glochidium larva of unio in hindi लेमेलीडेन्स ग्लॉकिडियम लार्वा यूनियो में क्या है सीप किसे कहते हैं
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ग्लॉकिडियम लार्वा (Glochidium larva)
लेमेलिडेन्स एक स्वच्छ जल की सीपी है। इसका लार्वा ग्लॉकिडियम कहलाता है। ग्लॉकिडियम लार्वा स्वतंत्र जीवी या मुक्त जीवी नहीं होता। यह भोजन व प्रकीर्णन (dispersal) हेत मछलियों पर निर्भर होता है। ग्लोकिडियम शब्द की उत्पत्ति जिस शब्द से हुई है उसका अर्थ है-तीर की नोक।
सामान्यतया एक सीपी तीस लाख तक लार्वा उत्पन्न करती है। ये लार्वा युग्मक अवस्था से लेकर प्रारम्भिक लार्वल अवस्था तक सीपी के शरीर में ही परिवर्धित होते है। इन्हें पोषण गिल्स के नावों से मिलता है। एक परिपक्व लार्वा जो सामान्यतया 0.4 मि.मि. का होता है सुप्राब्रैन्कियल चैम्बर में छोड़ दिया जाता है। यहाँ से यह बर्हिवाही साइफन (exhalent siphon) से बाहर निकल कर जल में आ जाता है। ग्लॉकिडियम लार्वा में तैरने की क्षमता नहीं होती अत: या तो ये पैदे में बैठ जाते हैं अथवा जल धारा के साथ इधर-उधर बह जाते हैं।
एक ग्लॉकिडियम (बहुवचन = ग्लॉकिडियम) आकृति में वयस्क सीपी जैसा ही दिखाई देता है। इसमें दो नाजुक पतले कवच पाए जाते हैं जो एक कब्जे या हिन्ज (hinge) से जुड़े होते हैं। कब्ज के निकट आन्तरिक भाग में एक अभिवर्तनी पेशी (adductor muscle) पाई जाती है। कवच म कब्जे की विपरीत दिशा में कुछ जातियों के ग्लॉकिडियम में अंकुश पाए जाते हैं। ये अंकुश (hooks) परपोषी के शरीर से आंसजन के काम आते हैं। कवच की आन्तरिक सतह पर एक कोशिकीय स पाया जाता है जो प्रावार (mantle) बनाता है। कवच में एक सूत्रगुच्छ या बाइसस (byssus) पाया जाता है। यह बाइसस सभी जातियों के ग्लॉकिडिया में पाया जाए यह आवश्यक नहीं है।
लार्वा गमन व पोषण नहीं कर पाते। इन्हें आगे परिवर्धित होने हेतु परपोषी की आवश्यकता होती है। मछलियाँ परपोषण का कार्य करती है। कुछ जातियों के लार्वा खास जातियों की मछलियों में ही पनप सकते हैं तो कुछ अनेक जाति की मछलियाँ को परपोषी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। जिन लार्वाओं को निश्चित समय तक परपोषी नहीं मिल पाते उनकी मृत्यु हो जाती है।
बाइसस युक्त लार्वा इसे बाहर फैला कर जल के तल में पड़े रहते हैं। जब कोई मछली यहाँ से गुजरती है तो ग्लाकिडियम इससे चिपक जाते हैं। अंकुश युक्त लार्वा अंकुशों (hooks) से आसंजन करते हैं जबकि अंकुशविहीन (hookless ) लार्वा मछली द्वारा श्वसन हेतु खींचे जा रहे जल के साथ .गिल तक पहुँच जाते हैं। इस तरह लार्वा त्वचा, गिल या पंखों पर चिपक कर परपोषी मछली की त्वचा को इस तरह प्रेरित करते हैं कि इनके चारों ओर एक भित्ति बन जाती है। लार्वा अब एक पुटिका (cyst) के रूप में रहता है। लार्वा के प्रावार की भक्षकाणुक कोशिकाएँ (phagocytic cells) परपोषी के ऊत्तकों से पोषण प्राप्त करती है। लगभग दस से तीस दिनों में परपोषी लार्वा मुक्त होकर एक किशोर सीपी बनता है । इस तरह यह आंशिक रूप से परजीवन प्रदर्शित करता है। परपोषी के शरीर में परिवर्धन के समय एक अभिवर्तनी पेशी के स्थान पर दो अभिवर्तनी पेशियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रावार व अन्य अंग-तंत्र भी विकसित होते हैं। लार्वा के कुछ अंग, जैसी संवेदी गुच्छक, सूत्र गुच्छक व लार्वा की प्रावार, समाप्त हो जाते है। एक अवयस्क सीपी परपोषी को छोड़ कर पैंदे में बैठ जाती है। यहाँ के पैदे में धंस कर यह शेष परिवर्धन पूर्ण करती है तथा धीरे-धीरे वयस्क स्वभाव को प्राप्त करती है।
ग्लाकिडियम लार्वा सीपियों का उपयोगी लार्वा है क्योंकि यह न सिर्फ परपोषी से पोषण व सुरक्षा प्राप्त करता है वरन् उसके माध्यम से यह अपनी जाति के प्रकीर्णन में भी मदद करता है। सीपियों में गमन की क्षमता अधिक नहीं होती है यदि उसकी सन्ततियाँ एक ही स्थान पर परिवर्धित होती रहें तो आवश्यक पदार्थों की कमी के कारण स्पर्धा उत्पन्न हो सकती है जो प्रकीर्णन के टल जाती है। मछलियाँ ग्लॉकिडियम को जल बहाव की विपरीत दिशा तक ले जा सकती। वयस्क सीपियाँ आसानी से नहीं जा पाती है।
जनन तन्त्र (Reproductive System)
यूनियो एकलिंगी प्राणी होता है। इसमें लिंग अलग-अलग होते हैं परन्तु लैंगिक विभेदन स्पष्ट रूप से नहीं पाया जाता है। यूनियो में नर व मादा में कोई स्पष्ट अन्तर नहीं पाया जाता है और न ही लैंगिक विशेषता पायी जाती है अतः बाह्य लक्षणों के आधार पर नर व मादा में विभेदन नहीं किया जा सकता है। इसकी विकासीय अवस्था में लारवा पाया जाता है जो ग्लोकीडियम (glochidium) लार्वा कहलाता है तथा यह एक परजीवी लारवा होता है।
नर जनन तंत्र (Male reproductive system)
यूनियो का नर जनन तंत्र वृषण (testes) तथा शुक्राणु वाहिका से मिल कर बना होता है।
वृषण (Testes)
युनियो में एक जोड़ी वृषण पाये जाते हैं जो अत्यधिक शाखित होते हैं। वृषण आन्तरांग पुंज में आंत्र की कुण्डलियों के बीच स्थित होते हैं। जनन काल में ये बड़े व विकसित हो जाते हैं। नर में वृषण सफेद रंग के होते हैं। वृषण भीतर से जनन उपकला द्वारा आस्तरित होते हैं तथा शुक्राणु जनन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करते हैं।
शुक्राणु वाहिनी (Vas deferens)
प्रत्येक वृषण से एक छोटी शुक्राणु वाहिनी निकलती है जो उत्सर्जी छिद्र के समीप प्रावार गुहा में खुल जाती है। इसमें सहायक जननांगों जैसे- ग्रन्थियों एवं मैथुन संरचनाओं का अभाव होता है।
मादा जनन तंत्र (Female reproductive system)
यूनियो का मादा जनन तंत्र अण्डाशय (ovaries) तथा अण्डवाहिनी (oviduct) से मिल कर बना होता है।
अण्डाशय (Ovaries)
यूनियो में एक जोड़ी अण्डाशय पाये जाते हैं। नर में पाये जाने वाले वृषण के समान मादा में भी अण्डाशय आन्तरंग पुंज में आंत्र की कुण्डलियों के बीच स्थित होते हैं। अण्डाशय शाखित नलिकाकार संरचनाओं का बना होता है। जनन काल में अण्डाशय अधिक विकसित व लाल रंग का होता है। अण्डाशय की नलिकाएँ जनन उपकला द्वारा आस्तरित होती है जो अण्डजनन की द्वारा अण्डाणुओं का निर्माण करती है। अण्डवाहिनी (Oviduct)
प्रत्येक अण्डाशय से एक छोटी नलिका निकलती है जिसे अण्डवाहिनी कहते हैं। यह अपर से परिपक्व अण्डों को ले जाती है। प्रत्येक अण्डवाहिनी उत्सर्जी छिद्र के समीप अधिक्लोमा (supra branchial chamber) में खुलती है।
निषेचन (Fertilization)
यनियो में निषेचन आन्तरिक होता है। मादा में परिपक्व अण्डे शरीर से बाहर नहीं निकाले जा हैं बल्कि प्रावार गुहा में छोड़ दिये जाते हैं जो ऑस्टिया में होकर गिल लेमिना की जल नलिका में चले जाते हैं। निषेचन वहीं पर होता है। जबकि नर में परिपक्व शुक्राणु प्रावार गुहा से बहिर्वाही साइफन द्वारा बाहर जाने वाली जल धारा के साथ बाहर निकाल दिये जाते हैं। संयोगवश ये शकाण मादा यूनियो के अन्तर्वाही साइफन द्वारा भीतर जाने वाली जल धारा के साथ मादा के अधो:क्लोम प्रकोष्ठ (infra branchial chamber) में चले जाते हैं वहाँ से ऑस्टिया में होकर, शक्राण, गिल लेमिना की जल नलिकाओं में चले जाते हैं। जल नलिकाओं में पहले से ही उपस्थित परिपक्व अण्डों को ये शुक्राणु निषेचित कर देते हैं तथा इस प्रकार युग्मनज (zygote) का निर्माण हो जाता है।
यूनियो में परिवर्धन भी मादा यूनियो के शरीर में ही होता है परिवर्धन के फलस्वरूप ग्लोकीडियम लार्वा का निर्माण हो जाता है।
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