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robert koch discovered in hindi , रॉबर्ट कॉक ने किसकी खोज की थी , जीवनी , कार्य , सूक्ष्मजीवी विज्ञान

पढेंगे robert koch discovered in hindi , रॉबर्ट कॉक ने किसकी खोज की थी , जीवनी , कार्य , सूक्ष्मजीवी विज्ञान ?

रॉबर्ट कॉक का कार्य (The work of Robert Koch)

रॉबर्ट कॉक का जन्म जर्मनी के क्लास्थल (Clausthal ) नामक कस्बे में 1843 में हुआ था। इन्होंने जार्जिया अगस्ता विश्वविद्यालय (Gorgia Augusta University) से चिकित्सा विज्ञान (medicine) में डिग्री प्राप्त की। शोध कार्य की प्रेरणा इन्हें अपने गुरू हेनले (Henle) से मिली जो रोग कारकों पर शोध कार्य कर रहे थे।

जर्मन डाक्टर रॉबर्ट कॉक (Robert Koch) ने सूक्ष्मजीवों पर अनेक अनुसंधान कार्य किये हैं। सूक्ष्मजीवी विज्ञान के इतिहास में इनका नाम स्वर्णिम अक्षरों द्वारा लिखा गया है। इन्होंने प्रथम शुद्ध सवर्धन प्राप्त करने की विधि विकसित की। कॉक व इनके सहयोगियों ने मिलकर ठोस प्रकार के संवर्धन माध्यम (आलू, जिलेटिन, स्कंधित सीरम, मांस-पेप्टॉन  एगार) विकसित किये जिन पर जीवाणु संवर्धन कर सकते हैं। कॉक ने अभिरंजन हेतु एनीलिन डाइ का उपयोग करके जीवाणुओं को अभिरंजित करने की विधि को अपनाया। 1877 में कॉक ने जीवाणुओं को सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने की नयी तकनीक आयल इमरशन, तथा ऐब के कन्डेन्सर का उपयोग कर अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करने का कार्य किया। कॉक ने शुद्ध सवर्धन प्राप्त करने हेतु संरोप (inoculum) युक्त प्लेटीनम की सुई से संवर्धन माध्यम में रेखाएँ (streaks) बनायी। यह तकनीक रेखा संवर्धन ( streak culture) तकनीक के नाम से प्रचलित हुयी। आजकल जिलेटिन के स्थान पर एगार का उपयोग संवर्धन हेतु किया जाता है। कॉक द्वारा ही संवर्धन हेतु सर्वप्रथम उपयोगी पेट्री-डिश (petri dish) का उपयोग किया गया जो जीवाणुओं को संवर्धन हेतु उचित सतह के लिये आज भी प्रयुक्त की जाती है।

कॉक ने 1882 में ट्यूबरकुलोसिस अर्थात् तपेदिक रोग के जीवाणु या रोगजनक ट्यूबरकल – बेमिलस (Tubercle-bacillus) की महत्वपूर्ण खोज की। इसके बीजाणु मनुष्य में वायु के साथ फेफड़ों में प्रवेश करते हैं एवं उत्तक क्षय आरम्भ कर देते हैं । उत्तकक्षयी क्षेत्रों की परिधि पर उपस्थित उपकला कोशिकाओं के बीच महाकोशिकाएं (giant cells) पायी जाती है जिनमें ट्यूबरकल बैसिलाई पाये जाते हैं। ये यहाँ से पूरी देह में रक्त के साथ फैल जाते हैं। इन्होंने रोगजनक जीवाणुओं को इनके द्वारा जनिक रोग के साथ जोड़ने तथा जीवाणु को पोषक से पृथक कर संवर्धन करने की आवश्यकता से संबंधित सिद्धान्त भी प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी विशिष्ट रोग के जीवाणु संवर्धन माध्यम से पुनः सुग्राही जन्तु (susceptible animal) में प्रवेश कराने पर रोग उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार के परीक्षण करने के उपरान्त ही जीवाणु की सही रोगजनक क्षमता का ज्ञान होता है।

कॉक ने एन्थ्रेक्स व कॉलेरा अर्थात् हैजा रोग के जीवाणुओं की खोज 1882 1883 रोग को नियंत्रित करने के उपायों को खोजने में उपस्थित अवरोधकों को हटा दिया। कॉक ने संक्रमण द्वारा होने वाले रोगों, विशेष रूप से घावों द्वारा उत्पन्न संक्रमण रोगों पर अनेकों अनुसंधान कार्य किये। कॉक को सर्वाधिक सम्मान तपेदिक रोग के जीवाणु की खोज किये जाने पर प्राप्त हुआ। एन्थ्रेक्स पालतू जानवरों का एक संक्रामक रोग है। इसका संचरण पशुओं से मनुष्य में भी हो सकता है। रोगी के रक्त में दण्डाकर आकृति के जीवाणुओं की खोज कॉक द्वारा की गयी एवं बताया कि यही एन्थ्रेक्स रोग के कारक है। इन्होंने एन्थ्रेक्स के जीवाणुओं को लेकर स्वस्थ चूहों में प्रवेशित कराया एवं पाया कि इनमें रोग उत्पन्न हो गया। इन्होंने रोगी चूहों की तिल्ली (spleen) को रोगाणु रहित सीरम में रख कर संवर्धित होने दिया । इसका अध्ययन करने पर इन्हें दण्डाकार जीवाणु एवं इनके बीजाणु (spore) भी प्राप्त हुए। बीजाणुओं को निजर्मित सीरम में रखे जाने पर एन्थ्रेक्स के जीवाणु उत्पन्न होने के प्रमाण प्राप्त हुए। इन्हें सूक्ष्मजैविक तकनीकों का जनक (Father of microbial techniques) माना जाता है। कॉक ने 1890 में अपने अनुसंधान के दौरान पाया कि जब ट्यूबरकल बेसिलस या इनके प्रोटीन का संक्रमण गुहना पिग में कराया गया (जो पहले से इन जीवाणुओं के संक्रमण से ग्रस्त था) तो जन्तु में अतिसंवेदी प्रक्रिया (hypersensitivity reaction) अचानक आरम्भ हो गयी इस आधार पर कॉक ने ” अतिसंवेदनशीलता परिघटना” (hypersensitivity phenomenon) का प्रतिपादन किया। कॉर्क ने सर्वप्रथम ट्यूबरकल बैसिलस को शुद्ध संवर्धन माध्यम में रखने में सफलता प्राप्त की। इस संवर्धन में वृद्धि करने व बीजाणु (spore) बनने की क्रिया भी हुई। इन परिणामों को ध्यान में रख ही टीके (spore) बनने की क्रिया भी हुई। इन्होंने सूक्ष्मजीवी विज्ञान के अनुसंधानकर्त्ताओं के लिये एक प्रयोगशाला की स्थापना भी की जहां अनेकों वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किये।

कॉक द्वारा प्रदत्त जीवाणुओं की अध्ययन प्रणाली को वर्तमान में कॉक की अभिधारणों (Koch’s postulates) के नाम से जाना जाता है। इसे निम्न बिन्दुओं के रूप में व्यक्त किया जाता है :

(i) कोई विशिष्ट जीवाणु किसी विशेष रोग का कारक होता है।

(ii) जीवाणु या सूक्ष्मजीवों का प्रयोगशाला में वृद्धि एवं प्रजनन करा कर इनका शुद्ध संवर्धन प्राप्त किया जा सकता है।

(iii) यदि इस शुद्ध संवर्धन से जीवाणु या सूक्ष्मजीवों को लेकर किसी स्वस्थ प्राणि में संक्रमण कराया जाये तो प्राणि में वह विशेष रोग उत्पन्न हो जाता है जिससे ये सम्बद्ध होता है।

(iv) रोगी की देह से पुन: इन जीवाणुओं को निकाल कर इनका प्रयोग शाला में शुद्ध संवर्धन किया जा सकता है। (चित्र 1.9)

कॉक की महत्त्वपूर्ण खोजों के बाद ही जीवाणु विज्ञान का स्वर्णिम युग आरम्भ होता है जिसका वर्णन पूर्व में किया गया है।

जैनर का कार्य (The work of Jenner)

ब्रिटिश डाक्टर एडवार्ड जैनर (Edward Jenner; 1749-1823) ने रोगों से बचाव के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इन्होंने 1796 में सर्वप्रथम टीके लगाने की तकनीक की खोज की। जैनर के काऊं पॉक्स (cow pox) अर्थात् गौ-चेचक एवं स्माल पॉक्स ( small pox) अर्थात् चेचक पर 26 वर्षों तक कार्य करके टीके लगाने की विधि की खोज की। इन्होंने काऊ पॉक्स को वेरिओली वेक्सीनी (variolae vaccinae), टीका द्रव्य को वेक्सीन (Vaccine) व टीके लगाने की तकनीक को वेक्सीनेशन (vaccination) की संज्ञा दी।

जैनर ने अपने अध्ययन के दौरान यह पाया कि गौ-पालकों (milkmaids) को चेचक रोग बहुत कम होता था किन्तु गौ-चेचक से पीड़ित पशुओं का दूध दोहने पर इनमें चेचक सदृश्य फोड़े हो जाते थे। भयंकर चेचक की अपेक्षा ये फोड़े कम तकलीफ देह होते थे अतः इन्होंने एक प्रयोग किया। गौ-चेचक से पीड़ित गौ-पालकों की त्वचा पर उपस्थित फोड़ों से मवाद लेकर स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा पर स्थानान्तरित किया। अतः इनमें संक्रमण उत्पन्न हो गया, गौ- चेचक के प्रति इनमें अल्प प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई। इन व्यक्तियों में चेचक के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिरक्षा (immunity ) उत्पन्न हो गयी थी। इस प्रकार के प्रतिरक्षण का कारण गौ-चेचक व चेचक में निकट में सम्बन्ध का होना था। आरम्भ में जैनर की टीके की प्रणाली पर लोगों को सन्देह था किन्तु फ्रान्स के सम्राट नेपोलियन, रूस की महारानी व अमेरिका के राष्ट्रपति टॉमस, जैफरसन ने जैनर द्वारा विकसित चेचक के टीके की प्रणाली का समर्थन किया और इसे व्यापक रूप से अपना लिया गया। आज तक चेचक के टीकों को लगाये जाते रहने के कारण इस महामारी को लगभग पूर्णतः समाप्त किया जा चुका है।

प्रश्न (Questions)

  1. निम्नलिखित के अतिलघु उत्तर दीजिये :

(Give very short answer/one word for the following)

  1. मानव नेत्र किस आमाप की वस्तुओं को देखने में अक्षम होते हैं ?

Objects of which size can not be seen by human eyes.

  1. प्रथम सूक्ष्मदर्शी किस वैज्ञानिक ने बनाया ?

Which scientist made the first microscope.

  1. सूक्ष्मजैविकी का जनक किसे माना जाता है ?

Who is called as father of microbiology.

  1. अजैविक वस्तुओं से जीवों के उत्पन्न होने के मत को किस नाम से जाना जाता है ?

By which name the theory is known of developing organisms by non living objects.

  1. रोगों एवं किण्वन का जीवाणु मत किस वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत किया गया ?

Germ theory of fermentation and diseases was proposed by which scientist.

  1. एक नैनोमीटर कितने एग्स्ट्रोन के बराबर होता है।

What is equivalent in angstroms to the one nanometer.

7.किण्वन के जर्म सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।

Describe the germ theory of fermentation.

  1. टिन्डलाइन पर टिप्पणी कीजिये ।

Write short note on Tyndalization.

  1. सूक्ष्मजीवों हेतु, एनीमलक्यूल शब्द का प्रयोग किस वैज्ञानिक द्वारा किया गया ?

Which scientist used the term animalcule for microbes.

  1. सूक्ष्मजैविकी का सुनहरा काल कौनसा माना गया है ?

Which period is called Golden period of microbiology?

  1. टिटनस के कारक क्लोस्ट्रीडियम टेटनी व प्लेग के कारक पास्तरेला पेस्टिस की खोज किसने की ?

Who discovered the pathogen for tetnus Clostridium tetni and pathogen for plagues Pasteurella pestis?

  1. एन्थ्रेक्स रोग के कारक की खोज का श्रेय किसे दिया जाता है ?

To whom given the credit of discovery for pathogen of anthrax.

  1. टीके लगाने की तकनीक की खोज किसने की ?

Who discovered the techniqe of vaccination?

  1. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न

(Short answer questions)

  1. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

Write short notes on.

(i) स्वतः जनन का सिद्धान्त (Theory of Spontaneous generation) (ii) किण्वन का जर्म सिद्धान्त (Germ theory of fermentation)

(iii) टिन्डलाइजेशन (Tyndalization)

(iv) एन्टोनी वॉन लीवनहॉक (Antony Von Leeuwenhoek)

(v) लुईस पास्तेर (Louis Pesteur)

(vi) राबर्ट कॉक की अवधारणाएं (Robert Koch’s postulates )

(vii) कॉक की अवधारणाएँ (Postilates of Koch)

  1. दीर्घ उत्तर वाले प्रश्न

(Long answer questions)

  1. “सूक्ष्मजीवों से क्या अभिप्राय है, सूक्ष्मजैविकी के इतिहास पर प्रकाश डालिये।”

What are “microbes” write a note on history of microbiology.

  1. सूक्ष्मजीवों में किन जीवों को सम्मिलित किया गया है, इनके महत्व पर लेख लिखिये ।

Which organisms are included in microbes. Write a account on their importance.