कुकुमेरिया या होलोथुरिया क्या है , वर्गीकरण , वंश , जाति , वर्ग Cucumaria or Holothuria in hindi
Cucumaria or Holothuria in hindi कुकुमेरिया या होलोथुरिया क्या है , वर्गीकरण , वंश , जाति , वर्ग ?
कुकुमेरिया या होलोथुरिया (Cucumaria or Holothuria)
वर्गीकरण (Classification) संघ (Phylum) – इकाइनोडर्मेटा (Echinodermeta)
कंटकीय त्वचा, त्रिजनस्तरीय, देहगुहीय, पंच अरीय सममिति, शारीरिक गठन अंग तन्त्र स्तर तक का, शरीर अखण्डित, शरीर में सिर का अभाव, वीथि खांचें उपस्थित, गमन नाल पाद द्वारा।
वर्ग (Class) : होलोथुरॉइडिया (Holothuroidea)
भुजाओं व शूलों का अभाव, शरीर लम्बा खीरे के समान, मुख आगे की ओर स्पर्शकों से घिरा हुआ, वीथि खांचे छिपी हुई, नाल पाद चूषक युक्त, श्वसन हेतु श्वसन वृक्ष पाया जाता है।
गण (Order) : डेन्ड्रोकाइरॉटा (Dendrochiroto)
स्पर्शक अनियमित रूप से शाखित, वीथि क्षेत्रों या सम्पूर्ण सतह पर असंख्य नाल पाद, श्वसन वृक्ष पाया जाता है।
वंश (Genus) : कुकुमेरिया (Cucumaria)
जाति (Species) : प्लेन्की (planci)
आवास एवं स्वभाव (Habit and habital)
कुकुमेरिया एक समुद्री प्राणी होता है। यह लगभग सभी समुद्रों में पाया जाता है। ये समुद्री जल में छिछले से अति गहरे पानी में पाया जाता है। यह नितलस्थ (banthoic) व सुस्त जन्तु होता है। कुछ जन्तु चट्टानों की दरारों, प्रवालों व समुद्री वनस्पतियों के मध्य भी पाये जाते हैं। परन्त अधि कांश जन्तु रेतीले तल पर निवास करते हैं। रेतीले तल पर या तो ये पूर्णरूप से खुले या पूर्णरूप से या अधूरे रेत या कीचड में धंसे रहते हैं। यदि इन्हें छेड़ दिया जाये तो ये धीरे से संकुचित हो जाते हैं। कुकुमेरिया प्लावक भोजी होता है (plankton feeder) या रेत में उपस्थित कार्बनिक कणों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। यह सुस्त प्रकृति का जन्तु होता है जो नाल पादों द्वारा या शरीर के पेशीय संकुचन द्वारा गमन करता है। कैरापस (Carapus) जाति की मछली समुद्री खीरे का उपयोग अपनी शरण के लिए करती है।
बाह्य अकारिकी (External morphology)
आकार एवं आकृति (Shape and Size): कुकुमेरिया का शरीर ककड़ी या खीरे के समान लम्बा व बेलनाकार होता है। इसका शरीर लचीली व चर्मिल त्वचा द्वारा आवृत रहता है। इसके अग्रस्थ अन्तिम सिरे पर मुख व पश्च अन्तस्थ सिरे पर गुदा द्वार पाया जाता है। अग्र मुखीय सिरा जिस पर मुख पाया जाता है वह पश्च सिरे की तुलना में थोड़ा मोटा होता है। अन्य इकाइनोडर्म जन्तुओं की तुलना में की तलना में मुखीय-अप मुखीय अक्ष अधिक लम्बी होती है। अधिकांश इकाइनोडर्म जन्तुओं की मुखीय सतह जमीन की ओर होती है जबकि कुकुमेरिया की मुखीय सतह जमीन के विपरीत और होती है। यह अधर सतह, जो कि थोड़ी चपटी होती है व मुखीय अपमुखीय अक्ष के समानान्तर होती है, को जमीन पर टिका कर विश्राम करता है। इसका शरीर पंच अरीय होता है या इसकी लम्बाई 3 से 30 सेमी. हो सकती है।
मुखीय सिरा (Oral end) : कुकुमेरिया का अग्रस्थ सिरा मुखीय सिरा (oral end) कहलाता है। इस पर एक बड़ा मुख पाया जाता है जो वृत्ताकार ओष्ठ (circular lip) तथा एक पतली गहरे वर्णक युक्त मुखीय या परिमुखीय झिल्ली द्वारा घिरा रहता है। मुख दस अत्यधिक शाखित या दुमाकृतिक (dendritic) वृक्ष समान स्पर्शकों के एक वलय से सीमाकिंत होता है। इनका उपयोग अशन क्रिया के लिए किया जाता है। ये स्पर्शक सम्भवतया विशेष रूप से रूपान्तरित मुखीय अभिवर्धित नाल पाद होते हैं। ये स्पर्शक अत्यधिक संवेदनशील व संकुचनशील होते हैं। कुकुमेरिया के सभी दस स्पर्शक समान आकार के होते हैं। लेकिन कुकुमेरिया की कुछ जातियों जैसे कुकुमेरिया प्लन्का में वह स्पशकों की जोडी जो मध्य अधरीय वीथि क्षेत्र के सम्मुख होती है वह काफी छोटी होती है। ये छोटे स्पर्शक विशेष रूप से भोजन के कणों को मुख में धकेलने के काम लिए जाते छ। स्पर्शकों के आधार पर एक चिकना पतला कॉलर समान क्षेत्र पाया जाता है इसे भीतर खींचने योग्य (introvert) क्षेत्र कहते हैं। जब इसे छेड़ा जाता है तो स्पर्शकों तथा कॉलर को ग्रसनी के चार ओर उपस्थित आंकुचक पेशियों (retractor muscles) द्वारा शरीर के भीतर खींच लिया जाता है।
धड़ (Trunk) : पंच अरीय (pentamerous) धड़ पर पांच मेरिडियोनल या लम्बवत पटिटकाएँ या वीथि क्षेत्र पाये जाते हैं। प्रत्येक पट्टिका या वीथि क्षेत्र में नाल पादों की दोहरी पवित पायी जाती हैं। अधर सतह पर तीन वीथि क्षेत्र या त्रिभुजिका (trivium) होता है जो इसका तला (sole) बनाता है। इन्हीं में अनेक चलनकारी नाल पाद पाये जाते हैं। पृष्ठ सतह पर दो वीथी क्षेत्र या द्विभुजिका (bivium) और तीन अन्तर्वीथि क्षेत्र पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले नाल पाद छोटे होते हैं व चूषक विहीन होते हैं। समस्त नाल पाद केवल पांच वीथि क्षेत्रों तक ही सीमित रहते
बाह्यछिद्र (Enternal Opening) : जैसा की पूर्व में बताया जा चुका है कि अग्र सिरे पर मुख व पश्च सिरे पर गुदा द्वार पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त द्विभुजिका के आधार पर स्पर्शकों के मध्य, मध्यपृष्ठ सतह पर एक जननिक छिद्र पाया जाता है।
देहभित्ति (Body wall) : कुकुमेरिया के शरीर पर कठोर, केल्केरियाई कंकाल नहीं पाया जाता है। इसकी देह भित्ति मोटी, चर्मिल (leathery) चिकनी, मजबूत एवं पेशीय होती है। अपक्ष्माभी उपकला (epidermis) के ऊपर एक पतली क्यूटिकल पायी जाती है। इसकी त्वचा (dermis) में विभिन्न आकृति की सूक्ष्म अस्थिकाएँ पायी जाती है।
इन अस्थिकाओं में से कुछ छिद्र युक्त प्लेट्स पायी जाती है बाकि अन्य पहिये के आकार की (wheel shaped) या लंगर (anchor) के आकार की होती है। त्वचा में पायी जाने वाली पेशियों में बाहरी स्तर वृताकार पेशीय तन्तुओं (circular muscle fibers) का होता है तथा भीतर की ओर वीथि क्षेत्रों के साथ-साथ शक्तिशाली लम्बवत् पेशियों की पांच दोहरी पट्टिकाएं पायी जाती है। इसी तरह ग्रसनी से जुड़ी पांच आकुंचक पेशियाँ पायी जाती है। कई अरीय पेशियाँ भी पायी जाती है जो देह भित्ति से अवस्कर (cloaca) तक फैली रहती है, जो अवस्कर द्वार को चौड़ा करने की क्षमता रखते हैं। देह भित्ति का सबसे आन्तरिक स्तर पक्ष्माभी प्रगुहीय उपकला (coelomic epithelium) का बना होता है।
प्रगुहा (Coelome) : देह भित्ति व आहार नाल के मध्य एक बड़ी परिआन्तरांग गुहा पायी जाती है। यह आन्त्र योजनियों द्वारा थोड़ी सी उपविभाजित रहती है। यह गुहा एक तरल से भरी रहती है जिसमें विभिन्न प्रकार की प्रगुहीय कोशिकाएँ (coelomocytes) पायी जाती है। देहगुहीय तरल में चपटी अण्डकार रक्ताणु (haemocyte) भी पायी जाती है जिनमें लाल रंग का वर्णक या हीमोग्लोबिन पाया जाता है।
पाचन तन्त्र (Digestive system) :
कुकुमेरिया की आहारनाल लम्बी बेलनाकार होती है। आहारनाल देहगुहा में ‘S’ के आकार की आकृति में अपने आप पर घूमी रहती है। यह निम्न भागों से मिलकर बनी होती है। ककमेरिया के अग्र शीर्षस्थ भाग पर स्पर्शकों से घिरा एक बड़ा मुख (mouth) पाया जाता है जो एक छोटे मुखीय प्रकोष्ठ (buccal chamber) या ग्रसनी (phyarynas) में खुलता है। ग्रसनी फिर ग्रसिका (oesophagus) में सतत में रहती है जो परिग्रसिकीय केल्केरियाई वलय से घिरी रहती है। इस वलय शिकाएँ पायी जाती है। इनमें से पांच वीथि क्षेत्र में व पांच अन्तरवीथि क्षेत्र में स्थित होती बड़ी आकंचक पेशियाँ (retractor) एक प्रत्येक रेडियस पर, ग्रसनी की भित्ति से देहभित्ति ली रहती है। ग्रसिका छोटी होती है तथा जल संवहनी व रुधिरीय harma वलय में भी की है। ग्रसिका एक छोटे पेशीय थैले समान संरचना में खलती है जिसे आमाशय को कहते हैं। आमाशय फिर एक लम्बी संकरी, अत्यधिक कुण्डलित नलिका में खुलता है जिसे आन्त्र (intestine) कहते हैं। आन्त्र की भित्ति पतली होती है। यह आन्त्र योजनियों द्वारा देह गुहा में लटकी रहती है। आन्त्र का पहला भाग जो पीछे की तरफ जाता है पृष्ठ आन्त्रयोजनी (dorsal mesentery) द्वारा जुड़ी रहती है। आन्त्र का दूसरा भाग जो आगे की ओर जाता है पार्श्व आत्रयोजनी (lateral mysentery) द्वारा तथा तीसरा भाग जो पुनः पीछे की ओर जाता है अधर आत्रयोजनी (ventral mysentery) से जुड़ा रहता है। अन्त में आन्त्र एक छोटी-चौड़ी व पेशीय अवस्कर (cloaca) में खुलती है जो पश्च सिरे पर उपस्थित गुदा द्वार (anus) द्वारा बाहर खुलती है। अवस्कर कई अरीय पेशियाँ रज्जूओं की सहायता से देह भित्ति से जुड़ी रहती है। इनहें अवसर (cloacal suspensors) कहते हैं। दो अत्यधिक शाखित नलिकाएँ भी जिन्हें श्वसन व (respiratory trees) कहते हैं, अवस्कर में खुलती है।
कुकुमेरिया छोटे-छोटे जीवों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है जिन्हें अपने शाखित स्पर्शकों पर उपस्थित चिपचिपे श्लेष्म की सहायता से पकड़ता है।
समय-समय पर प्रत्येक स्पर्शक को मुख में धकेला जाता है जिससे भोजन को मुँह में छोड़ दिया जाता है।
जल संवहनी तन्त्र (Water vascular system):
अन्य इकाइनोडर्म जन्तुओं की भांति पंचअरीय तर्ज पर ही कुकुमेरिया में भी जल संवहनी तन्त्र पाया जाता है। जल संवहनी तन्त्र में ग्रसिका के चारों तरफ एक वलय नाल (ringcanal) पायी जाती है। यह वलय नाल ग्रसिका के चारों ओर पायी जाने वाली केल्केरियाई नाल के पीछे की ओर स्थित होती है। कुकुमेरिया में वलय नाल से दो बड़े लम्बे पोलियन आशय निकलते है व प्रगुहा (सीलोम) में लटके रहते हैं। वलय नाल से ही एक छोटी अश्म नाल (stone canal) निकलती है जो मेड्रिपोराइट (madriporite ) द्वारा सीलोम में खुलती है। पोलियन आशय व अश्मनाल की संख्या जातियों के अनुसार परिवर्तनशील होती है। चूँकि मेड्रिपोराइट सीलोम में खुलता है अतः जल सवंहनी तन्त्र में सीलोमिक या प्रगुहीय द्रव भरा रहता है। वलय नाल से ही पांच अरीय नालें निकलती है। ये अरीय नालें परिग्रसिकीय अस्थिकाओं (circum oesophageal ossicles) के नीचे होती हुई आगे की ओर जाती है तथा इनसे शाखाएँ निकल कर स्पर्शकों को जाती है। फिर से अरीय नाले पीछे की ओर घूम कर पांच लम्बवत् पेशीय पट्टिकाओं (longitudinal muscle bands) के नीचे होती हुई वीथि क्षेत्र की देह भित्ति के सहारे सहारे आगे बढ़ती है। रास्ते में इनसे कई पार्श्व शाखाएँ निकल कर बाह्य नाल पादों को जाती है। प्रत्येक नाल पाद स्वयं की तुम्बिका द्वारा सुसज्जित रहता है।
रक्त परिसंचरण तन्त्र (Blood vascular system) :
अन्य इकाइनोडर्म जन्तुओं की तरह इनमें भी हीमल (रूधिर ) (heamel) व परिहीमल या परिरूधिर (perihaemal) तन्त्र पाये जाते हैं।
हीमल या अवकाशी तन्त्र ( locunar system) में एक मुख रूधिर वलय (oral haemal rings) या परिग्रसिकीय वलय (circum oesophageal ring) पायी जाती है जो वृताकार रूधिर कोटर होती है। यह मुख के चारों ओर स्थित जल संवहनी तन्त्र की वलय नाल के ठीक नीचे पायी जाती है। मुख रूधिर वलय से आगे की ओर पांच अरीय रूधिर वाहिकाएँ निकलती है जो जल संवहनी तन्त्र की अरीय नाल के साथ-साथ पायी जाती है। इनसे नाल पादों को छोटी-छोटी शाखाएँ जाती है।
मुख रूधिर वलय से पीछे की ओर दो रूधिर वाहिकाएँ या कोटर निकल कर आहारनाल में जाती है। इनमें एक आमाशय के ऊपर होकर गुजरती है जिसे पृष्ठ या आन्त्र योजनीय वाहिका (dorsal or mesenterial vessel) कहते हैं। दूसरी वाहिका या कोटर आमाशय नीचे होकर गुजरती है जिसे अधर या विरोधी आन्त्र योजनीय वाहिका ( ventral or antimesenterial vessel) कहते हैं। इन दोनों वाहिकाओं से कई शाखाएँ निकल कर आन्त्रीय भित्ति को जाती है। अधर कोटर के अवरोही व आरोही भाग आन्त्र के समरूपी भाग के एक सिरे से दूसरे तक वाहिकाओं का एक जाल बनाते हैं जो अधर आन्त्र योजनी व नजदीक ही उपस्थित श्वसन वृक्ष के गुच्छ को रक्त आपूर्ति करता है । पृष्ठ कोटर (dorsal sinus) के अवरोही व आरोही भागों के मध्य एक प्रमुख अनुप्रस्थ संयोजन (transverse connection) पाया जाता है। कुकुमेरिया में अक्षीय अंग अनुपस्थित होते हैं।
कुकुमेरिया के परिहीमल या परिरूधिर तन्त्र में अपमुखीय कोटर (aboral sinus) जननिक अक्ष (genital racis) तथा अक्षीय कोटर (axial sinus) अनुपस्थित होते हैं।
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