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बीजांकुरण किसे कहते हैं , seed germination in hindi definition बीज की संरचना (Structure of seed)

जानिये बीजांकुरण किसे कहते हैं , seed germination in hindi definition बीज की संरचना (Structure of seed) बीजों के अंकुरण हेतु आवश्यक परिस्थितियों के बारे में बताइए ?

बीजांकुरण (Seed Germination)

परिचय (Introduction)

बीज आवृतबीजी पादपों की महत्वपूर्ण प्रकीर्णीय संरचना (dispersal structure) है जो पादप की कायिक अवस्था के बाद भ्रूण जलवायु की प्रतिकूल अनुकूल परिस्थितियों को सहने में मदद करती है। अनेक एकवर्षी एवं बहुवर्षी पादपों में बीज की पादप चिरकालिता (perennation) एवं परिवर्धन (perpetuation) का एक मात्र साधन है बीजों में सुषुप्तावस्था एक प्रकार का पारिस्थितिकी अनुकूलन है जिससे भ्रूण उपयुक्त पारिस्थितियों में वृद्धि कर अंकुर के रूप में बाहर आता है।

बीज की संरचना (Structure of seed)

बीज पादप का लघुकृत रूप होता है। सामान्यतः बीज में बीज चोल (seed coat) एवं भ्रूण (embryo) होते हैं। द्विबीजपत्री भ्रूण में एक मूलांकुर (radicle) एक प्रांकुर (plumule) एवं दो बीज पत्र होते हैं। जब कि एक बीजपत्री बीज मूलांकुर मूलांकुर चोल (coleorhiza) से एवं प्रांकुर प्रांकुर चोल (coleoptile) से ढ़के रहते हैं तथा इसमें एक पार्श्वीय बीजपत्र होता है। इसके अतिरिक्त अनेक बीजों में भ्रूणपोष (endosperm ) कभी-कभी परिभ्रूणपोष (perisperm) भी पाया जाता है। ये भ्रूण को पोषण प्रदान करते हैं। अनेक बीजों में भ्रूणपोष के स्थान पर बीजपत्र ही भोजन संग्रह करते हैं तथा काफी बड़े होते हैं। बीज में उपापचयी क्रिया अत्यधिक धीमी होती है तथा भ्रूण शांत एवं निष्क्रिय होता है।

बीज का आयुकाल एवं जनन क्षमता (Seed longevity and viability)

बीज कितने समय तक के लिए जननक्षम रह सकते हैं। वह समय या काल (period) बीज का आयुकाल कहलाता है। सामान्यतः जिनमें प्रसुप्ति काल नहीं होता अथवा कम होता है उन बीजों का आयुकाल भी कम होता है। विभिन्न पादपों विभिन्न काल तक जननक्षम (viable) रहते हैं जो विभिन्न कारकों यथा विशिष्ट प्रजाति (species) एवं बीज की प्रकृति, संग्रहण की परिस्थितियों (storage conditions) पर निर्भर करती है।

अधिकांश पादपों में प्रसुप्ति काल कुछ महीनों से कुछ वर्षों तक होता है। लिलि कुल के सदस्य (प्याज, लहसुन) इत्यादि बीज 2-3 माह तक ही जननक्षम रह पाते हैं। वहीं कुकरबिटेसी कुल के सदस्यों के बीज की जननक्षमता अनेक वर्षों तक बनी रहती है

अनेक मैन्ग्रोव (mangroove) पादपों में प्रसुप्ति काल नहीं होता वे उसी समय पादप पर ही अंकुरित हो जाते हैं। यह, स्थिति सजीवप्रजता (vivipary) कहलाती है। उदाहरण- राइजोफोरा (Rhizophora) एविसेनिया (Avicennia) इत्यादि। इसके विपरीत उत्तर पूर्वी चीन के एक गांव में पवित्र कमल पुष्प (The sacred Lotus) का बीज लगभग 0.5 से 2.8 मीटर गहरी मिट्टी में वर्षों तक दबा पड़ा रहा जिसमें लगभग 1288 वर्षों के बाद अंकुरण हुआ। इसी प्रकार आर्कटिक टुंड्रा प्रदेश में लूपिन (Lupinus) के कुछ बीज जो वर्षों से बर्फ में दबे पड़े थे उनमें बीजों में अंकुरण की खबर पर इन बीजों की उम्र की जांच की गयी जो कि नई तकनीक से लगभग 10,000 वर्ष तक आंकी गई है।

1879 में विलियम जे. बेल (William J. Beal) के द्वारा मिट्टी में अनेक खरपतवार के बीजों को प्रयोग के तौर पर दबा दिया गया था तथा उन्हें प्रति 5 एवं 10 वर्षों बाद अंकुरण के लिए जांचा गया उनमें से कुछ को 101 वर्ष बाद भी जननक्षम (viable) पाया गया है ।

ऐसे बीज जो शुष्कन (drying) अथवा हिमकारी ताप (freezing temperature) पर रखने से जनन क्षम नहीं रहते, दुःशास्य बीज (recalcitrant seed) कहलाते हैं, जैसे रबर, चाय, कटहल, नारियल इत्यादि के बीज । इन्हें कुछ समय के लिए ही संग्रह (store) दिया जा सकता है। इस दौरान उन्हें ऑक्सीजन युक्त आर्द्र वातावरण में रखा जाता है। अधिकांश बीजों पर शुष्कन एवं हिमकारी ताप पर रखने का विशेष प्रभाव नहीं होता है तथा वे जननक्षम बने रहते हैं। ऐसे बीज परंपरागत बीज (orthodox seeds) कहलाते हैं। इनमें जल मात्रा बहुत कम (5-12%) होती है।

बीजों की जननक्षमता दो प्रकार से ज्ञात की जा सकती है- (i) 2.3.5 ट्राइफीनाइलटैट्राजोलियम क्लोराइड (TTC) के द्वारा तथा (ii) अंकुरण परीक्षण के द्वारा ।

(i) TTC परीक्षण (TTC test)

TTC द्वारा जनन क्षमता ज्ञात करने के लिए आसुत जल में 18-20 घंटे भीगे हुए बीजों में से बीज चोल को हटाकर उन्हें 1% TTC विलयन में 3-4 घंटे डुबो कर अंधेरे में रखा जाता है। भीगे जननक्षम बीजों में उपस्थित एन्जाइम डिहाइड्रोजिनेस की सक्रियता से मोचित हाइड्रोजन TTC से अभिक्रिया कर लाल रंग का स्थायी पदार्थ ट्राइफिनाइल फॉर्मेजोन बनाती है। बीज पत्र एवं भ्रूण में लाल रंग की उपस्थिति बीज की जननक्षमता दर्शाती है।

(ii) अंकुरण परीक्षण (Germination test))

जनन क्षमता, अंकुरण प्रतिशत के द्वारा निरूपित की जाती है। इसके लिए अंकुरण शीघ्रता से (prompt) होना चाहिए तथा नवोद्भिद (seedlings) की वृद्धि प्रबल (vigorous) होनी चाहिये। अंकुरण का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि प्रारंभ में अंकुरण कम होता है किन्तु कुछ समय बाद अंकुरित बीजों की संख्या बढ़ती जाती है तथा बाद में अंकुरित बीजों की संख्या तेजी से नहीं बढ़ती। अंकुरण प्रतिशत के लिए किसी निश्चित दिन पर उस दिन का अंकुरण प्रतिशत निकाला जाता है।

अंकुरण गति ज्ञात करने के लिए विभिन्न तरीके हैं। एक विधि के अनुसार एक निश्चित प्रतिशत अंकुरण के लिए आवश्यक समय निकाला जाता है। एक अन्य विधि के अनुसार मूलांकुर अथवा प्रांकुर के निकलने के लिए वांछित दिनों का मध्यमान निकाला जाता है।

मध्यमान = N1 T1 + N2 T2 + N3 T3……….. + NT

N  = एक निश्चित समय में अंकुरित होने वाले बीजों की संख्या

T = समय अंतराल

बीजांकुरण (Seed germination)

सुषुप्तावस्था के पश्चात भ्रूण के द्वारा पुनः सक्रिय वृद्धि कर बीज चोल को भेदकर नवोद्भिद के बाहर निकलने की प्रक्रिया अंकुरण कहलाती है। अंकुरण दो प्रकार का हो सकता है:-

(i) ऊपरोपरिक अंकुरण (epigeal germination) एवं

(ii) अधोपरिक अंकुरण (hypogeal germination)

तालिका-1: ऊपरोपरिक एवं अधोपरिक अंकुरण में अंतर

ऊपरोपरिक अंकुरण (Epigeal germination) अधोपरिक अंकुरण (Hypogeal germination)

 

1.

 

 

2.

 

 

3.

यह सामान्य द्विबीजपत्रियों में पाया जाता हैं।

इसमें अंकुरण के दौरान बीजपत्राधर (hypocotyl) में दीर्घनन होता है ।

 

बीजपत्र मृदा में से बाहर आ जाते हैं।

यह सामान्यतः एकबीजपत्रियों में पाया जाता है।

इसमें अंकुरण के दौरान बीजपत्रोपरिक (pepicotyl) में दीर्घनन ( elongation)

होता है। बीजपत्र मृदा में ही रहते हैं।

 

बीजांकुरण के लिए आवश्यकताएँ ( Prerequisites for seed germination)

बीजांकुरण के लिए तीन परिस्थितियों का होना बहुत आवश्यक है-

1.बीज जननक्षम (viable) होना चाहिये अर्थात् भ्रूण जीवित हो तथा अंकुर बना सके।

2.बीज की आंतरिक स्थिति अंकुरण के लिए अनुकूल होनी चाहिये अर्थात् बीजों के प्रकीर्णन के समय अथवा उसके बाद अंकुरण के लिए उपस्थित अवरोध समाप्त हो जाने चाहिये। एक प्रकार से सुषुप्तावस्था समाप्त हो जानी चाहिये ।

  1. बीज को उचित पर्यावरण मिलना चाहिये ।

अंकुरण के लिए आवश्यक कारक (Factors essential for germination)

बीज अंकुरण के लिये उचित पर्यावरण से तात्पर्य है कि अंकुरण के लिए आवश्यक जल, हवा एवं तापमान उचित मात्रा में मिलने चाहिये। कुछ बीजों को प्रकाश की भी आवश्यकता होती है।

  1. जल (Water)

बीजों के प्रकीर्णन (dispersal) के समय जल की मात्रा बहुत कम (5-12%) हो जाती है जबकि किसी भी उपापचयी क्रिया को जल की परम आवश्यकता होती है। इसलिए अंकुरण से पहले बीजों को जल की आवश्यकता होती है।

जल के कारण

  1. बीज चोल का जलयोजन (hydration) होता है तथा बीज गैसों (O2 एवं CO2) के लिए पारगम्य हो जाता है।

2.जल के अवशोषण बीजपत्र इत्यादि फूल जाते हैं एवं बीज चोल फट जाता है। इससे ऑक्सीजन का प्रवेश तथा CO2 का विमोचन सरलतापूर्वक हो सकता है तथा भ्रूण को भी बाहर निकलने में सहायता मिलती है।

3.जल के अवशोषण के फलस्वरूप विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ जैसे विभिन्न संचयी भोज्य पदार्थों का जल अपघटन एवं ऑक्सीकरण विभिन्न पदार्थों का स्थानांतरण संभव हो पाती है।

कुछ बीजों को अधिक’ समय तक भिगोए रखने पर अंकुरण कम हो जाता है। संभवतः कुछ आवश्यक उपापचयों का निक्षालन इसका एक कारण है ।

  1. वातन (Aeration)

बीजों के अंकुरण के लिए मृदा का वातन आवश्यक है जिससे बीजों की ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है। विभिन्न जातियों के बीजों की ऑक्सीजन आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है परन्तु अधिकांश बीज वायु में उपस्थित O2 कम स्तर पर ही अंकुरित हो जाते हैं। पादपों की अपेक्षा अंकुरण के समय अधिक आवश्यकता होती है ऐसा संभवतः बीज चोल की अल्प पारगम्यता के कारण होता है। गहराई में दबे बीज ऑक्सीजन की कमी के कारण अंकुरित नहीं हो पाते। ऑक्सीजन की उपस्थिति से वायवीय श्वसन के माध्यम से भ्रूण की वृद्धि के लिए उपयुक्त मात्रा में ऊर्जा मिलती रहती है। चावल के बीज अपवाद है कि वे जल में डूबे रह कर भी अंकुरित हो जाते हैं। संभवतः इनमें अनॉक्सी ग्लाइकोलिटिक तंत्र (anoxy glycolytic system) सक्रिय होता है।

कार्बन डाइ ऑक्साइड की अधिक मात्रा भ्रूण के लिए घातक होती है तथा कभी-कभी ऊतक क्षय (necrosis) का कारण बनती है। अपवाद स्वरूप जैन्थीयम (Xanthium) एवं ट्राइफोलियम (Trifolium) में CO, की उच्च सांद्रता अंकुरण प्रतिशत बढ़ाती है।

  1. तापमान (Temperature)

शुष्कावस्था में बीजों पर चरम तापमानों का अधिक प्रभाव नहीं होता। भीगे हुए अथवा अंकुरण प्रक्रिया के दौरान बीज उपापचयी रूप से सक्रिय होने के कारण तापमान से बहुत अधिक व शीघ्र ही प्रभावित होते हैं। प्रत्येक पादप के बीजों के अंकुरण के लिए निम्नतम (minimum), अनुकूलतम (optimum) एवं अधिकतम तापमान होते है जो भिन्न–भिन्न पादपों के लिए भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरणतया उष्णकटिबंधीय (tropical) पादपों के अनुकूलतम तापमान तथा शीतोष्ण (temperate) जलवायु के पादपों के अनुकूलतम तापमान भिन्न होते हैं।

  1. प्रकाश (Light)

प्रकाश की आवश्यकता सभी पादपों के लिए अनिवार्य नहीं हैं। ऋणात्मक फोटोक्लास्टी (negatively photoclastic) बीजों को प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती वे अंधकार में अंकुरित हो जाते हैं। धनात्मक फोटोक्लास्टी बीजों को अंकुरण के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है तथा अधिकांशतः लाल प्रकाश इसमें प्रभावी होता है। कुछ बीजों में प्रकाश की अनुपस्थिति अथवा उपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं होता ये प्रकाश असंवेदी होते हैं। प्रकाश संवेदी बीजों में फायटोक्रोम प्रभावी होता है जिसके बारे में बीज प्रसुप्ति में दिया गया है।