माओत्से तुंग के सिद्धांत क्या थे , माओ युग के पश्चात विकास के चीनी प्रारूप की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए
पढ़िए माओत्से तुंग के सिद्धांत क्या थे , माओ युग के पश्चात विकास के चीनी प्रारूप की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?
प्रश्न: माओत्से तंग की आर्थिक नीति मार्क्सवादी होते हुए भी चीन की परिस्थितियों के अनरूप ढाली गई जो माओवाद के रूप में सामने आई। विवेचना कीजिए।
उत्तर: माओत्से तंग की आर्थिक नीति मार्क्सवादी होते हुए भी चीन की परिस्थितियों के अनुरूप ढाली गई, जो माओवाट कर में सामने आई। चीनी
साम्यवादी सिद्धांत की व्याख्या करते हुए लियो शाओची (Lio Shavaochi) ने माओत्सेतंग की विचारधारा की विवेचना अपनी पुस्तक चीनी साम्यवादी दल में इस प्रकार की है – श्जहां तक वैज्ञानिक विचारधारा की स्थापना का प्रश्न है, वह श्रमिक वर्ग के प्रतिनिधि ही बना सकते हैं। माओ की विचारधारा ने मार्क्स और लेनिन के आधारभूत सिद्धांतों का चीनी परिस्थितियों के साथ समन्वय करने का सफल प्रयोग किया है।
(1) कृषि क्षेत्र में सुधार : कृषि सुधारों के तहत माओ ने दो महत्वपूर्ण कदम उठाए। सर्वप्रथम सामंतों व भूस्वामियों की भूमि छीनकर किसानों वितरित कर दी गई। बड़े सहकारिता कृषि फार्म स्थापित किये गये। सभी किसानों को इस सहकारिता पद्धति का सदस्य बनाया गया। एक सहकारिता कृषि फार्म के 100 से 300 परिवार सदस्य बनाये गये। 1956 तक 95% किसान सहकारिता के सदस्य बन चुके थे। इस पद्धति के अनुसार सहकारिता के अधीन भूमि पर तथा कृषि उपकरणों पर सामूहिक स्वामित्व स्थापित किया गया। सहकारिता से प्राप्त आय का सभी परिवारों में समान रूप से वितरण किया गया।
(2) औद्योगिक विकास : रूसी पद्धति पर आधारित चीन के प्रमुख नगरों में बड़े उद्योग व कारखाने स्थापित किये गये। लोहा, कोयला, स्टील व रसायन के बड़े कारखाने स्थापित किये गये। इसके लिए रूस से आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त रूसी वैज्ञानिक, तकनीकियों, श्रमिकों ने चीन पहुंचकर सहयोग दिया।
(3) माओ की विदेश नीति (1950 से 1970) : 1950 में कोरिया के युद्ध के समय माओ ने उ. कोरिया के पक्ष में चीनी स्वयंसेवकों को भेजा। 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया और राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित किया। तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा ने भारत में शरण ली। 1962 में भारत व चीन के बीच युद्ध हुआ । भारत के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया परन्तु कुछ समय पश्चात् यथा स्थिति स्थापित कर दी गई। प्रारम्भ में चीन के रूस के साथ मधुर संबंध थे तथा रूस का सहयोग चीन को मिलता रहा। 1953 में स्टालिन की मृत्यु हो गई। निकिता खुश्चेव (Nikita Khrushev) नये राष्ट्रपति बने। 1956 में खुश्चेव ने रूस की नीति में परिवर्तन कर पश्चिम के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति की घोषणा की। इस नीति का माओ ने विरोध किया। माओ के अनुसार यह नीति मार्क्स लेनिन के सिद्धांतों के विपरीत थी। माओ ने रूस को अवसरवादी कहा तथा खुश्चेव की नीति की सार्वजनिक रूप से आलोचना की। रूस के साम्यवाद व चीन के साम्यवाद में बड़ा अंतर था। रूस का साम्यवाद नगर आधारित था जबकि चीन का साम्यवाद ग्रामीण आधारित था। रूस ने चीन को आर्थिक मदद देना बंद कर दी। 1960 तक रूसी वैज्ञानिक, तकनीकी व श्रमिक वापस रूस चले गए।
(4) सहस्र पुष्प अभियान (Hundred Flowers Canpeign) 1957 : माओ ने सरकार के कार्यों की सकारात्मक आलोचना करने के लिए व सुधारों के सुझाव के लिए नीति का अनुसरण किया उसे सहस्र पुष्प अभियान कहा जाता है। माओ के स्वयं के शब्दों में ष्सहस्र पुष्पों को खिलने दो व सहस्र विचारधारा का विकास होने दोष् (“Let a hundred flowers bloom and let a hundred school of thought control”)। परंतु साम्यवादी सरकार व उसकी नीतियों की कड़ी आलोचना हुई। सामान्य जनता ने मानसिक श्रम करने वालों को अधिक वेतन व लाभ देने पर चीन में विरोधी पार्टियों की स्थापना पर बल दिया। 1958 में माओ ने तुरंत इस नीति को समाप्त किया और चीन की परिस्थितियों व आवश्यकता के अनुरूप नई नीति लागू की। इस नई आर्थिक नीति को श्लंबी छलांग नीतिश् (Great Leap Forward) कहते हैं। माओं ने लम्बा युद्ध और नया लोकतंत्र नामक ग्रंथों में अपने विचारों का प्रस्तुतिकरण किया है।
(5) लम्बी छलांग नीति (Great Leap Forward) 1958 : माओ ने इस नई आर्थिक नीति के अंतर्गत चीन की परिस्थितियों के अनुरूप व अनुकूल नीति लागू की। इस नीति को ग्रेट लीप फॉरवर्ड या लंबी छलांग कहा जाता है। इसके तहत निम्न कदम उठाए –
(ं) कृषि क्षेत्र : सहकारिता कृषि फार्म के स्थान पर श्कम्यूनश् नामक उससे बड़ी इकाई स्थापित की गई। कम्यून को संचालित करने के लिए ब्रिगेड, वर्क टीम्स तथा निर्वाचित परिषद का गठन किया गया। कम्यून स्थानीय प्रशासन का कार्य करने लगा और कम्यून के अंतर्गत स्थानीय परियोजनाओं पर कार्य किये गये। उदाहरण के लिए कृषि कार्य, नहर निर्माण, बाँध, सड़क आदि परियोजनाओं पर कार्य किये गये। कम्यून से मिलने वाली आय का सभी परिवारों में समान रूप से विभाजन किया गया।
(इ) औद्योगिक क्षेत्र : बड़े उद्योग व कारखानों के स्थान पर ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे उद्योग व कारखाने स्थापित किये गये। इन उद्योगों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र के लिए उपकरणों का निर्माण करना था। माओ स्वयं ग्रामीण क्षेत्र में 6 लाख भट्टियों की स्थापना करने का दावा करता था।
माओ अपनी नीति को पूर्णतया मार्क्स-लेनिन सिद्धांतों पर आधारित रखना चाहता था। इस नीति के आधार पर माना चीन में कृषि प्रधान समाज की स्थापना के पक्ष में था। इसके अतिरिक्त वह समाज को श्रम प्रधान या श्रम पर आधा रखना चाहता था। वह मशीन आधारित पश्चिमी नीति का विरोधी था। माओ ने इस नीति के तहत शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किये उसने कई जनहित योजनाओं की घोषणा की। महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं घोषित की गई।
प्रश्न: चीनी साम्यवादी क्रांति में माओ व साम्यवादियों की लोकप्रियता के कारण एवं च्वांग काई-शेक व KMT की अलोकप्रियता के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
1. KMT सरकार भ्रष्ट्र और निकम्मी होने के कारण साम्यवाद को जनसमर्थन मिला।
2. KMT के पास जनसुधार के लिए कुछ भी नहीं था साथ ही उद्योगपतियों, जमींदारों के हितों की रक्षा करने से जन – समर्थन गंवाया।
3. KMT द्वारा उद्योगों की हालत में सुधार न करना, मजदूरों के लिए कानूनों को लागू न करके उद्योगपतियों का समर्थन … करना जिससे मजदूर साम्यवादियों की ओर झुक गये।
4. KMT द्वारा किसानों की दयनीय हालत में कोई सुधार न करना। सूखा, विपदा, अकाल से गांवों व किसानों की हालत . पतली हो गयी जबकि शहरों में सौदागरों के पास गेहूँ, चावल की कमी नहीं थी। करों की दर ऊंची होना, बंधुआ मजदूरी आदि प्रचलित। जबकि साम्यवादी क्षेत्रों में इसका उल्टा था। साम्यवादी क्षेत्रों में भूमि सम्बन्धी नीति किसानों के हित में थी। धनी जमींदारों की जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई। साथ ही उन्हें खेती करने के नये तरीके समझाए एवं लिखना-पढ़ सिखाया। इससे CCP की लोकप्रियता बढ़ी।
5. KMT ने जापानी विस्तार को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाये। उत्तरी चीनी क्षेत्रों की ताक में बैठे च्वांग जापानियों को रोकने
की बजाय CCP का सफाया करना अधिक महत्वपूर्ण समझता था। जबकि CCP पहले जापान को बाहर करना चाहती थी।
6. CCP की भ-सम्बन्धी रणनीति समय, क्षेत्र व परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती थी इससे उनको जन समर्थन मिला।
7. CCP नेता अत्यन्त अनुशासित तथा CCP प्रशासन ईमानदार व निष्पक्ष था। दूसरी ओर KMT शासन भ्रष्ट्र और अयोग्य था।
KMT सेना को वेतन कम मिलने के कारण देहातों (ग्रामीण क्षेत्रों) को लूटने की अनुमति मिली थी जबकि ब्ब्च् सेना
8. आदर्शवाद से प्रेरित थी।
9. च्वांग (KMT) सरकार ने अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए स्थानीय जनता को आतंकित किया अतः जनता
KMT से और भड़क गयी जबकि CCP की जनता के साथ सहानुभूति थी।
10. च्वांग की सामरिक भूल से ही CCP को सफलता मिली।
11. CCP के नेता जैसे माओत्से, चाउ-एन-लाई, सू-तेह आदि KMT के नेताओं की तुलना में सक्षम और राजनीतिज्ञ थे।
12. जहां तक KMT के पतन का सवाल है वह ज्ञडज् की रणनीति संबंधी गलतियाँ हैं। चीन में 1922 से ही दो विचारधारा साथ-साथ चल रही थी। 5 मई, 1919 को वर्साय की संधि के कारण राष्ट्रीय चेतना का विकास होने लगा। एक तरफ साम्यवादी और दूसरी तरफ KMT विचारधारा। सनयात ने मुक्ति के लिए U.S.S.R. की तरफ ध्यान दिया। सनयात की मृत्यु के बाद च्वांग ज्ञडज् की गददी पर बैठा। यह विचार था कि यद्ध सरदारों व जापानियों से मुक्ति करा लेगा। साम्यवादियों से संबंध तोड लिया और यद्ध सरदारों से अकेला ही लडने लगा। उसने सोचा कि बेहतर होगा कि युद्ध सरदारों की बजाय साम्यवाद को ही समाप्त कर दिया जाय। क्योंकि वह स्वय एक बड़ा पूंजीपति था।
दूसरी तरफ साम्यवादियों ने चीनी जनता के सामने यह प्रदर्शित किया कि साम्यवाद की बजाय जापानियों से लड़ा जाय। 1937 में च्वांग-काई-शेक को बन्दी बनाने के बाद सिर्फ यह समझौता किया कि मिलकर जापानियों से लड़ा जाय। चाहते तो वे उसे मार भी सकते थे। यह उनकी सबसे बड़ी कूटनीतिक विजय थी, जिसे चीनी जनता के सामने प्रदर्शित किया गया। इस नीति के कारण साम्यवादी दल ने जनता में अपनी धाक जमा ली तथा जनता का समर्थन पा लिया। CCP ने KMT की शरण ली।
13. 1917 की साम्यवादी क्रान्ति ने सबसे बड़ा काम यह किया कि क्रान्तिकारी स्वयं को समाजवादी बताने लगे। इससे पहले समाजवाद समाज के नीचे तबके के लोगों के लिए ही था। साम्यवादियों ने कहा हम तो जनता के लिए लड़रहे है न कि ज्ञडज् के विरूद्ध।
14. चीनी साम्यवाद ने कृषकों को महत्व दिया गया। ताइपिंग विद्रोह ने पहला कार्य यह किया कि गांवों में कम्यून बना ली जिसमें स्त्री व पुरुषों को समान दर्जा दिया गया। आर्थिक रूप से सभी को समानता दी गई। जब स्वदह डंतबी हुआ तो साम्यवादी गांवों में यह बताते हुए जा रहे थे कि हम इसीलिए भाग रहे है ताकि वर्गहीन समाज का निर्माण किया जा सके। अतः उनके दिमाग में ताइपिंग विद्रोह की झलक उभर आई।
15. जिन क्षेत्रों पर साम्यवादियों ने नियंत्रण किया वहां पर सभी को बताया गया कि तुम सब हमारी पार्टी के हो और उनकों हथियार दिए तथा चलाना सिखाया। उनकों यह भी एहसास कराया गया कि हम शासक नहीं हैं बल्कि आपके बराबर के हैं। उनकों वोट डालना सिखाया। ज्ञडज् मध्यमवर्ग व शहरी पार्टी थी। साम्यवादियों ने जिन क्षेत्रों पर जितने दिन के लिए नियंत्रण किया वहां पर विदेशी राज्यों, मंचुशासन तथा KMT का नियंत्रण नहीं था। अतः गांवों की जनता उनके साथ हो गई। साम्यवादियों ने गांवों से शहरों की ओर कब्जा किया। किसानों को महत्व दिया और वे चाहते थे कि गांव शहर को घेरे।
16. KMT की ज्यादा गलतियां रणनीति संबंधी गलतियां थी। KMT कभी भी अपने आपको साम्यवादियों की तुलना में राष्ट्रवादी प्रदर्शित नहीं कर पाये। साम्यवादियों का विचार था कि व्यक्तिवादी चेतना बेमानी है जो भी है सामाजिक है। चीन में कभी पूंजीवादी ढांचा आ ही नहीं पाया वहां पर सामन्ती शिकंजा था जिसमें सीधे ही साम्यवादी जम गये। सामाजिक चेतना चीनियों के समझ में आ गई, जबकि KMT व्यक्तिवादी है जो चीनियों को पंसद नहीं था। आखरी अवस्था मे द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के कारण यह समस्या उत्पन्न हो गई कि इस क्षेत्र पर नियंत्रण किसका हो। हिन्देशिया पर कब्जा करने के लिए जापान-जर्मनी, इंग्लैण्ड तथा अन्य से लड़ रहा है लेकिन रूस ने साम्यवाद को संगठित कर लिया था। अब रूस जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करता ही लेकिन अमेरिका ने जल्दी ही युद्ध समाप्त करने के लिए अणुबम का प्रयोग कर दिया। ऐसे में जापान को हुआने के पश्चात इस क्षेत्र पर नियंत्रण की समस्या खड़ी थी। नियंत्रण किसका हो KMT या CCP का। अमेरिका KMT को मदद दे रहा था जबकि रूस CCP को मदद दे रहा था। अन्त में रूस की मदद से CCP की सरकार कायम हो गयी।
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