microbial spoilage of food in hindi notes भोजन की सूक्ष्मजैविक विकृति क्या है , परिभाषा नोट्स
जाने microbial spoilage of food in hindi notes भोजन की सूक्ष्मजैविक विकृति क्या है , परिभाषा नोट्स ?
भोजन की सूक्ष्मजैविक विकृति (Microbral spoilage of food)
विश्व में अनेकों प्रकार के भोज्य पदार्थ है तथा विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव एक या अधिक प्रकार के भोज्य पदार्थों को संदूषित (contaminate) कर देते हैं अत: इनमें विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है। सूक्ष्मजीव भोजन को पूर्णत: या अशंतः नष्ट कर देते हैं या इसकी गुणवत्ता को कम कर देते हैं। भोजन की गुणवत्ता में कमी इसके प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेटस में विकृति या गन्ध, स्वाद अथवा आकृति में भिन्नता उत्पन्न होने के कारण हो सकती है।
कुछ जीवाणु प्रोटीओलाइटिक किण्वक उत्पन्न करते हैं जो भोज्य पदार्थों के भीतर उपस्थित प्रोटीन का विघटन करते हैं, जैसे बीजाणु उत्पन्न करने वाले जीवाणु, ग्रैम अवर्णी शलाखा रूपी स्यूडोमोनास एवं प्रोटीयस (Pseudomonas and Proteus) तथा कुछ कोकॉई प्रकार के जीवाणु एवं फफूंद।
कार्बोहाइड्रेट्स का विघटन किण्वन करने वाले जीवाणुओं, यीस्ट, फफुंद आदि के द्वारा किया जाता है। इनमें स्ट्रेप्टोकॉकस (Streptococcus), ल्यूकोनोस्टॉक (Leuconostoc), माइक्रोकॉकस (Micrococcus) आदि मुख्य हैं।
वसा अपेक्षाकृत कम सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रभावित होती है। कुछ ग्रैम अवर्णी जीवाणु तथा फफूंदी वसाओं का पाचन करके वसीय अम्लों में बदल देते हैं।
भोज्य पदार्थ अम्लीय या क्षारीय प्रकृति के होते हैं दोनों प्रकृति के भोज्य पदार्थों पर विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव सक्रिय होते हैं। सूक्ष्मजीवों के लिये भोज्य पदार्थों में 13% नमी का होना अनुकूल होता है। फफूंद इससे कम नमी पर वृद्धि कर सकती है। जीवाणु 5% से 15% लवण युक्त भोजन पर वृद्धि करने में असक्षम रहते हैं। यदि भोज्य पदार्थों में 50-70% चीनी होती है तो फफूंद वृद्धि नहीं करती है। फफूंद व वायुवीय जीवाणु भरपूर ऑक्सीजन युक्त परिस्थितियों में ही सक्रिय रहते हैं। यीस्ट तथा जीवाणु बन्द डिब्बों अर्थात् कम ऑक्सीजन वाले स्थानों पर भी वृद्धि करते हैं। क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium) व कुछ अन्य जीवाणु अवायुवीय परिस्थितियों में भी भोजन को संदूषित करके विकृत कर देते हैं। कम ताप पर भी जीवाणु सक्रिय रहते हैं। जमाव बिन्दु पर अधिकतर जीवाणु निष्क्रिय रहते हैं । अतः भोज्य पदार्थों के परिरक्षण में उपयुक्त बिन्दुओं के अनुरूप परिस्थितियाँ उत्पन्न की जानी चाहिये ।
सूक्ष्मजीवों द्वारा विकृत किये जाने वाले भोजन या भोज्य पदार्थ (Food or Food substances spoiled by microbes)
(i).अनाज (Cereals) : विभिन्न प्रकार के अनाज, आटा या बेकरी पदार्थों में मृदा, वायु, कीटों या अन्य स्रोतों से संदूषण (contamination) होता है। इनमें स्यूडोमोनास (Pseudomonas), माइक्रोकॉकस (Micrococcus), लेक्टोबेसिलस (Lactobacillus ) एवं बेसिलस (Bacillus), कॉलीफम्स (Coliforms), सार्सीना (Sarcina), सिरेटिया (Serratia) जीवाणु तथा फफूंद के जीवाणु एसिपरजिलस (Aspergillus) व पैनिसिलियम (Penicillium) वंश के हो सकते हैं। पकाये गये ये अनाजों या इनके उत्पादों की ऊपरी सतह जीवाणुओं से मुक्त होती है किन्तु यह भी छूने पर या ठंडा करने तक पैकिंग क्रिया के दौरान संदूषित हो जाती है। इन पदार्थों में अधिक नमी होने पर संदूषण की संभावना अधिक रहती है। फफूंद इन पदार्थों में 13% से अधिक नमी होने पर उत्पन्न हो सकती है। यह माइकोटॉक्सिन (mycotoxin) उत्पन्न कर भोजन को विषाक्त कर देती है। बेकरी उत्पाद फ्रीज में ही रखे जाने चाहिये। अच्छी बेकरीज में रसायनिक परिरक्षक युक्त उत्पाद बनाये जाते हैं। फफूंद के साथ बेकरी उत्पादों में राइजोपस नाइग्रीकेन्स (Rizopus nigicans), पैनिसिलियम एक्सपेन्सम (Penicillium expensum), एसपरजिलस नाइजर (Aspergillus niger), न्यूरोस्पोरा क्रेसा (Neurospora cresa) द्वारा भी संदूषण हो जाता है। सूक्ष्मजीवों से युक्त ब्रेड में रज्जुक संरचना (ropiness) उत्पन्न हो जाती है, यह क्रिया प्रोटीन व मंड के जल अपघटन द्वारा होती है। सिरेटिस मारसिसेन्स (Serratis marcescens) इन उत्पादों को संदूषित कर लाल रंग के बना देते हैं।
(ii) शर्करा एवं शर्करा के उत्पाद (Sugar and sugar products) : शर्करा के उत्पाद जैसे शर्बत, जेम, जेली में स्यूडोमोनास (f seudomonas), फ्लैवोबैक्टीरियम (Flavobacterium), ल्यूकोनोस्टॉक, बेसिलस जाति के जीवाणु हो सकते हैं। इनके अतिरिक्त यीस्ट (Yeast), सेकेरोमाइसेस (Saccharomyces), तथा केन्डिडा (Candida) वंशों के सूक्ष्मजीव भी संदूषण करते । आइसक्रीम में कॉलीफार्म्स (Coliforms) बनने के बाद की क्रियाओं द्वारा संदूषण करते हैं। चाकलेट द्वारा ढ़की आइसक्रीम सूक्ष्मजीवों को अधिक सक्रिय बने रहने में सहयोग करती है। शर्बत आदि शर्करा युक्त पदार्थों में तन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। एन्टेरोबैक्टर एरोगेन्स (Enterobacter aerogans) के कारण ये खट्टे तथा सकेरोमाइसस (Saccharomyces) के कारण गुलाबी रंग के हो जाते हैं। एसपरजिलस (Aspergillus ), पैनिसिलियम (Penicillium) व माइक्रोकॉकस रोजेस (Micrococus roseus) शर्बत की सतह पर गुलाबी पपड़ी बना लेते हैं। शहद में यीस्ट की जातियाँ, जाइगोसेकेरोमाइसेस (Zygosaccharomyces) या तोरूला ( Torula) अथवा पैनिसिलियम (Penicillium) व म्यूकर (Muccor) सतह पर वृद्धि करती है । शर्करा युक्त पदार्थ विकृत होकर CO ূएल्कोहॉल व अम्ल उत्पन्न कर शहद में विशिष्ट गन्ध उत्पन्न करते हैं तथा शहद का रंग गहरा हो जाता है। अनेक औषधियाँ जिनमें शर्करा युक्त पदार्थ होते हैं. ये भी सूक्ष्मजीवों द्वारा संदूषित हो जाती है।
सारणी 27.3: सूक्ष्मजीवों द्वारा भोज्य पदार्थों की विकृति
भोज्य पदार्थ | विकृति का प्रकार
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सूक्ष्मजीव
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अनाज
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विगलन
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एसपरजिलस, पेनिसिलियम बेसिलस, कॉलीफार्मस्
माइक्रोकॉकस
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ब्रेड
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धागे उठना लाल रंग
कवक उठना |
बेसिलस सबटिलिस, सिरेटिस मारसिसेन्स
एसपरजिलस नाइजर, पेनिसिलियम जाति राइजोपस नाइग्रिकेन्स
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शर्करा एंव शर्करा
के उत्पाद, शहद, शर्बत
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धागे उठना
यीस्ट लगना कवक लगना गुलाबी हरा गन्ध में परिवर्तन
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एन्टोरोबेक्टर एरोगेन्स, तोरूला
सेकेरोमाइसेस, जाइगोसेकेरोमाइसेज एसपरजिलस, पेनेसिलियम माइक्रोकॉकस रोजेएस स्यूडोमोनेस फ्यूरेसेन्स एसीटोबेक्टर, लेक्टोबेसिलस ल्यूकोनोस्टोक
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मांस (ताजा)
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सडना
व खट्टा होना
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एल्केलीजेन्स, क्लोस्ट्रीडियम
क्रोमेटोबैक्टीरियम, प्रोटीयस वल्गेरिस स्यूडोमोनेस प्ल्यूरोसेन्स
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मांस संसाधित
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कवक लगना हरा होना
खट्टा होना
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लेक्टोबेसिलस, एसपरजिलस
पेनिसिलियम राइजो लैक्टोबेसिलस पेडिओकोकॅस स्ट्रेप्टोकोकॅस माइक्रोकॉकस स्यूडोमोनेस
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पॉल्ट्री
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लसलसा होना
गन्ध आना
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ल्यूकोनोस्टॉक
एल्केलीजेन्स स्यूडोमोनस
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मछली
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गन्ध
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बेसिलसएवं मांस में लगने वाले सूक्ष्मजीव
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अण्डे | हरे धागे
रंगहीन धागे फफूंद लगना काले धागे
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एलेकेलीजेन्स
स्यूडोमोनेस फ्लूयेरेसेन्स क्रोमेटोबेक्टीरियम, कॉलीफार्मस् क्लेडोस्पोरियम, म्यूकर पेनिसिलियम, स्पोरोट्राकियम, प्रोटीयस
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(iii) फल एवं सब्जियाँ (Fruits and vegetables) : फल व सब्जियाँ खेतों में तोड़ते समय या एकत्रित करने के समय अथवा लाने ले जाने के दौरान खरोंच लगने पर संदूषित हो जाती है व ये सड़ने लगती है। संग्रह करने पर इनमें मीठापन अधिक होने लगता है तथा संदूषण शीघ्रता से होता है।
इनके विभिन्न उत्पाद बनाते समय ट्रे, पाइप, टेबल, चाकू, हत्थों से सूक्ष्मजीवों द्वारा संदूषण होता है। फल व सब्जियों या इनके उत्पादों पर स्यूडोमोनास, बेसिलस, एन्टेरोब्रैक्टर, स्टेफिलोकॉक्स, स्ट्रेप्टोकॉक्स, लैक्टोबेसिलस, ल्यूकोनास्टॉक व अनेक प्रकार की फफूंद व यीस्ट हो सकते हैं।
फल व सब्जियों को फ्रीज में रखकर, बोरेक्स या डिटरजेन्ट युक्त जल, पोटेशियम परमेगनेट से धोकर रखने पर संदूषण को रोका जा सकता है। फलों को सूखाकर, प्याज व शकरकन्द को डीप फ्रीज में रखकर परिरक्षित किया जाता है।
फलों व सब्जियों पर एरविनिया कारटोवेरा (Erwinia carotovera) के प्रभाव से ये पिलपिली व कोमल होकर दुर्गन्ध उत्पन्न करती है। बौट्रायटिस साइनेरिया (Botrytis cinerea ) द्वारा संदूषित होने पर सड़ने की गन्ध तथा राइजोपस (Rihizopus) से संदूषित होने पर धागे उत्पन्न होते दिखाई देते हैं। मृतोपजीवी जीवाणुओं द्वारा संदूषित होने पर फल व सब्जियाँ चिकनी या लसलसी हो जाती है।
(iv) माँस (Meat) : माँस या माँस के द्वारा बने पदार्थों पर अनेकों प्रकार के जीवाणु व फफूंद उत्पन्न होते हैं क्योंकि यह जीवाणु संवर्धन का उपयुक्त माध्यम है। इनकी सतह पर सूक्ष्मजीव अधिक हो सकते हैं। रक्तमय माँस में वायु द्वारा काटने के समय या टेबल द्वारा संदूषण होता है। सूक्ष्मजीव जो संदूषण करते हैं मुख्यतः फफूंदियों में क्लेडोस्पोरियम (Cladosporium), स्पारोट्राइकियम (Sporotrichium), पीयोट्राइकम, पेनिसिलियम, म्यूकर तथा जीवाणुओं में स्यूडोमोनास, माइक्रोकॉक्स, स्ट्रेप्टोकॉकस, सार्सीना, लेक्टोबेसिलस, सालमोनेला, एशरिकिया (Eschrichia) क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium) व बेसिलस है। माँस का परिरक्षण इसे काटने के तुरन्त बाद तेजी से ठंडा करके किया जाता है। डीप फ्रिज में माँस का परिरक्षण संभव है। विकिरण द्वारा परिरक्षित कर डिब्बाबंद करने पर संदूषण अल्पतम होता है। रसायनिक परिरक्षक मिलाकर भी परिरक्षण किया जाता है।
संदूषित माँस की सतह चिकनी हो जाती है, यह स्यूडोमोनास, स्ट्रेप्टोकॉक्स, बेसिलस व माइक्रोकॉकस द्वारा किण्वन करने पर होती है, जिससे माँस का रंग बदल जाता है तथा माँस स्वयं प्रकाश उत्पन्न करने लगता है। वसा पदार्थ विघटित होकर अम्लों में बदल जाते हैं एवं माँस से दुर्गन्ध आने लगती है।
(v) मछली (Fish) : मछली में संदूषण उस जल से ग्रहण किया जाता है, जहाँ से यह लाई जाती है। मछली पर उपस्थित सूक्ष्मजीवों में स्यूडोमोनास (Pseudomonas), एलकेलीजेन्स (Alcaligenes), विब्रियो ( Vibrio), माइक्रोकॉकस (Micrococcus) प्रमुख हैं। संदूषण लाने ले जाने के दौरान, काटने व रखने के दौरान भी होता है, इसे डीप फ्रिज में रखना चाहिये। नमक डालकर व सुखाकर रखने की पुरानी परम्परा रही है किन्तु हेलोफाइल्स इसका रंग बदलने की क्रिया करते रहते हैं। रासायनिक पररिक्षक युक्त मछली खराब नहीं होती है।
(vi) अण्डे व पॉलट्री (Eggs and poultry) : अण्डे दिये जाने के समय भीतर से संदूषण रहित होते हैं किन्तु बाहर मल पदार्थों के द्वारा संदूषित हो जाते हैं। वायु से भी संदूषण होता है। अण्डों के कवच पर स्ट्रेप्टोकोकॅस, स्टेफिलोकोकस, माइक्रोकॉक्स, सार्सीना, स्यूडोमोनास, ऐन्टेरोबैक्टिरिया आदि वंश के जीवाणु हो सकते हैं। फफूंद भी अण्डों पर एवं अण्डे से बने पदार्थों जैसे केक, पेस्ट्री, आमलेट आदि पर पायी जाती है। इन्हें निम्न ताप पर रखकर सुरक्षित करते हैं।
अण्डे धोने पर जल्दी खराब होते हैं। फॉरमेलिन व डिटरजेन्ट युक्त जल से धोने पर इन्हें परिरक्षित अवस्था में रख सकते हैं। इनको ईथाइलिन ऑक्साइड द्वारा घूमित करके या फ्रीज में रखकर परिरक्षण करते हैं। पेनिसिलियम, क्लेडोस्पोरियम, स्पोरोट्राइकस, फफूंद तथा स्यूडोमोनास फ्लूरिसेन्स व एलेकेलीजेन्स वंश के जीवाणु अण्डे से बने पदार्थों को संदूषित करते हैं।
पॉलट्री या कुक्कुट पर संदूषण माँस की भांति ही होता है। कुक्कुट की देह सतह पर सूक्ष्मजीव होते हैं जो संदूषण उत्पन्न करते हैं। इनमें एन्टेरोबैक्टर, बेसिलस, एशरिकिआ, स्यूडोमोनास, स्टेफिलोकॉकस, प्रोटीयस व सालमोनेला प्रमुख है। मांस के परिरक्षण की विधियाँ ही इन्हें सुरिक्षत बनाये रखने में उपयोगी रहती है। जल में क्लोरीन मिला कर डीप फ्रिज में रखने से भी अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ परिरक्षित बने रहते हैं।
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