प्रथम विश्व युद्ध के कारणों का वर्णन करें , उत्तरदायी किन्हीं चार कारण causes of first world war in hindi in points
पढ़िए प्रथम विश्व युद्ध के कारणों का वर्णन करें , उत्तरदायी किन्हीं चार कारण causes of first world war in hindi in points ?
प्रश्न: प्रथम विश्व युद्ध के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: i. दो विरोधी खेमों में यूरोप का विभाजन या गप्त संधिया : बिस्मार्क की कटनीति के कारण एक ओर त्रिगुट का निर्माण हुआ था (जर्मनी-आस्ट्रिया इटली) तो दूसरी ओर आत्मरक्षा के लिए त्रिराष्ट्र-मैत्री (फ्रांस-रूस-इंग्लेण्ड) का गठन हुआ। यूरोप दो शक्तिशाली विरोधी गुटों में विभक्त हो गया। फ्रांस ने इटली के साथ गुप्त संधि करके त्रिगुट को कमजोर करने की कोशिश की। जर्मनी ने इंग्लैण्ड व फ्रांस को कमजोर करने के लिए रूस से गुप्त समझौता किया। यह ट्रिपल एलाइस बनाम ट्रिपल एतांत कहलाया। इनमें घृणा, भय, संदेह व ईर्षा की भावना थी।
ii. साम्राज्यवादी प्रतिद्वन्दिता रू इसे प्रथम विश्व युद्ध का दूसरा मौलिक कारण माना जा सकता है। औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप अफ्रीका साम्राज्यवाद का शिकार हुआ जिसका प्रभाव अफ्रीका पर न पड़कर यूरोपीय राजनीति पर पड़ा। यूरोपीय देशों में आपसी प्रतिद्वन्दिता, वैमनस्य, शंका आदि में बढ़ोतरी हुई जो अन्ततः प्रथम विश्व में परिणित हुई। चीन जापान का शिकार हुआ।
iii. विकृत राष्ट्रवाद रू इटली, फ्रांस, जर्मनी, रूस, सर्बिया, पोल आदि में देशभक्ति की बढ़ती हुई विकृत भावना ने विभिन्न राष्ट्रो के बीच घृणा और द्वेष उत्पन्न कर राष्ट्रवाद को श्रणोन्मादीश् बना दिया। राष्ट्रीयता की यह प्रवृत्ति मांग कर रही थी कि एक राष्ट्रीयता एक राज्य के सिद्धान्त के आधार पर यूरोप के राजनीतिक मानचित्र का पुनः निर्माण हो।
iv. सैन्यवाद व आयुधों की होड़ रू सैन्यवादी राज्य वह है जिसमें सैनिक शक्ति सिविल शासन के ऊपर हावी हो जाती है। सैन्यवाद के अन्तर्गत विशाल सेनाओं एवं नौ-सेनाओं की बोझिल व्यवस्था जिसके परिणामस्वरूप सन्देह, भय, घृणा का वातावरण उत्पन्न होता है। तथा राजनैतिक संकट के समय जनरल स्टाफ नागरिक प्रशासन पर अपना प्रमुत्व कायम करने का प्रयत्न करता है। सभी देशों में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर दी गई। सभी देश अपनी व अपने मित्रों की रक्षा करने के लिए हथियारों का जखीरा एकत्रित करने लगे।
i. अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता : 1900 ई. के पश्चात् ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई, जिनके कारण अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण तनावपूर्ण बना रहा। रूस-जापान युद्ध (1904-05), मोरक्को संकट (1905), अगादियर संकट (1911), आस्ट्रिया द्वारा हर्जेगोविना-बोस्निया को मिलाना (1908-09), बाल्कन युद्ध (1912-13) आदि। इन घटनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को अत्यधिक तनावपूर्ण बना दिया। बाल्कन युद्धों के महत्व के बारे में ग्राण्ट एवं टेम्परले ने लिखा है –
1914 के महायुद्ध के लिए कोई घटना इतनी उत्तरदायी नहीं, जितने कि बाल्कन युद्ध ।
VI. विलियम कैसर का चरित्र रू विलियम द्वितीय 1888 में जर्मनी का कैनर (सम्राट) बना। यह बड़ा अहंकारी था तथा बिस्मार्क से इसकी बनती नहीं थी। अतः बिस्मार्क ने 1890 में स्तीफा दे दिया। बिस्मार्क ने अ में शक्ति संतुलन बनाए रखा था। लेकिन उसके बाद विलियम कैजर जर्मनी का सर्वेसर्वा बना। जर्मन सम्राट विलियम कैसर का चरित्र भी युद्ध का एक कारण था। उसकी नीति थी श्विश्व प्रभुत्व या सर्वविनाशश्। वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी, क्रोधी और अहंभाव वाला था।
VIII. अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का अभाव रू राष्ट्रसंघ, संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अभाव से शांति प्रक्रिया बहाल न हो सकी।
प्ग्. समाचार पत्रों की भूमिका रू प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों में से एक विभिन्न साम्राज्यवादी यूरोपीय देशों के समाचार-पत्रों द्वारा एक-दूसरे देशों के विरुद्ध अपमानजनक एवं भड़काने वाले लेख छापना था, जिसके परिणामस्वरूप स्थिति और भी विषाक्त हो गई।
X. युद्ध का तात्कालिक कारण रू आस्ट्रिया के युवराज फर्डिनेण्ड आर्क डयूक का मुख्य उद्देश्य बोस्निया स्थित 15वीं-16वीं सेना का वार्षिक निरीक्षण करना था। फर्डिनेट और उसकी पत्नी सोफी 28 जून, 1914 को बोस्निया के प्रमख शहर सेराजीवो गये। सर्बिया में स्लावों की मुक्ति के लिए अनेक गुप्त संस्थाएं बनायी। इनमें एक संस्था श्श्काला हाथश्श् दूसरी गुप्त संस्था श्संगठन या मृत्युश् के साथ मिलकर युवराज की हत्या करना चाहते थे। काला हाथ के एक षडयंत्रकारी गेवरीलो प्रिन्सिप ने दो गोलियां चलाई जिससे युवराज फर्डिनेण्ड व उसकी पत्नी मारे गये। इस घटना ने यूरोप को युद्ध की ज्वाला में धकेल दिया।
प्रश्न: प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर: राजकुमार फर्डिनेंड आस्ट्रिया की गद्दी का उत्तराधिकारी था। इसे एक औपचारिक पत्र पर सेरेजेवो भेजा गया था। बोस्निया आस्ट्रिया के अधीन था। आस्ट्रिया के युवराज फर्डिनेण्ड आर्क ड्यूक की बोस्निया यात्रा का मुख्य उद्देश्य बोस्निया स्थित 15वीं-16वीं सेना का वार्षिक निरीक्षण करना था। फर्डिनेट और उसकी पत्नी सोफी 28 जून, 1914 को रविवार के दिन सेंट वाइटस (Vitus) दिवस पर बोस्निया के प्रमुख शहर सेराजीवो पहुंचे। सर्बिया में स्लावों की मुक्ति के लिए अनेक गुप्त संस्थाएं बनायी। इनमें एक संस्था ष्काला हाथष् ने दूसरी गुप्त संस्था श्संगठन या मृत्युश् के साथ मिलकर युवराज की हत्या करने की योजना बनाई। काला हाथ के एक षडयंत्रकारी गेवरीलो प्रिन्सिप ने दो गोलिया चलाई जिससे युवराज फर्डिनेण्ड व उसकी पत्नी मारे गये। इस घटना ने यूरोप को युद्ध की ज्वाला में धकेल दिया।
प्रश्न: 1914 तक पहुँचते-पहुँचते, यूरोप का रोगग्रस्त व्यक्ति केवल तुर्की नहीं रह गया था, वह तो स्वयं यूरोप ही था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व तक यूरोप के राष्ट्रों की यह मान्यता थी कि तुर्की यूरोप का एक रोगग्रस्त राज्य है तथा इसे हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। परन्तु प्रथम युद्ध के बाद यह साबित हो गया कि सिर्फ तुर्की ही नहीं अपित समस्त यरोप रोगग्रस्त है। क्योंकि जिस आधारभूत, मौलिक आवश्यकताओं की कमी तुर्की को थी उन्हीं मौलिक और आधारभूत कमियों से सम्पूर्ण यूरोप ग्रसित हो गया।
प्रथम विश्व युद्ध इसकी विभीषिका का परिणाम था। सम्पूर्ण यूरोप आपसी प्रतिद्वन्द्विता, स्वार्थभावना, द्वेष, घृणा, आदि से ग्रसित हो गया था और उनमें इसी भावना के संचार के कारण प्रथम विश्व युद्ध का बीजारोपण हुआ था। तुर्की तो अल्प विकास, निम्न प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य की समस्या, आदि से ग्रसित था। जबकि यूरोप के बड़े राष्ट्र इन समस्याओं से ग्रसित न होते हुए भी नागरिक अधिकारों तथा मानवीय कल्याण की आवश्यक दशाएँ मौजूद नहीं थीं। जिसका परिणाम आपसी संघर्ष एवं स्वार्थपरकता के रूप में सामने आया।
यूरोप के सभी राष्ट्र अपनी-अपनी शक्ति बढ़ाने की होड़ में लगे थे। फ्रांस ब्रिटेन को पीछे ढकेल कर स्वयं का विकास करना चाहता था, जर्मनी की अपने आस-पास के राष्ट्रों से प्रतिद्वन्द्विता थी। इंग्लैण्ड की तुष्टिकरण की नीति स्वार्थ भावना से प्रेरित थी। इन्हीं सब कारणों का परिणाम था कि फ्रांसीसी क्रांति हुई, स्पेन में गृह युद्ध हुआ और सम्पूर्ण यूरोप युद्ध की ज्वाला में धधक गया।
उस समय सिर्फ यूरोप की स्थिति सम्पूर्ण विश्व में दयनीय थी। अन्य महाद्वीपों में इस तरह की स्थिति नहीं थी बल्कि औपनिवेशिक शोषण के कारण वहां समस्याएँ पैदा हुई थी। अन्यथा कटुता की वह भावना नहीं थी जो यूरोपीय राष्ट्रों में व्याप्त थी।
सभी यूरोपीय क्रान्तियों के मूल में नागरिक अधिकारों का हनन, स्वतंत्रता, समानता, न्याय का न होना, शोषणात्मक प्रवृत्ति ही जिम्मेदार थी। जो तुर्की की समस्या से किसी भी मामले में कम नहीं थी।
इन तथ्यों के अवलोकन से यह बात साफ हो जाती है कि 1914 ई. तक सम्पूर्ण यूरोप रोगग्रस्त हो गया था। यह रोग वैचारिक स्तर से लेकर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक सभी स्तरों पर व्याप्त था जिसने अन्ततोगत्वा दो विश्व युद्धों को जन्म दिया जिससे आज तक सम्पूर्ण विश्व शर्मसार है।
प्रश्न: प्रथम विश्वयुद्ध के फूट पड़ने के लिए किसी भी एक स्पष्टीकरण के अति सरल होने की सम्भावना है। कारकों बौद्धिक सामाजिक आर्थिक और इसके साथ-साथ राजनीतिक और राजनयिक के सम्मिश्रण ने अतिविशाल आयामों के इस डरावने युद्ध में योगदान दिया था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रथम विश्वयुद्ध को अचानक घटने वाली घटना के रूप में देखा जाना महज इसका सतही अवलोकन होगा। औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप
यूरोप के देशों में साम्राज्यवादी प्रवृत्ति ने जोर पकड़ लिया। उपनिवेशवाद के तहत एशिया और अफ्रीका के विभिन्न भागों का आपस में बंटवारा यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों की एक महती आवश्यकता बन गई। इसी से सैन्यवाद को बढ़ावा मिला। यद्याप इससे पूर्व ब्रिटेन एवं फ्रांस ही शक्ति सत्ता का प्रमुख केन्द्र था, परन्तु जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् वह एक प्रमुख साम्राज्यवादी देशों की कोटि में आ गया। यही स्थिति रूस की भी थी। अतः इन शक्तियों के उदय से यूरोप में शक्ति सन्तुलन गड़बड़ा गया। इन उदयीमान शक्तियों के मध्य वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा का ही प्रतिफल था – प्रथम विश्वयुद्ध।
अपने-अपने हितों के संरक्षण के लिए विभिन्न यूरोपीय देशों में गुप्त सन्धियों का सिलसिला चल पड़ा। इन गुप्त सन्धियों का प्रणेता जर्मनी का चांसलर बिस्मार्क था। चूंकि जर्मनी के एकीकरण के क्रम में 1871 ई. में बिस्मार्क ने अल्सास लॉरेन का क्षेत्र लेकर फ्रांस को आहत कर दिया था। अतः जर्मनी को सदैव फ्रांस की तरफ से यह भय बना रहता था कि कहीं फ्रांस यूरोप के दूसरे राष्ट्रों से मित्रता कर जर्मनी से बदले की भावना हेतु प्रयास करेगा। यही कारण था कि बिस्मार्क ने यूरोपीय राजनीति से फ्रांस को अलग-थलग रखने के लिए गुप्त सन्धियों का सहारा लिया। इसी आधार पर जर्मनी, ऑस्ट्रिया एवं इटली के बीच श्त्रिगुटश् एवं इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा रूस के मध्य त्रिदेशीय मैत्री संघ का अस्तित्व कायम हुआ। अर्थात् 1914 से पूर्व यूरोप की शक्तियां दो शक्तिशाली गुटों में बंट गई थी और यही गुटबंदी चैड़ी होती गई।
एशिया तथा अफ्रीका के बंटवारे के पश्चात् यूरोपीय साम्राज्यवादी देश विशेषकर बाल्कन क्षेत्रों में आकर बुरी तरह से फंस गए थे। इस समय विभिन्न यूरोपीय देशों में विकृत राष्ट्रवाद ने परिस्थिति को और गम्भीर बना दिया। भाषा, धर्म, संस्कृति एवं क्षेत्र पर सभी राष्ट्र गौरव महसूस कर रहे थे। परन्तु 1870 ई. के पश्चात् इन तत्वों पर आधारित राष्ट्रवाद अत्यन्त ही उग्र हो गया था एवं प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे से अपने को सर्वोच्च सिद्ध करना चाहता था। राष्ट्रीयता की इसी भावना ने बाल्कन क्षेत्र में जटिल समस्या को जन्म दिया। इस क्षेत्र में बोस्निया एवं हर्जेगोविना का क्षेत्र ऑस्ट्रिया को मिला था, जहा बहसंख्यक सर्व जाति के लोग थे तथा इस सम्बन्ध में सर्बिया के दावे को ठुकरा दिया गया था। उधर सर्बिया में स्लाव जाति के लोग थे और रूस अपने को स्लाव जाति का संरक्षक मानता था।
ठस समय यूरोप की राजनीति में ऐसा कोई राजनय नहीं था जो बिस्मार्क सदृश एक सफल कुटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ का जमिका निभा सके। जब तक बिस्मार्क रहा तब तक कूटनीति के सहारे यूरोपीय शक्तियों के मध्य सन्तुलन बना रहा, परन्तु । उसके बाद परिस्थिति नियंत्रण में नहीं रह सकी।
अन्ततः बाल्कन क्षेत्र की समस्या से ग्रसित सर्बिया के सर्व आतंकवादियों द्वारा ऑस्ट्रिया के यवराज फर्डीनेण्ड की हत्या कर दी गई। इसके साथ ही प्रथम विश्वयुद्ध की शुरूआत हो गई और देखते-ही-देखते विभिन्न यरोपीय देश युद्ध में कूद पड़े।
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