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जीवाणुओं के सामान्य लक्षण लिखिए , general characters of bacteria in hindi

general characters of bacteria in hindi जीवाणुओं के सामान्य लक्षण लिखिए ?

जीवाणु (Bacteria)

जीवाणुओं की विभिन्न नामों जैसे जर्म्स (germs) माइक्रोब्स् (microbes) तथा माइक्रो-ऑरगेनिज्म (micro-organism) से भी जाना जाता है किन्तु सर्वाधिक प्रचलित एवं सर्वमान्य वैज्ञानिक नाम जीवाणु (bacterium) है। जीवाणुओं की जीवों में उद्विकास में क्रम में सबसे निम्न स्तर पर रखा गया है क्योंकि एक ओर ये वनस्पति जगत् के सदस्यों जैसे शैवाल, कवक तथा फफूंद से सजातीयता अर्थात् बन्धुता (affinity) रखते हैं तो दूसरी ओर जन्तु जगत् के प्रोटोजोआ समुदाय के सदस्यों से भी बन्धुता प्रकट करते हैं।

जीवाणुओं के सामान्य लक्षण (General characters of bacteria)

  1. जीवाणु, मृदा, जल, वायु एवं सभी वास परिस्थितियों जन्तु एवं पादपों की देह के भीतर एवं बाहर यहाँ तक कि बर्फ की पर्तों एवं अवायवीय, अति उष्ण स्थलों में भी पाये जाते हैं अत: इन्हें बहुव्यापी (ubiquitious) कह सकते हैं।
  2. इनकी दैहिक संरचना अत्यन्त सरल एक कोशिकीय (unicellular) प्रोकैरियोटिक प्रकार की होती है।
  3. कुछ जीवाणुओं में हरितलवक पाया जाता है ये अपना भोजन स्वयं बनाते हैं किन्तु

अधिकांश जीवाणु मृतोपजीवी (saprophytic) या परजीवी (parasitic) होते हैं। 4. इनकी देह पर बाह्य दृढ़ कोशिका भित्ति (cell-wall) पायी जाती है जो म्यूकोपेप्टाइड (mucopeptide) से बनी होती है। इसमें सेलुलोस नहीं पाया जाता है।

  1. इनमें सुस्पष्ट केन्द्रक, केन्द्रक कला तथा केन्द्रिक नहीं पाया जाता है।.
  2. इनमें कोशिका कला आबद्ध अंगक माइटोकॉन्ड्रिया, गाल्जीकाय, अन्तः प्रद्रव्यी जालिका, लाइसोसोम आदि नहीं पाये जाते ।
  3. इनमें श्वसन कोशिका कला के अन्तर्लन द्वारा निर्मित मीजोसोस (mesosome) द्वारा किया जाता है।
  4. स्वयं पोषी जीवाणुओं में जीवाण्विक क्लोरोफिल (bacterio chlorophyll) पाया जाता है जो सामान्य पादर्थों में उपस्थित क्लोरोफिल-ए से भिन्न होता है।
  5. इनमें अलैंगिक प्रजनन की क्रिया सामान्यतः विखण्डन (fission) द्वारा होता है। 11. इनमें लैंगिक जनन स्पष्ट नहीं होता किन्तु कुछ जीवाणुओं में लैंगिक या आनुवंशिक पुनर्योजन (sexual or genetic recombination) संयुग्मन ( conjugation) पराक्रमण (transduction) तथा रूपान्तरण (transformation) जैसी क्रियाएँ होती हैं।
  6. इनमें राइबोसोम 70S प्रकार के पाये जाते हैं।
  7. इनमें देह पर सम्पुट (capsule) पिलि (pili) एवं कशाभ (flagella) उपस्थित हो सकते हैं। कशाभ में 9+2 तन्तुकी व्यवस्था नहीं पायी जाती है।
  8. ये वातावरणीय नाइट्रोजन एवं कार्बन चक्रों को संचालित करते हैं।

जीवाणुओं के वनस्पति सदृश्य लक्षण (Plant like characteristic of bacteria)

जीवाणुओं को विशिष्ट लक्षणों के आधार पर अन्य सूक्ष्मजीवों में पृथक् एक विशेष वर्ग में स्थापित किया गया है। ये सूक्ष्मदर्शिक (microsocpic) एक कोशीय (unicellular) जीव हैं। इनमें जनन सरल विखण्डन क्रिय द्वारा होता है । यद्यपि इनकी कोशिका भित्ति एवं उपापचय वनस्पति जगत् के सदस्यों से भिन्न है किन्तु अनेक लक्षणों में जीवाणु वनस्पतिक लक्षणों से समानता रखते हैं।

  1. जीवाणुओं में विशिष्ट दृढ़ कोशिका भित्ति उपस्थित होती है तो म्यूकोपेप्टाइड द्वारा निर्मित होती है कुछ जातियों में सेल्यूलोज भी पाया जाता है।
  2. कुछ प्रकार के जीवाणु तन्तुकीय संरचना रखते हैं एवं वृद्धि करते हैं ऐसी संरचना कुछ शैवालों में भी पायी जाती है।
  3. जीवाणुओं में पोषण कोशिका भित्ति से अवशोषण कर प्राप्त किया जाता है। कुछ स्वपोषी जीवाणु CO2 व H2O से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण भी करते हैं।
  4. श्वसन क्रिया के उत्पादों के रूप में अकार्बनिक पदार्थ कार्बन डाई ऑक्साइड एवं जल प्राप्त किये जाते हैं।
  5. इनमें अकार्बनिक नाइट्रोजन से सभी प्रकार के अमीनों अम्ल बनाने की क्षमता होती है।
  6. जीवाणुओं की कोशिकीय संचरना एवं जनन विधि कुछ थैलोफायटा समूह के सदस्यों से समानता रखती है।

जीवाणुओं एवं नील हरित शैवाल में समान लक्षण (Common features in bacteria and blue green algae)

  1. दोनों एक कोशिकीय जीव हैं।
  2. दोनों में प्रोकैरियोटिक संगठन एवं केन्द्रक पाया जाता है।
  3. दोनों में कोशिका कला आबद्ध अंगक अनुपस्थित होते हैं।
  4. इनमें कोशिका भित्ति की संरचना व संगठन समान होता है।
  5. इनमें प्रतिजन विखण्डन द्वारा होता है।
  6. दोनों में प्रभेद बेलनाकार, गोलाकार या सर्पिल आकृति के होते हैं।
  7. दोनों में जीवनचक्र के दौरान प्रसुप्त अवस्थाएँ व बीजाणु बनते हैं।
  8. दोनों में कुछ जीव अत्यधिक शुष्क वातावरण या 100% तक जीवित बने रहते हैं।
  9. दोनों समूह के कुछ जीवों में नाइट्रोजन स्थिरिकरण की क्षमता पायी जाती है।
  10. जीवाणुओं की भांति नील हरित शैवाल में भी प्रकाश उपलब्ध न होने की स्थिति में मृतोपजीवी विधि से पोषण करने का गुण पाया जाता है।

जीवाणुओं एवं नील हरित शैवाल में असमानताएँ (Dissimliarities between bacteria and blue green algae)

  1. नील हरित शैवाल सदैव आक्सीय (aerobic) होते हैं जबकि कुछ जीवाणु अनाक्सीय ( anaerobic) प्रकृति के भी होते हैं।
  2. कुछ जीवाणुओं में कशाभ भी पाये जाते हैं नील हरित शैवाल कशाभ रहित (aflagellate) होते हैं।
  3. सभी नील हरित शैवाल प्रकाश संश्लेषण करते हैं इनमें क्लोरोफिल-ए पाया जाता है। कुछ जीवाणु भी प्रकाश संश्लेषण तो करते हैं किन्तु इनमें क्लोरोफिल-ए अनुपस्थित रहता है। 4. नील हरित शैवाल में जल से – OH आयन प्राप्त किया जाता है जो इलेक्ट्रान दाता भी होत है। इनमें O2 सह-उत्पाद के रूप में बनती है। जीवाणुओं में H का स्त्रोत H2S होती है एवं सह उत्पाद सल्फर होता है।

जीवाणुओं तथा प्रोटीस्टा जगत् के अन्य सदस्यों के विभेदी लक्षण (Distinguishing characters of the members of the kingdom protista and bacteria)

जीवाणु जगत् प्रोटीस्टा का एक सदस्य है, जीवाणु तथ जगत् प्रोटीस्टा के अन्य सदस्यों जैसे, शैवाल, कवक, फफूंद तथा प्रोटोजोआ में कुछ विभेदी लक्षण पाये जाते हैं जो निम्न प्रकार से हैं: (i) शैवाल के जीवद्रव्य में क्लोरोफिल उपस्थित रहता है।

(ii) कवक एवं फफूंद बहुकोशीय संरचनायें होती हैं तथा इनमें लैंगिक विधि से जनन होता है।

(iii) प्रोटोजोआ में विशिष्ट केन्द्रक उपस्थित होता है तथा जनन क्रिया के अन्तर्गत लैंगिक जनन होता है।

जीवाणु (Bacteria)

जीवाणुओं को वनस्पति जगत् के एक विशिष्ट वर्ग शाइजोमायसीटीज (Schizomycetes) के. अन्तर्गत रखा जाता है।

वितरण (Distribution)

जीवाणु सरल संरचना वाले प्रोकैरयाटिक जीव हैं, जो अनुकूलन की अत्यधिक क्षमता रखते हैं। ये अधिकतम ताप, pH आक्सीजन तनाव, परासरणी ( osmotic) तथा वायुमण्डलीय दाब ( atmosphric pressure) को सहन करने की क्षमता रखते हैं। अतः जीवाणु लगभग सभी प्रकार की प्राकृतिक वातावरणीय परिस्थितियों में पाये जाते हैं। इनका वितरण बहुव्यापी (ubiquitous) है। ये तथा वायु में पाये जाते हैं। कुल मिलाकर सभी प्रकार के जीवाणुओं में लगभग 50% वास्तविक प्रकार के जीवाणु हैं। जीवाणुओं की लगभग 2000 जातियाँ हैं जो सर्वत्र विस्तृत रूप से पायी जाती है। जीवाणु सभी परिस्थितियों जैसे गहरी मृदा की परतों, जन्तुओं के रक्त एवं आन्त्र, उष्ण जलीय एवं दर्द जल के स्त्रोतों वायु, पादप एवं खाद्य पदार्थों में पाये जाते हैं।

जीवाणविक आमाप (Bacterial size)

जीवाणु अत्पन्त सूक्ष्मदर्शिक जीव है जो साधारण प्रकाश सूक्ष्मदर्शी द्वारा मुश्किल से ही देखे जा सकते हैं। सूक्ष्मतम जीवाणु लगभग 0.1 व्यास का तथा अधिकतम 60 x 6 व्यास का होता है। सामान्य जीवाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। जल की 1 बूँद में लगभग 500 खरब जीवाणु हो सकते हैं। एक ग्राम जल में लगभग, 5,00,000,000,000 जीवाणु समा सकते हैं। एक ग्राम जीवाणुओं में 1012 (एक ट्रिलियन) जीवाणु होते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं के आमाप में अत्यन्त विविधता पायी जाती है। गोलाणु या कोकस (cocuus) जीवाणुओं का आमाप 0.5 से 2.5 माइक्रॉन होता है। . दण्डाणु या बैसिलस (bacillus ) इनसे बड़े आमाप होते हैं। ये 0.3 से 15 लम्बे व 0.2-2.0p चौड़ाई के होते हैं । एशिरिकिया कोली (Escherichia coli) की लम्बाई 1.0 से 3.0 तथा व्यास 0.4 से 0.7 तक होता है। बेगियाटोआ (Beggiatoa) का व्यास 15 से 21p तथा लम्बाई कुछ सेंटीमीटर तक होती है।

निम्नलिखित तालिका द्वारा सामान्य रोग फैलाने वाले जीवाणुओं का आमाप दिखाया गया है:

रोग

 

जीवाणु लम्बाई (माइक्रान में (u)
मेनिन्जायटिस नाइसेरिया मेनिन्जटिड्सि 1.0
लोबर निमोनिया स्ट्रेप्टोकॉकस निमोनी 1.25
बायल्स कार्बकंल्स स्टेफिलोकॉकस जाति 0.8
स्कारलेट ज्वर स्ट्रेप्टोकॉकस स्कारलेटीने 1.0
भोजन विषाक्तन क्लोस्ट्रीडियम बॉटीलिनिम 3.8
टेटनस क्लोस्ट्रीडियम टेटना 2.5
डिप्थीरिया कॉरनीबैक्टीरियम डिप्थीरियाई 1.8
ट्यूबरकुलोसिस माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस 0.5-4
प्लैग पास्तेरैला पेस्टिस 1-2
टाइफाइड सॉलमोनेला टायफी 0.5-4
कोलेरा विब्रियो कोलेरा 1-5
सिफालिस ट्रिपोनेमा पेलिडम 6-14

 

जीवाणु के आमाप का कार्य आरम्भ में मापजनित लाल रक्त कणिकाओं से तुलना कर गया किन्तु आधुनिक तकनीक द्वारा सूक्ष्ममापी युक्त नेत्रिका जिस पर अशांकित मापनी (graduated scale) लगी होती है द्वारा किया जाता है। यह अशांकित मापनी अशांकित स्लाइड (graduated silde) से ही तैयार की जाती है अतः सूक्ष्म से सूक्ष्म माप भी सही पढ़ने में आता है। यह माप | (माइक्रॉन) की इकाई से प्राप्त होते हैं। एक एक मि. मी. के 1/1000 भाग तथा एक इच के 1/2500 भाग के समान होता है।

विभिन्न जीवाणुओं के आमाप में तथा एक ही जाति के विभिन्न सदस्यों में भी काफी भिन्नता पायी जाती है। जीवाणु का आमाप अधिकतर वातावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर होता है। औसत आमाप सामान्य जीवाणुओं का 0.75u से 2 u के बीच पाया जाता है जैसे एन्थ्रेक्स बैसिलस 6-12 x 7-15u तथा एन्फ्लूएन्जा बेसिलस में 1.2 x 0.3 u जीवाणुओं की तन्तुरूपी जातियों में 80 – 100 u तक की लम्बाई पायी जाती है। सबसे छोटा शालाखा रूपी जीवाणु यूबैक्टीरियम (Eubacterium) डायलिस्टर न्यूमोसिन्टेस (Dialister pneumosintes) है जो 0.15u आमाप का होता है तथा स्पाइरिलियम वाल्युटेन्स (Spirillum volutans) 15u लम्बा और 1.5 u व्यास वृहताकार जीवाणु है। सल्फर जीवाणु थायोफाइसा वाल्युटेन्स (Thyophysa volutans) 18 u व्यास का सबसे बड़ा जीवाणु है।

जीवाणुओं की आकृति, प्रकार एवं आकार (Shape, forms of bacteria and size)

जीवाणुओं का इतिहास पुराना नहीं है। 1683 में लीवनहॉक (Leeuwenhoek) ने अपने द्वारा बनाये गये सूक्ष्मदर्शी (चित्र सं 8.1 ) द्वारा कुछ जीवाणु देखे और स्पष्ट रूप से कुछ आकृतियों (i) बेसिली (bacilli) अर्थात् शलाखा रूपी तथा (ii) स्पाइरल (spiral) अर्थात् सर्पिल रूपों का उल्लेख किया है। कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने भी आकृति को आधार मानकर जीवाणुओं के वर्गीकरण का प्रयास किया है। यद्यपि इस प्रकार से किये गये वर्गीकरण का अब कोई महत्व नहीं रह गया है। किन्तु आज भी सामान्य नामकरण के दौरान इन वैज्ञानिकों द्वारा सुझाये गये नाम प्रयुक्त किये जाते हैं।

कुछ प्रमुख समूह जो वैज्ञानिकों द्वारा सुझाये गये हैं निम्नलिखित प्रकार से हैं :

(1) शलाखा रूपी जीवाणु (Rod-like bacteria) – शलाखा रूपी या छड़ के आकार के जीवाणुओं को बेसिली अर्थात् दण्डाणु [एक वचन बेसिलस (bacillus )] जीवाणु कहा जाता है। ये सामान्यतः मुक्त अवस्था में पाये जाते हैं। चल (motile) या अचल (non motile) प्रकार के होते हैं। आमाप में 1 से कुछ तक पाये जाते हैं। कभी-कभी दण्डाणु आकृतियों के जीवाणु युग्मों में पाये जाते हैं, इनका नामकरण शलाखा आकृतियों की संख्या के आधार पर किया जाता है। जैसे (अ) डिप्लोबेसिली (diplobacilli) जब दो शलाखा रूपी आकृतियाँ युग्मों में उपस्थित होती हैं। (ब) स्ट्रेप्टोबैसिली (streptobacilli) जब दो से अधिक शलाखा रूपी आकृतियाँ श्रृंखलाबद्ध अवस्था में उपस्थित होती हैं।

उदाहरण :- बैसिलस ट्यूबरक्यूलोसिस (Bacillus tuberculosis) बेसिलस सबटिलिस (Bacillus subtillis), लेक्टोबैसिलस (Lactobacillus ) आदि ।

  • गोलाकार जीवाणु ( Spherical bacteria)- कोकाई (cocci) [एक वचन कॉकस (coccus)] के नाम से जाने जाते हैं। गोलाकार जीवाणु मुक्त अवस्था में पाये जाने पर कोकाई कहलाते हैं। ये 5-1pm औसत व्यास के जीवाणु होते हैं। ये अचन (non motile) एवं अशूकीय (atrichous) होते हैं। एकल कोकस माइक्रोकोकाइ (micrococci) कहलाते हैं। उदाहरण:- माइकोकॉकस एगिलिस (Micrococcousagilis) मा. रोजियस (M. roseus) यदि एक से अधिक गोलाकार कोशिकाएँ एक साथ पायी जाती हैं तो इनका नामकरण निम्न प्रकार से किया जाता है।

(i) डिप्लोकोकॉइ (Diplococi)- अर्थात् यमलगोलाणु जब दो गोलाकार कोशिकाएँ युग्मावस्था में पायी जाती हैं।

उदाहरण- डिप्लोकॉकस निमोनि (Diplococcus pneumoniae)

(ii) टेट्राकोकॉइ (Teracocci)- अर्थात् चर्तुः फलाशकी जब कोशिकाओं की चार कोशिकाएँ एक समूह में पायी जाती है।

(iii) स्टेफिलोकोकॉइ (Staphyloccoccoi) – गोलाकार कोशिकाओं के एक गुच्छ (cluster) के रूप में उपस्थित होने पर ये गुच्छाणु स्टेफिलोकॉकस (staphylococcus) कहलाते हैं।

उदाहरण-स्टेफिलोकॉकस ऑरियंस (Staphylococcus aureus )

(iv) स्ट्रेप्टोकॉकस (Streptococcus) – गोलाकार कोशिकाओं के एक श्रृंखला में मनकों या मणियों की माला (bead-like chain) के सदृश्य होने पर स्ट्रेप्टोकॉकस का नाम दिया है।

उदाहरण-स्ट्रेप्टोकॉकस ऐगेलेक्टी (Streplococcus agalecti)

(v) सासींना (Sarcina)—– गोलाकार आकृति की कोशिकाओं के घनाकार (cuboidal) अवस्था में उपस्थित होने की दशा में जाति सासींना (sarcina) का विशिष्ट स्वरूप पाया जाता है।

उदाहरण-सारसिनि ल्यूटिआ (Sarcinae lutea ) ।

(3) सर्पिलाकार जीवाणु (Sprial shaped bacteria)- जीवाणुओं के कुण्डलित (helical) या सर्पिल (spiral) आकार की कोशिकाओं में होने पर इन्हें सर्पिलाकार स्पाइरिलम (spirillum) ) कहते हैं। ये 5-10pm लम्बाई में पाये जाते हैं। उदाहरण :- स्पाइरिलम वाल्यूटेन्स (Spirillum volutans)

(4) विब्रियो (Vibrio)—– छोटी अपूर्ण संरचना जो ‘कोमा’ (comma) की आकृति के समान होती है, इस आकृति की जीवाणु कोशिकाओं को “विब्रियो” (vibrio) कहते हैं। इस आकृति में जीवाणु बेलनाकार होता है जो मुड़ी हुई अर्थात् वक्र दशा में पाया जाता है ये लम्बाई में 1-5 pum के पाये जाते हैं। यह नामकरण आकृति के आधार पर न होकर कम्पन गति (vibratory movement) करने की प्रणाली पर आधारित है।

उदाहरण- कॉलेरा अर्थात् हैजा का रोगाणु विब्रिओ कॉलेरा (Vibrio cholerae)

(5) तन्तुमय जीवाणु (Filamentous bacteria)- कुछ जीवाणु जो तन्तुमय आकृति के होते हैं इस समूह में रखे गये हैं। उदाहरण – थीयोथ्रिक्स (Thiothrix) बेगियोटोआ (Beggiotoa)

(6) सवृन्त जीवाणु (Stalked bacteria)- ये एक कोशिकीय सवृन्त जीवाणु होते हैं। वृन्त कोशिका का ही एक भाग होता है। उदाहरण कोलोवैक्टर (Coaulobacter) कभी-कभी वृन्त रिसा हुआ भाग होता है।

उदाहरण  गेलीओनेला (Gallionella) वृन्त के आधार परस्पर जुड़कर गुलाब समान आकृति बनाते हुए पाये जाते हैं।

(7) बहुरूपी जीवाणु (Pleomorphic bacteria)- कुछ जीवाणु वातावरण में परिवर्तन होने पर अपनी आकृति में परिवर्तन ले आते हैं अतः एक से अधिक रूपों में पाये जाते हैं।

उदाहरण एसिटोबैक्टर (Acetobacter) यह छड़ समान एवं छड़ों की श्रृंखला बनाते हुए पाया जाता है।

(8) मुकुलन करने वाले जीवाणु (Budding bacteria) – कुछ जीवाणु गोल आकृति के होते हैं जिनसे एक नलिका निकल कर फूलती है जो नयी गोलाकार आकृति को जन्म देती है। इस प्रकार मुकुलन द्वारा एक जाल समान बन जाती है। उदाहरण-रोडोमाइक्रोबियम (Rhodomicrobium)

(9) तरंगाणु (Spirochaetes) – ये जीवाणु कोशिकाएँ रोम समान लम्बी तथा कुण्डली के आकार की होती है, इन्हें रोम समान तथा कुण्डलाकार (hair-coil like ) कहते हैं। स्पाइरोकीट समूह के जीवाणु द्रव में उत्पन्न होने वाली तरंगों की भाँति गति करते हैं।

उदाहरण सिफलिस रोग का रोगाणु ट्रिपोनिमा पेलिडम (Treponema pallidium).

(10) एक्टिनोमाइसिटीज (Actinomycetes) – ये तन्तु रूपी तथा शाखित प्रकार की आकृति के जीवाणु होते हैं। इनके नामकरण हेतु सूर्य से आती किरणों के उत्तकों पर पड़ने से जो आकृति बनती है, का आधार लिया गया है। यह आकृति दृढ़ कोशिका भित्ति के कारण पायी जाती है।

उदाहरण- स्ट्रेप्टोमाएसेज (Streptomyces).

(11) माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma)- इन जीवाणुओं में कोशिका भित्ति अनुपस्थित रहती हैं अतः स्थिर आकृति नहीं पायी जाती है। ये जीवाणु गोल या अण्डाकार कायों के रूप में अथवा उलझे हुये तन्तुओं के रूप में पोय जाते हैं। इन्हें L – अवस्था (L-forms) भी कहते हैं। कोशिका भित्ति के संश्लेषण किसी कारण से त्रुटि हो जाने पर उपरोक्त आकृतियाँ बनती हैं, इन्हें स्फीयरोब्लास्ट या प्रोटोप्लास्ट (spheroblast or protoplast) भी कहते हैं। एक ही श्रेणी या जाति के विभिन्न रूपों में उपस्थित होने पर ये बहुरूपी [ प्लीओस = अनेक या विभिन्न मॉर्फ = आकार (pleomorphs) कहलाते हैं। उदाहरण माइकोप्लाज्मा निमोनिया (Mycoplasma pneumonia)].

(12) आर्क्यूला (Arcula)-वॉल्सबी (Walsby) ने 1980 में चौकोर चतुर्भुजाकार आकृति के जीवाणुओं को 1980 में सिनाई (Sinai) के खारे जल में पोखरों में देखा एवं इन्हें “हेलोफिलिक बैक्टीरिया ” ‘ (Halophilic bacteria) अर्थात् लवणरागी जीवाणु नाम प्रदान किया।

उदाहरण (Halobacterium.).