दीप्तिकालिता किसे कहते हैं इसका महत्व क्या है , photoperiodism in hindi definition , दीप्तिकाल प्रेरण (Photoperiodic induction)
जाने दीप्तिकालिता किसे कहते हैं इसका महत्व क्या है , photoperiodism in hindi definition , दीप्तिकाल प्रेरण (Photoperiodic induction) ?
दीप्तिकालिता (Photoperiodism)
परिभाषा (Definition)
गारनर एवं एलार्ड (Gamer and Allard, 1920) ने सर्वप्रथम दीप्तिकालिता (photoperiodism) की परिकल्पना को प्रारम्भ किया। उन्होंने देखा कि मैरीलैंड मैमोथ (Maryland Mammoth) नामक तम्बाकू की एक वेरायटी में अत्यधिक कायिक वृद्धी (vegetative growth) होने के बावजूद ग्रीष्म ऋतु में पुष्पीकरण नहीं होता है । परन्तु इसी वेरायटी को ग्रीन हाउस (green house) में उगाने पर इसमें पुष्प एवं फल उत्पन्न होते हैं। उन्होंने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि दिन की कम लम्बाई, प्रकाश (प्रदीप्तिकाल) ही वह कारक है जो कि इस तम्बाकू के पादप के पुष्पीकरण को नियंत्रित करता है और इस लिए इसे अल्प प्रदीप्तिकाली पादप (short day plants) नाम दिया गया । इसलिए हम कह सकते है कि प्रदीप्तिकालिता (photoperiodism), पादप में वह जैविक परिवर्तन है जो दिन एवं रात की लम्बाई की अनुक्रिया ( response) में होते हैं ।
दीप्तिकालिता के आधार पर पादपों का वर्गीकरण
(Classification of plants based on photoperiodic response)
पादपों का दीप्तिकाल के प्रति अनुक्रिया के आधार पर गारनर एवं एलार्ड (Garner and Allard, 1920) ने पादपों को तीन समूहों में बांटा :-
1.अल्प प्रदीप्तकाली अथवा लघु दिवसीय पादप ( Short day plants, SDP)
ऐसे पादप जिन्हें पुष्पीकरण के लिए 12 घन्टे से कम के दीप्तिकाल (photoperiod) कि आवश्यकता होती है उन्हें लघु दिवस पादप (SDP) कहते हैं। उदाहरण- क्राइसेन्थिमम (Chrysanthemum), कॉसमॉस बाइपिन्नेटस (Cosmos bipinnatus). जैन्थियम पेन्सिलवेनिकम (Xanthium pensylvanicum), तम्बाकू (tobacco), सोयाबीन (soyabean) इत्यादि SDP पादप हैं जिनके लम्बे एवं बिना विघ्न के अन्धकार काल को हल्की छोटी सी प्रकाश किरण से विघ्न डालने पर भी पुष्पीकरण रूक जाता है।
- दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादप अथवा दीर्घ दिवसीय पादप (Long day plants, LDP)
वे पादप जिन्हें पुष्पीकरण के लिए एक निश्चित अवधि से अधिक के दीप्तिकाल की आवश्यकता होती है दीर्घ दिवसीय पादप (LDP) कहलाते हैं। ग्रीष्म ऋतु के लम्बे दिन इन पादपों के लिए परिपूर्ण दीप्तिकाल प्रदान करते हैं। इन पादपों को छोटे अन्धकार काल की आवश्यकता होती है परन्तृ सतत् प्रकाश में इनमें पुष्पीकरण सर्वोत्तम होता है। छोटे दिन से बंधि लम्बे अन्धकार काल का पुष्पीकरण पर रूकावटी प्रभाव पड़ता है। परन्तु लम्बे अन्धकार काल के क्षणिक दीप्तन से इन पादपों में पुष्पीकरण प्रारम्भ हो जाता है।
दीर्घ दिवसीय पादपों में पुष्पीकरण दिन की लम्बाई से निर्धारित न होकर छोटे अन्धकार काल से निर्धारित होता है। उदाहरण– डाइएन्थस सुपरबस ( Dianthus superbus), मूली, पालक, जई (oat), हेनबेन ( Henbane), पत्तागोभी, पिटूनिया (Petunia), लौंग इत्यादि ।
- दीप्ति उदासीन पादप (Day-neutral plants, DNP)
इन पादपों को किसी विशेष दीप्तिकाल की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात ये पादप अन्धकार – प्रकाश चक्र से अप्रभावी “रहते हैं। ऐसे पादप को दीप्ति उदासीन पादप (photoneutral or indeterminate) भी कहते हैं। उदाहरण- टमाटर, ककड़ी. बालसम (Balsam) मक्का (maize), फलियाँ (bean), कपास ( cotton ) इत्यादि ।
तालिका – 2 : लघुदिवसीय एवं दीर्घ दिवसीय पादपों में अन्तर
लघुदिवसीय पादप (SDP) | दीर्घ दिवसीय पादप (LDP)
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1.
2.
3.
4.
5. |
1. इन पादपों में क्रान्तिक दिवस लम्बाई से कम के दीप्तिकाल में ही पुष्पीकरण हो जाता है।
2. दिन की लम्बाई में रूकावट से पुष्पीकरण नहीं रूकता है।
3. यदि लम्बे अन्धकार काल में रूक रूक कर प्रकाश से व्यवधान डाला जाय तो पुष्पीकरण रूक जाता है। लम्बा सतत् अन्धकार काल क्रान्तिक होता है । 4. लघु दिवस एवं लघु प्रकाश के एकान्तर क्रम में पुष्पीकरण नहीं होता है । 5. बहुत से पादप में पुष्पीकरण सुक्रोज के साथ सतत् अन्धकार काल में भी होता है।
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पुष्पीकरण क्रान्तिक दिवस लम्बाई से अधिक के दीप्तिकाल में होता है ।
दिन की लम्बाई में रूकावट से पुष्पीकरण रूक जाता है। अन्धकार काल व्यवधान से भी पुष्पन होता है । अन्धकार काल क्रान्तिक होता है ।
लघु दिवसों के एकान्तर क्रम में छोटे अन्धकार काल से भी पुष्पीकरण होता है।
बहुत से पादपों में पुष्पीकरण सतत् प्रकाश में भी होता है ।
अन्धकार काल की आवश्यकता नहीं होती है।
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क्रान्तिक दिवस लम्बाई (Critical day length)
जैसा कि ऊपर अध्ययन से ज्ञात होता है कि हर पादप एक विशेष प्रदीप्तिकाल के प्रति अनुक्रिया दर्शाता है । उदाहरण के लिए मैरीलैंड मैमोथ (Maryland Mammoth ) तम्बाकू एवं जेन्थियम स्टूमेरियम (Xanthium strumarium) दोनों ही लघु दिवस पादप (SDP) हैं। परन्तु मैरीलैंड मैमोथ में पुष्पीकरण के लिए प्रदीप्तिकाल 12 घन्टे से छोटा (12L/12D) होता है तथा जेन्थियम (Xanthium) में पुष्पन को प्रेरित करने के लिए प्रदीप्तिकाल 15.5 घन्टे से छोटा (15.5L / 8.5D) होता है। पुष्पीकरण को प्रेरित करने के लिए आवश्यक प्रदीप्तिकाल को क्रान्तिक दिवस लम्बाई (critical day length) कहते हैं । दीर्घ दिवसीय पादप में पुष्पन क्रान्तिक दिवस लम्बाई से अधिक के लम्बे दीप्तिकाल में प्रेरित होता है। उदाहरण- हायोसायमस नाइजर (Hyoscyamus niger) में क्रान्तिक दिवस लम्बाई 11 घन्टे ( 111 / 13D) की होती है अतः यह पुष्पन के लिए 11 घन्टे से अधिक समय के दीप्तिकाल से प्रेरित होता है।
प्रकाश अभिक्रिया एवं पुष्प का बनना (Photoreaction and flower formation)
लघु दिवसीय एवं दीर्घ दिवसीय दोनों ही प्रकार के पादपों में पुष्पन होगा या नहीं यह उनके वास्तविक दिन की लम्बाई पर निर्भर नहीं करता बल्कि अन्धकार काल की लम्बाई पर करता है। वास्तव में लघु दिवसीय पादप दीर्घ रात्रि पादप होते हैं तथा दीर्घ दिवसी पादप लघु रात्रि पादप होते हैं। दीर्घ रात्रि के प्रभाव को तीव्र प्रकाश देने के बाद कुछ घन्टो के लिए दुर्बल प्रकाश देने से उदासीन किया जा सकता है अथवा अन्धकार काल में कुछ प्रकाश देकर भी उदासीन किया जा सकता है। इस प्रकार के अंधकार भंग (night breaks) से अन्धकार काल को दो छोटे कालों में विभाजित किया जा सकता है। यह छोटे अन्धकार काल SDP पादपों में पुष्पीकरण को प्रेरित करने में असमर्थ होते हैं परन्तु LDP में इससे पुष्पीकरण प्रारम्भ हो जाता है। इतनी ही मात्रा में अन्धकार काल के प्रारम्भ अथवा अन्त में प्रकाश देना कम प्रभावी अथवा अप्रभावी होता है।
दीप्तिकाल प्रेरण (Photoperiodic induction)
वह स्थिति जिसमें पर्याप्त प्रकाश एवं अन्धकार काल का प्रभाव पादपों में रहता है तथा सामान्यतः अयोग्य स्थिति में भी पुष्पीकरण को प्रेरित करती है दीप्तिकालिक प्रेरण (photoperiodic induction) कहलाती है।
मुख्यतः पादपों को लम्बे प्रेरण काल की आवश्यकता होती है। उदाहरण- साल्विया में प्रति दिन 10 घन्टे लम्बे प्रेरण काल की आवश्यकता 17 लघु दिवसों तक होती है। दिल (dill) एवं चुकन्दर ( beet) दोनों ही दीर्घ दिवस पादप हैं। इन्हें पुष्पीकरण के लिए 1-4 एवं 15-20 घन्टे की प्रकाश प्रेरण चक्र की आवश्यकता होती है। परन्तु जेन्थियम (Xanthium) में एक लघु दिवस / दीर्घ रात्रि के चक्र के आवश्यकता दीर्घ दिवस परिस्थितियों में होती है ।
दीप्तिकालिक चक्र जितना अधिक लम्बा होगा उतना ही तीव्र प्रेरण होता है जिससे पुष्पीकरण उतना ही विपुल होता है। जेन्थियम (Xanthium) का पुष्प सतत् दीप्तिकालिक चक्र में 13 दिनों में, 4-8 दीप्तिकालिक चक्रों में 34-18 दिनों तथा एक दीप्तिकालिक चक्र में 64 दिनों में पुष्पित होता है।
दीप्तिकालिकता की क्रियाविधि (The mechanism of phtotoperiodism)
- दीप्तिकालिक उद्दीपन का अवगमन एवं स्थानांतरण (Perception and translocation of photoperiodic stimulus)
अब तक के वर्णन से यह स्पष्ट हो गया है कि पुष्पीकरण का प्रारम्भन पर्ण द्वारा प्राप्त प्रकाश पर निर्भर करता है।
नोट (Knot, 1934) ने पालक (spinach) जो एक दीर्घ दिवसी पादप है कार्य करते हुये यह प्रदर्शित किया कि पत्तियाँ ही प्रदीप्तिकालिक उद्दीपन ग्राही होती हैं। जैन्थियम (Xanthium) जो कि लघु दिवसीय पादप है की एक पत्ती को ही उचित प्रकाशकाल में उद्भासित करने से ही पुष्प उत्पन्न हो जाते हैं चाहे पादप के अन्य भागों को अप्रेरक दिन के प्रकाश में रखा जाये (चित्र 4)। LDP एवं SDP पादपों पर किये गये अनेक प्रयोगों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्तियों द्वारा ग्रहण या प्रकाश प्रेरण ही शीर्ष की अनुक्रिया को निर्धारित करता है। इससे यह कहा जा सकता है कि प्रकाश प्रेरण के प्रति अनुक्रिया से ही पत्तियों द्वारा एक अज्ञात संकेत (signal) दिया जाता है जो कि प्ररोह शीर्ष पर पुष्पन के संक्रमण को नियंत्रित (regulate) करता हैं दीप्तिकाल से नियंत्रित ( regulated) क्रिया जो कि पत्तियों में सम्पन्न होती है तथा जिसके फलस्वरूप पुष्पीय उद्दीपन का संचरण प्ररोही शीर्ष तक होता है दीप्तिकालिक प्रेरण (photoperiodic induction) कहलाती है।
दीप्तिकालिक प्रेरण पादपों से अलग की पत्तियों में भी होता है। यदि जैन्थियम (Xanthium) की एक पत्ती को लघु ! प्रेरित किया जाय तथा पादप के अन्य भाग दीर्घ दीप्तिकालित होते हैं तब भी पुष्प उत्पन्न हो जाते हैं।
परिपक्व पत्तियों की अपेक्षा अत्यधिक तरूण अथवा वृद्ध पत्तियाँ, दीप्तिकालिक प्रेरण से अप्रभावी अथवा कम प्रभावी होती है। जैन्थियम (Xanthium), SDP के दो शाखायुक्त एक पौधे को लेकर उसकी एक शाखा को लघुदिवसीय तथा दूसरी शाखा को दीर्घदिवसीय प्रेरण दिया जाता है। प्रेरण के फलस्वरूप
दोनों ही शाखाओं में पुष्प उत्पन्न होते हैं। यह भी पाया गया है कि यदि एक शाखा को दीर्घ दिवसीय स्थिति में तथा दूसरी शाखा जिसमें केवल एक पत्ती को छोड़ कर सभी पत्तियाँ हटा दी जाये तो उसे लघु दिवसीय स्थिति में रखने पर भी पुष्पीकरण होता है (चित्र 5A ) ।
परन्तु उस स्थिति में पुष्पीकरण नहीं होगा जब एक शाखा दो दीर्घ दिवसीय दीप्तिकालिक स्थिति में तथा दूसरी शाखा जो पूर्णतः पर्ण रहित हो उसे लघु दिवसीय स्थिति में रखा जाय। इसे हम यह मान कर समझा सकते हैं कि पुष्पन को प्रेरित करने वाला पदार्थ पत्तियों में बनता है तथा यह स्तम्भ द्वारा संचरित होता है । परन्तु दीर्घ दिवसीय स्थिति में यह उत्पन्न नहीं होता है ।
क्यूपर एवं वाएरसम (Kuyper and Wiersum, 1936) ने पाया कि यदि पुष्पीकरण के लिए तैयार (conditioned) पादप दाता की प्ररोह (shoot) को किसी दूसरे पादप (ग्राही) पर जो कि पुष्पन को प्रेरित न करने वाली दशा (non flower inducing condition) में रखा हो कलम ( graft) कर देने पर दूसरे पादप पर पुष्प उत्पन्न होते हैं ।
यदि एक शाखा से एक पत्ती को छोड़ कर सभी पत्तियों को हटा दिया जाय तथा इसे लघु दिवसीय दशा में रखा जाय तब दूसरी शाखाओं पर पुष्प उत्पन्न होते हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि एक अकेली पत्ती भी उसके उद्दीपन को सम्पूर्ण पौधे को संचरित कर देती है ।
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