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हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक कौन थे , 1928 में किस स्थान पर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया

जाने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक कौन थे , 1928 में किस स्थान पर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया ?

उत्तर : उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए चन्द्रशेखर आजाद ने सितम्बर, 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ (H.S.R.A.) का गठन किया

प्रश्न: भारत में राष्ट्रीय क्रांतिकारी आंदोलन में चन्द्रशेखर आजाद का योगदान बताइए।
उत्तर: ये आधुनिक उ.प्र. के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। चंद्रशेखर आजाद का जन्म भाँवरा गाँव (झाबुआ, मध्यप्रदेश) में 23 जुलाई, 1906 को पंडित सीताराम तिवारी व माता जगरानी देवी के घर हुआ। इनका पैतृक निवास बदरका गाँव (जिला, उन्नाव, उत्तरप्रदेश) था।
ये हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के साथ घनिष्टता से जुड़े थे। ये काकोरी षड़यंत्र कांड, लाहौर षडयंत्र केस, दिल्ली षड़यंत्र केस और अनेक क्रांतिकारी एवं आतंकवादी मामलों से संबंधित थे। 1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए ये शहीद हो गए।
आजाद अहसयोग आन्दोलन में गिरफ्तार किए गए और मुकदमे में अपना नाम ‘आजाद‘ बताए जाने के बाद इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। असहयोग आंदोलन के दौरान जब फरवरी, 1922 में चैरा-चैरी की घटना के पश्चात् बिना किसी से पूछे गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और वे ‘हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ‘ में शामिल हो गए। 1 जनवरी, 1925 को इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त, 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया।
अग्रेंज चंद्रशेखर आजाद को तो पकड नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं- पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ व रोशन सिंह को 19 दिसबर, 1927 तथा उससे दो दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर, 1927 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
इसके पश्चात् उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए चन्द्रशेखर आजाद ने सितम्बर, 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ (H.S.R.A.) का गठन किया और भगतसिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपराय की मौत का बदला साण्डर्स का वध करके लिया गया। 23 दिसंबर, 1930 को वायसराय लार्ड इरविन की ट्रेन को उड़ाने के लिए निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास दिल्ली-मथुरा लाइन के नीचे बम विस्फोट किया । लेकिन वायसराय बाल-बाल बच गए।
27 फरवरी, 1931 को एस.पी. नाटबाबर के नेतृत्व में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई गोलाबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। रामप्रसाद बिस्मिल इनको ‘क्विकसिल्वर‘ (पारा) कहकर पुकारते थे।

चित्रकला के बारे में कुछ महत्वपूर्ण इतिहास

भोपाल के निकट भीमबेटका में गुफा चित्रों का सबसे बड़ा प्राचीनतम संग्रह मिला है जो नवपाषाण युग की हैं और इनमें समाज के दैनिक क्रियाकलापों को दिखाया गया है शिकार, नृत्य तथा शरीर-सज्जा। सबसे पुराने चित्र पशुओं के हैं,जैसे बैल, रीछ, बाघ आदि। लगता है इन रंग चित्रों का जादुई महत्व था। पर्सी ब्राउन के अनुसार ऐसे प्राचीनतम चित्र, जिनका काल निर्धारण किया जा सकता है, सरगुजा में रामगढ़ पहाड़ी की जोगीमारा गुफाओं की दीवारों पर मिलते हैं। अनुमान है ये भित्तिचित्र ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बने थे।
भारत में चित्रकला के उद्गम के सम्बंध में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने एक राजा को शिक्षा दी कि कैसे एक ब्राह्मण के मृत बेटे का चित्र बनाकर उसे पुगर्जीवित किया जा सकता है। बाद में ब्रह्मा ने उसे जीवित कर दिया था। सृष्टि के जनक के रूप में ब्रह्मा विश्वकर्मा से भी संबंधित हैं। जो देवताओं के वास्तुकार तथा कला व शिल्प के जनक हैं।
चित्रकला और अन्य अनेक कलाओं के सम्बंध में किसी समय अनेक भारतीय ग्रंथ उपलब्ध थे। परंतु समय के हेर-फेर के साथ अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए। यद्यपि कुछ ग्रंथ ऐसे हैं जो आज भी उपलब्ध हैं। वात्स्यायन का काम-सूत्र इन्हीं में से एक है। इसका प्रारंभ करते हुए लेखक ने कहा है कि प्राचीन शास्त्रों के संग्रह और उन शास्त्रोक्त विद्याओं के प्रयोग का अनुसरण करके बड़े यत्न से उन्हें संक्षेप में लिखकर उन्होंने काम-सूत्र की रचना की है। काम-सूत्र में जिन 64 कलाओं का उल्लेख है उनमें चित्रकला का स्थान चैथा है।
काम-सूत्र की जय मंगला नामक टीका में चित्रकला के 6 अंग कहे गये हैं रूप-भेदए प्रमाणए भावए लाव.य योजनाए सादृश्य और वर्णिका भंग।
रूप-भेद
रूप-भेद का अर्थ है ऐसी आकृति जिसकी किसी दूसरी आकृति से समानता न हो। इस प्रकार हम लम्बी, छोटी,गोल, चैरस, मोटी, पतली, सफेद या काली किसी भी वस्तु को ग्रहण कर सकते हैं। वस्तु के भीतर जो सौंदर्य है उसको हम अपने अनुमानए चिंतन और भावनाओं द्वारा पहचान सकते हैं। इसी विभिन्नता को एक में संजोकर रखना ही रूप-भेद है।
उदाहरण के रूप में किसी नारी के स्वरूप को एकाएक आंखों द्वारा नहीं पहचाना जा सकता। गोद में बच्चा लिए हुए नारी को हम माता कह सकते हैं। उसी के हाथ में झाड़ू देखकर नौकरानी की संज्ञा दी जा सकती है और कभी उसी को फटे चिथड़ों में दिखाकर दुखियारी का रूप दिया जा सकता है। यदि इन माध्यमों को हटा दिया जाए तो न तो हम उसे माता कह सकेंगे, न नौकरानी और न दुखियारी। परंतु उसके आंतरिक रूप को हम आत्मा के माध्यम से ही पहचान सकते हैं।
किसी भी चित्र में रूप-रेखाएं जितनी भी स्पष्ट, स्वाभाविक और सुंदर होंगी, चित्र उतना ही सुंदर बन पाएगा। किसी भी चित्र-रचना में यह विशेष गुण होना आवश्यक है। इसी गुण के द्वारा विभिन्न रुचियों वाले विभिन्न व्यक्ति उस चित्र से आनन्द उठा सकते हैं। किंतु ऐसा तभी संभव है जब चित्र के रूप-भेदों की बारीकियों का ध्यान रखा गया हो। रूप-भेदों से अनभिज्ञ होने के कारण चित्र की वास्तविकता को नहीं आंका जा सकता।
प्रमाण
प्रमाण का अर्थ है चित्र की सीमा, लम्बाई.चैड़ाई का निर्धारण करना। प्रमाण के द्वारा ही मूल वस्तु की यथार्थता का ज्ञान उसमें भरा जा सकता है। उदाहरण के रूप में विशाल समुद्र की रचना एक छोटे-से कागज पर कर देना और उसके सभी गुणों और विशेषताओं की सहज रूप से पहचान करवा देना चित्रकार की प्रमाण-शक्ति के द्वारा ही सम्भव हो सकता है। प्रमाण के द्वारा ही हम मनुष्य, पशु-पक्षी आदि की भिन्नता और उनके विभिन्न भेदों को ग्रहण कर सकते हैं। उनके समस्त अंगों का समावेश किस क्रम से होना चाहिए अथवा देवी.देवताओं और मनुष्यों के चित्रों में क्या अंतर होना चाहिए ये सभी बातें प्रमाण द्वारा ही निर्धारित की जा सकती हैं।
भाव
भाव चित्र की अनुभूति से उभरते हैं। स्वभाव, मनोभाव और उसकी व्यंगयात्मक प्रक्रिया का भाव ही हमारे शरीर में अनेक स्थितियां पैदा करता है। भाव-व्यंजन के दो रूप हैं प्रकट और अप्रकट। प्रकट भाव को हम आंखों द्वारा देख सकते हैं, परंतु अप्रकट स्वरूप को व्यंजना द्वारा ही समझा जा सकता है। उसको हम अनुभव करके ही जाग सकते हैं।
लावण्य-योजना
लाव.य सौदर्य में लुभावनापन होने को कहते हैं। रूपए प्रमाण तथा भाव के साथ-साथ चित्र में लाव.य होना भी आवश्यक है। भाव जिस प्रकार मनुष्य के भीतरी सौंदर्य का बोधक है उसी प्रकार लाव.य चित्र के बाहरी सौंदर्य का बोधक है। लाव.य-योजना के द्वारा ही चित्र को नयनाभिराम बनाया जा सकता है। कभी-कभी किसी विशिष्ट भाव के कारण चित्र में भी रूखापन आ जाता है तब लाव.य ही उसको दूर करता है। परंतु चित्र में लाव.य-योजना उचित रूप में होनी चाहिए। ‘उचित रूप में’ इसी बात को इस प्रकार कहा जा सकता है कि
लावण्य मानो कसौटी पर सोने की रेखा है अथवा साड़ी पर एक सुंदर किनारी।
सादृश्य
किसी मूल वस्तु की नकल अथवा उसकी दूसरी आकृति बनाना अथवा उसकी समानता का नाम ही सादृश्य है। उदाहरण के लिए हम जिस वस्तु का चित्रण फिर करते हैं उसमें यदि मूल वस्तु के गुण-दोष समाहित न हों तो वह वास्तविक कृति नहीं कही जा सकती। स्पष्ट रूप से समझने के लिए कहा जा सकता है कि यदि किसी चित्रकार को कृष्ण व राम के चित्र बनाने हैं तो उसे उन दोनों की विशेषताओं का ज्ञान होना आवश्यक है। इस प्रकार राम और कृष्ण के चित्र में विशिष्ट भिन्नता यह होगी कि कृष्ण का मुकुट मोरपंख का होगा जबकि राम का मुकुट इस प्रकार का नहीं होगा। कृष्ण के हाथ में बंसी होगी और राम के हाथ में धनुष-बाण।
सादृश्य द्वारा ही दर्शक चित्र को तुरंत पहचान लेता है कि वह चित्र किसका है। जिसको पहचानने में दर्शक को किसी प्रकार की दुविधा न हो वही चित्र शुद्ध चित्र कहा जाएगा। केवल सादृश्य द्वारा ही यह संभव है।
वर्णिका-भंग
चित्र में अनेक रंगों की मिली-जुली भंगिमा को वर्णिका-भंग कहते हैं। वर्णिका-भंग के द्वारा ही चित्रकार को इस बात का ज्ञान होता है कि किस स्थान पर किस रंग को भरना चाहिए तथा किस रंग के साथ कौन-सा रंग लगाना चाहिए। रंगों के भेद-भाव से ही हम वस्तुओं की भिन्नता अंकित करने में समर्थ हो सकते हैं। इसके लिए दीर्घ अभ्यास की आवाश्यकता होती है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार कि वर्ण-ज्ञान के बिना जप और पूजन आदि व्यर्थ हैं।
चित्रकला के परवर्ती विकास क्रम को देखने से पता चलता है कि भारतीय चित्रकारों ने इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर काम किया था। नष्ट हो जागे वाली सामग्री पर बने उन प्राचीन चित्रों का अब कोई नमूना नहीं मिलता। ऐतिहासिक युग की प्राचीनतम उपलब्ध कलाकृति रामगढ़ की जोगीमारा गुफा में पीले और गेरू, रंग से बनी मानवाकृतियों और जलचरों के समूह चित्र हैं। इन्हें देखने से पता चलता है कि इन कलाकारों को अपने कार्य का अच्छा ज्ञान व अभ्यास था। जो प्राचीनतम चित्र आज उपलब्ध हैं अच्छी स्थिति में वे अजंता ऐलोरा, बाघ व सित्तनवासल गुफाओं में बने हुए हैं।