भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत कब हुई थी ? प्रथम रेडियो केंद्र की स्थापना कहां हुई इतिहास विकास
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इलैक्ट्राॅनिक मीडिया और संस्कृति पर इसका प्रभाव
औद्योगिक एवं संचार क्रांतियों ने विश्व का नक्शा ही बदल दिया। भारत में, इलेक्ट्राॅनिक मीडिया ने, इसके उद्भव के समय से, लोगों के दिलो-दिमाग पर राज कर लिया, जैसाकि पहले कोई भी क्रांति ऐसा नहीं कर पाई। हमें कहना होगा किए मीडिया ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभाव छोड़ा है। इसने लोगों की कल्पनाओं को कैद कर लिया है जैसाकि विगत् दशकों में इसने अद्भुत प्रगति की है। इलाॅक्ट्राॅनिक मीडिया का प्रभाव, विशेष रूप से रेडियो एवं टेलिविजन, हालांकि, सदैव सकारात्मक नहीं रहा। मीडिया के सांस्कृतिक प्रभाव को समाज में परम्पराओं एवं मूल्यों की पृष्ठभूमि को देखकर ही इसके महत्व का मूल्यांकन किया जा सकता है।
भारत में रेडियो
प्रसार भारती, आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से देश में सार्वजनिक प्रसारण करता है। 23 नवम्बर, 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया और इसका मुख्य उद्देश्य रेडियो और दूरदर्शन पर संतुलित प्रसारण का विकास सुनिश्चित करके लोगों को सूचित, शिक्षित एवं मनोरंजन करना था।
रेडियो न केवल मनोरंजन, अपितु व्यक्तियों के ज्ञानवर्द्धन का एक मुख्य साधन है। भारत में रेडियो प्रसारण का प्रारंभ 1927 में बम्बई और कलकत्ता में दो गिजी स्वामित्व वाले ट्रांसमीटरों की स्थापना से हुआ। 1930 में सरकार ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और इसका संचालन ‘भारतीय प्रसारण सेवा’ के नाम से करने लगी। 1936 में भारतीय प्रसारण सेवा का नाम परिवर्तित कर ‘आॅल इण्डिया रेडियो’ कर दिया गया, जो आज भी आकाशवाणी के नाम से ही जागा जाता है। आज इस विभाग का संचार माध्यमों में महत्वपूर्ण स्थान है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के सभी जनसंचार विभागों में ‘आकाशवाणी’ सर्वाधिक बड़ा विभाग है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में आकाशवाणी के मात्र 6 केंद्र थे, जबकि वर्तमान में केंद्रों की संख्या 403 हो गई है।
विभाजन के समय भारत में छह रेडियो केंद्र थे (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ) और तीन रेडियो केंद्र पाकिस्तान में चले गए (लाहौर, पेशावर और ढाका, जो अब बांग्लादेश में है)।
मद्रास में 23 जुलाई, 1973 को देश की पहली एफएम सेवा की शुरुआत हुई। 1985 में सभी आकाशवाणी केंद्रों को 5 चैनल रिसीवर टर्मिनल उपलब्ध कराए गए। 1994 में मुम्बई और 1995 में चेन्नई में मल्टी-ट्रैक रिकाॅर्डिंग स्टूडियो की शुरुआत हुई।
आकाशवाणी के ज्यादातर क्षेत्रीय चैनल राजधानियों में और मुख्य रूप से भाषाई-सांस्कृतिक क्षेत्रों में स्थित हैं। देश के 29 राज्यों और छह संघ शासित प्रदेशों में कुल 120 क्षेत्रीय चैनल काम कर रहे हैं। क्षेत्रीय चैनल्स के जरिए श्रोताओं को सूचना देने के अलावा मनोरंजक कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाते हैं।
आकाशवाणी कई वर्षों से त्रि-स्तरीय प्रणाली का उपयोग राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय प्रसारण में कर रहा है। यह सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का प्रबंध श्रोताओं के लिए विभिन्न स्टेशनों से इस देश में प्रसारित किया जाता है।
वह समाचार संगीत, स्पोकन शब्द और अन्य कार्यक्रम 22 भाषाओं और 146 बोलियों में पूरे देश की जनसंख्या तक पहुंचने की कोशिश करता है।
भारत में स्थानीय रेडियो द्वारा प्रसारण एक नई अवधारणा है। 86 एफएम स्टेशनों की सेटअप की आवश्यकता है और छोटे शहरों के लिए गतिविधियों को केंद्र से प्रसारित करना है। प्रत्येक स्थानीय रेडियो स्टेशन एक छोटे क्षेत्र में सीधे श्रोताओं तक पहुंच कर उन्हें उपयोगी सेवाएं प्रदान करता है। स्थानीय रेडियो के कार्यक्रम क्षेत्र विशेष तक सीमित होते हैं और श्रोताओं से जमीनी स्तर पर जुड़े होते हैं। यही विशेषता इन्हें क्षेत्रीय संचार तंत्र से अलग पहचान दिलाती है। स्थानीय रेडियो केंद्र के जरिए स्थानीय समुदाय के लोग अपनी बातें और विचार खुले रूप से कह सकते हैं।
स्थानीय आदिवासी जनता को ध्यान में रखते हुए देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पांच स्थानों पर सामुदायिक रेडियो केंद्र खोले गए। आकाशवाणी के एफएम रेनबो चैनल की शुरुआत उस वक्त हुई जब बड़े शहरों में रेडियो सुनने वालों की संख्या गिर रही थी। समाज के उच्च वग्र के लोगों का मानना था कि रेडियो सिर्फ मध्यम वग्र के लोगों के लिए है और फैशन से बाहर है। साउंड रिकाॅर्डिंग के क्षेत्र में तकनीकी सुधारों ने युवा संगीत प्रेमियों को उन्हें संगीत के दूसरे माध्यमों की ओर मोड़ दिया क्योंकि एएम प्रणाली के जरिए गीतों की श्रवण गुणवत्ता स्टीरियोफोनिक सिनेमाघरों या डिजिटल इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों जितनी बेहतर नहीं थी। एफएम रेडियो के जरिए श्रोताओं को बाधारहित और उच्च गुणवत्ता का संगीत सुनने को मिला। एफएम रेडियो पर प्रस्तुतकर्ताओं के नए अंदाज ने भी श्रोताओं की अपेक्षाओं और बदलती जरूरतों को पूरा किया।
एफएम गोल्ड चैनल की शुरुआत दिल्ली में 1 सितंबर, 2001 को एक ज्ञान और मनोरंजक चैनल के रूप में हुई जिसमें 30 प्रतिशत समाचार और समसामयिक कार्यक्रम और 70 प्रतिशत मनोरंजक कार्यक्रम शामिल थे। वर्तमान में एफएम गोल्ड का प्रसारण दिन में 18 घंटे होता है और ये चार महानगरों दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में उपलब्ध है। इस अतिरिक्त चैनल ने श्रोताओं को आकाशवाणी, गिजी एफएम चैनल्स और रेनबो के साथ एक और विकल्प प्रदान किया। ये चैनल मनोरंजन और ज्ञान के साथ-साथ यातायात,एयरलाइंस, रेल सेवाओं और मौसम के बारे में भी जागकारी देता है।
टेलिविजन सेट का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं के लिए डीटीएच रेडियो चैनल के माध्यम से सैटेलाइट सेवा प्रदान की जाती है। डीटीएच सेवा पर देशभर में विभिन्न भाषाओं के चैनल उपलब्ध हैं।
आकाशवाणी की प्रसारण सेवा तीन-स्तरीय है। ये हैं राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय। राष्ट्रीय प्रसारण सेवा की शुरुआत 18 मई, 1988 को हुई थी। राष्ट्रीय प्रसारण सेवा के दायरे में पूरा देश आता है और इसके कार्यक्रम देश की सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखकर बना, जाते हैं। राष्ट्रीय चैनल पर विज्ञान, स्वास्थ्य, खेलकूद, साहित्य, हास्य, ज्वलंत सामाजिक विषय और सांस्कृतिक धरोहर जैसे विषयों पर हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में बारी-बारी से एक दिन छोड़कर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम विविध में शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक-आर्थिक विकास पर खास ध्यान दिया जाता है। इसी तरह उर्दू कार्यक्रम-मंज़र-का प्रसारण रोजागा होता है। आर्थिक, विज्ञान, खेलकूद, संगीत और साहित्य पर आधारित-मैगजीन-कार्यक्रम का प्रसारण नियमित तौर पर होता है। कैरियर माग्रदर्शन, समसामयिक और सामाजिक विषयों पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम है फोकस।
1 अक्टूबर, 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद आकाशवाणी की विदेश प्रसारण सेवा की शुरुआत देश के तत्कालीन उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र में पश्तो भाषा में प्रसारण के साथ हुई। तब से आकाशवाणी का विदेश सेवा प्रभाग भारत और बाकी दुनिया के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है, खासतौर पर उन देशों में कार्यक्रमों के द्वारा जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं।
जनसंचार के बदलते परिदृश्य में श्रोता अनुसंधान इकाई की बहुत बड़ी भूमिका है। आज पूरी दुनिया में सभी बड़े मीडिया संगठन किसी ना किसी तरीके से श्रोता अनुसंधान या बाजार अनुसंधान कर रहे हैं। कोई भी मीडिया संगठन अपने संभावित उपभोक्ताओं और बाजार अनुमान के बारे में जागे बिना अपने सीमित संसाधनों का उपयोग नहीं करना चाहेगा। इसके अलावा वे विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा किए जागे वाले व्यावसायिक अनुसंधान और बाजार अनुसंधान संगठनों की भी मदद ले रहे हैं। गिजी टेलीविजन और रेडियो चैनल्स की सफलता का एक बहुत बड़ा कारण उनके द्वारा अपने उपभोक्ताओं की नब्ज पकड़ लेने की क्षमता है और इसके लिए लगातार श्रोता अनुसंधान करना जरूरी है जिससे कार्यक्रमों की विषय वस्तु और प्रस्तुतिकरण में जरूरत के अनुसार फेरबदल किया जा सके। आकाशवाणी इस क्षेत्र में सबसे आगे रहा है। 1946 से देशभर में फैली श्रोता अनुसंधान इकाइयों के जरि, आकाशवाणी के कार्यक्रम निर्माताओं को बदलते परिदृश्य और श्रोताओं की बदलती पसंद के अनुसार कार्यक्रमों के संयोजन और उनमें बदलाव के बारे में जागकारी मिलती है। कार्यक्रमों की रेटिंग्स और श्रोताओं के बारे में आंकड़े प्रायोजकों और विज्ञापनदाताओं को उपलब्ध कराए जाते हैं। ये इकाइयां डाटा बैंक की तरह काम करते हैं।
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