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Evolution of Canal System in Sponges in hindi स्पंजों में नाल-तंत्र का उद्विकास एस्कनी नाल साइकॉन के नाल तंत्र का वर्णन कीजिए।

जानेंगे Evolution of Canal System in Sponges in hindi स्पंजों में नाल-तंत्र का उद्विकास एस्कनी नाल साइकॉन के नाल तंत्र का वर्णन कीजिए।

स्पन्जों में नाल-तंत्र का उद्विकास (Evolution of Canal System in Sponges)

परिचय (Introduction)

एक कोशिकीय जीवों में भोजन, उत्सर्जन, श्वसन आदि सभी कार्य एक ही कोशिका अपनी सतह से कर लेती है क्योंकि यह बाह्य वातावरण के सम्पर्क में रहती है। बहुकोशिकीय जीवों में प्रत्येक कोशिका का बाह्य वातावरण से जुड़ा रहना सम्भव नहीं है। इस कारण जीव को किसी न किसी प्रकार के संचरण तंत्र की आवश्यकता पड़ी। स्पंज बहुकोशिकी जलीय जन्तु हैं। अत: इनमें इस समस्या से निपटने हेतु जल का ही उपयोग हुआ। जल इनके शरीर में अनेक छिद्रों में प्रवेश करता है तथा शरीर में उपस्थित नालों (canals) से होता हुआ बाहर निकल जाता है। इनके शरीर में जल का बहाव बनाए रखने हेतु कशाभयुक्त (flagellated) विशेष कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो कॉलर कोशिकाएँ (collor cells) या कोएनॉसाइट (choanocyte) कहलाती है। जल के बहाव के दौरान जल में मौजूद भोजन योग्य पदार्थ कॉलर कोशिकाओं व आर्किओसाइट (archeocyte) द्वारा अन्तर्ग्रहित कर लिए जाते हैं। संघ पॉरीफेरा के सदस्यों में पाए जाने वाले इस नालों व रंध्रों के तंत्र को नाल – तंत्र कहते हैं। यह तंत्र स्पन्जों में अनेक प्रकार के कार्य करता है तथा संघ पॉरीफेरा की विशिष्टता है।

श्वसन हेतु ऑक्सीजन इसी नाल तन्त्र से गुजरते जल से प्राप्त की जाती है तथा श्वसन से उत्पन्न कार्बन डाई ऑक्साइड भी जल में विसरित कर दी जाती है। उत्सर्जन भी सीधे ही जल में होता है। अतः पोषण, श्वसन उत्सर्जन एवं जनन सम्बन्धी सभी कार्यों का सम्पादन नाल तंत्र के माध्यम से पूरा किया जाता है।

जैसा कि पहले कहा गया है स्पन्जों में जल बहाव हेतु जो मार्ग पाया जाता है वह सम्मिलित रूप से नाल-तन्त्र (canal system) कहलाता प्रारम्भिक या पुरातन स्स्पन्जों में नाल – तंत्र सरल प्रकार का था जिसकी तुलना एक ऐसे छिद्रित कलश से की जा सकती है जिसमें अनेक छिद्रों से पानी अन्दर घुसता हो तथा इसके मुख से बाहर निकल जाता हो । स्पन्जों के सभी नाल तन्त्र उपरोक्त वर्णित नाल तन्त्र की तरह सरल नहीं है वरन् उद्विकास से कुछ अन्य प्रकार के नाल तंत्र भी उत्पन्न हुए हैं। नाल तंत्र के उद्विकास के दौरान नाल तंत्र जटिल होता गया, इसमें कोएनोसाइट्स का वितरण कम होते-होते कशाभि प्रकोष्ठों तक सीमित हो जाता है व स्पंजगुहा का आकार घटता जाता है। उद्विकास की दृष्टि से विकसित हुए इन नाल तन्त्रों का वर्णन यहाँ किया जा रहा है।

  1. एस्कनी नाल – तन्त्र (Asconoid Canal System)

पुरातन स्पन्जों का नाल – तंत्र बहुत सरल था। इन स्पन्जों का शरीर एक ऐसे थैले या कलश (vase) की आकृति का था जिसकी पतली भित्ति पर अनेक छिद्र मौजूद हों। ये छिद्र ऑस्य या ऑस्टिया (ostia) कहलाते हैं। प्रत्येक ऑस्टियम ( ostium) एक विशेष कोशिका के मध्य में उपस्थित एक छिद्र है। यह कोशिका रन्ध्र कोशिका या पोरोसाइट ( porocyte) कहलाती है। रन्ध्र कोशिका संकुचन द्वारा अपने रन्ध्र को बन्द कर सकती है। यह रन्ध्र अन्दर एक बड़े परिकोष्ठ (atrium) या स्पन्जगुहा (spongocoel) में खुलता है। स्पन्जगुहा एक बड़े रन्ध्र प्रास्य या ऑस्कुलम (osculum) द्वारा पुनः बाहर की ओर खुलती है। इस प्रकार का नाल तन्त्र एस्कनी नाल तन्त्र (ascon type canal system) कहलाता है चित्र । ( 1-A ) ।

जिन स्पंजों में इस प्रकार का नाल- तंत्र मिलता है उन्हें एस्कॉन कोटि (ascon grade ) की स्पंज या एस्कॉनाभ (asconoid) स्पंज कहते हैं । इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द एस्कॉस (askos) से हुई है जिसका आशय है चमड़े की बोतल ।

एस्कनी नाल – तन्त्र की विशेषता यह है कि इसमें सम्पूर्ण स्पन्जगुहा में कॉलर कोशिकाएँ (choanocytes) पाई जाती है जो कशाभ युक्त होती है। कोएनोसाइट कशाभ कोशिकाओं के कार्य से आप अशन के अध्याय में परिचित हो चुके हैं। इनके कशाभ स्पन्दन कर नाल-तंत्र में जाल का बहाव बनाए रखते हैं जिससे भोजन व ऑक्सीजन युक्त स्पन्ज के शरीर में प्रवेश करता रहता है तथा CO2 व अपशिष्ट पदार्थों युक्त जल प्रास्य से बाहर निकलता रहता है। इनके शरीर की दीवार भी पतली होती है। इस तरह की स्पन्ज आकार में सामान्यतया छोटी ही होती है क्योंकि अधिक बड़ी स्पन्जगुहा के जल को बाहर धकेलने के लिए गुहा की सतह की कॉलर कोशिकाएँ पर्याप्त नहीं हो है। एस्कनी नाल तन्त्र ल्यूकोसोलेनिया (Leucosolenia) में पाया जाता है।

एस्कनाभ स्पन्जों की बाहरी सतह पिनेकोडर्म (pinacoderm) कहलाती है। यह सपाट कोशिकाओं या पिनेकोसाइट (pinacocyte) की बनी होती है। इस सतह पर मौजूद रन्ध्र कोशिकाएँ (porocytes) भी सपाट कोशिकाओं का ही रूपान्तरण है। आन्तरिक सतह कशाभ युक्त होती है तथा यह कोएनोडर्म (choanoderm) कहलाती है। इन दोनों सतहों के मध्य जिलेटिनी प्रोटीनी मैट्रिक्स सतह पाई जाती है जो मीसोहाइल (mesohyl) कहलाती हैं इसमें अमीबाभ कोशिकाएँ तथा कटिकाएँ पाई जाती हैं।

  1. साइकनी नाल – तन्त्र (Syconoid Canal System)

एस्कनाभ स्पन्जों में एट्रियम या स्पन्ज गुहा के बड़े आकार के कारण सतह पर उपस्थित कॉलर कोशिकाएँ अधिक वेग से जल को बाहर नहीं धकेल पाती हैं। ऐसे में एस्कनी स्पन्जे एक निश्चित सीमा से अधिक वृद्धि नहीं कर सकती हैं क्योंकि वृद्धि होने से स्पन्जगुहा के जल आयतन में गुहा की सतह के मुकाबले अधिक वृद्धि होगी। इसके परिणामस्वरूप सतह पर उपस्थित कॉलर कोशिकाएँ जल को बाहर नहीं धकेल पाएंगी।

इस समस्या का एक हल उद्विकास के दौरान उत्पन्न हुआ। स्पन्जगुहा का आकार घटाने व स्पन्ज की दीवार के अन्तर्वलन से इस समस्या का हल निकला (चित्र 1 – A व 1-B ) । अन्तर्वलन के परिणामस्वरूप बाहर व अन्दर दोनों ओर खुलने वाली अन्ध नालों (blind canals) की उत्पत्ति हुई। बाहर की ओर खुलने वाली नाल अन्तर्वाही नाल (incurrent canal) कहलायी । यह पिनेकोसाइट से बनी होती है। अन्दर की ओर खुलने वाली नाल अरीय नाल (radial canal ) कहलाती है। ये कोएनोसाइट या कॉलर कोशिकाओं से रेखित होती है । अन्तर्वाही व अरीय नालों में एकान्तरण मिलता है। दोनों नालों के बीच एक दीवार होती है परन्तु यह अनेक स्थानों पर रन्ध्रयुक्त होती है। ये छिद्र आगम द्वार या प्रोसोपाइल (prosopyle) कहलाते हैं। ये प्रोसोपाइल एस्कनी प्रकार के रन्ध्रों के समतुल्य है परन्तु ये रन्ध्र एक कोशिका ( single cell ) या पोरोसाइट से नहीं बने होते हैं।

इस प्रकार के नाल तन्त्र में जल का मार्ग निम्न प्रकार से होता हैऑस्य (ostium) → अन्तर्वाहीनाल ( Incurrent canal )→ आगम द्वार (Prosopyle)

स्पन्जगुहा (Spongocoel) -अपद्वार (Apopyle) ← अरीय नाल (Radial canal)

प्रास्य (Osculum) – बाहर

इस तरह का नाल तंत्र साइकन (Sycon) या स्काइफा ( Scypha ) में पाया जाता है। इस साइकनी नाल तन्त्र की विशेषता यह है कि इसमें समस्त स्पन्ज गुहा कॉलर कोशिकाओं

से रेखित नहीं होती बल्कि सिर्फ अरीय नालों (radial canals) में ही कॉलर कोशिकाएँ पाई जाती हैं। स्पन्ज गुहा के आकार में भी कमी आती है। इन कारणों से स्पन्ज के आकार में वृद्धि हो सकत

  1. ल्यूकनी नाल-तन्त्र (Leuconoid Canal System)

कुछ अन्य स्पन्जों में चरम सीमा का अन्तर्वलन पाया जाता है। इस अन्तर्वलन के कारण कशाभी स्तर भी अनेक छोटे-छोटे कक्षों में बंट जाता है तथा स्पन्जगुहा लगभग समाप्त हो जाती है। इस के नाल तंत्र में जल सर्वप्रथम चर्मीय रंध्रों (dermal pores) से निकल कर शाखित अन्तर्वाही नाल में पहुँचता है। इसके उपरान्त यह छोटे कशाभी कोष्ठों में पहुँचता है। इन कोष्ठों में कशाभ के स्पन्दन से जल धारा का संवहन होता है। इन कोष्ठों से जल अपद्वार या एपोपाइल (Apopyle) से होता हुआ बहिर्वाही नाल (excurrent canal) में पहुँचता है । बहिर्वाही नाल ऐसी अन्य नालों से मिलकर उत्तरोत्तर आकार में बढ़ जाती है तथा प्रास्य या आस्कुलम के द्वारा बाहर खुल जाती है। इस प्रकार की संरचना प्रदर्शित करने वाला नाल – तन्त्र ल्यूकनी नाल तंत्र (Leuconoid Canal System) कहलाता है। यह सबसे अधिक प्रभावी नाल तन्त्र है। यही कारण है कि अधिकांश स्पन्जों में इस प्रकार का नाल तंत्र मिलता है। इस नाल – तंत्र से युक्त स्पंज आकार में भी बहुत अधिक वृद्धि कर सकती हैं। इस प्रकार का नाल तंत्र स्पॉन्जिला (Spongilla), जिओडिया (Geodia) आदि में मिलता है। इस नाल तन्त्र की निम्न विशेषताएँ हैं

(i) अरीय नालें (radial canal ) अस्पष्ट या अनुपस्थित होती है। कॉलर कोशिकाएँ अनेक छोटे-छोटे कोष्ठों में मिलती है।

(ii) कशाभी कोष्ठ या कक्ष स्पन्जगुहा में न खुलकर बहिर्वाही नाल (excurrent canal) में खुलते हैं।

(iii) स्पन्जगुहा अस्पष्ट या अनुपस्थित होती है।

(iv) मीसोहाइल (mesohyl) अधिक बड़ी होती है।

ल्यूकनी नाल तन्त्र के प्रमुख रूप से तीन स्वरूप पाए जाते हैं। ये स्वरूप निम्न हैं

(1) अधिद्वारीय प्रकार (Eurypylous type) :

यह पुरातन ल्यूकनी नाल तन्त्र है। इसमें जल का मार्ग निम्न प्रकार होता है

ऑस्य           अन्तर्वाही नाल                         आगमद्वार             कशाभी कक्ष

(Ostium)      (Incurrent canal )              (Prosopyle)       (Flagellated chamber)

बाहर ←    प्रास्य                   बहिर्वाही नाल                 अपद्वार

(Osculum)     (Excurrent canal )         (apopyle)

इस तरह का नाल तन्त्र प्लेकिना (Plakina) में पाया जाता है।

(2) अपमार्गी प्रकार ( Aphodal type) :

इस प्रकार का नाल तन्त्र अधिद्वारीय प्रकार जैसा ही होता है परन्तु इनमें कशाभी कक्ष व बहिर्वाही नाल के बीच एक छिद्र ( apopyle) के स्थान पर एक संकरी नाल मिलती है जिसे अपमार्ग या एफोडस (aphodas) कहा जाता है। इस नाल तन्त्र में जल धारा निम्न प्रकार से बहती है

ऑस्य    à        अन्तर्वाही नाल      आगमद्वार  à   कशाभी कक्ष à अपमार्ग à बहिर्वाही नाल à प्रास्य à बाहर

(Incurrent canal )

जिओडिया (Geodia ) व स्टेलैटा (Stellata) में इस तरह का नाल तन्त्र मिलता है।

(3) द्विमार्गी प्रकार का डिप्लोडल (Diplodal type) :

कुछ अन्य स्पन्जों में अपमार्ग (aphodus) तो पाया ही जाता है साथ ही कशाभी कक्ष व अन्तर्वाही नाल के बीच भी एक पतला मार्ग भी पाया जाता है जो अभिमार्ग या प्रोसोडस (prosodus) कहलाता है। दो मार्गों की उपस्थिति के कारण यह प्रकार द्विमार्गी या डिप्लोडल कहलाता है। । यह स्पॉन्जिला (Spongilla), ऑस्करैला (Oscarella) आदि स्पन्जों में पाया जाता है। इसमें जल धारा निम्न पथ से बहती है

रैगनी नाल तन्त्र (Rhagon type canal system) :

इस तरह का नाल तन्त्र किसी वयस्क स्पन्ज में नहीं पाया जाता है। डेमोस्पन्जिआई (Demospongiae) ) वर्ग की स्पन्जों में ल्यूकनी प्रकार के नाल तन्त्र का परिवर्द्धन एक लार्वोत्तर अवस्था से होता है। यह रेगॉन (rhagon ) अवस्था कहलाती है तथा इसमें मिलने वाला नाल तन्त्र रैगनी नाल तन्त्र कहलाता है। इस नाल तन्त्र में स्पन्ज की भित्ति अधिक मोटी होती है तथा इसमें कशाभी कक्ष पाए जाते हैं।

नाल तंत्र का महत्त्व (Significance of canal system)

नाल तंत्र स्पन्जों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि स्पंजों की समस्त जैविक क्रियाओं का सम्पादन इसी तंत्र के माध्यम से किया जाता है। यदि किसी स्पंज के ऑस्टिया व ऑस्कुलम को सील कर दिया जाये तो स्पंज की मृत्यु हो जाती है, क्योंकि इन छिद्रों को सील कर देने से जल प्रवाह रूक जायेगा व समस्त जैविक क्रियाऐं बन्द हो जायेगी जिससे स्पंज की मृत्यु हो जायेगी।

चूँकि स्पंज एक स्थानबद्ध जन्तु होता है अतः नाल तंत्र ही सभी जैविक क्रियाओं को पूरा करता है। नाल तंत्र में प्रवाहित होने वाला जल निम्न क्रियाओं के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है :

  • पोषण – भीतर आने वाली जल धारा के साथ आने वाले भोज्य पदार्थों को स्पंज कोशिकाओं द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।

( 2 ) श्वसन – नाल तंत्र में प्रवाहित हेने वाले जल के सम्पर्क में प्रत्येक कोशिका आती है अत: विसरण विधि द्वारा जल में घुलित ऑक्सीजन ग्रहण कर कार्बनडाइ ऑक्साइड को बाहर जाने वाले जल में मुक्त कर दिया जाता है।

( 3 ) उत्सर्जन- नाल तंत्र में प्रवाहित होने वाले जल में अमोनिया व अन्य उत्सर्जी पदार्थ विसरित कर दिये जाते हैं जिन्हें बर्हिवाही जल द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

(4) जनन- स्पंजों में परनिषेचन पाया जाता है अतः शुक्राणु अर्न्तवाही जलधारा के माध्यम से भीतर प्रवेश कर निषेचन में सहायक होता है।

(5) वर्गीकरण – उद्विकासीय नाल तंत्र की जटिलता स्पजों के वर्गीकरण का आधार है।

प्रश्न    (Questions)

लघुउत्तरीय प्रश्न

  1. नाल – तंत्र का वह रंध्र जिससे जल स्पन्ज शरीर में प्रवेश करता है।
  2. नाल – तंत्र का वह रंध्र जिससे जल शरीर के बाहर निकलता है।
  3. वह कोशिका जिसमें एस्कनी नाल – तंत्र का आस्य पाया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

  1. स्पन्जों में नाल तन्त्र की क्या उपयोगिता है ? जल का बहाव बनाए रखने में कौन- सी कोशिकाएँ सहायता करती है। स्पष्ट कीजिए ।
  2. वयस्क स्पन्जों में कितने प्रकार के नाल – तंत्र पाये जाते हैं ? सरलतम नाल – तंत्र को आधार मानते हुए सभी का मय उपयुक्त उदाहरण, सचित्र वर्णन कीजिए ।
  3. ल्यूकनी नाल-तंत्र में ऐसी कौन सी रचनाएँ पाई जाती हैं जो कि साइकनी नाल तंत्र में नहीं पाई जाती है ? विभिन्न प्रकार के ल्यूकनी नाल – तंत्रों का उदाहरण देकर समझाइये। प्रत्येक प्रकार के उदाहरण व नामांकित चित्र भी बनाइये ।
  4. रैगनी नाल तंत्र क्या है ? स्पष्ट कीजिए ।
  5. स्पंजों में नाल तंत्र के क्रम का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए ।
  6. सायकन प्रकार के नाल तंत्र पर टिप्पणी लिखिये ।