम्नलिखित प्रकार से निरूपित किया जा सकता है।

  1. यह सम्पूर्ण सजीव एवं विभिन्न अंगों की क्रियाओं को नियंत्रित एवं नियमित करता है। यह तंत्र शरीर को विभिन्न क्रियाएँ जैसे पेशीय संकुचन (muscular contraction), ग्रन्थीय स्त्रावण (glandular secretion), हृदय क्रिया (heart action), उपापचय (metabolism) आदि को नियंत्रित करता है।
  2. तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों एवं तंत्रों के मध्य एक कड़ी (link ) की तरह कार्य करता है। यह समस्त क्रियाओं के मध्य एक समन्वय (co-ordination) स्थापित करता है जिससे शरीर की अखण्डता (integrity) बनी रहती है।
  3. यह किसी जन्तु एवं बाहरी वातावरण के बीच क्रियाओं को भी नियमित रखता है। सभी बाहरी उद्दीपन (stimuli) संवेदी अंगों (sensory organs) द्वारा ग्रहण करके तंत्रिका तंत्र द्वारा सम्पूर्ण शरीर में प्रसारित किये जाते हैं।

कशेरूकियों के तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क (brain) एवं मेरूरज्जू (spinal cord) उपस्थित होते हैं। तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक (structural) एवं क्रियात्मक (functional) इकाई (unit) तंत्रिकाएँ (nerve cell) या न्यूरॉन (neurons) कहलाते हैं। ये कोशिकाएँ प्रकाश (light), विद्युत (electricity), ऊष्मा (heat), रासायनिक (chemical) एवं यांत्रिक (mechanical) उद्दीपनों (stimuli) से उत्तेजित होती हैं तथा इन उत्तेजनाओं को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित करते हैं। इनमें इनकी दो प्रतुख विशेषतायें होती है प्रथम उत्तेजनशीलता (irritibility) एवं द्वितीय संवाहकता (conductivity) तंत्रिका तंत्र में ग्राही (receptor) अंगों से प्रभावी (effector) अंगों तक सूचनाओं (information) का एक निरन्तर प्रवाह चलता रहता है। अधिकतर संवेदी अंग शरीर की सतह पर उपस्थित रहते हैं तथा प्रभावा अंग पेशी (muscle ) या ग्रन्थि (gland) के रूप में होते हैं। इस प्रकार तंत्रिका तंत्र में निम्नलिखित घटक कार्य करते हैं.

(i) संवेदांग (Sensory organs or Receptors) : ये वातावरणी परिवर्तनों से प्रभावित होने वाले अंग होते हैं। ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं :

(a) बाह्य ज्ञानेन्द्रियाँ (Exteroceptors) : ये नेत्र (eye), कण (ear), नासिका (nostri) एवं त्वचा (skin) में उपस्थित रचनाएँ होती है जो बाहरी उद्दीपनों को ग्रहण करती है।

(b) अन्तः ज्ञानेन्द्रियाँ (Interoeptors) : ये आंतरागों में उपस्थित सूक्ष्म संवेदांग है जो शरीर के अन्तः वातावरण से उद्दीपनों को ग्रहण करते हैं।

(c) स्वाम्य ज्ञानेन्द्रियां (Proprioceptors) : ये अस्थित संधियों, ऐच्छिक पेशियों तथा स्नायुओं पर उपस्थित संवेदांग है जो एच्छिक गतियों, दबाव आदि के उद्दीपनों को ग्रहण करते हैं।

(i) अपवाहक रचनाएँ (Effectors) : ये शरीर में उपस्थित प्रतिक्रिया करने वाली रचनाएँ होती हैं। ये तन्त्रिया तंत्र के निर्देश अनुसार कार्य करती है। अधिकांश प्राणियों में ये ग्रन्थियाँ (glands) तथा रेखित एवं अरेखित पेशियों (striated and unstriate muscles) के रूप में होती है।

(iii) सूचना-प्रसारण तंत्र (Communication System) : तंत्रिका तंत्र संवेदागों तथा अपवाहक रचनाओं के मध्य, सूचना प्रसारण का कार्य करता है। इसमें संवेदी (sensory ) एवं चालक ( motor) तंत्रिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिकाऐं होती है।

चित्र 6.1 : प्रतिक्रियाओं के तंत्रिकीय संचालन तंत्र के तीन प्रमुख घटक

न्यूरॉन का क्रियात्मक संगठन (Functional organization of neuron)

न्यूरॉन शरीर में उपस्थित सबसे बड़ी कोशिका मानी जाती है। सामान्यतया न्यूरॉन को एक तंत्रिका कोशिका (nerve cell) के रूप में माना जाता है जिसमें एक कोशिका काय (cell body) होती है जिससे अनेक प्रवर्ध (processes) निकले रहते हैं।

  1. कोशिका काय (Cell body) : इसे साइटोन (cyton) या सोमा (soma) अथवा पेरीकेरयॉन (perikaryon) भी कहा जाता है। यह एक अनियमित आकार की रचना होती है जिसका व्यास लगभग 4 से 25 तक होता है। इसमें एक बड़ा गोल केन्द्रक (nucleus) अनेक सूक्ष्म क्रोमेटिन कण (chromatin granules) उपस्थित रहते हैं। कोशिकाद्रव्य में अनेक स्पष्ट कणिकाएँ (granules) प जाती है जिन्हें निस्सल काय (nissl bodies) कहते हैं। निस्सल काय राइबा न्यूक्लिओ प्रोटीन्स (ribonucleo proteins) के बने होते हैं जो प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) के लिए उत्तरदायी होते हैं। न्यूरॉन के कोशिकाद्रव्य में सेन्ट्रिऑल (centriole) के अतिरिक्त अन्य सभी अंगक organelle) उपस्थित रहते हैं। इनमें माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria), अन्तप्रदव्यी जालिका (endoplasmic reticulum), राइबोसोम (ribosome), गॉल्जीकॉय (Golgi complex) एवं लाइसोसोम Alysosome) आदि प्रमुख है। माइटोकॉन्ड्रिया तंत्रिका कोशिका के ऐक्सॉन (axon) भाग में एसीटाइल कोलीन (acetylcholine) नामक पदार्थ का संश्लेषण करते हैं। कोशिका काय की परिधि पर उपस्थित कोशिका झिल्ली (plasmalemma) अन्य कोशिकाओं के समान ही पायी जाती है, किन्तु

इसमें जैव विद्युत विभव (bioelectrical potential ) उत्पन्न करने की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक विकसित होती है। यह झिल्ली अन्य न्यूरॉन्स से संयोजन हेतु एक स्थल की तरह कार्य करती है। कोशिका काय का कोशिकाद्रव्य प्रत्यक्ष रूप से जैव विद्युतीय (bioelectrical) क्रियाओं से सम्बन्धित नहीं होता है।

  1. कोशिका प्रवर्ध (Nerve processes) : कोशिका काय भाग से अनेक प्रवर्ध निकले रहते हैं जो अन्य कोशिकाओं के प्रवर्धी या कार्यकारी अंगों में आवेगों के संचरण हेतु पाये जाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से डेड्राइट्स (dendirities), एक्सॉन (axon) एवं कोलेटूल (collaterales) पाये जाते हैं।

(a) एक्सॉन (Axon) : यह कोशिका काय से निकाला हुआ एक लम्बा प्रवर्ध होता है जो कभी-कभी शाखित (branched) भी होता है। इसके चारों ओर जो प्लाज्मा झिल्ली पाई जाती है, उसे एक्सोलेमा (axolemma) कहते हैं। एक्सॉन में उपस्थित कोशिकाद्रव्य एक्सोप्लाज्म (axoplasm) कहलाता है। इसमें निस्सल कॉय अनुपस्थित रहती है परन्तु माइट्रोकान्ड्रियाँ एवं तंत्रिका तन्तुक (neurofibrills) उपस्थित रहते हैं। एक्सॉन की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है। यह मस्तिष्क में मात्र कुछ मि.मी. लम्बाई का भी हो सकता है जबकि मेजरज्जू एवं पदांगुली (toe) के मध्य 1 मीटर तक की लम्बाई का भी हो सकता है। कशेरूकियों में कई न्यूरॉन्स के प्रत्येक तंत्रिका तन्तु एक श्वेत (white) अकोशिकीय (noncellular) आवरण द्वारा ढके रहते हैं। इस आवरण को मज्जा – आच्छद या मेड्युलरी आच्छद (medullary sheath or myelin sheath) कहते हैं। यह फॉस्फोलिपिड (phospholipid) की बनी एक श्वेत स्तर के रूप में होती है जो मस्तिष्क, मेरू रज्जू एवं तंत्रिकाओं में श्वेत द्रव्य (white matter) बनाती है। यह आवरण श्वान कोशिकाओं (schwann cells) का बना होता है तथा तंत्रिकाच्छ (neurilemma) नामक एक कोशिकीय आच्छद द्वारा घिरा रहता है, ऐसे तंत्रिका तन्तु मज्जावृत तन्तु (medullated or myelinated fibres) कहलाते हैं। मज्जा आच्छद में स्थान-स्थान पर अनेक संकीर्णन पाये जाते हैं जिन्हें रेन्वीयर की पर्व संधियाँ (Nodes of ranvier) कहते हैं। दो पर्व संधियों के बीच वाले भाग को पर्व या इंन्टरनोड (internode) कहते हैं। मज्जा – आच्छद के निम्नलिखित कार्य होते हैं। :

(i) यह संचरण (transmission) की गति बढ़ा देती है।

(ii) यह तंत्रिका तंत्र पर एक प्रकार के रोधन (insulation) की तरह कार्य करती है। (ii) यह तंत्रिका-कोशिका के लिए भोजन (food) तथा ऊर्जा (energy) प्रदान करती है।

चित्र 6.3 : तन्त्रिका कोशिका

(c) कोलेट्रिएल्स (Collaterals) : कुछ न्यूरॉन में एक्सॉन की अनेक छोटी एवं कोमल शाखाएँ निकली रहती है जो कोलेट्रिएल्स कहलाती है।

कोशिका काय समूहों में स्थित होती है। जब ये समूह परिधीय तंत्रिका तंत्र (peripheral nervous system) में स्थित हो तो ये केन्द्रिका (nuclei) कहलाते हैं। मस्तिष्क एवं मेरू रज्जू का धूसर (gray matter) कोशिका कार्यों से बनता है जबकि श्वेत द्रव्य (white matter) एक्सॉन एवं डेण्ड्राइट्स से बनता है।