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1917 की रूसी क्रांति के कारण और परिणाम क्या है , russian revolution in hindi pdf causes and results

जानिये 1917 की रूसी क्रांति के कारण और परिणाम क्या है , russian revolution in hindi pdf causes and results ?

प्रश्न: रूसी क्रान्ति के प्रमुख बौद्धिक विचारक कौन थे ?
उत्तर: रूसी क्रांति के तीन प्रमुख बौद्धिक विचारक थे – टॉल्सटाय, तुर्गनेव तथा दोस्तोवस्की। इनके विचारों से राजनैतिक जागृति उत्पन्न हुई। अन्य विचारक थे-कार्ल मार्क्स, मैक्सिम गोर्की, बाकुनिन आदि। इनके विचारों से समाजवादी विचारों का श्रमिकों व बुद्धिजीविकों पर प्रभाव पडा।
प्रश्न: लाल आतंक
उत्तर: रूस में साम्यवादी क्रांति के दौरान बोल्शेविकों के भयंकर कारनामे लाल आतंक के नाम से जाने जाते है। यह 1918 से 1920 तक रहा, जिसे युद्ध साम्यवाद के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न: श्वेत आतंक
उत्तर: रूस में साम्यवादी क्रांति के दौरान बोल्शेविकों के विरोधियों के कुकृत्य को श्वेत आंतक कहा गया। जो जारशाही के समर्थक थे। जुलाई, 1918 में जार निकोलस द्वितीय व उसके परिवार की हत्या कर दी।
प्रश्न: चेका (Cheka)
उत्तर: रूसी क्रान्ति के दौरान बोल्शेविकों ने एक विशेष न्यायालय चेका की स्थापना की। जिसने क्रान्तिकारियों के अति विरोध को समाप्त करने में
महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिस प्रकार फ्रांस में आतंक के राज्य ने।
प्रश्न: रूसी क्रान्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर: i. जार की निरकुंशता
ii. जार द्वारा ड्यूमा के प्रभाव को कुचलने का प्रयास
iii. कृषकों की दयनीय दशा
iv. श्रमिकों का असंतोष
v. आर्थिक और सामाजिक विषमता
vi. जार की रूसीकरण की नीति
vii. बौद्धिक क्रान्ति से विचारों का प्रसार
viii.  रूस में समाजवाद का प्रसार
ix. व्यावसायिक क्रान्ति का प्रभाव
x. तात्कालिक कारण
xi. महायुद्ध में रूस की पराजय तथा सैनिक विनाश
xii. अकाल की स्थिति उत्पन्न होना।
प्रश्न: रूसी क्रांति की प्रकृति स्वरूप  विशेषताएं बताइए। अथवा रूसी क्रांति का प्रभाव महत्व योगदान बताइए।
उत्तर: 1. प्रभावों में क्रांति राष्ट्रपारीय थी। क्रांति ने न केवल रूस को क्रांतिकारी रूप से परिवर्तित किया, बल्कि सम्पूर्ण विश्व को विचारों से उद्धेलित किया।
2. प्रथम बार समाजवाद पर आधारित ऐसी राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हुई।
3. नवीन विचारों के आधार पर रूस में सामाजिक-आर्थिक पुनर्सरचना व एक नवीन रूस की स्थापना हुई।
1. रूस के बाहर समाजवादी विचारधारा के विकास का प्रचार-प्रसार हुआ।
2. विचारधात्मक संघर्ष यह अन्तराष्टीय स्तर का संघर्ष बन गया। द्वितीय विश्व यु़द्व के पूर्व तुष्टीकरण कर नीति के संदर्भ में इसे समज्ञा जा सकता हैं।
3. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विचारधारात्मक संघर्ष से शीत युद्ध की राजनीति शुरू हुई।
4. क्रांति से अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में परिवर्तन आया ।
5. क्रांति से अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में एक नवीन दृष्टिकोण का विकास (पूंजीवाद विरोधी, साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद विरोधी, युद्ध विरोधी
दृष्टिकोण का विकास हुआ)।
6. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में क्रांति ने नवीन विकल्प प्रस्तुत किया।
7. श्रमिकों के मुद्दे का अन्तराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण होना। प्स्व् की स्थापना, ट्रेड यूनियन का विकास श्रमिकों के हितों के लिए हुआ। राष्ट्रीय सरकारों के दष्टिकोण में परिवर्तन आ गया।
8. क्रांति ने स्वतंत्रता व प्रजातन्त्र को नवीन रूप में परिभाषित किया। बुर्जुआ प्रजातंत्र को नकारा व वास्तविक जनतांत्रिक व्यवस्था की बात की।
9. वास्तविक स्वतंत्रता मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि उसका एक महत्वपूर्ण पक्ष आर्थिक समानता की स्थापना, आर्थिक शोषण की
समाप्ति भी स्वतंत्रता है।
10. चीन में समाजवादी विचारों का प्रभाव व इससे 1949 में साम्यवादी चीन का उभरना। भारत में समाजवादी, साम्यवादी विचारों का प्रभाव, प्रसार व 1920 के दशक में समाजवादी, साम्यवादी आन्दोलन का विकास।
11. रूसी क्रांति सम्पूर्ण विश्व में एक प्रेरणा स्त्रोत – निम्न स्तर के वर्गों (मजदूरों आदि) की विजय का प्रतीक थी। इससे उपनिवेशवाद व
साम्राज्वाद विरोधी संघर्षों को प्रेरणा मिली।

सूचना एवं संस्कृतियों का
उद्गम एवं प्रसार
संस्कृतियों का परिवर्तन और सांस्कृतिक विविधता का सृजन, प्रबंधन एवं समय के साथ विलुप्तीकरण होता है। सामाजिक अधिगम और सूचना एवं ज्ञान का चयन, प्राप्त करना, आत्मसात्करण और अस्वीकार सांस्कृतिक भण्डार के निर्माण का एक अपरिहार्य पहलू है। मानव संस्कृति हमारी प्रजातियों के व्यवहार की शैली का आवश्यक परिणाम है। अन्य चीजों के मध्य, हमारे पर्यावरण एवं मूल्यों के अवशोषण में विशेषज्ञता जो जीवन में महत्व रखता है और जो संस्कृति का निर्माण करता है। हम दूसरों को सांस्कृतिक सूचना हस्तांतरित करने में बेहद प्रवीण हैं, कभी-कभी स्पष्ट उपदेशों के माध्यम से, लेकिन मानव जीवन के निरंतर सामाजिक अंतक्र्रिया गुण के द्वारा भी यह किया जाता है। सामाजिक अंतक्र्रिया का अर्थ न केवल व्यक्ति से व्यक्ति का संपर्क नहीं है, अपितु, समकालीन विश्व में, ज्ञान एवं सूचना के एक सर्वोच्च स्रोत के तौर पर भी समग्र जनसंचार शामिल होता है। इसलिए सूचना का आदान-प्रदान एवं प्रसार संस्कृतियों के उद्गम एवं निर्माण की प्रक्रिया की रीढ़ है, और आधुनिक समय में मीडिया के विशाल नेटवर्क के माध्यम से इस महत्वपूर्ण सूचना का संप्रेषण एवं विनिमय होता है। इस नेटवर्क ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभाव छोड़ा है; इसके अतिरिक्त इसमें बेहद उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो रहा है जिससे सूचना विनिमय एवं संचार की प्रक्रिया पहले से अधिक तीव्र एवं अधिक बेहतर हो गई है।
सांस्कृतिक विविधता सांस्कृतिक हस्तांतरण के दौरान विकसित होती है। यह तब होता है जब एक समान संस्कृति और उप-संस्कृति के सदस्य अपनी सूचना का एक बड़ा भाग आपस में बांटते हैं। सांस्कृतिक सूचना के बांटने से मानव समूह प्रभावी रूप से अंतक्र्रिया एवं सहयोग करते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि कुछ प्रक्रियाएं विविधता को सीमित करें। यदि इस प्रकार की प्रक्रियाएं नहीं होंगी, तो मानव समाज कार्य नहीं कर पाएंगे जैसाकि वे करते हैं। भाषाएं एवं बोलियां सांस्कृतिक सूचना के आदान-प्रदान का एक आम उदाहरण है। जीन के प्रमाण यह प्रकट करते हैं कि सभी आधुनिक मानव किस प्रकार घनिष्ठ रूप् से एक-दूसरे से जुड़े हैं। लोगों, समाजों और समुदायों में इस प्रकार की विविधता किस प्रकार आयी? आज हमें दिखाई देने वाली बेहद विविध संस्कृतियां किस प्रकार अस्तित्व र्में आईं? यह, कम-से-कम आंशिक रूप से, संचार एवं सूचना पारेषण का परिणाम था। ऐसे कई तत्व हैं जो लोगों की संस्कृति एवं सांस्कृतिक परिवर्तन सर्वोत्तम रूप में जनसंख्या स्तर में परिलक्षित होता है। प्रत्येक व्यक्ति उन्हें विरासत में मिलने वाली संस्कृति का कैदी होता है, लेकिन उनके गिर्णय उनके ज्ञान एवं सूचना पर आधारित होते हैं।
लोगों की कुल जनसंख्या एवं एक समयावधि पश्चात् कुछ सांस्कृतिक रूप् से विशेषण, व्यवहार, आस्था और मूल्यों के रूप में जनसंख्या में अधिक आम बन जाते हैं, कुछ कम महत्व के बन जाते हैं और कुछ पूरी तरह विलुप्त हो जाते हैं।
इस प्रकार, सांस्कृतिक उद्गम के सभी महत्वपूर्ण जनसंख्या स्तर की प्रकृति बहुत बड़ी संख्या में घटनाओं एवं गिर्णयों वैयक्तिक एवं सामाजिक स्तरों पर के एकत्रण का परिणाम होती है। इसमें सूचनाओं एवं ज्ञान के इकट्ठा होने से अधिगम शामिल होता है।
जनसंचार एवं आधुनिक युग में उसकी भूमिका
इस तथ्य को समझते हुए कि हम एक अरब से अधिक लोगों के संबद्ध राष्ट्र के रूप में निरंतर विकसित हो रहे हैं, सरकार देश में सूचना के लोकतंत्रीकरण और एक बेजोड़ जनसूचना ढांचा कायम करने के प्रति वचनबद्ध है। यह ढांचा सूचना संचार प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाएगा ताकि वर्तमान शासन और सेवा वितरण प्रतिमानों में क्रांति लाई जा सके। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क, जो विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को जोड़ता है, और ग्रामीण ब्राॅडबैंड नेटवर्क जो पंचायतों को जोड़ता है, जैसे नेटवर्क विचारों को जोड़ने और ज्ञान के संप्रेषण के लिए नए राजमार्गों के रूप में उभरेंगे। आधार और नेशनल जीआईएस जैसे उपायों से नीति आयोजना को अधिक सक्षम और प्रभावकारी बनाने में मदद मिलेगी और इस सूचना संचार प्रौद्योगिकी ढांचे पर निर्भर असंख्य अनुप्रयोगों से नागरिक वग्र के विभिन्न स्तरों पर अप्रत्याशित नवीनता आएगी। इस नएढांचे के सर्वव्यापक होने, लोगों और विचारों के बीच तीव्रतम ढंग से संबंध कायम होने से हम सूचना के लोकतंत्रीकरण के लिए अनिवार्य खुलेपन, पहुंच, पारदर्शिता, जवाबदेही और विकेंद्रीकरण की वर्तमान प्रक्रियाओं में एक पीढ़ीगत परिवर्तन महसूस करेंगे। सूचना का यह लोकतंत्रीकरण सत्ता की उन संरचनाओं को चुनौती देगा जो सूचना नियंत्रण की प्रस्तावना पर आधारित है ताकि उन्हें अधिक पारदर्शी और जवाबदेह समाज के नए प्रतिमान में परिवर्तित किया जा सके।