अफ्रीका में बोअर समस्या क्या थी , बोआर युद्ध के कारण ? what was the boer problem in africa war causes in hindi
पढेंगे अफ्रीका में बोअर समस्या क्या थी , बोआर युद्ध के कारण ? what was the boer problem in africa war causes in hindi ?
प्रश्न: अफ्रीका में बोअर समस्या क्या थी ?
उत्तर: 1814 में हॉलैण्ड से ब्रिटेन को केप-कॉलोनी मिला, इसमें डच किसान बहुत अधिक संख्या में थे जो ‘बोअर‘ कहलाते थे। डच व ब्रिटिश की संस्कृति भिन्न थी अंग्रेज अपनी संस्कृति बोअर पर लादना चाहते थे। ये इसका विरोध करते थे। अंग्रेजो ने इन्हें 1833 में केप कॉलोनी से नेटाल, 1843 में नेटाल से ट्रांसवाल और औरेन्ज-फ्री-स्टेट खदेड़ा। अब बोअर लोगों ने सशक्त विरोध किया। 1884 में दोनों में संधि हो गई। बाद में पुनः एक ओर ट्रान्सवाल व औरेन्ज-फ्री-स्टेट के बोअर तथा दूसरी ब्रिटेन सरकार थी। जिसमे बोअर हार गये। दोनों के मध्य 1902 में वेरीनिगिंग की संधि हुई। जिसके अनुसार बोअर व ब्रिटिक) सरकार के मध्य शर्ते निम्नानुसार थी।
प. बोअरों ने ब्रिटिश प्रभुसत्ता स्वीकारी।
पप. सरकारी भाषा इंग्लिश मान्य।
पपप. ट्रांसवाल व औरन्ज-फ्री-स्टेट ब्रिटिश साम्राज्य का अंग मान लिए गए।
पअ. कालान्तर में बोअरों को स्वायतता प्रदान करना।
अ. बोअरो के पुनर्वास हेतु ब्रिटिश सहायता दी जाएगी।
प्रश्न: दो विश्व युद्धों के बीच मिस्र व सडान में अरब राष्ट्रवाद के विकास की विवेचना कीजिए।
उत्तर: प्रथम विश्वयद में टी ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध जर्मनी को सहयोग दिया दूसरी ओर मिस्र राजनतिक दृष्टि से टर्की के अधीन था। इंग्लैण्ड के लिए मिस्र पर राजनैतिक आधिपत्य स्थापित करना अनिवार्य था और उसे जिसके जरिए पूर्वी साम्राज्य (भारत) की सुरक्षा करना अनिवार्य था। इंग्लैण्ड ने मिस्र के खदीव अब्बास हिल्मी को जो कि टर्की का समर्थक था ( पद से हुआ दिया। उसके स्थान पर उसके भतीजे हुसैन कामिल को गद्दी पर बैठा दिया। 18 दिसम्बर, 1914 को इग्लैण्ड ने एक आदेश जारी कर मिस्र को टर्की की राजनैतिक अधीनता से मुक्त कर दिया और प्रथम विश्वयुद्ध में मिस की सुरक्षा करने की घोषणा की। परंतु प्रथम विश्व युद्ध के समय इंग्लैण्ड ने मिस्र के सभी संसाधानों का प्रयोग इंग्लैण्ड के हितों के लिए किया। मिस्र की राष्ट्रीय आय का प्रयोग इंग्लैण्ड ने स्वयं के युद्ध हित में किया। मिस्रवासियों को युद्ध मोचों पर भेजा गया। मिस्र के श्रमिकों को इंग्लैण्ड ने सैनिक शिविरों में कार्य करने के लिए भेजा।
इसके परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात् मिस्र में अरबी राष्ट्रवादी आंदोलन हुए। इस आंदोलन का नेतृत्व जगलुल पाशा (Jaglul Pasha) ने किया। जगलुल ने वपद पार्टी का गठन किया जिसमें युवा क्रांतिकारियों को सम्मिलित किया गया। इस आंदोलन का मार्च, 1917 तक पूरे मिस्र पर प्रभाव पड़ा बड़े स्थानों पर हिंसक वारदातें हुई। कई ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी गई। इन परिस्थितियों में इंग्लैण्ड सरकार ने मिस्र के साथ शांति वार्ता प्रारम्भ की। इस समय इंग्लैण्ड में लेबर पार्टी सत्ता में थी उसने मिस्र के खदीव फौद (थ्वनक) के साथ 18 फरवरी, 1922 में एक संधि की जिसे 1922 की संधि कहा जाता है। इस संधि के अनुसार –
(1) मिस्र को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दे दी गई।
(2) स्वेज नहर की सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सेना मिस्र में तैनात रहेगी।
(3) विदेशी आक्रमण होने पर इंग्लैण्ड मिस्र को सहयोग देगा।
(4) सूडान पर इंग्लैण्ड का अधिकार रहेगा।
(5) मिस्र को औपचारिक रूप से टर्की से पृथक किया गया।
खदीव के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के समान एक सदन का गठन किया गया। 1923 में मिम्न में आम चुनाव हुए। वपद पार्टी सत्ता में आई और जगलुल पाशा मिस्र के प्रधानमंत्री बने। जगलुल ने 1922 की संधि में परिवर्तन करने की मांग की। इंग्लैण्ड की सरकार ने इस सुझाव को ठुकरा दिया। इस कारण से मिस्र में एक बार फिर राष्ट्रवादी आंदोलन प्रारम्भ हुए। कई स्थानों पर हिंसक वारदाते हुई। 1924 में मिस्र की राजधानी काहिरा में ब्रिटिश सेनापति ली स्टैक (स्मम ैजंबा) की हत्या कर दी।
मिस्र का खदीव फौद सीमित राजतंत्र के विरुद्ध था। उसके प्रधानमंत्री जगलुल पाशा से भी अच्छे संबंध नहीं थे। फौद ने संसद को भंग किया और एक निरंकुश शासक की भांति शासन करने लगा। परंतु जगलुल पाशा के नेतृत्व में राष्ट्रवादी आंदोलन जारी रहे। 1927 में जगलुल पाशा की मृत्यु हो गयी। उसी का एक सहयोगी मुस्तफा पाशा वफद पार्टी का नेता नेतृत्व में राष्ट्रवादी आंदोलन हुए। 1929 में इंग्लैण्ड में लेबर पार्टी सत्ता में आई। 1930 में मुस्तफा पाशा ने इंग्लैण्ड की यात्रा की और 1922 की संधि में संशोधन की मांग की। परंतु ब्रिटिश सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 1934 में मिस्र में संसद के पुनः चुनाव करवाये गये। तौफीक मिस्र का प्रधानमंत्री बना।
उसने भी 1922 की संधि में संशोधन की मांग की। 1935 में इटली ने अफ्रीका में एबीसीनिया (वर्तमान इथियोपिया) पर अधिकार किया। इस घटना के पश्चात् इंग्लैण्ड की मिस्र के प्रति नीति में परिवर्तन हुआ। इंग्लैण्ड ने मिस्र के साथ वार्ता कर 1936 में एक संधि की जिसे आंग्ल-मिस्र संधि (म्दहसव-म्हलचजतंद ज्तमंजल) कहते हैं। इस संधि के अनुसार –
(1) मिस्र को एक स्वतंत्र गणतंत्र के रूप में मान्यता दे दी गई।
(2) एक ब्रिटिश राजदूत प्रतिनिधि के रूप में मिस्र में नियुक्त किया गया।
(3) मिस्र से ब्रिटिश सेना हुआई जाएंगी। परंतु स्वेज नहर की सुरक्षा के लिए 10 हजार सैनिक तैनात रहेंगे।
(4) मिस्र में विदेशियों की सुरक्षा करने का दायित्व मिस्र सरकार का रहेगा।
(5) मिस्र पर विदेशी आक्रमण होने पर इंग्लैण्ड उसे सहयोग करेगा।
(6) सूडान पर इंग्लैण्ड और मिस्र दोनों का सामूहिक अधिकार होगा।
इस संधि को 20 वर्ष के लिए लागू किया गया। परंतु 10 वर्ष पश्चात् इस संधि का पुनर्मुल्यांकन किया जा सकता था। 1027 में मिस्र राष्ट्र संघ का सदस्य बना। यह मिस्र की एक बड़ी राजनीतिक विजय. थी। इससे मिस्र को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ। इस कारण से स्वेज नहर और सूडान से संबंधित आगे कोई कदम नहीं उठाया जा सका।
1934 में खदीव फारूख मिस्र का नया शासक बना। वह निरंकुश शासन के पक्ष में था। इस कारण से उसे मिल की संसद को भंग कर दिया परंतु खदीव फारूख मिस्र में ब्रिटिश नीति के भी विरुद्ध था। द्वितीय विश्वयुद्ध में खदीव फारूख स्तफा पाशा ने मिस्र को तटस्थ रखा। परंतु इंग्लैण्ड ने मिस्र को एक सैनिक अड्डे के रूप में प्रयोग किया तथा अफ्रीका में कई युद्धा में विजय प्राप्त करने में सफल रहा। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात् खदीव ने स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा पस्तु इंग्लैण्ड ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 1947 में स्वेज नहर व सूडान के विवाद को मिस्र ने स. राष्ट्र संघ के सम्मुख रखा परंतु इंग्लैण्ड व मिस्र राष्ट्रों के प्रभाव में इस प्रस्ताव को राष्ट्र संघ ने भी ठुकरा दिया। राष्ट्र संघ में असफल होने के पश्चात् मिस्र में पुनः राष्ट्रवादी आंदोलन प्रारम्भ हुए। इन आंदोलनों का नेतृत्व वफद पार्टी तथा मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी ने किया। कई स्थानों पर हिंसक वारदातें हुई। 1950 में मिस्र में पुनः आम चुनाव करवाये गये। एक निर्वाचित सरकार का गठन हुआ। 1951 में मिस्र की ससंद ने एक अध्यादेश जारी किया। जिसके अनसार 1936 की संधि को अवैध घोषित कर दिया। एक अन्य आदेश के अनुसार स्वेज नहर से मिस्र के श्रमिकों को हट जाने के निर्देश दिये गये। इसके पाणिामस्वरूप मिस्र में अराजकता की स्थिति पैदा हुई तथा अनेक जगह पुनः हिंसक घटनाएं हुई।
प्रश्न: मिस्र में राष्ट्रवाद का चरमोत्कर्ष एक तानाशाह के रूप में हुआ, जिसने न केवली मिस्र को आजादी दिलवाई, अपितु स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर स्वेज संकट से मिस्र को नहीं वरन् विश्व को उबार दिया। विवेचना कीजिए।
उत्तर: मिस्र में सैनिक क्रांति
मिस्र में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से एक सैनिक क्रांति हुई। यह क्रांति 26 जुलाई, 1952 के दिन हुई। इसका नेतृत्व जनरल मोहम्मद नगीब और कर्नल गमाल अब्दुल नासिर ने किया। इस सेना ने मिस्र की राजधानी काहिरा पर मार्च किया और शासन सत्ता अपने हाथों में ली। जनरल नगीन मिस्र का राष्ट्रपति बना। मिस्र की जनता ने इस सैनिक क्रांति का समर्थन किया। खदीव फारूख मिन छोड़कर चला गया। यह एक रक्तहीन क्रांति थी।
सैनिक शासन ने मिस्र में शासन का संचालन करने के लिए त्ब्ब् (त्मअवसनजपवदंतल ब्वउउंदक ब्वनदबपस) का गठन किया गया। सैनिक सरकार ने मिस्र में शांति व स्थिरता स्थापित करने की घोषणा की। जनरल नगीब नें मिस्र में कई सामाजिक व आर्थिक सुधारों की घोषणा की। इसके पश्चात् जनरल नगीब ने स्वेज नहर व सूडान के विवाद को सुलझाने की ओर ध्यान दिया। उसने सर्वप्रथम सूडान की समस्या की ओर ध्यान दिया व उसका हल खोजा। मिस्र और ब्रिटेन दोनों ही सूडान पर अधिकार करना चाहते थे। परंतु सूडान इसके पक्ष में नहीं था। इन परिस्थितियों में जनरल नगीब ने 1953 में सूडान के साथ एक समझौता किया जिसके अनुसार सूडान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी। इंग्लैण्ड ने भी इस समझौते को मान्यता दे दी। इसके परिणामस्वरूप जनरल नगीब की अंतरराष्ट्रीय ख्याति (प्रतिष्ठा) बढ़ी। इसके पश्चात् नगीब ने स्वेज नहर के लिए शांति वार्ता प्रारम्भ की। परंतु मई, 1953 में यह वार्ता विफल हो गई। इसके पश्चात् जनवरी, 1954 में नगीब में मिस्र में निर्वाचित सरकार बनाने की घोषणा की। परंतु कर्नल नासिर ने इसका विरोध किया।
कर्नल नासिर का उदय-स्वेज संकट व स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण
रिवोल्यूशनरी कमाण्ड कौंसिल में बहुमत कर्नल नासिर ने पक्ष में था। रिवोल्यूशनरी कमाण्ड कौंसिल ने नासिर के प्रस्ताव को समर्थन दिया। जनरल नगीब ने स्तीफा दे दिया। 1954 में नासिर मिस्र के नये राष्ट्रपति बने। नासिर ने तुरंत स्वेज नहर से संबंधित इंग्लैण्ड से वार्ता प्रारम्भ की। 1954 में मिस्र व इंग्लैण्ड के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार 20 महीने में ब्रिटिश-सेना स्वेज नहर से हुआ ली जाएगी। मिस्र पर आक्रमण होने पर इंग्लैण्ड मिस्र की सरकार की अनुमति से स्वेज नहर में प्रवेश कर सकेगा।
स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण
कर्नल नासिर ने मिस्र में सिंचाई के साधन बढ़ाने के उद्देश्य से नील नदी पर अस्तान बांध बनाने की एक बडी परियोजना तैयार की। इस परियोजना के लिए इंग्लैण्ड व अमरीका ने आर्थिक सहायता देने का वादा किया। 1955 में मिस्र ने साम्यवादी चेकोस्लोवाकिया के साथ चावल व कपास के बदले में हथियार खरीदने का एक समझौता किया। इस कारण से अमरीका व इंग्लैण्ड आर्थिक सहयोग देने से पीछे हटने लगे। इसके पश्चात् मिस्र ने साम्यवादी चीन की सरकार को मान्यता दे दी। इस कारण से मिस्र के अमरीका व इंग्लैण्ड से संबंध खराब हो गये। 1954 में इजराइल ने मिस्र पर आक्रमण किया। इस कारण से 1955 में मिस्र ने रूस के साथ एक सैनिक संधि की। रूसी सैनिक अधिकारी मिस में सैनिक प्रशिक्षण देने के लिए भेजे गये। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका ने 56 मिलियन डॉलर की सहायता को रद्द कर दिया।
26 जलाई, 1956 को कर्नल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। स्वेज नहर का संचालन मिस की शान परिषद को सौंप दिया गया। इस प्रकार स्वेज कंपनी से होने वाली आय मिस्र को मिलने लगी।
स्वेज संकट
स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण इंग्लैण्ड व फ्रांस के लिए वज्रपात के समान सिद्ध हुआ। अगस्त, 1956 में लंदन में 22 राष्ट्रों का एक सम्मेलन हुआ। जिसमें मिस्र व यूनान ने भाग नहीं लिया। सम्मेलन में मिस्र की कड़ी आलोचना की गई तथा इस मुद्दे को न्ण्छण्व्ण् में रखे जाने का प्रस्ताव रखा गया। अक्टूबर, 1956 स्वेज नहर के विवाद को लेकर एक सम्मेलन न्ण्छण्व्ण् में आयोजित किया गया। न्ण्छण्व्ण्ने स्वेज नहर के संचालन के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समिति का गठन करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका क्योंकि रूस ने इसके खिलाफ वीटो का प्रयोग किया। इंग्लैण्ड व फ्रांस के प्रेरित करने पर 29 अक्टूबर, 1956 को इजराइल ने मिस्र पर आक्रमण किया और सिनाय प्रायद्वीप पर अधिकार कर लिया। एक सप्ताह पश्चात् इंग्लैण्ड व फ्रांस ने भी मिस्र के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। नवम्बर, 1956 में रूस ने अलैपट फ्रांस को मिस्र से सेना हुआने के लिए कहा अन्यथा रूस बड़े हथियारों (नरसंहार हथियारों) का प्रयोग कर युद्ध में शामिल होगा। इस विवाद को न्ण्छण्व्ण्के सम्मुख रखा गया। जहां 64ः5 के अनुपात में इंग्लैण्ड व फ्रांस को सेना हुआने के पक्ष में बहुमत रहा। इसके पश्चात् इंग्लैण्ड व फ्रांस ने मिस्र से अपनी सेना हुआ ली। 1957 में इजराइल ने भी सेना मिस्र से हुआ ली। इसराइल के सेना हुआ लेने के पश्चात् स्वेज संकट समाप्त हो गया। 1958 में कर्नल नासिर ने संयुक्त अरब गणराज्य (न्दपजमक ।तंइ त्मचनइसपब) का गठन किया। जिसके अंतर्गत अरबी राज्यों को सम्मिलित कर अरब राष्ट्रों में एकता स्थापित करने का प्रयास किया। स्वेज संकट विश्व के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना के परिणामस्वरूप कर्नल नासिर अरब राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में उभरा। स्वेज संकट की घटना पश्चिमी देशों की साम्राज्यवादी नीति के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सिद्ध हुआ। 1970 नासिर की मृत्यु हुई।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics