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blackman’s law of limiting factors in hindi ब्लैकमैन का सीमाकारी कारकों का नियम सीमाकारी कारक के नियम

जाने blackman’s law of limiting factors in hindi ब्लैकमैन का सीमाकारी कारकों का नियम सीमाकारी कारक के नियम ?

प्रकाश श्वसन (Photorespiration or C2 cycle)

C2  पादपों में प्रकाश थे। उपस्थिति में कार्बनिक यौगिकों का ऑक्सीकरण प्रकाशश्वसन (Photorespiration) कहलाता है। सामान्य श्वसन के समान ही इसमे CO2 मुक्त होती है परन्तु ATP मुक्त नहीं होते। यह क्रिया O2 की अधिक में हरित लवकों में सम्पन्न होती है। इस क्रिया में RuBP कार्बोक्सीलेज (RuBP-Carboxylase, Rubisco) आक्सीजिनेज का कार्य करता है, जिसके परिणामस्वरूप CO2  के स्थान पर O2 इस विकर के बंधक स्थल (binding site) से जुड़ जाता है तथा RuBP आक्सीकृत (oxidised) हो जाता है। आक्सीकृत होने पर RuBP के एक अणु से C2  यौगिक PGA उत्पन्न होता है जो केल्विन चक्र मे प्रवेश कर जाता है तथा एक C2  यौगिक फास्फोग्लाइकोलेट (phosphoglycolate) उत्पन्न होता है जो ग्लाइकोलेट में परिवर्तित हो जाता है। ग्लाइकोलेट हरित लवकों से निकल कर परऑक्सीसोम (peroxisome) में प्रवेश कर जाता है जहाँ यह ग्लाइसिन (glycine) मे आक्सीकृत होता है। अब ग्लाइसिन माइटोकान्ड्रिया (mitochondria) में प्रवेश करता है। यहां ग्लाइसिन के दो अणु O2  की उपस्थिति में क्रिया कर सीरीन (serine) का एक अणु CO2, NH3  एवं ATP बनाते हैं।

प्रकाश – श्वसन तीन कोशिकांगों यथा हरित लवक (chloroplast), परऑक्सीसोम (peroxisomes) एवं माइटोकान्ड्रिया (mitochondria) के सहयोग से सम्पन्न होती है। यह क्रिया प्रकाश संश्लेषण के समय होती है। जब केल्विन चक्र (Cak cycle) में RuBP पुनः प्राप्त होता है। ताप के बढ़ने पर रूबिस्को (Rubisco) की सुग्राहिता CO2  के लिए कम होकर लिए बढ़ जाती है। प्रकाश- श्वसन के कारण प्रकाश संश्लेषण उत्पाद में 30-40% की कमी आती है। प्रकाश-संश्लेष दौरान स्थिरीकृत CO2 के लगभग 50% भाग का हास प्रकाश श्वसन में हो जाता है।

तालिका- 6: प्रकाश श्वसन एवं श्वसन (सामान्य) के मध्य अन्तर

प्रकाश श्वसन (Photorespiration)

 

श्वसन (Respiration)
1.    यह सिर्फ हरी कोशिकाओं में सम्पन्न होता है।

2.    इसमें हरित लवक, पराऑक्सीसोम, माइटोकान्ड्रिया भाग लेते है।

3.    यह प्रकाश की उपस्थिति में सम्पन्न होता है।

4. यह O2  के बढ़ने पर बढ़ता है।

5. प्रकाश संश्लेषण का आधार ग्लाइकोलेट होता है।

 

6. यह एक हानिकारक क्रिया है जिसमें ऊर्जा व्यय होता है।

7. प्रकाश श्वसन आवश्यक क्रिया नहीं है।

 

1.    यह सभी जीवित कोशिकाओं में सम्पन्न होता है।

2. कोशिका द्रव्य एवं माइटोकॉन्ड्रिया भाग लेते है।

3. प्रकाश एवं अन्धकार दोनों में होता है।

4. यह O2 के 10-25% तक बढ़ने पर अप्रभावित रहता है। परन्तु इससे अधिक होने पर अप्रकाश श्वसन घट जाता है।

5. इसका आधार ग्लूकोज, पायरूवेट अथवा एसीटाइल CoA होता है

6. इस क्रिया में उर्जा मुक्त होती है।

7. यह एक अति आवश्यक क्रिया है।

 

 

प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting photosynthesis )

 “ब्लैकमैन का सीमाकारी कारकों का नियम (Blackman’s law of limiting factor)

सर्वप्रथम सैक्स (Sachs. 1860) ने कार्डिनल बिन्दुओं (Cardinal point) की संकल्पना दी। इसके अनुसार किसी भी प्रकार के कार्यिकी अभिक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों के तीन मुख्य मान होते हैं। यह मान न्यूनतम (minimum). अनुकूलतम (optimum) एव अधिकतम (maximum) होते हैं। न्यूनतम (minimum) मान पर कार्यिकी अभिक्रियाऐं सम्पन्न नहीं होती है। अनुकूलतम मान पर कोई कार्यिकी अभिक्रिया अनिश्चित समय तक अधिकतम गति से सम्पन्न हो सकती है। अधिकतम (maximum) से अधिक मान होने पर क्रिया रूक जाती है। इन तीन मानों को कार्डिनल मान (cardinal values) कहते हैं। यह संकल्पना ब्लैकमैन (Blackman, 1905) के द्वारा विस्थापित कर दी गयी थी। उनके अनुसार उसी सीमा तक न्यून मात्रा में पाये जाने वाला कारक जिसके बढ़ने पर क्रिया की दर समान रूप से बढ़े उसे सीमाकारी कारक (limiting factor) कहते हैं। जब कोई कार्मिक अभिक्रिया अनेक कारकों से प्रभावित होती है तब यह क्रिया उस कारक द्वारा नियंत्रित होती है जो सबसे कम मात्रा में होता है।

बाह्य कारक (External factors)

(1) प्रकाश (Light)

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश द्वारा तीन प्रकार से प्रभावित होती है

(i) प्रकाश तीव्रता (Light Intensity)- प्रकाश संश्लेषण अत्यंत कम प्रकाश तीव्रता में हो सकता है। यह क्रिया मोमबत्ती अथवा चन्द्रमा के प्रकाश में भी होती है। प्रकाश तीव्रता के बढ़ने पर प्रकाश संश्लेषण की दर एक सीमा तक ही बढती है। इसके आगे यह घटती चली जाती है। एक विशेष तीव्रता पर पादप के प्रकाश संश्लेषी क्षेत्र से गैसीय विनिमय रूक जाता है । इस तीव्रता को प्रकाश सन्तुलन बिन्दु (light compensation point) कहते हैं। प्रकाश सन्तुलन बिन्दु छायाप्रिय (Sciophytes) पादपों में 10-100 फीट कैन्डल तथा प्रकाशप्रिय (heliophytes) पादपों में 100-200 फीट कैन्डल पर स्थापित होता है। पूर्ण सूर्य प्रकाश के 10% मान पर छायाप्रिय पादपों (sciophytes) में अधिकतम प्रकाश संश्लेषण दर पायी जाती है परन्तु प्रकाशप्रिय (heliophytes) पादपों में यह मान 70% होता है।

उच्च प्रकाश तीव्रता पर प्रकाश संश्लेषण में कमी के प्रभाव को सौरियन (solarisation) कहते हैं। यह प्रभाव प्रकाश संदमन (photo inhibition ) अथवा प्रकाश आक्सीकरण (photo oxidation) से उत्पन्न होता है। प्रकाश के प्रभाव से वाष्पोत्सर्जन (transpiration) बढ़ता है जिससे पर्ण कोशिकाओं की आर्द्रता में कमी आ जाती है तथा रन्ध्र (stomata) बंद हो जाते हैं। इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी को प्रकाश संदमन (photo inhibition) कहते हैं। इस प्रकार के संदमन में O2 एवं तापमान का कोई प्रभाव नहीं होता । तीव्र प्रकाश में O2 की उपस्थिति में पर्णहरित आक्सीकृत होकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण मे कमी आती है। इसे प्रकाश ऑक्सीकरण (photo-oxidation) कहते हैं।

(ii) प्रकाश गुण (Light Quality)- प्रकाश संश्लेषण दृश्य प्रकाश में होता है। प्रकाश संश्लेषण लाल प्रकाश में अधिकतम तथा हरे प्रकाश में न्यूनतम होता है। औसत प्रकाश संश्लेषण नीले प्रकाश में होता है। नीले प्रकाश मे अधिक ऊर्जा होती है इसलिए यह जल निमग्न पादपों तक पहुँचने में समर्थ होती है। उच्च पादप पराबैंगनी (ultra violet) एवं अवरक्त प्रकाश (infrared) किरणों का उपयोग नहीं करते हैं। पराबैंगनी किरणें स्टार्च के संचयन में सहायक होती है जिससे वृद्धि रूक जाती है। परन्तु बैंगनी जीवाणु प्रकाश संश्लेषण के लिए पराबैंगनी एवं अवरक्त प्रकाश किरणों का उपयोग करते हैं।

(iii) प्रकाश की अवधि ( Duration of light)- सामान्यतः पादपों को अधिक समय तक प्रकाश देने पर प्रकाश संश्लेषण अधिक पाया जाता है। सतत प्रकाश की अपेक्षा आंतरायिक प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण अधिक पाया जाता है। दीर्घ समय तक सतत प्रकाश देने पर भी प्रकाश संश्लेषण की दर पर कोई प्रभाव नहीं होता है।

  1. तापमान (Temperature)

सामान्यतः प्रकाश संश्लेषण की क्रिया 0°C ताप पर विकर के निष्क्रिय हो जाने से नहीं होती है। यह 25-30°C (C4 पादपो  के लिए 35-40°C) पर अधिकतम होती है। परन्तु 50-55°C पर विकर नष्ट (denature) होने से यह क्रिया रूक जाती है। अनुकूलतम बिन्दु तक Q10  का मान 2 होता है। बहत से पादपों में प्रकाश संश्लेषण 0°C से S°C तापमान पर प्रारम्भ हो ज है। परन्तु शैवाकों (lichens) में यह – 20°C तक तथा कुछ शंकु (conifers) पादपों में यह – 35°C तक भी पाया गया है। मांसलोदभिद पादप 55°C तथा कुछ शैवाक 75°C तक भी प्रकाश संश्लेषण में सक्षम पाये गये हैं। C3  पादपों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता कम ताप पर अधिक होती है परन्तु C4  पादपो में यह उच्च ताप पर अधिक होती है।

  1. कार्बन डाई आक्साइड (Carbon dioxide)

में वृद्धि पायी गयी है। जलीय पादप अधिक CO2 का प्रयोग करते हैं। कुछ शैवालों में 1% CO2  पर भी प्रकाश संश्लेषण होत सामान्यतया वातावरण में 0.03% CO2  पायी जाती है। ज्यादातर पादपों में इस के 0.1% तक प्रकाश संश्लेषण की क है। CO2  की सान्द्रता कम करने पर एक स्तर पर CO2  संतुलन बिन्दु (CO2 compensation point) स्थापित होता है CO2  की वह सान्द्रता जिस पर CO2  स्थिरीकरण की दर तथा CO2  विमुक्त होने की दर समान होती है उसे CO2  सन्तुलन बिंदु  (CO2 compensation point) कहते हैं। C3  पादपों में CO2 सन्तुलन बिन्दु अधिक (50-100ppm) तथा C4  पादपों में (0-10ppm) होती है। उच्च CO2 की सान्द्रता पादपों के लिए हानिकारक होती है एवं प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है।

  1. ऑक्सीजन (Oxygen)

कुछ अवायवीय जीवाणुओं में सामान्य रूप से प्रकाश संश्लेषण O2 की उपस्थिति में होता रहता है परन्तु अन्य स्थितिय में यह घट जाती है। जैक्सन एवं योक (Jackson and Yolk, 1970) के अनुसार न्यून O2 सान्द्रता प्रकाश संश्लेषी इलेक्ट्रॉन के अनुकूलतम अभिगमन में सहायक होती है। इसे वारबर्ग प्रभाव (Warbrug’s effect) कहते हैं। O2 के बढ़ने से प्रकार श्वसन बढ़ता है तथा प्रकाश ऑक्सीकरण हो सकता है। श्वसन की दर प्रकाश संश्लेषण के मध्यवर्ती उत्पादों (intermediate products) के प्रयोग से बढ़ जाती है। O2  की सांद्रता 20.5% तक कम करने पर 30-50% तक प्रकाश संश्लेषण में बढ़त देखी गयी है।

  1. जल (Water)

थोडे (Thoday, 1910) के अनुसार पर्ण कोशिकाओं की आर्द्रता कम होने से प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है। कम आर्द्रता होने पर रन्ध्र बन्द हो जाते है जिससे प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है। जल न्यूनता से कोशिका तथा हरित लवक की स्फीत घट जाती है तथा विकर सक्रियता घट जाती है। जल न्यूनता के फलस्वरूप प्रकाश अवशोषण क्षमता में कमी, CO2  अवशोषण में कमी, पर्णहरित संश्लेषण इत्यादि में कमी आती है। इन सभी प्रभावों से स्वतः ही प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है।

  1. खनिज (Minerals)

पर्णहरित का अवयवी खनिज मैग्नीशियम (Mg) होता है। Fe, Cu, Mn पर्णहरित संश्लेषण के लिए अतिआवश्यक तत्व होते हैं। Mn जल के प्रकाश अपघटन के लिए, Pऊर्जा अणु ATP के लिए तथा S, K इत्यादि खनिज विकरों की सक्रियता के लिए अतिआवश्यक होते हैं।

  1. प्रदूषक (Pollutants )

धुआं एवं धूल प्रकाश तीव्रता को कम करते हैं। ओज़ोन (Ozone), नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (nitrogen oxides), हाइड्रोजन फ्लोराइड्स (hydrogen flourides) कोशिकांगों एवं विकरों को प्रभावित करते हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है।

आन्तरिक कारक (Internal factors)

  1. पर्णहरित (Chorophyll)

पर्णहरित प्रकाश अवशोषण के लिए अतिआवश्यक होता है। पर्णहरित रहित पर्ण (variegated leaf) में स्टार्च अनुपस्थित होता है। विलस्टार्टर एवं स्टोल (Willstater and Stoll) ने प्रकाश संश्लेषी संख्या ( Photosynthetic number) अथवा स्वांगीकरण संख्या (assimilator number) के आधार पर पर्णहरित एवं प्रकाशसंश्लेषी संख्या का संबंध व्यक्त किया। एक ग्राम पर्णहरित के द्वारा एक घन्टे में अवशोषित CO2  की मात्रा को प्रकाश संश्लेषी संख्या (photosynthetic number) कहते हैं। उन्होंने पाया कि यह संख्या विभिन्न प्रजातियों में भिन्न होती है। इससे प्रकाश संश्लेषण एवं पर्णहरित के मध्य कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित नहीं होता है। सामान्यतः पर्णहरित सीमाकारी कारक (limiting factor) नही है। परन्तु केरोटीनाइड प्रकाश संश्लेषण को बाधित करते हैं।

  1. आयु (Age)

प्रकाश संश्लेषण की दर अपरिपक्व से परिपक्व पर्णों की ओर बढ़ती है। इसके बाद यह घट जाती है।

  1. पर्ण की शारीरी (Anatomy of leaf)

पर्ण की शारीरी से CO2  का विसरण, प्रकाश की उपलब्धता एवं वितरण एवं प्रकाश संश्लेषी उत्पाद का अभिगमन (transport) प्रभावित होता है। इसलिए प्रकाश संश्लेषण भी प्रभावित होता है।

  1. जीवद्रव्य का जलायोजन (Hydration of protoplasm) –

जीवद्रव्य का जलायोजन कम होने से प्रकाश संश्लेषण कम होता है।

  1. प्रकाशसंश्लेषी उत्पाद का संचयन (Accumulation of photosynthetic end products –

हरी कोशिकाओं में प्रकाशसंश्लेषी उत्पाद के संचयन से प्रकाश संश्लेषण कम होता है।

जीवाण्विक प्रकाश संश्लेषण (Bacterial photosynthesis)

जीवाणुओं में जीवाणुपर्णहरित (बैंगनी रंग ) (bacteriochlorophyll) अथवा बैक्टीरियोविरिडन (bacterioviridin) वर्णक पाये जाते हैं। ये वर्णक अवरक्त विकिरणों (infrared ray) का अवशोषण करते हैं। जीवाणुओं में O2  मुक्त नहीं होती क्योंकि यहाँ हाइड्रोजन दाता जल न होकर अन्य यौगिक होते हैं। प्रकाश संश्लेषी जीवाणु प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते है। प्रकाश संश्लेषी जीवाणु (Photosynthetic bacteria)

(i) हरित गंधक जीवाणु एंव बैंगनी गंधक जीवाणु (Green sulphur bacteria and purple sulphur bacteria)- इन जीवाणुओं में जीवाणु क्लोरोफिल a अथवा b वर्णक होता है। ये जीवाणु हाइड्रोजन सल्फाइड उपयोग में लेते हैं तथा गंधक एवं ऊर्जा मुक्त करते हैं ।

2 H2S+CO2  प्रकाश → (CH2O) + 2S + H2O + ऊर्जा

(ii) बैंगनी गंधकरहित जीवाणु (Purple non-sulphur bacteria)- यह जीवाणु सामान्य कार्बनिक पदार्थों जैसे कार्बनिक अम्ल (carbonic acid), एल्कोहॉल (alcohol) इत्यादि में पाये जाते हैं। ये इन पदार्थों को प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीकृत कर देते हैं तथा CO2  को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करते हैं। इन जीवाणुओं द्वारा आइसोप्रोपिल एल्कोहॉल (isopropyl alcohol) को एसीटोन (acetone) में परिवर्तित हो जाता हैं।

2CH3 CHOH.CH3+ CO2 प्रकाश ऊर्जा (Light energy)  (CH2O)3 + 2CH2 COCH3 + H2O

आइसोप्रोपिल एल्कोहॉल (Isopropyl alcohol)                एसीटोन (acetone)

रसायन संश्लेषी जीवाणु (Chemosythetic bacteria)

यह जीवाणु अकार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग CO2 के स्थिरीकरण में करते हैं।

  • नाइट्रीकारी जीवाणु (Nitrifying bacteria)- (a) नाट्रोसोमोनास (Nitrosomonas ) एवं नाइट्रोस्पाइरा (Nitrospira), में अमोनियम आयनों के ऑक्सीकरण से ऊर्जा उत्पन्न होती है।

2NH4 OH + 3O→ 2HNO2  + 4H2 O + ऊर्जा (158 cal)

(b) नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) एवं बेक्ट्रोडरमा (Bacteroderma) में नाइट्राइट के नाइट्राइट ऑक्सीकरण से उत्पन्न होते हैं।

2UINO2 + O2HNO3  + ऊर्जा (38 cal)

  • रंगहीन गंधक जीवाणु (Colourless sulphur bacteria) थोयाबेसिलस कन्सरेटीवोरस (Thiobacill conceretivorous) कंक्रीट का क्षरण (corrosion) कर सल्फाइड एवं सल्फर का प्रयोग करके ऊर्जा मुक्त करते हैं।

2S + 3O2 + 2H2O2 → 2H2SO4 + ऊर्जा (Energy)

बेग्गीएटोआ स्पीशीज (Beggiatoa spp) हाइड्रोजन सल्फाइड का प्रयोग करते हैं ।

2H2S + O → 2S+2H2O + ऊर्जा (65 cal)

2S + 3O2 + 2H2O →  2H2SO4 + Energy ( 282 cal)

(ii) लौह जीवाणु (Iron bacteria)- यह जीवाणु फेरस ( ferrous) एवं फेरिक (ferric) यौगिकों का ऑक्सीकरण कर ऊर्जा मुक्त करते हैं। उदाहरण- स्पाइरोफिलम (Spirophyllum), लेप्टोथ्रिक्स (Leptothrix) इत्यादि ।

2 FeCO3 + O2 + H2O → 2Fe (OH)2 + 4CO2  + ऊर्जा (81 cal)

प्रकाश संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ प्रयोग ( Some experiments of photosynthesis)

  1. हरे पादपों में प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन की विमुक्ति का प्रदर्शन (To prove that oxygen is evolved in photosynthesis in green plants)

एक जलीय पादप हाइड्रिला (Hydrilla) की टहनी को जल में काट कर एक जल से भरे बीकर में रखा जाता है। अब इस पर काँच की कीप को उल्टा करके रख दिया जाता है। यह कीप इस प्रकार रखी जाती है कि पादप के कटे स्तम्भ के भाग कीप की ग्रीवा की ओर होते हैं। अब एक जल से भरी परखनली को कीप की नली पर उल्टा रख दिया जाता है तथा सम्पूर्ण उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाता है।

कुछ समय पश्चात सतत रूप से बुलबुले निकलते हुए देखे जा सकते हैं जो परखनली में जल को विस्थापित कर देते हैं। परखनली में गैस का प्रेक्षण करने पर यह O2  पायी जाती है। यह विमुक्त O2 हरे पादपो द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में उत्पन्न होती है।

  1. प्रकाश संश्लेषण में स्टार्च के बनने का प्रदर्शन

 (To prove that starch is formed in photosynthesis) एक गमले में लगे हुए पौधे को 2-3 दिन तक स्टार्च विमुक्त करने के लिए अन्धकार में रखते हैं। अब एक स्टार्च मुक्त पर्ण को पहले जल में तथा फिर से 70% एथिल ऐल्कोहॉल में उबाला जाता है। उपरोक्त क्रिया से पर्णहरित के घुल जाने से पर्ण रंगहीन हो जाती है। अब पर्ण को जल से धोया जाता है। इस पर्ण में आयोडीन घोल से स्टार्च की उपस्थिति के लिए परीक्षण किया जाता है। पर्ण रंगहीन दिखती है जो ऋणात्मक स्टार्च प्रेक्षण का प्रतीक है। अब पादप को प्रकाश में 8 घन्टे तक रखा जाता है तथा पत्ती का फिर से स्टार्च का प्रेक्षण किया जाता है। पर्ण नीला-बैंगनी रंग दर्शाती है जो कि इसमें स्टार्च की उपस्थिति दर्शाती है।

  1. प्रकाश संश्लेषण मे प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन

(To prove that light is essential for photosynthesis)

एक गमले में लगे हुए पादप को अंधेरे में रख कर स्टार्च मुक्त कर दिया जाता है। स्टार्च रहित पादप की पर्ण को गैनांग प्रकाश स्क्रीन में लगाया जाता है। इस पौधे को एक दिन के लिए प्रकाश में रखा जाता है।

पर्ण को स्टार्च की उपस्थिति के लिए प्रेक्षित किया जाता है। प्रकाश रहित क्षेत्र रंगहीन तथा प्रकाश युक्त क्षेत्र नीला दिखता है।

  1. प्रकाश संश्लेषण में CO2 की आवश्यकता का प्रदर्शन

(To prove that CO2 is essential for photosynthesis)

(मोल की अर्ध पर्ण का प्रयोग )

गमले में लगे एक पौधे को 2-3 दिन तक अंधेरे में रख कर स्टार्च रहित किया जाता है।

अब एक चौड़े मुख की बोतल में सांद्र KOH का घोल भर दिया जाता है तथा उसके मुख पर एक कार्क को (दो भागों में बंटा हुआ) से बंद कर दिया जाता है। अब एक स्टार्च रहित पर्ण के आधे भाग को बोतल में कार्क के मध्य से होकर डाल दिया जाता है। सम्पूर्ण उपकरण को 8 घन्टे तक प्रकाश में रख दिया जाता है।।

पर्ण का बोतल के अन्दर का भाग ऋणात्मक स्टार्च टेस्ट एवं बाहर का भाग धनात्मक स्टार्च टेस्ट देता है। सिद्ध होता है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 की आवश्यकता होती है।

  1. प्रकाश संश्लेषण के लिए पर्णरहित की आवश्यकता का प्रदर्शन (To prove that chlorophyll is essential for photosynthesis)

एक चितकबरी (variegated) पर्ण युक्त गमले में लगे हुए पादप को अंधेरे में रख कर स्टार्च रहित कर दिया जाता है। एक पर्ण को लेकर प्रकाश में 8 घन्टे के लिए रखा जाता है।

जब पर्ण का स्टार्च के लिए प्रेक्षण किया जाता है तब सिर्फ पर्णहरित युक्त कोशिकाऐं ही धनात्मक स्टार्च टेस्ट देते हैं नीली हो जाती है ।