ओलिगोसैकराइड शर्करा किसे कहते हैं , oligosaccharides definition in hindi ऑलिगोसैकराइड के कार्य (Functions of oligosaccharides)
जाने ओलिगोसैकराइड शर्करा किसे कहते हैं , oligosaccharides definition in hindi ऑलिगोसैकराइड के कार्य (Functions of oligosaccharides) ?
ऑलिगोसैकराइड (Oligosaccharides)
‘ऑलिगो’ नामक ग्रीक शब्द का अर्थ है ‘कुछ’ (few in number) अतः दो, तीन, चार अथवा अधिकतम नौ मोनोसैकराइड के संघनन (condensation) से प्राप्त छोटी श्रृंखला युक्त शर्कराएँ ओलिगोसैकराइड कहलाती हैं। प्रत्येक मोनोसैकराइड अणु के दूसरे अणु के संघनन के दौरान एक जल के अणु की विमुक्ति होती है तथा वे ऑक्सीजन माध्यम से जुड़ जाता है।
ऑलिगोसैकराइड़ में मोनोसैकराइड शर्करा ऑक्सीजन सेतु (oxygen bridge, O ) द्वारा जुड़े रहते हैं जिसे ग्लाइकोसिडि बन्ध (glycosidic linkage) कहते हैं। इसके बारे में पूर्व में मोनोसैकराइड के अंतर्गत बताया गया है। विभिन्न ऑलिगोसैकराइड भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं जिनका मुख्य आधार उनमें उपस्थित मोनोसैकराइड इकाइयों की संख्या होती है। इनमें उपस्थित मोनोसैकराइड अणुओं की संख्या के आधार पर उन्हें डाइसैकराइड (disaccharide. 2 अणु), ट्राइसैकराइड (trisaccharide, 3 अणु). टैट्रासैकराइड (tetrasaccharide, 4 अणु), पैन्टासैकराइड (penta saccharide, 5-अणु) आदि नाम दिया जाता है। ओलिगोसैकराइड में उपस्थित सभी शर्करा अणु एक समान अथवा भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इन मोनोसैकराइडों के मध्य भिन्न-भिन्न प्रकार के ग्लाइकोसिडिक बन्ध बनते हैं। दो समान शर्करायें अलग-अलग बन्धों से जुड़कर भिन्न ऑलिगोसैकराइड भी बनाते हैं। कुछ प्रमुख्य ऑलिगोसैकराइड एवं शर्कराओं के मध्य ग्लाइकोसिडिक बन्ध तालिका में दर्शाये गये हैं ।
तालिका-2 : कुछ महत्वपूर्ण ऑलिगोसैकराइड एवं उनके संघटक मोनोसैकराइड
क्रम संख्या | औलिगोसैकराइड (Oligosaccharide) | प्रकार
(Type)
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संघटक मोनोसैकराइड
(Constituent monosaccharide)
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1. | सूक्रोज ( Sucrose) C12H22O11
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डाइसैकराइड
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ग्लूकोज़ एवं फ्रक्टोज
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2. | लैक्टोज़ (Lactose) | डाइसैकराइड | ग्लूकोज़ एवं गैलेक्टोज
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3. | माल्टोज़ (Maltose) | डाइसैकराइड | ग्लूकोज़
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4. | |||
5. | रैफिनोज (Raffinose )
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ट्राइसैकराइड
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फ्रक्टोज, ग्लूकोज़,
गैलेक्टोज
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6. | स्टैकियोज़ ( Stachiose) C12H22O11 | टैट्रासैकराइड | फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़,
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7. | वर्बेरिकोज (Verbascose) | पैन्टासैकराइड | फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़, |
अधिकांश ऑलिगोसैकराइड ठोस, रंगहीन क्रिस्टली (crystalline) पदार्थ होते हैं जो जल में विलेय होते हैं। अधिकांश ऑलिगोसैकराइड हरे पादपों में पाये जाते हैं। इनमें से डाइसैकराइड सर्वाधिक पाये जाते हैं। सूक्रोज़ एवं माल्टोज़ सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं एवं फलों में मुख्य रूप से पाये जाते हैं। ट्राइसैकराइड एवं टैट्रासैकराइड अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाये जाते हैं। रैफिनोज़ प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली ट्राइसैकराइड है जो चुकन्दर, कपास, के बीज एवं कुछ कवकों में पाई जाती है। इसी प्रकार जैन्शीयनोज़ (gentianose) भी प्राकृतिक ट्राइसैकराइड है जो कुछ विशिष्ट पादपों के प्रकन्द (rhizome) में पायी जाती है। इसी प्रकार स्टैकियोज़ (stachyiose). टैट्रासैकराइड कुकरबिटा (Cucurbita pepo) एवं वर्बेस्कम (Verbascum) आदि अनेक पादपों में पायी जाती हैं। लैक्टोज़ (lactose) नामक डाइसैकराइड दूध में पायी जाती है।
सूक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज़ एवं सैलोबायोज़ आदि कुछ मुख्य ऑलिगोसैकराइड हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
सुक्रोज़ (Sucrose)
यह a-D ग्लूकोज़ एवं B-D-फ्रक्टोज़ से निर्मित डाइसैकराइड है जिसमें ग्लूकोज़ के पहले कार्बन (-CHO) एवं फ्रक्टोज़ के दूसरे कार्बन (-C=O) के मध्य ग्लाइकोसिडिक बन्ध बनता है। इस डाइसैकराइड में कोई भी कार्बोनिल समूह मुक्त न होने के कारण यह धात्विक आयनों का अपचयन नहीं कर पाती अतः यह अनापचयी शर्करा (non reducing ) होती है। अतः फेहलिंग विलयन एवं बेनेडिक्ट अभिकर्मक (Benedicts reagent) के साथ अभिक्रिया नहीं करती। इसकी संरचना में एक पायरैनोज (pyranose) एवं एक फ्यूरैनोज़ ( furanose) वलय होता है।
यह शर्करा उच्चवर्गीय पादपों में पाई जाती है तथा रंगहीन क्रिस्टलीय एवं मीठा शर्करा होती है। जलअपघटनी एन्जाइम इन्वर्टेज (Invertase) एवं तनु खनिज अम्ल (जैसे HCI, H2SO4, आदि) की उपस्थिति में इसका जल अपघटन होता है तथा इससे ग्लूकोज़ एवं फ्रक्टोज़ प्राप्त होते हैं जो सूक्रोज़ दक्षिण ध्रुवण घूर्णक (dextrorotary) शर्करा है किन्तु इसके जलअपघटन से प्राप्त शर्करायें वाम ध्रुवण घूर्णक (laevorotatory) होती है अर्थात् घूर्णन की दिशा बदल (invert ) जाती है। यह प्रक्रिया ध्रुवण घूर्णन (optical rotation) में प्रतिलोमन (inversion) कहलाती है अतः सूक्रोज प्रतीप शर्करा (invert sugar) कहलाती है।
माल्टोज़ (Maltose)
यह माल्ट शर्करा (malt sugar) भी कहलाती है जो अंकुरित अनाजों एवं माल्ट युक्त पदार्थों में होती है। यह मंड (starch) के आंशिक अपघटन (partial breakdown) से भी प्राप्त होती है। यह दो a-D-ग्लूकोज़ अणुओं के 14 ग्लाइकोसिडिक बन्ध के द्वारा जुड़ने के फलस्वरूप बनती है। सामान्यतः इसमें एक शर्करा श्रृंखला रूप में होती है अतः इसका एल्डिहाइड समूह मुक्त होता है। इस कारण यह शर्करा फेहलिंग विलयन में एवं बेनेडिक्ट विलयन को अपचयित कर सकती है एवं -अपचायी शर्करा (reducing sugar) कहलाती है।
यह जल में विलेय होती है एवं क्रिस्टलीय (crystalline) होती है। यह दक्षिण ध्रुवण घूर्णन (dextro rotary effect) दर्शाती है। यह परिवर्ती ध्रुवण घूर्णन (mutarotation) दर्शाती है अर्थात् शर्करा विलयन को थोड़ी देर रख देने पर घूर्णन कोण में परिवर्तन हो जाता है। माल्टेज़ (maltase) एन्जाइम के प्रभाव यहं शर्करा दो ग्लूकोज़ अणुओं में टूट जाती है।
लैक्टोज़ (Lactose)
ग्लूकोज़ एवं गैलेक्टोज B-14 बन्ध से जुड़े होते हैं। यह सबसे कम मीठी एवं अपेक्षाकृत कम घुलनशील शर्करा है। लैक्टेज यह दूध में पायी जाने वाले शर्करा है जो गैलैक्टोज़ एवं ग्लूकोज़ से मिलकर बनती है एवं पादपों में नहीं पायी (Lactase) एन्जाइम की उपस्थिति में लेक्टोज़ ग्लूकोज़ एवं गैलेक्टोज़ में टूट जाता है। लैक्टोज़ दक्षिण ध्रुवण घूर्णन (dextro. rotation) दर्शाते हैं । यह अपचायी शर्करा (reducing sugar) है अतः बेनेडिक्ट विलयन एवं फेहलिंग विलयन के साथ धनात्मक अभिक्रिया दर्शाती है। लैक्टोज़ परिवर्ती ध्रुवण घूर्णन (mutarotation) दर्शाती है।
सैलोबायोज़ (Cellobiose)
सैलोबायोज़ डाइसैकराइड है जो दो B-D ग्लूकोज़ इकाइयों से बना है। यह सेलुलोज़ के आंशिक अपघटन के फलस्वरूप बनती है। ग्लूकोज़ इकाईयाँ 14 ग्लाइकोसिडिक बन्ध से जुड़ी होती हैं। यह अपचायी (reducing) शर्करा है अतः बेनेडिक्ट विलयन एवं फेहलिंग विलयन के साथ धनात्मक अभिक्रिया दर्शाती है। यह परिवर्ती ध्रुवण घूर्णन दर्शाती है। ट्राइसैकराइड एवं टैट्रासैकराइड (Trisaccharides and tetrasaccharides)
ट्राइसैकराइड एवं टैट्रासैकराइड सामान्यतः पादपों में अल्प मात्रा में ही पाये जाते हैं। रैफिनोज़ (raffinose) नामक ट्राइसैकराइड एवं स्टैकियोज़ (stachyose) नामक टैट्रासैकराइड पादपों में पाये जाते हैं। रैफिनोज़, गैलेक्टोज़, ग्लूकोज़ एवं फ्रक्टोज़ से निर्मित है तथा अनेक कवकों, कपास एवं चुकन्दर आदि कुछ उच्च पादपों में पायी जाती है। स्टैकियोज़ कुछ बीजी पादपों में पायी जाती है तथा दो गैलेक्टोज़ एक ग्लूकोज़ एवं एक फ्रक्टोज़ शर्करा इकाईयों से बनी होती है।
ऑलिगोसैकराइड के कार्य (Functions of oligosaccharides)
अधिकांश ऑलिगोसैकराइड पादप स्रोत से प्राप्त होते हैं।
- सूक्रोज़ एवं माल्टोज मीठी शर्करा है जो अनेक फलों में पाई जाती है तथा उन्हें विशिष्ट स्वाद प्रदान करती है।
- पादपों में प्रकाश संश्लेषण उत्पाद सूक्रोज़ के रूप में स्थानान्तरित होते हैं।
- सूक्रोज़ एवं माल्टोज़ मनुष्य के भोजन में कार्बोहाइड्रेट के मुख्य घटक हैं।
- सुक्रोज विभिन्न भोज्य पदार्थों में मीठे स्वाद के लिए डाली जाती है।
- दुग्ध शर्करा लैक्टोज नवजात प्राणियों के लिए महत्वपूर्ण कार्बोहाइड्रेट स्रोत है।
बहुशर्करा अथवा पॉलीसैकराइड (Polysaccharides)
अनेक मोनोसैकराइड अणुओं के संघनन से निर्मित जटिल कार्बोहाइड्रेट पॉलीसैकराइड (polysaccharide) कहलाते हैं। अनेक वैज्ञानिकों के अनुसार तीन अथवा तीन से अधिक मोनोसैकराइड से बने कार्बोहाइड्रेट पॉलीसैकराइड होते हैं अतः ओलिगोसैकराइड एवं पॉलीसैकराइड की स्पष्ट सीमा रेखा तय नहीं है। सामान्यतः पॉलीसैकराइड में 10 से ज्यादा मोनोसैकराइड होती है।
ये जटिल कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो जल में अति अल्प रूप में विलेय (sparingly soluble) तथा स्वाद में फीके होते होते हैं। अधिकांशतः ये पाउडर के रूप में होते है –
इन कार्बोहाइड्रेटों में संघटक शर्करा तथा समान होने पर उन्हें समान अथवा होमोपॉलीसैकराइड (homopolysaccharide) तथा असमान होने पर असमान अथवा हैटेरोपॉलीसैकराइड (heteropolysaccharide) कहते हैं।
अधिकांशतः पॉलीसैकराइड हैक्सोज (6C) शर्कराओं के बहुलक होते हैं एवं हैक्सोसैन (hexosans) कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त पैन्टोज़ शर्करा के बहुलक पैन्टोसैन (pentosans) कहलाते हैं। प्रकृति में पाये जाने वाले कुछ मुख्य उदाहरण है-मंड, सेलुलोज, ग्लाइकोजन जो होमोपॉलीसैकराइड हैं जबकि पैक्टिन एवं काइटिन हैटेरोपॉलीसैकराइड माने जाते हैं ।
मोनोसकराइड के रासायनिक गुण (Chemical properties of monosaccharides)
मोनोसैकराइड के रासायनिक गुण इनमें उपस्थित हाइड्रॉक्सिल (OH) समूह. एल्डिहाइड (-CHO) समूह अथवा कीटो (-C=O) समूह के कारण होते हैं।
- 1. एसिटिलीकरण (Acetylation) : मोनोसैकराइड जिंक क्लोराइड की उपस्थिति में एसिटिक एनहाइड्राइड (Acetic nhydride) अथवा एसिटाइल क्लोराइड से क्रिया कर पैंटाएसिटाइल व्युत्पन्न बनाते हैं।
- एल्कोहल से अभिक्रिया द्वारा ग्लूकोसाइड निर्माण (Formation of glucoside): जब मोनोसैकराइड को HCI की उपस्थिति में एल्कोहल के साथ गर्म किया जाता है तो शर्करा के हेमीएसीटाइल समूह के – OH समूह तथा एल्कोहल के -OH समूह में से जल का अणु निकल जाता है एवं मोनोसैकराइड ईथर बनते हैं, इन्हें ग्लूकोसाइड (glucoside) कहते हैं। ग्लूकोज़ एवं फ्रक्टोज़ मिथाइल एल्कोहल के साथ क्रमशः मिथाइल ग्लूकोसाइड एवं मिथाइल फ्रक्टोसाइड बनाते हैं।
- ऑक्सीकरण (Oxidation) : मोनोसैकराइड विभिन्न प्रकार के ऑक्सीकारकों (Oxidising agents) से ऑक्सीकृत हो
जाते हैं।
(i) ग्लूकोज मृदु ऑक्सीकारकों (mild oxidising agents) जैसे ब्रोमीन जल से ऑक्सीकरण के पश्चात् ग्लूकोनिक अम्ल बनाता है। इसमें एल्डिहाइड समूह कार्बोक्सिल ( -COOH) में परिवर्तित हो जाता है।
तीव्र (strong) ऑक्सीकारकों की उपस्थिति में ग्लूकोज़ के एल्डिहाइड में एवं प्राथमिक एल्कोहली समूह का ऑक्सीकरण कार्बोक्सिलिक समूह में हो जाता है एवं सैकेरिक अम्ल प्राप्त होता है।
कीटो शर्कराओं (जैसे फ्रक्टोज़) पर मृदु ऑक्सीकारकों का कोई प्रभाव नहीं होता, किन्तु तीव्र ऑक्सीकारकों की उपस्थिति में इसके ऑक्सीकरण से टारटैरिक अम्ल एवं ग्लाइकोलिक अम्ल प्राप्त होता है।
इसी गुण के कारण मोनोसैकराइड फैलिंग विलयन (Fehling solution), बैनेरिक्ट विलयन (Benedict solution) एवं ऑलिन अभिरंजक (Tollens reagent) द्वारा ऑक्सीकृत हो जाते हैं।
- अपचयन (Reduction) : मोनोसैकराइड के अपचयन से पॉलीहाइड्रिक एल्कोहल (polyhydric alcohol) बनते हैं। सोडियम अमलगम के जलीय घोल में ग्लूकोज से सार्बिटॉल (sorbitol), मैनोज़ से मैनिटॉल (mannitol) तथा फ्रक्टोज़ से सार्बिटाल एवं मैनिटॉल बनते हैं।
शर्करा के अपचयन से 5 हाइड्रॉक्सी मिथाइल फरफ्यूरैल द्वारा हैक्सोज बनता है एवं गर्म करने पर लैव्यूलिनिक अम्ल एवं फार्मिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है।
- हाइड्रोजन सायनाइड से अभिक्रिया (Reaction with HCN) : मोनोसैकराइड HCN के साथ क्रिया करके उनसे संयोजित हो जाते हैं एवं संकलन उत्पाद (addition production) बनाते हैं।
- हाइड्रोक्सिल एमिन से अभिक्रिया (Reaction with hydroxylamine) : मोनोसैकराइड की हाइड्रोक्सिलएमीन से क्रिया के फलस्वरूप ऑक्साइम (oximes) बनते हैं।
- प्राथमिक एमीन से अभिक्रिया (Reaction with primary amine) : मोनोसैकराइड प्राथमिक ऐमीन से क्रिया कर शिफ बेस (Schiff’s base) बनाते हैं। इस प्रक्रिया में एल्डिहाइड समूह भाग लेता है।
- फीनाइलहाइड्रेजीन से अभिक्रिया (Reaction with Phenylhydrazine) : फीनाइलहाइड्रेजीन की अधिकता में मोनोसैकराइड इन से क्रिया करके तीन चरणों में पहले हाइड्रेजोन (hydrazone) फिर एल्डोहाइड्रेजोन (aldohydrazone) एवं अंत में ओसेज़ोन (osazone) बनाते हैं। सबसे पहले एल्डिहाइड अथवा कीटोन समूह फीनाइल हाइड्रेजीन के साथ क्रिया करता है। दूसरे चरण में इन समूहों के निकटवर्ती कार्बन परमाणु हिस्सा लेते हैं तथा फीनाइलहाइड्रेजीन का अपचयन एवं हाइड्रेजोन का ऑक्सीकरण होता है तथा साथ एनीलिन एवं अमोनिया भी बनते हैं। तीसरे चरण में भी यही कार्बन परमाणु फीनाइलहाइड्रेजीन के साथ क्रिया करता है ।
ग्लूकोज़ के समान ही फ्रक्टोज़ भी क्रिया करता है एवं इसमें कीटोन समूह तथा इससे निकटवर्ती कार्बन परमाणु भाग लेता है। ओसेजोन मोनोसैकराइड की पहचान के लिए उपयोगी है। ये पीले क्रिस्टली पदार्थ होते हैं।
- इनोलीकरण (Enolization) : जब हैक्सोज़ शर्करा ग्लूकोज़ फ्रक्टोज़ अथवा मैनोज़ को तनु क्षारीय विलयन में कम ताप पर घंटों तक (several hours) रखा जाता है तब वे आपस में रूपान्तरण अथवा समावयवन (isomerisation) दर्शाती हैं तथा एक शर्करा का विलयन इन तीनों शर्कराओं के मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रक्रिया लॉबरी डी ब्रुन-वॉन एकेन्स्टीन रूपान्तरण (Lobry de Bruyn Von Ekenstein transformation) कहलाती है। यह रूपान्तरण इन शर्कराओं के ईनॉलीकरण (enolization) के कारण होता है। इस प्रक्रिया में कार्बन परमाणु से एक प्रोटॉन समीपस्थ कार्बोनाइल समूह के ऑक्सीजन को स्थानान्तरित हो जाता है इससे असंतृप्त एल्कोहल इनीडियोल (enediol) बन जाते हैं। इन मध्यवर्ती इनीडियोल (intermediate enediol) से अन्य शर्करा बनती है। ये तीनों शर्करायें साम्यावस्था में होती है।
- किण्वन (Fermentation) : मोनोसैकराइड के किण्वन के फलस्वरूप ईथाइल एल्कोहल बनता है जो यीस्ट के द्वारा तथा अवायवीय श्वसन में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी होता है।
C6H12O6 → C2H5OH + 2CO 2
Glucose Ethyl alcohol
- अन्य क्रियायें (Other reactions) : जैविक तंत्र (living system) में मोनोसैकराइड के हाइड्रॉक्सिल (OH) समूह विभिन्न यौगिकों से अभिक्रिया करके विभिन्न व्युत्पन्न शर्करा (derived sugar) बनाते हैं। इनमें से अनेक विभिन्न प्रकार के मध्यवर्ती उत्पाद हैं। उदाहरण-
(1) फास्फेट एस्टर- जैसे B-D ग्लूकोज़ 1-फास्फेट, B-D-ग्लूकोज – 62 PO4, B-D फ्रक्टोज – 6 PO4 एवं ग्लिसरैल्डिहाइड 3 PO सभी फास्फेट एस्टर हैं।
(2) एमीनो शर्करा – B-D-ग्लूकोसैमीन, B-D गैलेक्टोसैमीन।
(3) विभिन्न एल्कोहल एवं अम्ल – सार्बिटॉल, मैनीटॉल, म्यूरैमिक अम्ल आदि ।
मोनोसैकराइड के प्रमुख कार्य ( Important functions of monosaccharides)
मोनोसैकराइड जैविक तंत्र में अनेक रूपों में महत्वपूर्ण हैं इनके मुख्य कार्य निम्नांकित हैं।
- जैविक तंत्र में मोनोसैकराइड ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। इनके ऑक्सीकरण से ऊर्जा विमुक्त होती है।
- पादपों में प्रकाश संश्लेषण के दौरान ट्राइओज, टैट्रोज एवं हैप्टोज़ शर्कराएं मध्यवर्ती उत्पाद के रूप में बनती हैं जो विभिन्न क्रियाओं से अंततः हैक्सोज शर्करा का निर्माण करते हैं।
- मोनोसैकराइड के संयोजन एवं बहुलकीकरण से ऑलिगोसैकराइड एवं विभिन्न प्रकार के पॉलीसैकराइड बनते हैं।
- प्रकाश संश्लेषण के दौरान CO2 ग्राही (CO2 acceptor) अणु एक पैन्टोज कीटो शर्करा का व्युत्पन्न राइबुलोज़ 1.5- बाइफास्फेट (Ribulose 1,5-biphosphate) है ।
- पैन्टोज़ शर्कराएं – राइबोज़ एवं डीऑक्सीराइबोज़ शर्करा न्यूक्लियोटाइडों एवं न्यूक्लिक अम्लों DNA एवं RNA के महत्वपूर्ण संघटक (compounds) होते हैं।
- पैन्टोज़, शर्करा विभिन्न कोएन्जाइम यथा NAD, NADP, FMN, FAD, कोएन्जाइम A, ATP ADP, AMP आदि के संघटक हैं।
- मोनोसैकराइड के फास्फेट ऐस्टर विभिन्न उपापचयी प्रक्रियाओं के मध्यवर्ती उत्पाद हैं जो उनके ऑक्सीकरण एवं अन्य पदार्थों में परिवर्तन में उपयोगी हैं।
- अनेक एमिनोसैकराइड यथा N- एसिटाइलग्लूकोसैमिन (Nacetylglucosamine, NAG) B-D गैलेक्टोसैमीन एवं B- D ग्लूकोसैमीन जटिल पॉलीसैकराइड के घटक होते हैं। NAG जीवाणु सायनोबैक्टीरिया की कोशिका भित्ति के घटक होते हैं।
- शर्करा एल्कोहल एवं अम्ल जैसे सार्बिटॉल (sorbitol), मैनीटॉल (mannitol), म्यूरेमिक अम्ल कोशिका झिल्ली के घटक हैं। N-एसिटाइल म्यूरैमिक अम्ल (Nacetyl muramic acid, NAM) जीवाणु कोशिका भित्ति का घटक है।
- रुधिर में शर्करा ग्लूकोज़ के रूप में स्थानान्तरित होता है।
- D-गैलेक्टोज तंत्रिका ऊतक के ग्लाइकोलिपिड का घटक है।
- पादपों में D-मैनोज (mannose) कुछ ग्लाइकोप्रोटीन के रूप में पाया जाता है।
- शर्कराओं में सर्वाधिक मीठा स्वाद D-फ्रक्टोज़ का होता है। यह अनेक फलों में एवं शहद में होती है एवं फलों को मीठा स्वाद प्रदान करती है।
अपचयी एवं अनापचयी शर्करायें (Reducing and non- reducing sugars)
(-C=O) समूह के कारण ये शर्करा विलयन में विभिन्न धात्विक आयनों (metal ions) को अपचयित (reduce) कर सकते हैं। मोनोसैकराइड शर्कराओं में उपस्थित एल्डिहाइड ( – CHO) एवं कीटो (-CO) समूह में पाये जाने वाले मुक्त कार्बोनिल इस प्रकार की शर्कराओं को अपचायी शर्कराएँ (reducing sugars) कहते हैं। सभी मोनोसैकराइड अपचायी शर्करा होती है। कुछ डाइसैकराइड में भी मुक्त कार्बोनिल समूह होता है। अतः वे भी अपचयन की क्षमता रखती हैं। अतः अपचायी शर्क हैं उदाहरण – माल्टोज एवं लैक्टोज़ डाइसैकराइड ।
अनेक ऑलिगोसैकराइड एवं कार्बोहाइड्रोड में मुक्त कार्बोनिल समूह नहीं होता अतः इनमें धात्विक आयनों को अपचयित करने की क्षमता भी नहीं होती। इस प्रकार की शर्करा अनापचयी शर्करा (non-reducing sugar) कहलाती है। उदाहरण-सूक्रोज जो डाइसैकराइड है एवं इसमें मुक्त कार्बोनिल समूह नहीं होता ।
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